तब दूरदर्शन के शुरूआती दिन थे। कुछ बड़े शहरों में ही टी.वी.टॉवर थे, लेकिन दूरदर्शन की ललक सब के मन में.... तब बहुत कम घर थे जहाँ टेलिविज़न था। हमारे घर भी तभी टैक्सला का बड़ा श्वेत-श्याम टीवी आया। कुछ दिखने के नाम पर केवल झिलमिलाहट और बीच-बीच में कभी अस्पष्ट तो कभी स्पष्ट चित्र दिखाई दे जाता। इस चित्र को भी देखने के लिए छत पर हवाई जहाज सरीखा एंटीना लगाना पड़ता।
हमारे घर जब टीवी आया तब मैं छोटी ही थी। हाथ ठेले पर रखा टीवी जब हमारे घर आया तो उसका किसी मेहमान की तरह स्वागत हुआ। स्वागत करने हम बच्चा पार्टी पहले ही गेट पर खड़े थे। जैसे ही ठेला आया, मैंने सबसे पहले मोहल्ले के अन्य घरों पर एक विहंगम दृष्टि डाली ये देखने के लिए की लोगों ने हमारे घर टीवी आते देखा या नहीं?
उस वक्त जिन घरों में टीवी था वे कुछ विशिष्ट हो गए थे।
हाँतो छत पर बड़ा सा एंटीना लगना पड़ता, और यदि फिर भी तस्वीर न दिखाई पड़े तो एक आदमी को ऊपर चढ़ कर एंटीना घुमाना भी पड़ता था। ऐसा में ऊपर चढा व्यक्ति बार बार पूछ्ता 'आया?' और नीचे बताने के लिए तैनात व्यक्ति बताता की अभी नहीं, और थोड़ा घुमाओ, या बस-बस अब आने लगा। दूरदर्शन की सभाएँ आकाशवाणी की तरह तय थीं, सो सभा आरम्भ होने के पाँच मिनट पहले से ही टीवी खोल दिया जाता। पहले स्क्रीन पर खड़ी धारियां दिखाई देती रहती, फिर दूरदर्शन का मोनो सिग्नेचर ट्यून के साथ घूमता हुआ प्रकट होता। कितना रोमांचक था ये।
सिलसिलेवार कार्यक्रम, गिनती के सीरियल,वो भी पूरे बारह एपिसोड में ख़त्म हो जाने वाले।
मुशायरा, कवि सम्मलेन , बेहतरीन टेलीफिल्म्स ,चित्रहार , पत्रों का कार्यक्रम सुरभि, समाचार, खेती-किसानी क्या नहीं था! फिर शुरू हुआ पहला सोप ऑपेरा हमलोग कोई भूल सकता है क्या? उसके बाद तो एक से बढ़ कर एक सीरियल दूरदर्शन ने दिए। वो बुनियाद हो या प्रथम-प्रतिश्रुति, मालगुडी डेज़ हो या ये जो है ज़िन्दगी, रामायण हो या महाभारत......कितने नाम!!! आज इतने चैनल्स हैं जो दिन-रात केवल सीरियल ही दिखा रहे हैं लेकिन कर पाये रामायण-महाभारत या हम लोग जैसा कमाल? भारत एक खोज या चाणक्य जैसा धारावाहिक दिखने का माद्दा है इनमें? फूहड़ और बेसिर पैर की कहानियों के अलावा और कुछ भी नहीं है अब। ऐसी कहानियाँ जो वास्तविकता से कोसों दूर होती हैं। ऐसा एक भी चैनल आज नहीं है, जो अपने किसी भी धारावाहिक के ज़रिये कर्फ्यू जैसा सनाका खींच सके। याद है न रामायण और महाभारत के प्रसारण का समय? जिन घरों में टीवी नहीं था वे पड़ोसियों के यहाँ जाकर ये धारावाहिक देखते थे। रविवार के दिन हमें भी ड्राइंगरूम में अतिरिक्त व्यवस्था करनी होती थी। उस पर भी दर्शकों की संख्या इतनी अधिक होती थी, की हम लोगों को ही बैठने की जगह नहीं मिलती थी।
आज चैनलों की इतनी भीड़ है, की टीवी देखने की इच्छा ही ख़त्म हो गई। आधुनिकता के नाम पर फूहड़ता परोसते धारावाहिक...........ऐसे में दूरदर्शन की बहुत याद आती है।
आपने बिल्कुल सही फरमाया है।
जवाब देंहटाएंबहुत सही/ सटीक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने वंदना जी, क्या दिन थे वो......मैं रविवार का बेसब्री से इंतज़ार करती थी! और हमारे घर मैं तो टीवी भी नहीं था, पड़ोसियों के यहाँ जाती थी! दूरदर्शन के जैसा कुछ नहीं है!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद महेन्द्र जी.
