रविवार, 26 अप्रैल 2009

कैसे-कैसे अंध-विश्वास....

मेरे विद्यालय में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो गई है, लिहाज़ा स्टाफ को यहाँ-वहां की बातें करने का पर्याप्त समय मिलता है। इसी बतरस के दौरान कल एक बड़ी विचित्र सी बात सामने आई । मेरे विद्यालय की ही एक शिक्षिका ने मुझसे एक व्रत ले लेने की बात कही मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मुझे इस गणेश-व्रत में पन्द्रह दिनों तक उनके द्वारा दी गई व्रत सम्बन्धी दो कहानियाँ और जप करना होगा,पन्द्रह दिनों के बाद मैं जब इस व्रत का प्रसाद जिस भी महिला को दूँगी,उसे भी अगले पन्द्रह दिनों तक यह क्रम दोहराना होगा। और प्रसाद भी किसी एक को नहीं बल्कि चार महिलाओं को देना होगा। फिर इसी प्रकार सिलसिला चलता रहेगा। सुन के मैं सकते में आ गई। इस प्रकार जबरिया व्रत करवाने का मतलब? चूंकि मैं मूर्ति-पूजा करती नहीं सो मैंने न केवल उनसे क्षमा मांग ली,बल्कि इस व्रत के सिलसिले को यहीं समाप्त कर देने की सलाह भी दे डाली।
लेकिन इस किस्से के बाद मेरा मन बहुत दुखी हो गया। उन शिक्षिका महोदया का कहना था की यदि हमने इस व्रत को नहीं किया तो हमारे परिवार पर संकट आ जाएगा। उनकी मंद-बुद्धि में ये बात नहीं आई की संकट तो व्रत करने के बाद भी आ सकता है। हर हिंदू परिवार में पूजा-पाठ होता ही है, तो क्या हम संकटों से बचे रहते हैं?जिन महिलाओं को हम पढ़ा-लिखा समझते हैं, कम से कम उन्हें तो ऐसी अंध-विश्वास से जुड़ी बातों का विरोध करना ही चाहिए। शिक्षित होने के बाद भी यदि हम ऐसी थोथी मान्यताओं में उलझे रहेंगे तो जो सचमुच अशिक्षित महिलाऐं हैं, उन्हें सही रास्ता कौन दिखायेगा? क्या ये महिलाऐं सचमुच शिक्षित हैं? मुझे तो नहीं लगता.....और आपको???

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

ऐसा भी हो रहा है....

मतदान के ठीक एक दिन पहले ही विन्ध्य के एक लोकसभा क्षेत्र में एक प्रत्याशी द्वारा नकली नोट बांटे जाने का सनसनीखेज़ मामला प्रकाश में आया है। एक स्थानीय दैनिक समाचार-पत्र में छपी इस घटना ने उन लोगों के कान खड़े कर दिए हैं, जो पहले ही नकली नोटों की चपेट में आकर चूना लगवा चुके है।
विन्ध्य के रैगांव रामनगर क्षेत्र में घटी इस घटना की जानकारी तब हुई जब एक मजदूर पाँच सौ का नोट लेकर बाज़ार पहुँचा। सतना बाज़ार पहले से ही नकली नोटों की मार झेल रहा है, सो दुकानदार ने उक्त मजदूर से पूछा की उसे ये नोट कहाँ मिला ? मजदूर के अनुसार दो दिन पहले प्रत्याशी महोदय अपने लाव-लश्कर के साथ रात में दलितों की बस्ती में पहुंचे,फिर वहाँ पहले तो जमकर शराब की दावत दी गई,फिर जब लोग नशे में चूर हो गए तो उन्हें पाँच-पाँच सौ के ये नकली नोट बांटे गए। साथ ही ताकीद की गई की इन नोटों को चुनाव के बाद ही खर्च किया जाए। वो तो उक्त श्रमक को सामन की ज़रूरत थी सो वह वही नोट लेकर आ गया।
इस तरह के मामले होते रहते हैं, लेकिन इस मामले में ख़ास बात ये है की यदि जिला पुलिस अधीक्षक ने तत्परता से काम लिया तो सम्भव है की नकली नोट बनाने वालों की गैंग ही पकड़ जाए। ध्यान देने वाली बात है, कि उक्त प्रत्याशी के पास य नकली नोट कहाँ से आए? क्या उसका ताल्लुक भी इस गैंग या उसके सदस्यों से?
हालांकि जानती हूँ, कल मतदान है, पुलिस-प्रमुख के पास अभी इस मुद्दे पर ध्यान देने का समय ही कहाँ है? और फिर तो हम सब जानते हैं, कि रात गई सो बात गई। फिर कैसा प्रत्याशी कैसे नोट!

