ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा,
मैं सज़दे में नहीं था, आपको धोखा हुआ होगा।
दुश्यंतकुमार
भाई मेरे घर साथ न ले,
जंगल में डर साथ न ले,
चुल्लू भर पानी के लिये,
सात समन्दर साथ न ले।
पिछले दिनों ये पन्क्तियां नज़र में आईं, अफ़सोस कि लेखक का नाम नहीं मिल पाया;
फिर भी उस अनाम कवि को साधुवाद.........