जवाब देंहटाएंहां अरुणा जी ,अब दूरदर्शन जैसी बात किसी में भी नहीं.
जवाब देंहटाएंवंदना , आप को बहुत बहुत धन्यवाद और शुभकामनाये | सच आज आप के ब्लॉग ने बहुत सी पुरानी यादे ताजा कर दी |
जवाब देंहटाएं२ बेहद जरूरी सीरियल के नाम आप शायद भूल गयी एक तो करमचंद और दूसरा तामस| यह सच है कि यह दोनों सीरियल हर वर्ग का दर्शक नहीं देखता था पर फ़िर भी दूरदर्शन के इतिहास में यह दोनों अपनी जगह बनाने में कामयाब हुए है |
शिवम जी, भूली तो नहीं थी लेकिन ज़िक्र पता नहीं कैसे छूट गया.याद दिलाने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंsahi kah rahi hain ji.....ye rona to chalta rahega.....hum bhu roye thai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. आपके किसी भी ब्लौग पर आपका नाम नहीं दिखाई दिया.पर्दे के पीछे रहने का कारण?
जवाब देंहटाएंवंदना,
जवाब देंहटाएंपुराने दिन याद दिलाने का शुक्रिया ! अच्छा राइट अप है. आज की विस्मरणशील दुनिया में अतीत को भी आपकी तरह प्रोजेक्ट करना चाहिए. मैं तो आपके यहाँ आनेवाले टी.वी. का प्रत्यक्षदर्शी ही नहीं हूँ, उसे ठेले पर लदवा कर घर पहुंचानेवाला श्रमिक भी हूँ. वे दिन याद आये. ध.
हा..हा..पहले मैने इस बात का ज़िक्र किया कि टीवी कब कैसे और कहां से आया,लेकिन फिर उसे हटा दिया क्योंकि आपकी अनुमति नहीं ली थी.ब्लौग पर आने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंमेरे गाँव में अब भी T.V. अन्टेना घुमाते रहना पड़ता है, वो तो भला हो DTH सेवा और केबल T.V. का.
जवाब देंहटाएंजी हां काजल जी,इन सेवाओं ने दूर के दर्शन अब आसान कर दिये हैं.
जवाब देंहटाएंमैं आज लेट हो गया पता नहीं कैसे...मेरा तो पसंदीदा था..रुकावट के लिए खेद है...जिसके सामने बैठे हम धुन सुना करते थे....और उसके ख़त्म होने का इन्तजार करते थे...बहुत मजा आता था..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाह वंदना जी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात हो..... कितना सही चित्रण किया है ....रविवार की शाम ४ बजे की फ़िल्म हमे अब भी याद है जब मम्मी और चाची खाना जल्दी बना लेती थी ताकि फ़िल्म छूट न जाए, कितना बेसब्री से इंतज़ार था इन सबका , मेरा पसंदीदा धारावाहिक "फ़िर वही तलाश "...
जवाब देंहटाएंपुराने दिन याद दिलाने के लिए शुक्रिया.... प्रस्तुतीकरण बहुत अच्छा है
कोई बात नहीं अजय जी. देर से ही सही, आये तो. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसच है, गौरव जी. हमारे घर में भी यही होता था. और हम भी कैसी भी, कितनी ही पुरानी फ़िल्म आ रही हो देखते ज़रूर थे.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही चित्र खींचा है |
जवाब देंहटाएंdoor darshan ke bare me apne meri yaad taja kar di. is article ke liye apka bahut bahut dhnyawad.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अर्कजेश जी, सुमन जी और सतीश जी.
जवाब देंहटाएंइस दूरदर्शन की चर्चा पे बहुत सी पुरानी बाते ताजा हो गयी ,इस तरह उनकी अहमियत नज़र आती है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ज्योति जी.
जवाब देंहटाएंसच kahaa................ अब तो doordarshan भी वो doordarshan नहीं रहा...........
जवाब देंहटाएंजी हां दिगम्बर जी, अब दूरदर्शन भी वो दूरदर्शन न रहा.