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

कि उनका देखना देखा न जाए........

चुनाव के रंग अब अपने शबाब पर हैं। आचार संहिता के चलते चुनाव-प्रचार पर तो लगाम है, लेकिन कुछ ऐसे परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं कि उनका ज़िक्र किए बिना चैन कहाँ....
फरवरी माह में नगरनिगम सतना ने आम जनता को चेताया था, कि एनिकट में केवल एक हफ्ते का पानी शेष है, इसलिए अब पानी कि सप्लाई सप्ताह में दो दिन ही की जायेगी। चलो ठीक है, पानी मिले यही क्या कम है! मार्च में चुनाव की तारीखें घोषित होने के पहले तक लोगों को हफ्ते में दो दिन ही पानी मिल रहा था। लेकिन इधर प्रत्याशियों की घोषणा हुई और उधर व्यवस्थाओं में परिवर्तन दिखाई देने लगे। इधर पन्द्रह दिनों से रोज़ पानी सप्लाई हो रहा है।
पानी रोज़ मिल रहा है ये तो अच्छा है, लेकिन सवाल ये उठता है, की जब एनिकट में पानी था ही नहीं तो ये पानी जो अब सप्लाई हो रहा है कहाँ से आ रहा है? इसके पहले जनता को जल- संकट का सामना क्यों करना पड़ रहा था? क्या जल-प्रदाय व्यवस्था इसी प्रकार सुचारू नही की जा सकती?
अब दूसरा संकट बिजली का है। साल भर से यहाँ पाँच घंटे की विद्युत् कटौती हो रही है। बीच-बीच में अघोषित कटौती अलग से। पूछने पर जवाब मिलता है, कि अधिक खपत के कारण लाईट अपने आप 'ट्रिप' हो जाती है, जनता लाचार ,क्या कहे जब अपने आप ट्रिप होती है...........लेकिन इधर चुनाव घोषित होते ही देख रही हूँ कि लाईट सुबह दो घंटे फिर दोपहर में केवल एक घंटे ही काटी जा रही है। अघोषित कटौती बंद। लाईट अब 'ट्रिप' क्यों नहीं हो रही??? खपत कम हो गई क्या?? वैसे भी किसी मंत्री को आना होता था तो लाईट कभी भी ट्रिप नही होती थी। ये सारे मुगालते तो केवल जनता के लिए हैं।
अब देखना ये है, कि चुनाव के बाद क्या होता है?

रविवार, 12 अप्रैल 2009

लाचार हैं,शहंशाहे-ग़ज़ल...

शहंशाहे -गज़ल मेंहदी हसन साहब पिछले चार सालों से लकवा ग्रस्त हैं, और अपने बेटों पर आश्रित हैं। चार साल पहले ही वे मुम्बई आए थे इलाज़ के सिलसिले में। अपने पसंदीदा गायक को इस हाल में देख उनके चाहने वालों ने दिल खोल कर मदद की। हसन साहब के बेटों का कहना था कि पैसों के अभाव में उनका समुचित इलाज नहीं हो पा रहा। हिंदुस्तान में मेंहदी हसन साहब को चाहने वालों की लम्बी फेहरिस्त है, और वे अपने शहंशाह को अभावग्रस्त कैसे देख सकते थे।
आज चार साल बाद भी मेहँदी हसन साहब बिस्तर पर पड़े रहने को मजबूर हैं, क्यों? जबकि देश विदेश से उनके चाहने वाले आर्थिक मदद कर रहे हैं? उनके बेटे लाखों रुपयों में भी उनका इलाज क्यों नहीं करवा पा रहे?
उन रुपयों का क्या कर रहे जो इलाज के लिए आ रहे हैं? क्यों अपने उस पिता के नाम का ग़लत फायदा उठा रहे हैं, जिन्होंने पैसे को कभी महत्त्व ही नहीं दिया? क्यों नहीं उनका ठीक से इलाज करवाते? क्या शहंशाहे -ग़ज़ल , जिसने सब के दिलों पर राज किया को सुकून भरी अन्तिम सांसे नसीब नहीं होंगी ??

