छुट्टियाँ बाद में आती हैं , उनके इस्तेमाल का प्लान पहले बनने लगता है. कुछ ऐसा ही इस बार भी क्रिसमस की छुट्टियों के पहले हुआ.
शैली ने हैदराबाद बुलाया था, तो मंजू दीदी और वर्षा ने इंदौर. तारा आंटी इलाहाबाद बुला रही थीं तो राजा और शिवेंद्र मुंबई. शमा दीदी ने पुणे आने का आत्मीय आग्रह किया तो हमने भी पुणे जाने का मन बना लिया. रिज़र्वेशन करवाने के पहले सोचा इस्मत को भी खबर कर दें. क्योंकि जब पुणे जा ही रहें हैं तो वहीँ से गोवा भी हो आयेंगे, ताकि इस्मत की सात साल पुरानी शिकायत दूर हो सके. लेकिन ये क्या? हमने जैसे ही इस्मत को बताया, उसने पूरा कार्यक्रम ही रद्द कर दिया. बोली- चौबीस दिसंबर को हम मोहर्रम के सिलसिले में जौनपुर जा रहे हैं. इस बीच तुम्हें इस तरफ की यात्रा करने की कोई ज़रुरत नहीं है. खबरदार जो तुम मेरी ग़ैरमौजूदगी में इस तरफ आईं. तुम गर्मियों की छुट्टियों में यहाँ आ रही हो.
लो भैया!! यहाँ तो पूरा कार्यक्रम भी बता दिया गया है, आने का.
हम अभी ऊहापोह में ही थे, की कानपुर से बब्बी . मेरी छोटी बहन का फोन आया कि सत्ताईस दिसम्बर को उसका एक ऑपरेशन किया जाना है. हमने कहा- निश्चिन्त रहो, हम आ रहे हैं ( जैसे हम कोई सिद्धहस्त डॉक्टर हों).
और जहाँ सोचा भी न था, जहाँ का कोई न्यौता भी न था, वहां का रिज़र्वेशन हो गया.
कानपुर यात्रा के पहले एक ओर मन में बहन के स्वास्थ्य को लेकर चिंता थी, तो दूसरी ओर अनूप जी से मुलाकात का उत्साह. अपने कानपुर आने के बारे में अनूप जी को बताया, तो मालूम हुआ कि वे सपरिवार राजस्थान-यात्रा पर जा रहे हैं :(. लेकिन अनूप जी ने विश्वास जताया था कि मुलाकात होगी ही.
कानपुर पहुंचे, और बहन का सफल ऑपरेशन भी हो गया. अब चिंतामुक्त थी. आठ दिन कब बीत गए पता ही नहीं चला. कानपुर अमर-उजाला में मेरे देशबंधु के सहयोगी और मित्र संजय शर्मा भी हैं. हमने कानपुर में होने कि बात बताई तो अड़ गए कि जब तक उनके घर नहीं जाउंगी, तब तक वे बात भी न करेंगे ( कितनी खुशकिस्मत हूँ, कितने स्नेही दोस्त मिलें हैं.)
साल का आखिरी दिन और मोबाइल रूठा हुआ... न जाने क्या गड़बड़ हुई, कि कोई फोन ही नहीं लग रहा, न आ रहा न जा रहा. विधु के मोबाइल पर मेरे पतिदेव , उमेश जी ने खबर की तब समझ आया की मेरा फोन तो स्विच्ड ऑफ़ बता रहा है. ठीक करने की कोशिश या अतिरिक्त होशियारी में मैंने मोबाइल रिसेट कर दिया और ये लो!!! फोन में सेव तीन सौ नंबर डिलीट !!!!!! हाथ पैर कट गए हो जैसे...निहत्था सैनिक मैदान में........किसी को शुभकामनाएं भी न दे सकी.
