हमारे नन्हे ग्राहक तो सुबह आठ बजे से ही अपनी मम्मियों या पापाओं की अंगुली पकड़े हाज़िर हो गये :) जबकि मेले का उद्घाटन नौ बजे होना था. मेला सुबह नौ बजे से दोपहर एक बजे तक चला. खूब मज़े किये बच्चों ने, और हम बड़ों ने भी. हां, बच्चों की मेहनत की कमाई हमने शाला विकास के नाम पर जमा नहीं करवाई है:)
अब आप भी मेले का आनन्द लें,तस्वीरों के ज़रिए-
सभी बच्चों ने बढिया स्टॉल लगाये थे। तमाम तरह की चीज़ें उपलब्ध थीं. किसी ने पानी-पूरी कीदुकान लगाई तो किसी ने आलू-टिकिया सजा ली. कोई गुब्बारे बेच रहा था तो कोई बुढिया के बाल :) एक दुकान पर शानदार चाऊमीन बिक रही थी. बच्चे की मम्मी खुद साथ में जुटीं थीं, मदद के लिये. खूब बिक्री हुई उसकी
दो स्टॉल भेलपुरी के थे , यहां भी जम के खाया लोगों ने।चने के चाट वाले स्टॉल पर भी खूब बच्चे दिखे. पर सबसे ज़्यादा भीड़ बटोरने में कामयाबी मिली पानी-पूरी के विक्रेता को. लाइन लगा के लोगों ने स्वाद लिया यहां.
बच्चों के उत्साह से उत्साहित हो, हमारी आर्ट टीचर, जो खुद भी बहुत सुन्दर पर्स,बैग आदि बनाती हैं, ने भी अपना स्टॉल लगाया, और धड़ाधड़ बैग्स बेचे. दोपहर एक बजे तक चलने वाले इस नन्हे मेले में ग्राहकों की भीड़ मेला खत्म होने के बाद भी लगी रही।
बाद में दौर शुरु हुआ बच्चों की आय का विवरण लेने का. एक एक कर के मुन्ने दुकानदार आते, अपनी मेहनत की कमाई टेबल पर रखते, उसे गिना जाता, लाभ-हानि का ब्यौरा दिया जाता, और राशि सौंप दी जाती. सबसे सुन्दर स्टॉल को पुरस्कृत भी किया गया. बच्चों के माध्यम से उस दिन हमने भी खूब अपना बचपन जिया....