शनिवार, 29 मई 2010

जहां शराब है, नशा नहीं...


दस तारीख को हम नहा-धो के ओल्ड-गोआ की सैर के लिये निकल पड़े. ओल्ड गोआ पुरानी इमारतों से समृड्ध इलाका है. यहां सेंट ज़ेवियर चर्च के नाम से मशहूर
बेसिलिका ऑफ़ बॉम जीसस चर्च गये. यह कैथोलिक चर्च भारत में बारोक-वास्तुकला का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है. बेसिलिका में सेंट फ़्रान्सिस ज़ेवियर के पवित्र अवशेष रखे हैं जो गोवा के संरक्षक संत थे.
मैज़ोर्डा बीच

सेंट ज़ेवियर चर्च, सेंट कैथेड्रल चर्च, और " क्रूस-चौरा"( ये नाम मैने दिया है...:)
इसके बाद हम सेंट कैथेड्रल चर्च गये. यह एशिया का सबसे बड़ा गिरजाघर है, जिसे अलेग्ज़ेन्ड्रिया के सेंट कैथोरिन को समर्पित किया गया है, लिहाजा इसे सेंट कैथेरिन चर्च भी कहते हैं. चर्च में स्थित संग्रहालय तो इतना बड़ा है, कि हम चलते-चलते थक ही गये. इस चर्च के बाहर इतना सुन्दर लॉन और बगीचा है, कि हम थोड़ी देर वहां बैठने का लोभ संवरण नहीं कर सके.

सेंट कैथेड्रल चर्च के पास ही वैक्स म्यूज़ियम है, जिसे लंदन के मैडम तुसाद संग्रहालय की तर्ज़ पर बनाया गया है.
ओल्ड गोआ-दर्शन के बाद उसी दिन हमने पन्जिम-चर्च भी देखा. चर्च घूमने के बाद हमारे ड्राइवर की सलाह् पर हम मंगेशी मंदिर भी उसी दिन घूम आये. सुन्दर और साफ़-सुथरा मंदिर है ये.

अगले दिन हम गोआ के समुद्री तटों पर घूमने गये. सबसे पहले हम मीरामार बीच गये जो घर के पास ही है. उसके बाद मैज़ोर्डा बीच गये. इस बीच की खासियत है कि यहां की बालू सुनहरे-सफ़ेद रंग की है. ऊंची उठती लहरें, यहां-वहां घूमते सैलानी, विदेशी पर्यटक , स्थानीय जन, लेकिन कचरे का एक तिनका भी नहीं. बहुत सुन्दर बीच है ये. बाद में हमने कोल्वा , कालन्गुट, बागाटोर, बागा और अन्जुना बीच भी देखा. ये सभी बीच बेहद सुन्दर हैं. गोआ के समुद्री तटों की खासियत है वहां की सफ़ाई. बीच पर खाने-पीने का कोई स्टॉल नज़र नहीं आयेगा, किसी एक बीच पर रशियन स्टॉल था भी, लेकिन ये केवल "पीने" का स्टॉल था :) .
वैसे पीने की भली चलाई. जिस तरह हमारे यहां पान की दुकानें हैं, उसी प्रकार गोआ में शराब की दुकानें हैं. खुले आम शराब बिकती है, लेकिन मज़े की बात ये , कि कोई भी नशे में झूमता नहीं मिलता.
एक बात और, अपने छोटे-छोटे मन्दिरों की तरह गोआ में हर बीस कदम पर एक छोटा सा चर्च मिल जायेगा, जहां क्रूस स्थापित होता है, या जीसस की छोटी सी प्रतिमा. हमारे घरों में जैसे तुलसी-चौरे होते हैं, ठीक उसी तरह गोआ के हर घर के बाहर ’क्रूस-चौरा’ मिल जायेगा. शाम को इन छोटे-छोटे चर्चों के बाहर लोग जमा होते हैं और मोमबत्तियां जला के प्रेयर करते हैं.
कोल्वा बीच पर विधु , छोटा चित्र मंगेशी-मंदिर का.
हम जब कालन्गुट बीच जा रहे थे तब रास्ते में हमने अगौडा-फ़ोर्ट भी देखा. कोल्वा बीच जाते हुए जब हमें रास्ते में कोल्वा गांव मिला तो उस गांव के घर देख के हम चकित थे. इतने शानदार और आधुनिक डिज़ाइन के घर! हमारे यहां तो इसे बंगला कहते हैं. गोआ में कहीं भी गरीबी दिखाई ही नहीं देती. दिल्ली या मुम्बई की तरह झुग्गियां तो बिल्कुल भी नहीं.
गोआ की एक और खास पहचान है, वहां की मांडवी नदी. इस नदी के चौड़े पाट पर ढेर सारे छोटे-बड़े जहाजनुमा कैसिनो हैं. जो दिन-रात लाखों की कमाई करते रहते हैं. बड़े-बड़े क्रूज़ हैं, जो आपको सैर कराते हैं.
चौदह मई को हमें गोआ से निकलना था, और तेरह मई को उमेश जी के हाथ में फ़्रैक्चर हो गया, अन्जुना बीच पर. लेकिन यात्रा सुखद और यादगार रही. भविष्य में मौका मिला तो एक बार फिर ज़रूर जाना चाहूंगी गोआ के खूबसूरत समुद्री-तटों पर.
गोआ के गांवों के घर, यहां मैं एक ही चित्र लगा रही हूं, गांव का हर घर इतना ही सुन्दर और अलग-अलग रंगों से पुता हुआ था. छोटा चित्र मांडवी नदी पर कैसिनो का है.
तस्वीरें: उमेश दुबे