एक जनवरी यानि कानपुर-प्रवास का आखिरी दिन. अनूप जी से मुलाकात अभी तक नहीं हो सकी थी. दो की सुबह साढे छह बजे हमारी ट्रेन थी. सुबह घने कोहरे के बीच हनुमान चालीसा पढ़ते हुए सुनील गाडी चलाते रहे. रास्ते में एक तेज़ रफ़्तार ऑटो निकला तो सुनील ने पूछा- " जानती हैं दीदी , ये ऑटो वाला इतना तेज़ ऑटो क्यों चला रहा है? "
मैंने इंकार में सर हिलाया तो बोले- " क्योंकि वो दूसरों को बिठाए है."
वाह!!! क्या जवाब था!!
स्टेशन आने पर पता चला की ट्रेन तीन घंटे लेट है. इस बीच अनूप जी का फोन आया तो हमने कहा की हमारी ट्रेन आने ही वाली है. अब अगली यात्रा में मुलाकात होगी. नौ बजे पता चला की दिल्ली रूट पर ट्रेन- एक्सीडेंट हो गया है प्रयागराज का इसीलिए उस रूट की सभी ट्रेनें लेट हैं. बारह बजे पता चला की ट्रेन ग्यारह घंटे लेट है ( ये अलग बात है की बाद में सत्रह घंटे लेट हो गई). अनूप जी का फोन आया-" घर का एड्रेस बताओ हम आ रहे हैं." वाह!! हमने कहा की हम लोग नर्सिंग होम के लिए निकल चुके हैं आप भी वहीँ आ जाइए.
आधे घंटे के अन्दर अनूप जी अपने साढ़ू भाई अजय दीक्षित जी के साथ हाज़िर! अनूप जी के विश्वास की जीत हुई. अनूप जी और अजय जी जुगलबंदी ने स्तरीय हास्य की जो सृष्टि की, उसमें देर तक हम डूबते-उतराते रहे. इसी बीच अनूप जी ने बताया की शेफाली पाण्डेय भी कानपुर आई हुईं हैं. उन्हें फोन किया तो पता चला की वे नर्सिंग होम के पास स्थित मॉल रेव-मोती में हैं. हमने उन्हें वहां से उठाया और फिर वापस नर्सिंग होम. यहाँ जम के गपशप और चाय के दौर भी चले. शेफाली जी की प्यारी सी बिटिया नव्या और मेरी बिटिया विधु ने भी हम लोगों की गपशप का लुत्फ़ उठाया. अनूप जी के लाये मोतीचूर के लड्डू खाए .
महफ़िल बर्खास्त करने का मन तो नहीं था, लेकिन हमारी ट्रेन का एक बार फिर टाइम हो रहा था सो हमने सबसे विदा ली और किसी प्रकार तीन तारीख की सुबह सतना पहुँच गए.
कानपुर में अनूप जी और शेफाली से मिलना एक उपलब्धि की तरह रहा. यह संयोग ही था की हमारी ट्रेन लेट हुई और हम अनूप जी और शेफाली से मिल सके. दोनों ही हंसमुख, खुशमिजाज़. मन खुश हो गया. सुबह से जितनी तकलीफें भारतीय रेल ने दीं थीं, सब दूर हो गईं, इन दोनों ब्लॉगर बंधुओं से मिल कर. ईश्वर आगे भी ऐसी ही सफल यात्राएं करवाए.
वैसे अनूप जी ने अपने ब्लॉग पर भी इस मुलाकात का बढ़िया वर्णन किया है.
अच्छी जानकारी। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएं"होई है सोई, जो राम रचि राखा.."
जवाब देंहटाएंको करि तरक बढावहिं शाखा ...
