शनिवार, 8 सितंबर 2012

हम सब शोकाकुल हैं पाबला जी...



शाम की क्लास ख़त्म होने के बाद रात का खाना खा ही रहे थे कि कुछ मेहमान आ गए. इसी बीच इस्मत का फोन आया, मैं रिसीव नहीं कर पाई. साढे दस बजे मोबाइल पर इस्मत का मैसेज मिला- " पाबला जी के बेटे का इंतक़ाल हो गया...सो सैड..२६ साल का था.."
पढ़ के स्तब्ध रह गयी...उस वक्त मेहमानों को विदा करने गेट पर खड़ी थी, उलटे पैरों अन्दर आई, फेसबुक खोला...तमाम स्टेटस इस्मत की खबर की पुष्टि कर रहे थे.... ललित शर्मा जी ने लिखा था-
"बहुत ही दुखद समाचार है कि बी एस पाबला जी (भिलाई छत्तीसगढ) के पुत्र गुरुप्रीत सिंग पाबला का अक्समात निधन हो गया है। अंतिम यात्रा 9 सितम्बर 2012 को भिलाई रुवां बांधा स्थित उनके निवास स्थान से लगभग 12 बजे प्रारंभ होगी। ईश्वर से मृतात्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। "
वज्रपात सा हुआ...अभी लखनऊ में ही तो मिले थे हम..कैसे मुस्कुराते-हंसते हंसाते रहे थे पाबला जी..ऐसे इंसान पर इतना बड़ा दुःख??? भगवान् को भी बच्चों को उठाने में कुछ ज्यादा ही आनंद आने लगा है शायद :( :( अभी तक नि:शब्दता की स्थिति में ही हूँ.....ऐसी स्थिति में जबकि एक पिता का जवान बेटा चला गया हो, मैं कैसे कहूं कि धैर्य रखिए पाबला जी?? न, ऐसी औपचारिक सांत्वना नहीं दे सकती मैं...
ईश्वर पाबला जी को दुःख की इस घडी में संबल प्रदान करे. हम सब उनके इस दुःख से व्यथित हैं, उनके साथ हैं....

रविवार, 2 सितंबर 2012

सम्मान समारोह- एक नज़र इधर भी......