सोमवार, 24 मई 2010

परीकथा सा सुन्दर, गंगाजल सा निर्मल....

गोवा की अधूरी पोस्ट पर इतनी झिड़कियां (स्नेहसिक्त) मिलीं, कि तुरन्त आगे का वृतांत लिखने बैठ गई.
तो शुरु करूं? :)

पिछले कई सालों से इस्मत( ज़ैदी "शेफ़ा कजगांववी" ) गोवा आने का आग्रह कर रही थीं और हम हर बार आने का आश्वासन दे रहे थे. लेकिन इस बार उन्होंने धमकाते हुए पूछा-
" गोआ पहुंचने की तारीख बताओ"
हम डर गये. कहा-
" कल ही रिज़र्वेशन करवाते हैं और तुम्हें तारीख बताते हैं."
आनन-फानन रिज़र्वेशन हुआ और इस्मत को खबर की गई कि हम आठ मई को सतना से रवाना होंगे और दस मई को गोआ पहुंच जायेंगे.
इस्मत, ज़हूर भाई, आश्ती और मुशीर सब प्रसन्न. यहां हम अपनी खरीदारी में व्यस्त हो गये. तैयारियां अपने शबाव पर थीं कि एक रात इस्मत का फोन आया-
" अत्यंत आवश्यक कार्यवश मुझे बाहर जाना पड़ रहा है, कम से कम एक महीने के लिये."
खबर सुनते ही अपनी गोआ-यात्रा रद्द होने के शोक में हमारे चेहरे लटक गये. लेकिन उधर इस्मत और ज़हूर भाई दोनों का आग्रह था कि किसी प्रकार हमारा कार्यक्रम बना है, लिहाजा इसे रद्द न करें और नियत समय पर गोआ पहुंचे. खैर हमने उनके आग्रह का मान रखा और आठ मई को अपनी यात्रा पटना-वास्कोडिगामा सुपर फ़ास्ट ट्रेन से रात ग्यारह बजे शुरु की.
सतना से लेकर खंडवा तक केवल वीरान, सूखे जंगल और बंजर ज़मीन के दर्शन हुए. लेकिन भुसावल के बाद मन प्रसन्न हो गया. चारों ओर हरियाली का साम्राज्य. ट्रेन जब कोंकण क्षेत्र में पहुंची तब तो हम विस्मित हो गये. लगा इसे ही तो स्वर्ग कहते हैं!
पानी से लबालब भरी नदियां, नारियल, आम और भी कई तरह के वृक्षों से अटे पड़े जंगल.!! केवल हरियाली और पानी. ऊंची-ऊंची पहड़ियां, लेकिन घने पेड़ों से आच्छादित. दूर से हरे-हरे पहाड़ दिखाई दिखाई दे रहे थे, जैसे कोई चित्र देख रहे हों.