वंदना जी, आश्चर्य है की आपके इतने रिश्तेदार दूसरे शहरों में रहते हैं।
जवाब देंहटाएंहम तो दिल्ली में पैदा होकर यहीं रहे और सारे सम्बन्धी भी यहीं हैं।
इसलिए दिल्ली से बाहर जाना भी पहली बार २२ साल की उम्र में हुआ।
खैर अच्छा लगा इस मुलाकात के बारे में जानकार।
ब्लॉग परिवार भी अब एक परिवार जैसा ही बनता जा रहा है।
bahut achchha laga aapake itane bade doston aur rishtedaron ke ddyare ko dekh kar.rochak vivaran.
जवाब देंहटाएं०-धन्यवाद मनोज जी
जवाब देंहटाएं०- धन्यवाद अर्कजेश जी.
०- सच है दराल साहब. आज पूरे देश में हमारे ब्लॉगर बन्धु हैं. और सब अब एक ही परिवार के से लगते हैं.
०- धन्यवाद कविता जी.
जो होता है अच्छे के लिए होता है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा और वैसे अपनी सबकी यही बात है यही कहानी है जिनको मिलना होता है मिलने के बहाने ढूंढते है जिनको नहीं मिलना होता है वो न मिलने के
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया संस्मरण.
जवाब देंहटाएंमोतीचूर के लड्डू..
क्या बात है!
कानपुर में अनूप जी और शेफाली जी से मिलना हो पाया आप का.
आभासी दुनिया के परिचित वास्तविक दुनिया में मिलते हैं तो वह खुशी अलग ही होती होगी.
-देखें आप से कब मिलना हो पाता है?
-अनूप जी की पोस्ट भी पढ़ी नहीं..आज ही पढ़ती हूँ.
शुभकामनाएँ.
-चित्र नहीं दिखाई दे रहे..कोई तकनीकी कारण?]
०-धन्यवाद हास्य-फुहार जी.अपना नाम भी बता दें न!
जवाब देंहटाएं०- सच है रचना जी.
०- अल्पना जी आप कब स्वदेश वापस आ रही हैं? हम ज़रूर मिलने आयेंगे, दूरी कितनी भी हो बस खबर कर दें. फोटो यहां तो दिख रही हैं.
vandana ji apka likha hua kuchh bhi padhen bahut sahajta hoti hai khastaur se sansmaran padhne men lagta hai aamne saamne bat ho rahi hai.ye mulaqat sa maza man praphullit kar deta hai kai dinon ke liye .
जवाब देंहटाएंvandana ji.....sach me vah mulaakat bahut smarneey rahee.....
जवाब देंहटाएंbaar baar din ye aaye ,yaad yoon hi sunhare sajaye ,sach hota wahi jo hona hai ,bahut hi sundar yaade ,jise bhoolaya na jaaye .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर संस्मरण रहा आपका...और बहुत ख़ुशी हुई जानकार कि आपकी मुलाक़ात दिग्गज लोगों से हुई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा लगा पढ़कर..
आभार..
पूरी रपट तो वैसे सुकुल जी से सुन ली थी उनके ब्लौग पर, शेष आपने सुना दी अपने खासम-खास अंदाज में...
जवाब देंहटाएंअच्छी तस्वीरें!
ek uttam aur satik post... har pankti kareene se saji hui... aur baat sahi hai... jo hona hota hai wahi hota hai...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया संस्मरण.
जवाब देंहटाएंमोतीचूर के लड्डू..
क्या बात है!
कानपुर में अनूप जी और शेफाली जी से मिलना हो पाया आप का.
आभासी दुनिया के परिचित वास्तविक दुनिया में मिलते हैं तो वह खुशी अलग ही होती होगी.
-देखें आप से कब मिलना हो पाता है?
वंदनाजी,
जवाब देंहटाएंप्रवाहमयी भाषा में यात्रा-वृत्तान्त का सहज लेखन पाठक को अपनी गिरफ्त में लेता है और विवरण पूरा पढ़ने को बाध्य करता है... लेखन की यह सहजता ही आपकी विशेषता है ! आप विश्वास चाहे न करें, आपकी इन पंक्तियों को पकड़ कर मैं भी कानपुर टहल आया -- एक बार और ! सुधियाँ डंक मारती रहीं...
