दस तारीख को हम नहा-धो के ओल्ड-गोआ की सैर के लिये निकल पड़े. ओल्ड गोआ पुरानी इमारतों से समृड्ध इलाका है. यहां सेंट ज़ेवियर चर्च के नाम से मशहूर
बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस चर्च गये. यह कैथोलिक चर्च भारत में बारोक-वास्तुकला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है. बेसिलिका में सेंट फ़्रान्सिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेष रखे हैं जो गोवा के संरक्षक संत थे.
मैज़ोर्डा बीच
सेंट ज़ेवियर चर्च, सेंट कैथेड्रल चर्च, और " क्रूस-चौरा"( ये नाम मैने दिया है...:)
इसके बाद हम सेंट कैथेड्रल चर्च गये. यह एशिया का सबसे बड़ा गिरजाघर है, जिसे अलेग्ज़ेन्ड्रिया के सेंट कैथोरिन को समर्पित किया गया है, लिहाजा इसे सेंट कैथेरिन चर्च भी कहते हैं. चर्च में स्थित संग्रहालय तो इतना बड़ा है, कि हम चलते-चलते थक ही गये. इस चर्च के बाहर इतना सुन्दर लॉन और बगीचा है, कि हम थोड़ी देर वहां बैठने का लोभ संवरण नहीं कर सके.
सेंट कैथेड्रल चर्च के पास ही वैक्स म्यूज़ियम है, जिसे लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय की तर्ज़ पर बनाया गया है.
ओल्ड गोआ-दर्शन के बाद उसी दिन हमने पन्जिम-चर्च भी देखा. चर्च घूमने के बाद हमारे ड्राइवर की सलाह् पर हम मंगेशी मंदिर भी उसी दिन घूम आये. सुन्दर और साफ़-सुथरा मंदिर है ये.
अगले दिन हम गोआ के समुद्री तटों पर घूमने गये. सबसे पहले हम मीरामार बीच गये जो घर के पास ही है. उसके बाद मैज़ोर्डा बीच गये. इस बीच की खासियत है कि यहां की बालू सुनहरे-सफ़ेद रंग की है. ऊंची उठती लहरें, यहां-वहां घूमते सैलानी, विदेशी पर्यटक , स्थानीय जन, लेकिन कचरे का एक तिनका भी नहीं. बहुत सुन्दर बीच है ये. बाद में हमने कोल्वा , कालन्गुट, बागाटोर, बागा और अन्जुना बीच भी देखा. ये सभी बीच बेहद सुन्दर हैं. गोआ के समुद्री तटों की खासियत है वहां की सफ़ाई. बीच पर खाने-पीने का कोई स्टॉल नज़र नहीं आयेगा, किसी एक बीच पर रशियन स्टॉल था भी, लेकिन ये केवल "पीने" का स्टॉल था :) .
वैसे पीने की भली चलाई. जिस तरह हमारे यहां पान की दुकानें हैं, उसी प्रकार गोआ में शराब की दुकानें हैं. खुले आम शराब बिकती है, लेकिन मज़े की बात ये , कि कोई भी नशे में झूमता नहीं मिलता.
एक बात और, अपने छोटे-छोटे मन्दिरों की तरह गोआ में हर बीस कदम पर एक छोटा सा चर्च मिल जायेगा, जहां क्रूस स्थापित होता है, या जीसस की छोटी सी प्रतिमा. हमारे घरों में जैसे तुलसी-चौरे होते हैं, ठीक उसी तरह गोआ के हर घर के बाहर ’क्रूस-चौरा’ मिल जायेगा. शाम को इन छोटे-छोटे चर्चों के बाहर लोग जमा होते हैं और मोमबत्तियां जला के प्रेयर करते हैं.
कोल्वा बीच पर विधु , छोटा चित्र मंगेशी-मंदिर का.
हम जब कालन्गुट बीच जा रहे थे तब रास्ते में हमने अगौडा-फ़ोर्ट भी देखा. कोल्वा बीच जाते हुए जब हमें रास्ते में कोल्वा गांव मिला तो उस गांव के घर देख के हम चकित थे. इतने शानदार और आधुनिक डिज़ाइन के घर! हमारे यहां तो इसे बंगला कहते हैं. गोआ में कहीं भी गरीबी दिखाई ही नहीं देती. दिल्ली या मुम्बई की तरह झुग्गियां तो बिल्कुल भी नहीं.
गोआ की एक और खास पहचान है, वहां की मांडवी नदी. इस नदी के चौड़े पाट पर ढेर सारे छोटे-बड़े जहाजनुमा कैसिनो हैं. जो दिन-रात लाखों की कमाई करते रहते हैं. बड़े-बड़े क्रूज़ हैं, जो आपको सैर कराते हैं.
चौदह मई को हमें गोआ से निकलना था, और तेरह मई को उमेश जी के हाथ में फ़्रैक्चर हो गया, अन्जुना बीच पर. लेकिन यात्रा सुखद और यादगार रही. भविष्य में मौका मिला तो एक बार फिर ज़रूर जाना चाहूंगी गोआ के खूबसूरत समुद्री-तटों पर.
गोआ के गांवों के घर, यहां मैं एक ही चित्र लगा रही हूं, गांव का हर घर इतना ही सुन्दर और अलग-अलग रंगों से पुता हुआ था. छोटा चित्र मांडवी नदी पर कैसिनो का है.
तस्वीरें: उमेश दुबे