अंगूर के खेत और कोंकण की लबालब भरी नदियां.

मध्य-प्रदेश के सूखे से त्रस्त मैं, जब भी कोई हरी-भरी सीनरी देखती थी, तो सोचती थी , कि पक्का कलाकार ने मनगढंत चित्र बनाया होगा, लेकिन यहां प्रकृति की चित्रकारी देख विस्मित थी.
दस मई की सुबह हमारी ट्रेन अपने निर्धारित समय से पहले ही गोआ के "करमली" स्टेशन पहुंच गई. इस स्टेशन पर बने बांस के खूबसूरत यात्री पैदल पुल को देख कर तो हम आश्चर्य में पड़ गये. पुल को पार कर के जब हम एक नम्बर प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचे तो तय नहीं कर पा रहे थे, कि हम स्टेशन पर हैं या किसी पार्क में? हमें तो कचरे से अटे, पान की पीक से रंगे स्टेशन की आदत है, सो कदम-कदम पर चकित हो रहे थे.
पणजी का मुख्य चौराहा,------ करमली स्टेशन का भीतरी दृश्य.
दस मिनट के अन्दर ही ज़हूर भाई हमें लेने स्टेशन पर आ गये. सामान गाड़ी में लादा और हम भी साथ में लद लिये. गाड़ी ओल्ड-गोआ से होती हुई पणजी में प्रविष्ठ हुई , जहां से हमारा घर दस मिनट की दूरी पर था, तभी हमें याद आया कि हम अपना पर्स, जिसमें पांच हज़ार रुपये, मेरे सारे एटीएम कार्ड्स, पैन-कार्ड, पत्रकार संघ का आई कार्ड, मतदाता पहचान-पत्र, घर की सारी चाबियां, पूरे लगेज की चाबियां साथ में वापसी के टिकट और मेरे सोने के दो कंगन थे, स्टेशन के बगीचे की फ़ेंस पर ही छोड़ आये हैं :(
ज़हूर भाई ने बिना कुछ कहे, गाड़ी मोड़ी और हम वापस स्टेशन चल दिये.
हमारी गाड़ी ने जैसे ही स्टेशन में प्रवेश किया, हमारे उतरने के पहले ही, वहां टैक्सी स्टैंड पर खड़े टैक्सी ड्राइवर आवाज़ दे के कहने लगे,
" मैम आपका पर्स यहां छूट गया था, हमने अन्दर जमा करवा दिया है."
दो-तीन टैक्सी-ड्राइवर हमारे साथ अन्दर गये, और स्टेशन मास्टर व्यंक्टेश को बताया कि हमारा ही पर्स उन्होंने जमा करवाया है, तब एक एप्लीकेशन लेने के बाद पर्स हमें दे दिया गया, हमने देखा, पूरा सामान ज्यों का त्यों था. विकी नाम के जिस टैक्सी ड्राइवर को पर्स मिला, उसने कहा कि
"मैने पहले पर्स खोल के देखा, कि यदि कोई फोन नम्बर मिल जाये तो हम खबर कर दें, लेकिन जब नम्बर नहीं मिला तो हमने जमा कर दिया"
एक बार फिर हमारे चकित होने की बारी थी. यदि कोई और जगह होती तो क्या पर्स मिलता? छूटा हुआ रूमाल तो मिलता नहीं......
नतमस्तक थी गोआवासियों की ईमानदारी पर. तो ये थी मेरी पहली मुलाकात गोआ से. इस पहली मुलाकात ने ही अभिभूत कर दिया.
करमली स्टेशन का विहंगम दृश्य.