सप्रीत--आ.
आपको और आपके परिवार को नए वर्ष की शुभकामनायें! बहुत बढ़िया जानकारी प्राप्त हुई आपके पोस्ट के दौरान! धन्यवाद!
जवाब देंहटाएं०- संस्मरण तुम्हें अच्छा लगा, समझो मेरा लिखना सफल हुआ इस्मत.
जवाब देंहटाएं०- सचमुच शेफाली जी, मुलाकात अविस्मरणीय रहेगी.
०- धन्यवाद ज्योति जी.
०- धन्यवाद अदा जी.
०- धन्यवाद गौतम जी.
०- धन्यवाद अभिषेक जी.
०- धन्यवाद संजय जी.
०- श्रद्धेय, आपको धन्यवाद भी किन शब्दों में दूं? हमेशा आशीर्वाद की आकांक्षी हूं.
०- धन्यवाद बबली जी.
बेहद सुंदर वर्णन। जैसे हम सिद्धहस्त डॉक्टर है...बढिय़ा।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.....देखिये ये ब्लोगर मीत कितना सुकून दे जाती है ......वैसे ये भी किस्मत वालों को ही नसीब होता है .......!!
जवाब देंहटाएंमोती चूर लड्डुओं के साथ मुलाकात-गप-शप भी ,आनंद आ गया होगा.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा रचा राम जी ने बधाई मकर संक्राँति की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवंदना जी, आदाब
जवाब देंहटाएंये आपका अंदाज़े-बयां ही ग़ज़ब का है
ऐसे बांधकर चलती हैं, कि पढ़ने वाले खुद को
साथ चलता हुआ मह्सूस करते हैं
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
छोटे-छोटे संस्मरण ही बड़े साहित्य के सृजन कि भूमिका तय करते हैं. सुंदर लेखन के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंHamne aapko bada miss kiya! Waise aapne likha istarah se hai,ki, aankhon ke aage sara drushy ghoom gaya!
जवाब देंहटाएंapko b nav varsh ki dehro subhkamnaye. ap kanpur ghum k aye , hm b vahi ka hai. mil k acha laga
जवाब देंहटाएंshukriya is vivran ko sajha karne ka
जवाब देंहटाएंKismat waali hai aap jo Anoop ji aur itne logon se mil paayin
जवाब देंहटाएंrishtedaron ka sneh dekh kar bhi achcha laga aaj ke zamane mein jahan sab apne mein mast hai waha koi pyaar se zid karke bulaye achcha lagta hai
०- धन्यवाद रवि जी.
जवाब देंहटाएं०- धन्यवाद हरकीरत जी.
०- धन्यवाद मनोज जी.
०- धन्यवाद निर्मला जी.
०- धन्यवाद शाहिद जी.
०- देवेन्द्र जी.
०- धन्यवाद क्षमा दी.
०- धन्यवाद मनीष जी.
०- धन्यवाद मनु जी.
०- धन्यवाद श्रद्धा जी.
वंदना जी आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा आपका लेखनी पर पूरा अधिकार है यात्रा वृतांत ओर वो भी सगे सम्बन्धियों के यहाँ -एक बड़े निराले अंदाज में लिखा गया,हाँ आपने हमारे ब्लॉग पर आकर हमें पढ़ा ओर कुछ त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया आपका धन्यवाद,कोशिश रहेगी पहले से बेहतर लिखा जाये
जवाब देंहटाएंसादर
वंदना जी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
बहुत बहुत आभार
वंदना जी
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया यत्र वर्णन पढ़कर .बीच में कही मैंने इंदौर का नाम भी पढ़ा मै यही रहती हूँ आशा करती हूँ इंदौर आते वक्त आप मेरा ध्यान जरुर रखेगी
शुभकामनाये