आज पिछली पोस्टों को देखते हुए अचानक ही पहली पोस्ट पर गई तो चौंक पड़ी. २ दिसंबर २००८. यानी मुझे ब्लॉग जगत से जुड़े एक साल से भी ज्यादा हो गया!!!!
लगता ही नहीं कि एक साल हो गया. नई पोस्ट लिखने, पोस्ट करने और फिर प्रतिक्रियाएं जानने कि चाह में कब दिन महीनों, और महीने साल में तब्दील हो गए, पता ही नहीं चला. इस दौरान आप सबका जो स्नेह मिला, उसे बताने की ज़रुरत ही नहीं है. केवल और केवल आप सबके स्नेह के कारण ही मुझे कुछ नया लिखने कि प्रेरणा मिलती रही.
जानते हैं, मुझे ब्लॉग लिखने को किसने प्रेरित किया?
तब नेट मेरे लिए केवल जानकारियां एकत्रित करने का साधन मात्र हुआ करता था. एक दिन मैं नेट पर राजकमल प्रकाशन की पुस्तक सूची सर्च कर रही थी. तभी मेरी निगाह राजकमल के एक अन्य कॉलम "पुस्तक मित्र बनेंगे?" पर पड़ी. मैं तो हमेशा से ही पुस्तकों की मित्र रही हूँ. सोचा देखूं, कौन पुस्तक मित्र बना रहा है? इस पेज पर गई तो देखा की कोई फुरसतिया जी हैं, जिन्होंने राजकमल की पुस्तक-मित्र योजना की विस्तृत जानकारी दी है. तब ब्लॉगिंग मेरे लिए केवल सितारों के द्वारा किया जाने वाला कार्य होता था. मैं नहीं जानती थी की ये जानकारी मैं जहाँ पढ़ रही हूँ, उसे ब्लॉग कहते हैं.
खैर, मैंने भी वहां एक जिज्ञासा पोस्ट कर दी. लगे हाथों फुरसतिया जी का जवाब भी आ गया. बाद में अनूप जी ने मुझसे ब्लॉग बनाने को कहा. मैं अचकचाई. कैसे? क्या? कब? लेकिन अनूप जी ने राह सुझाई और मेरा ब्लॉग बन गया. बाद में मैंने ब्लॉग सजाने के बारे में कुछ जानकारियां चाहीं तो अनूप जी ने टका सा जवाब दे दिया- "हम खुद नहीं जानते." लेकिन तब से अब तक मेरी हर समस्या को अनूप जी सुलझाते रहे हैं, लिहाजा मेरे लिए गुरु तुल्य हैं
इसके बाद सिलसिला चल पड़ा.
कल जबकि मैं कानपूर जा रही हूँ, तो मेरे मन मैं अपनी बहन प्रियदर्शिनी, उसके पति सुनील, बच्चे अनमोल और यश से मिलने की उत्कंठा से कहीं ज्यादा ख़ुशी इस बात की हो रही थी की मैं फुरसतिया जी से, सुमन जी से मिल सकूंगी. लेकिन हाय री किस्मत!!! इधर २५ दिसंबर की शाम पांच बजे हम ट्रेन में बैठेंगे, और उधर फुरसतिया जी कानपुर से सपरिवार छुट्टियाँ बिताने यात्रा पर निकल पड़ेंगे!! यानी मुलाकात की कोई गुंजाइश नहीं. खैर, महफूज भाई ने लखनऊ आने का और मिलने का न्यौता दिया है अपनी इस दीदी को, सो हम कोशिश करेंगे की लखनऊ जा सकें और महफूज से मिल सकें.
जब ब्लॉग बना, तो मैंने मात्र एक सन्देश पोस्ट किया, जिस पर जिन मित्रों की टिप्पणियां आईं, उन्हें मैं कभी नहीं भूलूंगी -आप भी देखें-
प्रिय दोस्तो; इस ब्लोग के ज़रिये हो सकता है मेरे बहुत से पुराने साथी मिल जायें........हो सकता है बहुत से नये साथी बन जायें....वरना मुझ जैसे अदना से इन्सान को ब्लौग की क्या ज़रूरत थी......ज़रूरत महसूस हुई, केवल इसलिये कि मेरे लिखने-लिखाने वाले साथी जो अब पता नहीं कहां हैं, शायद टकरा जायें...... कुछ को तो मैं नियमित प्रकाशित होते देख रही हूं; लेकिन जो नहीं छप रहे, उन्होंने भी लिखना तो बन्द नहीं ही किया होगा....ऐसा विश्वास है मेरा......बस उन्हीं की तलाश में हूँ..........
"दोस्तों के नाम........."
8 टिप्पणियाँ - अनूप शुक्ल ने कहा…
वाह, बधाई! लिखना शुरू करने की बधाई!
९ दिसम्बर २००८ ६:५३ PM
bahut badhiya hai.likhate raho.
१७ फरवरी २००९ १२:१५ AM
आप की सोच वाकई काबिले तारीफ है....
५ मार्च २००९ १:०५ AM
दोस्तो की तरफ से बधाई
१६ मार्च २००९ १२:१५ AM
स्वागत है चिट्ठजगत में, बहुत मित्र मिलेंगे।
३ अप्रैल २००९ ७:३६ PM
Aur aaj se hm bhi aapke follower ho gaye, aise hi apni achchi achchi rachnaayein laati rahiye...
११ अप्रैल २००९ १२:३१ PM
namashkar
mai yaha naya hu . likhta bhi naya hu .shayd apke bare me kisi dost se suna hu .. alok prakash putul ya richa se suna hu lagta hai..jo bhi ho app meri rachnao par kabhi tiapanni karengi ye socha na tha .. achha laga bahut achha laga.. apka bolg dekhkar kuch aur naya karne ko man hua .. karunga . mai photogrepher hu .. kaya yaha photo bhi lagaye ja sakte hai ...
२४ अप्रैल २००९ ६:४८ PM