जवाब देंहटाएंवंदनाजी
जवाब देंहटाएंनमस्कार
आपने तो वाकई पुरानी यादों को ताजा कर दिया। मैं सोच रहा था कि इसमें आपने िफर वही तलाश धारावाहिक का उल्लेख नहीं किया लेकिन गौरवजी ने उसका स्मरण करवा दिया। मानो या न मानो पर है यह सच कि पुराने धारावाहिक में दम था, फर वहीं तलाश धारावाहिक वापस आता है तो समझों की मुझे सारे जरुरी काम छोड़कर टीवी के सामने बैठना पडे़गा। व्रिकम और वेताल भी लोगों को टीवी पर बैठने के लिए मजबूर कर देता था।
यहां तो मैने बस कुछ धारावाहिकों के नाम उदाहरण के तौर पर लिये हैं. दूरदर्शन के अनेक ऐसे धारावाहिक हैं जिनका नाम लिया जाना चाहिये.
जवाब देंहटाएंमेरे भी पुराने दिन याद आ गये ..............फिर वही तलाश,जिसकी नायिका बहुत ही संजीदा और पिता पुरी तरह से आकडू..........फिल्मो के लिये खाना का जल्दी बन जाना............वाह पुराने दिन याद दिलाने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंपुराने दिन हैं ही इतने सुहाने कि याद करने पर दिल एक खुशनुमा अहसास से भर जाता है.
जवाब देंहटाएंMam,mere hisaab se television Industry ko ab ek revolution ki zaroorat hai...jis tarah ka craze pehle tha ab wo to nahi laut sakta par achhi quality ki serials zaroor ban sakte hai....cinema ka star bhi isi tezi se girne laga tha,par pichhle teen saalo me ek kranti aayee hai,kuch vaisa hi chhote parde pe bhi chaahiye...mujhe to aaj bhi ummeed hai...talent itna hai kisi din achha kaam ubhar ke ayega :)
जवाब देंहटाएंwww.pyasasajal.blogspot.com
बिल्कुल सजल जी. अब एक टेली-क्रान्ति की ही ज़रूरत है.ज़रूरत इन अन्धाधुन्ध सीरियलों को समेटने की भी है, जिन्होंने दर्शकों के मनों से पुरानी ललक ही खत्म कर दी. गिने-चुने और अच्छे सीरियल आयेंगे तो दर्शकों में फ़िर पुरानी बात लौट सकती है.
जवाब देंहटाएंवाह ! वंदना जी हम आप ने एक जैसा महसूस किया है ..वो टीवी की वो कड़ी धारिया ..उनमे भी कुछ ढूँढा करता था ..हमारी कालोनी में सबसे पहले मेरे घर टीवी आया था ...बस घर पर टीवी ही दिखता था...टीवी के साथ एक ऐसा स्क्रीन भी अलग से था जिसके चारो कोने अलग अलग रंग के थे ..जो रंगीन टीवी होने का अहसास देता था...आज हर कमरे में टीवी है पर वो रंग नहीं .. उसी श्वेत श्याम दूरदर्शन वाले जमाने पर लौटने का दिल करता है...धन्यवाद दिल को सुकून पहुचाने के लिए ..
जवाब देंहटाएंसचमुच अजय जी, बहुत याद आते है पुराने दिन.
जवाब देंहटाएंवन्दना जी.,
जवाब देंहटाएंआपने तो पुराने दिनों की याद ताजा कर दी.....बहुत बहुत धन्यवाद इसके लिये...
धन्यवाद प्रसन्न जी. वैसे आप इतनी देर से क्यों आये?
जवाब देंहटाएंmein apse puri tarah sehmat nahi.......aaj bhi kuch channels mein ache programmes aa rahe hain .....jaise sab tv ke kuch serials ....tarak mehta ka ulta chasma....gun wale dulhaniya le jayenge...ndtv ke samachar...etc.
जवाब देंहटाएंआपकी बात एकदम सही है.दिक्कत तो अन्धाधुन्ध सीरियलों से है, जिन्होंने टी.वी.के प्रति अरुचि ही पैदा कर दी है.
जवाब देंहटाएंहमारा उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद! आप अपनी रचनाएं हमें नि”ाुल्क प्रका”ाानार्थ भेज कर हमारा सहयोग कर सकती हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद. मैं आपके ब्लौग पर प्रकाशनार्थ रचनायें ज़रूर भेजूंगी.
जवाब देंहटाएंvah vndnaji aannd la diya durdrshan ke darshan kra kar .mujhe to bas yhi gana yad aarha hai aapka aalekh padhakar .