तस्वीरें: उमेश दुबे
(क्रमश:)

गुरुवार, 20 मई 2010

स्वर्ग सा सुन्दर: गोवा

सोलह मई को अपनी गोवा यात्रा सम्पन्न कर सतना लौटी. लौट तो आई, लेकिन मन वहीं कहीं हरियाली के बीच छूट गया. इतना सुन्दर राज्य. हालांकि मुझे बताने की ज़रूरत नहीं है, सब जानते हैं, गोवा के बारे में. फिर भी कुछ तस्वीरें तो दिखा ही सकती हूं, ज़्यादा बोर नहीं करूंगी लम्बा सा वृतांत लिख के.

गोवा

ब्यौरेविवरण
क्षेत्रफल3,702 वर्ग कि.मी.
जनसंख्‍या1,343,998
राजधानीपणजी
मुख्‍य भाषाएंकोंकणी तथा मराठी




सतना से गोवा की ओर जाने पर मध्य-प्रदेश की सीमा खंड्वा से समाप्त हो जाती है, और समाप्त हो जाता है तमाम वृक्ष-विहीन इलाका. महाराष्ट्र राज्य के शुरु होते ही हरियाली भी शुरु हो जाती है. भुसावल में केले के बड़े-बड़े बगीचे, तो नासिक में अंगूर के बगीचे!!! नारियल के पेड़ तो हैं ही.
पनवेल से ट्रेन गोवा की ओर मुखातिब हो जाती है, और शुरु होता है कोंकण का खूबसूरत हरा-भरा इलाका. पानी से लबालब भरी नदियां और फलों से लदे वृक्ष. सड़क-मार्ग पर दोनों ओर आम, इमली और नीम जैसे बड़े वृक्ष मुसाफ़िरों को भरपूर छाया देते हैं. पर्यावरण को प्रदूषित होने से तो बचाते ही हैं. चंद तस्वीरें देखें और तुलना करें, बतायें कि क्या मध्य-प्रदेश शासन सड़क-मार्ग को भी वृक्षों से आच्छादित नहीं कर सकता? ज़मीन इतनी बंजर पड़ी है कि देख के तकलीफ़ होती है.

मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र के जंगल
गोवा की एक आम सड़क और
मुम्बई का एक खास स्था
ऊपर मरीन ड्राइव मुम्बई, और नीचे गोवा का तट जहां आप आंख मूंद के चल सकते हैं

मुम्बई की कुछ जगहों के चित्र देने के पीछे मेरा मकसद मुम्बई को शर्मिन्दा करना नहीं है, वरन केवल आगाह करने की कोशिश है. आम लोग , जिनमें मैं भी शामिल हूं, जब गोवा जैसी अनुशासित जगहों पर जाते हैं, तो वहां एक कागज़ भी सड़क पर फ़ेंकने से पहले सोचते हैं, और हमीं लोग दूसरी जगहों पर जाकर गन्दगी फैलाते हैं.
नियम तो हर जगह बने होते हैं लेकिन उनका पालन सख्ती से नहीं करवाया जाता ( ’करवाया जाता’....हमारे यहां आज भी लोगों को करवाये जाने की आदत है. अपने आप कुछ करना ही नहीं चाहते) लिहाजा लोग मनमानी करते हैं. डस्टबिन तक जाने की ज़हमत नहीं उठाते और जहां खड़े होते हैं वहीं कचरा फेंक देते हैं, लेकिन गोवा या पॉन्डिचेरी जैसी जगहों पर जाते हैं तो सभी नियमों का पालन करते हैं.
यानी ज़रूरत है नियम बनाने की और उन्हें कड़ाई से लागू करने की, तभी हमारा प्रदेश या अन्य दूसरे प्रदेश गोवा की तरह साफ़-सुथरे बन पायेंगे.

सभी तस्वीरें: उमेश दुबे