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

घमंड

"भीषण झंझावात किसी वृक्ष को आमूल विध्वस्त कर,

हमारे मार्ग को अवरुद्ध कराने इसलिए नहीं डालता ,

कि हम अपनी यात्रा पूरी न कर सकें;

वह तो वृक्ष को उखाड़ कर इसलिए हमारे पथ को अवरुद्ध कर देता है,

कि क्षण भर हमें रोक कर वह यह तो पूछ ले

कि आख़िर हम अपने आप को समझते क्या हैं???"

रविवार, 5 अप्रैल 2009

मायावती और मदर टेरेसा

मायावती जी....उत्तर-प्रदेश की मुख्यमंत्री.....हमेशा कुछ न कुछ ऐसा कर देतीं हैं कि सुर्खियों में आ ही जातीं हैं। अब आज का उनका बयान ही लीजिये. राजनीति में जबरन मेनका गांधी के मातृत्व पर ही उंगली उठा दी। असल में ये तो एक राजनैतिक मुद्दा था, जिसमें अनावश्यक रूप से वरुण गांधी के पालन-पोषण पर आक्षेप लगाया गया. ये किसी भी मां के लिये अंदर तक हिला देने वाली बात होगी, यदि उस पर आरोप लगाया जाये कि उसने बच्चे को अच्छे संस्कार नहीं दिये. मज़े की बात तो ये कि मायावती जी ने अपनी तुलना मदर टेरेसा से कर डाली!! इससे तो साफ ज़ाहिर है, कि वे अपने आप को मदर टेरेसा जितना महान समझतीं हैं!!! खैर वे कोई भी बयान दें, ये उनका अपना विवेक है,बस खयाल केवल इतना रखें कि भावनात्मक ठेस न पहुंचायें, न ही किसी महा पुरुष से स्वयं की तुलना जैसा हास्यास्पद कार्य करें.

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

क्या होगा अन्जाम....

कल मेरे विद्यालय में बच्चों का परीक्षा-फल घोषित किया गयाकुछ बच्चों ने बहुत अच्छे अंक प्राप्त किए तो कुछ कक्षा में पीछे रह गए। ऐसा तो होता ही हैहर बच्चा बराबरी पर तो नहीं ही होतानर्सरी कक्षाओं को छोड़ करअभिवावक भी इन परिणामों से संतुष्ट ही रहते हैं। लेकिन एक विद्यार्थी की माँ ने जो रवैया अपनाया उससे मैं आज भी व्यथित हूँअपने आप को रोक नहीं पाई, लिखने सेवैसे भी दिल का बोझ मैं लिखकर ही उतारती हूँ


तो हुआ ये की कक्षा पाँच के इस विद्यार्थी की माँ ने जैसे ही देखा की उनका बच्चा कक्षा में चौथे स्थान पर है, उन्होंने शिक्षकों पर अनावश्यक दोषारोपण शुरू कर दियाये जाने बिना की उनके बेटे ने प्रश्न-पत्रों में क्या और कितनी गलतियाँ कीं हैंबच्चे के सामने ही उनका आरोप था की उनके बेटे के साथ दुश्मनी निभाई गयी है, उसे जानबूझ कर चौथा स्थान दिया गया। ये अलग बात है, की उनका बेटा वैसे भी दूसरा या तीसरा स्थान ही प्राप्त करता था


हो सकता है, की पूर्व के विद्यालयों में उनका अनुभव कुछ इसी प्रकार का रहा हो; लेकिन हर संस्था को एक ही निगाह से कैसे देखा जा सकता है? पिछले सत्र में ही ये बच्चा हमारी संस्था में आया और मैंने अनुभव किया कि उससे सम्बन्धित हर बात में इस बच्चे की माँ ने अनावश्यक हस्तक्षेप कियाहर बात में बेटे की गलती को नज़र अंदाज़ किया


सवाल ये है कि यदि वे सी तरह अपने बेटे की हर ग़लत बात का पक्ष लेतीं रहेंगीं,तो उस बच्चे या उस जैसे बच्चों का का भविष्य क्या होगा?