जवाब देंहटाएंkoi laouta de mere beete huye din ........
धन्यवाद शोभना जी.सच यदि कोई लौटा दे हमारे बीते हुए पल...
जवाब देंहटाएंvandna ji namskaar ..aapne wakai durdarshan ka badhiya khaka khicha hai mujhe bhi apne bachpan ki yaaden taja ho gayi.....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मार्क जी.
जवाब देंहटाएंदिन जो बीत गये, क्या करे,
जवाब देंहटाएंअच्छे थे वो बस याद करे...
सचमुच दूर्दर्शन के वो दिन लाज़वाब हुआ करते थे, इन दिनो भी दूरदर्शन है किंतु वो दिन नही, वो कार्क्रम नही...//
हां सच है, अब वो दूरदर्शन भी नही...
जवाब देंहटाएंवंदना जी आज पहली बार
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग पर आया ... पढ़कर अच्छा लगा !
आपकी पोस्ट पढ़कर बिलकुल ऐसा लग रहा है मानो मेरा लिखा हो !
पुरानी स्म्रतियां आज भी दिमाग में कैद हैं !
हम लोग .. बुनियाद जैसे अविस्मर्णीय सीरियल ... इलेक्शन रिजल्ट वाले दिन भर फिल्म का आना ! ३१ दिसम्बर के रात में प्रोग्राम देखने की सवेरे से ही तैयारी करना !
बस यादें ही हैं !
आजकल तो मनोरंजन के नाम पर मुझे सबसे अच्छे न्यूज चैनल ही लगते हैं ! उल-जलूल,
बे-सर-पैर की सनसनी ...
बस बकलोल बने देखते रहो !
आज की आवाज
धन्यवाद प्रकाश जी, ब्लौग पर आने और आलेख पसंद करने, दोनों के लिये.
जवाब देंहटाएंसचमुच पुराने दिन याद आ गए। हमारे घर भी आया था लकड़ी के शटर वाला और लंबे एंटीना वाला टीवी। सन ८५ की बात है, तब आठवीं में पढ़ता था। बहुत अच्छा लिखा बधाई।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुधीर जी.कितने रोमांचक दिन थे वे, है न?
जवाब देंहटाएंवन्दना जी ,सही लिखा है आप ने आज कल टी वी पर जो कार्यक्रम आते हैं उन्हें देखने की इच्छा ही नहीं होती.मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता परसोने लगे हैं और समाचार में सिर्फ सनसनी!
जवाब देंहटाएंटेक्सला टी वी ही शायद उन दिनों [शुरूआती दोर ]में हर घर में मिलते थे.फिर ओनिडा रंगीन टी वी का दौर आया था...
बिल्कुल सच बात है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अल्पना जी, नज़र जी. टीवी से पहले रेडियो की भी कुछ ऐसी ही अहमियत थी.
जवाब देंहटाएंअच्छी यादें समेटी हैं!
जवाब देंहटाएंn jane kyon, mujhe aapse sahmat hone ka man nahi karta hai.
जवाब देंहटाएंpurane dino ki yade khubsurat to ho sakti hai, purane din nahi.
maaf kijiye.
हो सकता है कि पुराने दिनों के आपके अनुभव सुखद न रहे हों, लेकिन मुझे तो आज के दिन कहीं से भी सुखद या सुकून भरे नहीं लगते.
जवाब देंहटाएंJaane kahan gaye vo din! Pahle ek channel tha aur sabhi aayu varg ke liye programmes the, aaj itne channel hain aur kisi ek ke liye bhi ek programme nahin!!!
जवाब देंहटाएंवाह अभिषेक जी, क्या टिप्पणी है..
जवाब देंहटाएंwaaqi mein TV dekhne ki ichcha hi khatm ho gayi hai........ab
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक सार्थक चर्चा संस्मरण के माध्यम से
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर पधार कर ग़ज़लों का आनद लें
प्रदीप मनोरिया
09425132060
धन्यवाद महफ़ूज़ जी, प्रदीप जी.
जवाब देंहटाएंवाह, वंदना जी दूरदर्शन की याद ताज़ा कर दी आपने।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मीनाक्षी जी.
जवाब देंहटाएंआपके लेख को अपने ब्लॉग में प्रकाशित कर रहा हूँ बिना आपकी आज्ञा से आशा है आप बुरा नहीं मानेगी | क्या करता बहुत कोशिशों के बाद भी अपने ब्लॉग के लिए इतनी सटीक भूमिका नहीं लिख पाया |
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने
जवाब देंहटाएंशिवम जी तारीफ़ के लिये शुक्रिया. यदि रचनाकार का परिचय यथावत रहे तो आलेख कहीं भी प्रकाशित किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंआभारी हूं विक्रम जी.