२७ अगस्त २०१२ को लखनऊ में तस्लीम-परिकल्पना समूह द्वारा आयोजित सम्मान समारोह संपन्न हुआ. सौ से अधिक ब्लॉगरों ने इस समारोह में भाग लिया. सभी सम्मानित ब्लॉगरों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई. ब्लोगिंग से जुड़े तमाम लोगों को एक दूसरे से मिलने का मौका मिला, जो अविस्मरणीय है.
राय उमानाथ बलि प्रेक्षागृह में संपन्न यह कार्यक्रम तीन सत्रों में आयोजित होना था, लेकिन पहला सत्र लम्बा खिंच जाने के कारण, दूसरा सत्र अतिसंक्षिप्त हो गया , इसका सीधा असर उन वक्ताओं पर पड़ा, जो दूसरे सत्र में न्यू मीडिया के सामजिक सरोकार विषय पर बोलने वाले थे. सभी वक्ता मौजूद थे, और अपनी तैयारी से ही आये थे, लेकिन उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं मिल सका. तीसरा सत्र आरम्भ हुआ, और दूसरे सत्र के वक्ता, मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि सब श्रोताओं में शामिल दिखाई दिए.
किसी भी आयोजन में खूबियाँ और खामियां होती ही हैं, लेकिन देख रही हूँ, कि इस आयोजन के बाद जितनी भी पोस्टें आयोजन से सम्बंधित आईं, वे कार्यक्रम से जुडी नहीं हैं, बल्कि व्यक्ति विशेष को इंगित करके लिखी जा रही हैं, जो गलत है. किसी पोस्ट में शास्त्री जी के अपमान की बात है, तो किसी में रश्मिप्रभा की अनुपस्थिति के कारणों के कयास लगाए जा रहे हैं. किसी में कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय कहने पर आपत्ति है, तो किसी में सीधे शिखा को दोषी बताया जा रहा है. शास्त्री जी का अपमान निश्चित रूप से सम्मान समारोह के आखिर में सम्मानित किये जाने पर हुआ है, लेकिन उन्होंने अपना बड़प्पन क़ायम रखते हुए, इस सम्मान को ग्रहण किया. रश्मिप्रभा जी क्यों नहीं आ सकीं, इस कारण को खुद रश्मि जी से जानने का किसी ने प्रयास किया? नहीं. बस खुद ही उलटे-सीधे कारण गिनाने शुरू कर दिए. पहले सत्र का विशिष्ट अतिथि शिखा को बनाने का फैसला आयोजकों का था, इसमें शास्त्री जी का अपमान कैसे हुआ, मैं समझ नहीं पाई. इस आयोजन की खूबियाँ और खामियां मुझे कुछ इस तरह नज़र आईं-
१- किसी भी क्षेत्र में नए-पुराने लेखकों को सम्मानित किये जाने की परंपरा बहुत पुरानी है, इसका निर्वाह परिकल्पना द्वारा किया जाना सराहनीय है.
२- इस तरह के आयोजन एक-दूसरे से मुलाक़ात का जरिया होते हैं, जो किसी भी क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ज़रूरी हैं. लखनऊ में भी बहुत से नए/पुराने ब्लॉगर एक दूसरे से मिले.
३-भोजन आदि की अच्छी व्यवस्था की गयी थी. कार्यक्रम स्थल भी सुविधायुक्त था.
४- एक दिवसीय कार्यक्रम में पहला सत्र हमेशा लम्बा खिंच जाता है, लिहाजा आयोजकों को कार्यक्रम दो सत्रों में ही करना चाहिए था, तीसरा सत्र केवल सम्मान-समारोह का होता, तो प्रेक्षागृह आयोजन के समापन तक भरा ही रहता.
५- पहले सत्र के अध्यक्ष और मुख्य अतिथि दोनों ही ब्लोगिंग से पूर्णतया अपरिचित थे, लिहाजा वे इस विषय पर साधिकार कुछ बोल ही नहीं सके. सम्बंधित विषय पर कोई नयी जानकारी मिलना तो दूर की बात है.
६- सम्मान के लिए चयनित लोगों का चुनाव यदि वोटिंग प्रक्रिया से किया गया था, तो आयोजकों का दायित्व था, कि वे प्रत्येक श्रेणी के लिए नामांकित लोगों का विवरण और उन्हें मिलने वाले वोटों की जानकारी क्रमबद्ध तरीके से देते, ताकि पारदर्शिता क़ायम रहती. ऐसा नहीं किये जाने का खामियाजा वे लोग भोग रहे हैं, जिन्होंने सम्मान-प्राप्ति के लिए किसी से कोई अपील की ही नहीं है. बल्कि अपनी योग्यता की दम पर उन्हें सम्मान मिला.
७- दूर-दराज़ से आने वाले ब्लोगरों के रुकने का कोई इंतजाम किया जाना चाहिए था, अगर नहीं भी किया गया था तो इसकी सूचना भी ब्लॉग या फेसबुक पर दी जानी चाहिए थी.
८- किसी भी कार्यक्रम को प्रभावी बनाने का महत्वपूर्ण दायित्व कार्यक्रम के संचालक पर होता है, जो हरीश अरोड़ा जी ने बखूबी निभाया, लेकिन दूसरे सत्र के संचालक महोदय न तो किसी का नाम जानते थे, न ठीक से पढ़ ही पा रहे थे. उच्चारण दोष इस कदर था, कि अर्थ का अनर्थ हुआ जा रहा था.
९- आयोजन को अंतर्राष्ट्रीय की जगह अंतर्राज्यीय नाम दिया जाना चाहिए था, क्योंकि सभी तो हिंदी ब्लोगिंग से जुड़े लोग थे.
ये सब तो हुईं आयोजन की बातें, अब उन पोस्टों की चर्चा जिन पर लोग केवल व्यक्तिगत भड़ास निकाल रहे हैं, वो भी ऐसी भाषा में , कि पढ़ कर खुद के ब्लॉग-जगत से जुड़े होने पर शर्म आ जाए. मुझे उन सभी लिंक्स को यहाँ देने की ज़रुरत नहीं लग रही, क्योंकि आप सब उन्हें पहले ही पढ़ चुके हैं, मैं तो बस ये जानना चाहती हूँ, कि उन पोस्टों में जिस तरह की भाषा का प्रयोग हुआ है, क्या वो शर्मनाक नहीं है? ये सारे लिंक शिवम् मिश्र ने यहाँ
मुझे तो लगता है कि ऐसे किसी सम्मान समारोह से परे, हम सब एक ब्लॉगर मिलन समारोह आयोजित करें, जो परिचय सम्मलेन जैसा हो, सब एक दूसरे से मिलें, एक दूसरे को जाने. व्यर्थ की छीछालेदर हम क्यों नहीं छोड़ पाते??
पुनश्च:-
शुक्ल जी से क्षमाप्रार्थना सहित-
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अपनी पोस्ट में फ़ुरसतिया जी ने लिखा है, कि इस तरह के आयोजन में भोले-भाले ब्लॉगर्स का इस्तेमाल जमावड़े की तरह किया गया, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी ब्लॉगर इतना भोला-भाला है कि अपना इस्तेमाल होने देगा. किसी को भी जबरन पकड़ कर नहीं लाया जाता, सब स्वेच्छा से जाते हैं, जाने के पीछे सब से मुलाक़ात की ललक ही होती है. मैं भी जमावड़े के लिए नहीं गयी थी, बल्कि उन तमाम साथियों से मिलने की इच्छा मुझे वहां ले गयी, जो लम्बे समय से थी.
तस्वीर में आयोजक रवीन्द्र प्रभात जी सपत्नीक सम्मान प्राप्त करते हुए.