जवाब देंहटाएंyou're very right
जवाब देंहटाएं---
चर्चा । Discuss INDIA
यादें मात्र दूरदर्शन की ही नहीं है, मगर अंदर की बात ये है कि उस समूचि व्यवस्था की यादें है, जिसमें अभी जैसे कृत्रिमता नही थी.
जवाब देंहटाएंआज सीरीयल्स से लेकर आपसी रिश्तॊं में भी कृत्रिमता है.
आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और दूरदर्शन के उत्सुक पलों को पढ़ा.
जवाब देंहटाएंवाह आपने यादों के झरोखों के कितना अद्भुत और सच्चा संस्मरण खींच कर लायी है,
उन दिनों की बात ही अलग थी..लोग बड़े ही उत्सुक हुआ करते थे कोई नये प्रोग्राम के लिए
और सिनेमा के लिए तो मत पूछिए साप्ताह मे एक या दो बार सिनेमा आती थी.बड़े ही आतुर लोग सोमवार से ही इंतज़ार करते रहते..
वाह रे दूरदर्शन..आपने याद दिला दिया ..अब तो डिश और केबल का जमाना आ गया..
बहुत सुंदर संस्मरण..
बधाई!!!
boht achhi post...waise bhi yadin hmesha khoobsurat hi hoti hai......
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नज़र जी, दिलीप जी, विनोद जी और राज जी.
जवाब देंहटाएंवन्दना जी,
जवाब देंहटाएंबारिश के साथ यादों में भिगोने वालई पोस्ट बहुत ही रोचक लगी।
मुझे भी उस दौर का दूरदर्शन ही याद आता है, विशेषतः सीरियल लोहित किनारे और उसमें गूंजती हुई दादा भूपेन हजारिका साहब की आवाज़। या गुलज़ार साहब का "मिर्जा गा़लिब" अपनी उम्दा प्रस्तुति, नसीर साहब, तन्वी आज़मी, नीना गुप्ता आदि की अदायगी, खय्याम साहब का संगीत माशाल्लाह क्या खूब था।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
सादर,
धन्यवाद मुकेश जी. वे दिन भुलाये नहीं जा सकेंगे.
जवाब देंहटाएंहुउम्म! उन दिनों घर की छत एंटीना स्टेटस की बात थी. अब स्टेटस गिराने की बात है.
जवाब देंहटाएंपिंकी इस देश की बेटी हैं जिसे कुछ दरिंदो ने इस हालात में पहुचा दिया हैं जहां से बाहर निकलने में आप सबों के प्यार और स्नेह की जरुरत हैं।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इष्ट्देव जी.अब तो डिश टीवी का ज़माना है..
जवाब देंहटाएंवंदना जी इस मामले का सबसे सुखद पहलु यह हैं कि पिंकी को उसके माता पिता अपने पास रखने को तैयार हैं।अभी पिंकी अपने माता पिता के साथ दरभंगा में रह रही हैं।वही इस मामले में आप सबों के सहयोग से पुलिस ने कारवाई तेज कर दी हैं और पूरे मामले को री ओपेन करते हुए इसमें शामिल अपराधियों को पकड़ने के लिए सघन छापामारी चल रही हैं।अब हम सबों का एक ही लक्ष्य हैं इस गिरोह की सरगना गीता देवी की गिरफ्तारी हो जो अब तक सैकड़ों लड़कियों को इस दल दल में ढकेल चुकी हैं।इसको सजा मिले इसके लिए आप अपने समपर्क का उपयोग कर इस अभियान को मंजिल तक पहुचाने में सहयोग करे और पिंकी जैसी लड़कियों को इस दलदल में फंसने से बचाया जा सके।
जवाब देंहटाएंDoordarshan ke baad,z tv bhee chand achhe serials laya....lekin Ekta kapoor ke atehee sab kuchh gadbdaya..
जवाब देंहटाएं:kahan gaye'hamlog',buniyaa', tamas,'teacher''thoda hai...'sailab' sparsh'jaise behtareen serial? Ab to kahanee honee..'episodes' writers, jo ulta seedha likh den, bas wahee...!
Ravi Rai jaison ne behtareen serials banaye, jo adhik adhik ek saal me poore hhote..tezeese badhete...ek kahanee hotee...ab to muddaten ho gayeen,serial dekehe!!
सच है शमा जी. कुछ अच्छे सीरियल ज़ी टीवी ने भी दिये .लेकिन अब सब खत्म सा है.
जवाब देंहटाएंta na na tana na nana.... sahi kaha Vandna Apne... Tabhi to aj bhi jab malgudi days ki ye tune kisi ke mobile ki rintone ke rup me bajti hai...to kai chehre ek sath khil uthte hain!!!
जवाब देंहटाएंहां तरु जी ठीक उसी तरह जैसे भूपेन हजारिका की आवाज़ सुन के केवल लोहित किनारे ही याद आता है..........
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga aapko padhna....hardik shubhkamnayen.
जवाब देंहटाएंYes, you are absolutely right.I fully agree with your views. Thanks for sharing.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुशीला जी, सुरजीत जी.
जवाब देंहटाएंवो दिन भी क्या दिन थे जब पसीना गुलाब था
जवाब देंहटाएंअब तो गुलाब से भी पसीने की बू आती है....
वही दिन अच्छे थे अब हम कलर बार की सफ़ेद, काली, पट्टियाँ देखते थे...
जब एंटेना घूमते हुए 'आया' 'नहीं आया' की हांक लगते थे...
कम से कम औरों की गंदगियों में तो लिथडे नहीं थे....
बहुत-बहुत शुक्रिया.. .. वैसे मैं अक्सर अपने बच्चो को बताती ही हूँ.... की कितना बचपन था हमारा बचपन.....
सच है अदा जी. मैं भी अपनी बेटी को हमेशा अपने बचपन की बातें सुनाती हूं, और वो कुछ इस अदा से सुनती है कि जैसे हम कितने मूर्ख थे...
जवाब देंहटाएंऔर वो कुछ इस अदा से सुनती है कि जैसे हम कितने मूर्ख थे...
जवाब देंहटाएं:}
कितने जतनों से देखते थे हम लोग चित्रहार...
और
हमलोग..
:)
जी हां मनु जी.इधर उधर और रजनी भी....
जवाब देंहटाएंनमस्कार वंदना जी आप के इस लेख नेबी मुझे दुबारा बचपन में ला पटका वन्दंजा जी मेरा जन्म एक छोटे से गाव में हुआ गाव नहीं पूर्व था वह पर लाइट नहीं थी गाव में पहला ब्लेक एंड व्हाइट टीबी हरिहर पंडित जी के यहाँ बैटरी से चलता था और बैटरी कसबे से
जवाब देंहटाएंहो कर आती थी पर बो उनका नहीं रह गया
वो सार्ब्जानिक हो गया पूरा गाव देखता था जब रामायण आती थी तो एक दिन पहले सी बैटरी का इंतजाम करने लगते थे
पर आज तो सब बदल गया है आज घर में टी बी है पर वो बात नहीं
जी हां प्रवीण जी अब वो रोमांच कहां.
जवाब देंहटाएंआज का टीवी देख कर तो यही लगता है की इस 'idiot box' से दूर रहने मैं ही अपनी भलाई है |
जवाब देंहटाएंसच है राकेश जी.
जवाब देंहटाएंअति हर चीज की बुरी होती है...पहले एक चेनल था अब दो सो से भी ज्यादा हैं...वो एक इन दो सो पे भारी था...सारा घर मिल बैठ कर इंतज़ार करता की कब शाम के सात बजेंगे और कब दूरदर्शन बोलेगा...किसान भाईयों के लिए चौपाल का कार्यक्रम हो या फ़िल्मी गानों पर आधारित सभी चाव से देखते थे...अब टी.वी. से वितृष्णा सी हो गयी है...साहित्यिक कार्यक्रम बंद ही हो गए हैं...कहीं कोई शायर या कवि या कोई शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम नज़र नहीं आता...फूहड़ सास सजी धजी बहुएं और कुटिल महिलाएं ही दिखाई देती हैं...आपने तो सबकी दुखती रग पे हाथ रख दिया है...
जवाब देंहटाएंनीरज
सच है नीरज जी. इन सजी-धजी सासों और वास्तविकता से कोसों दूर धारावाहिकों को देखना तो दूर इनके शीर्षक गीत भी कानों में पडें तो जी दहल जाता है.
जवाब देंहटाएंPak Karamu reading your blog
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, क्या क्या याद दिलवा दिया आपने!
जवाब देंहटाएंफिर वही तलाश के लिये तो घर पहुंचने की जल्दी रहती थी, और आप को याद है शो थीम? जिसमें फिल्मों के खास दृश्य दिखाये जाते थे..रंगोली, चित्रहार, क्या सीन है?, और तो और कृषि दर्शन भी...
दूरदर्शन देखे तो एक अर्सा बीत गया, लगता है फिर से उसकी शुरुआत करनी पड़ेगी।
धन्यवाद pakkaramau ...
जवाब देंहटाएंसागर जी खूब याद है शोथीम... और सुरभि? रंगोली सुबह साढे सात बजे आता था जिसे सर्दियों में हम रजाई के अन्दर लेटे-लेटे ही देखते थे, लेकिन देखते ज़रूर थे..
जवाब देंहटाएंअच्छा संसमरण. मुझे भी याद आ गया वो दिन जब मै छत पर चढकर एंटेना सेट करता था और बच्चे चिल्लाते थे ---- अभी ठीक नही आ रहा है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
शायद यह मेरी टिप्पणी 101वी है
वर्मा जी, उन दिनों का रोमांच भुलाये नहीं भूलेगा.सच है, आपकी १०१ वीं टिप्पणी ही है.
जवाब देंहटाएंवंदनाजी
जवाब देंहटाएंसवाल रामायण-महाभारत दिखाने का ही नहीं है। सवाल ये है कि क्या दिखाएं जो, समय के साथ भी चले और फूहड़ भी न हो। कलर्स जैसे चैनल शायद काफी हद तक उसी दिशा में बढ़ रहे हैं।
Thank's for visiting my blog
जवाब देंहटाएंbahut acha blog banaya hai aapne iske liye aapko badut dhnyabad deta hu.
जवाब देंहटाएंmera blog bhi dekhiye. aur join kijiye
http://devdlove.blogspot.com
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Dhnyabad.
धन्यवाद देव जी.
जवाब देंहटाएंbahut sunder...
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha ji , ab to un dino ki sirf yaad hi rah gayi hai ji .
जवाब देंहटाएंregards
vijay
please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com
सही याद किया है आपने गुज़रे ज़माने को।
जवाब देंहटाएंबढिया पोस्ट ....
मैं भी अक्सर यूं ही याद करता हूं बीते दिनों को। संदूकों में कैद लम्हों को झाड़ने-बुहारने के लिए शुक्रिया तो कहना ही होगा...
अजित जी, बीते दिन थे ही इतने सुन्दर. ब्लौग पर आने के लिये धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकल के राजा बने हुए हैं आज राह के भीखमंगे ........
जवाब देंहटाएंमेरे यहाँ पधारने का शुक्रिया ,आते रहना कभी -कभी
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
जवाब देंहटाएंरचना गौड़ ‘भारती’
दूरदर्शन का जमाना भी क्या जमाना था । उन दिनों के सिरियल्स याद आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं : दादा जी का बाइस्कोप,रजनी,तितली,दर्पण,स्पाइडरमैन,इंद्रधनुष,नीम का पेड़,कबीर,कृषि-दर्शन,कब तक पुकारुँ,नाना-नानी की कहानियाँ,अलि बाबा चालिस चोर, विक्रम-बेताल,सांझा चुल्हा,चिड़ियाँ दा चंबा, उड़ान, भारत एक खोज,स्कूल-टाइम,फरमान,लाइफ़-लाइन,मुंगेरी लाल के हसीन सपने,कक्का जी कहिन,आरोहण,स्टारट्रक,गुन-हुना रे गुन-हुना मृगनयनी,झांसी की रानी,नूपुर,मुल्ला नसरुद्दीन, फिर वही तलाश,पोटली बाबा की , गुन्हुना रे गुन्हुना वाला सिरियल (नाम बहुत याद करने पर भी याद नहीं आ रहा विमल मित्र की रचना पर आधारित...कालीगंज की बहू वाला )!!! यदि याद आया तो फिर लिखूँगा ।
जवाब देंहटाएंयादें ताजा करने के लिए धन्यवाद!!!
दूरदर्शन का जमाना भी क्या जमाना था । उन दिनों के सिरियल्स याद आते ही बचपन की यादें ताजा हो जाती हैं : दादा जी का बाइस्कोप,रजनी,तितली,दर्पण,स्पाइडरमैन,इंद्रधनुष,नीम का पेड़,कबीर,कृषि-दर्शन,कब तक पुकारुँ,नाना-नानी की कहानियाँ,अलि बाबा चालिस चोर, विक्रम-बेताल,सांझा चुल्हा,चिड़ियाँ दा चंबा, उड़ान, भारत एक खोज,स्कूल-टाइम,फरमान,लाइफ़-लाइन,मुंगेरी लाल के हसीन सपने,कक्का जी कहिन,आरोहण,स्टारट्रक,गुन-हुना रे गुन-हुना मृगनयनी,झांसी की रानी,नूपुर,मुल्ला नसरुद्दीन, फिर वही तलाश,पोटली बाबा की , गुन्हुना रे गुन्हुना वाला सिरियल (नाम बहुत याद करने पर भी याद नहीं आ रहा विमल मित्र की रचना पर आधारित...कालीगंज की बहू वाला )!!! यदि याद आया तो फिर लिखूँगा ।
जवाब देंहटाएंयादें ताजा करने के लिए धन्यवाद!!!
धन्यवाद मनोज जी. आपने तो खूब सारे सीरियल याद दिला दिये. कालीगन्ज की बहू वाला सीरियल"मुजरिम-हाज़िर" था, जो बिमल मित्र के उपन्यास पर बना था, और बहू की भूमिका नूतन ने निभाई थी.
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंआज आपकी कुछ पुरानी पोस्ट देखने का मन हुआ
आपके प्रस्तुतिकरण के सभी कायल हैं...
आपने सच कहा, ज़्यादातर चैनलों पर ऐसे कार्यक्रम होते हैं, कि एक साथ बैठकर देखना भी आसान नहीं रह गया है...
इस पोस्ट के लिए बधाई.
हम भाई बहन के एक्सप्रेशन कितने मिलते जुलते हैं! चित्र खींच दिया दीदी!
जवाब देंहटाएंvery true. same happened with arrival of TV in our home in 1982?
जवाब देंहटाएंi was searching for date or year when Pratham Pratishruti came on Doordarshan? and who were actors?
can you please tell?
Group discussion in Hindi
जवाब देंहटाएंBrain in Hindi
Satellite in Hindi
Calibration in Hindi
Mujhe Vikram Betal bahut achha lagta tha
जवाब देंहटाएंMujhe Vikram Betal bahut achha lagta hai
जवाब देंहटाएंमेरा सौभाग्य है कि मेरा पिताजी भारतीय सेना मे था।अब रिटायर हो गए है।हमारा परिवार पिताजी के साथ भारत के विभिन्न शहर मे रहे।1986,,87 के समय मे हम लोग कलकत्ता थे उस समय पहिली बार tv मे दुर दर्शन का कार्यक्रम देख्ने को मिला।मैने सबसे पहेले tv मे काच्ची धुप सिरियल देखा,,,मुझे बहुत पसंद है वो सिरियल।रमायाण,बिक्रम बेतल,spider man भि उस समय देखा।उसके वाद हम लोग नेपाल आए ,,,फिर 2,,,3 साल्ल वाद हम लोग इलाहबाद गए।मै इलाहबाद आने से पहेले घरमे tv आ चुका था।उस समय कि tv सिरियल महाभारत और फिर वहि तलाश है मुझे बहुत पसंद था।अब वैसा सिरियल देख्ने को नहि मिलता और वो बचपन का दिन भि वापस नहि आएगा।,,,,thankyou बन्दाना जि आपने बचपन कि याद ताजा कर दि।
जवाब देंहटाएंमेरा सौभाग्य है कि मेरा पिताजी भारतीय सेना मे था।अब रिटायर हो गए है।हमारा परिवार पिताजी के साथ भारत के विभिन्न शहर मे रहे।1986,,87 के समय मे हम लोग कलकत्ता थे उस समय पहिली बार tv मे दुर दर्शन का कार्यक्रम देख्ने को मिला।मैने सबसे पहेले tv मे काच्ची धुप सिरियल देखा,,,मुझे बहुत पसंद है वो सिरियल।रमायाण,बिक्रम बेतल,spider man भि उस समय देखा।उसके वाद हम लोग नेपाल आए ,,,फिर 2,,,3 साल्ल वाद हम लोग इलाहबाद गए।मै इलाहबाद आने से पहेले घरमे tv आ चुका था।उस समय कि tv सिरियल महाभारत और फिर वहि तलाश है मुझे बहुत पसंद था।अब वैसा सिरियल देख्ने को नहि मिलता और वो बचपन का दिन भि वापस नहि आएगा।,,,,thankyou बन्दाना जि आपने बचपन कि याद ताजा कर दि।
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