गुरुवार, 5 मई 2016

स्वर्गलोक में खलबली....!

स्वर्गलोक में आज बड़ी हलचल थी. हलचल क्या, अफ़रा-तफ़री सी मची थी. किसी को किसी से बात करने की फ़ुरसत तक न थी. हमेशा आराम फ़रमाने, नाच-गान में मस्त-व्यस्त रहने वाले इन्द्रदेव भी अपना मुकुट उतारे, माथे पे हाथ धरे बैठे थे. सुन्दरियां एक ओर सहमी सी खड़ी थीं और सुरा अपने सुराहीदार पात्र  से उचक-उचक के बाहर देखने की कोशिश में थी कि अब तक उसे पिया क्यों नहीं गया?
“टनन..टनन..टनन..टुनुक टन टनन….. घंटी की आवाज़ आनी क्या शुरु हुई, लगा जैसे स्वर्गचाल आ गया. इंद्रदेव को अपना सिंहासन डोलता सा लगा. जबकि वे खुद उस पर बैठे ही नहीं थे. वे तो बाहर पड़े मूढे पर बैठे थे. ये खयाल आते ही उनके माथे पर पड़ी तमाम चिंता की शिकनों में से दो-चार गायब हो गयीं. लम्बी सांस ले के वे उठे और इधर-उधर चहलकदमी करने लगे.  जो देवता सो रहे थे, घंटी की आवाज़ सुन पलंग से नीचे गिरते-गिरते बचे. देवियों ने अपने हाथ का काम छोड़, कान घंटी की आवाज़ पर लगा लिये. कुछ  देवता जाग रहे थे लेकिन घंटी की आवाज़ सुन सोने का नाटक करने लगे. कानों में जबरन एयर प्लग ठूंस लिये. कुछ जो अपने महल  से निकल के अगले के महल तक जा रहे थे, घंटी-ध्वनि कानों में पड़ते ही, बदहवास से अपने महल की ओर वापस दौड़ पड़े.
भक्त की इस घंटी ने उनका जीना हराम कर दिया था. और आज नौबत ये आ पहुंची थी….
नारद जी बहुत देर से ये पूरा नज़ारा स्वर्गलोक के एक कोने से ले रहे थे.ये खलबली देख के उन्हें साल भर पहले धरती पर शिक्षक दिवस के दिन होने वाली अफ़रा तफ़री याद आ गयी. कैसे तो सारे स्कूल उल्टे सीधे हो गये थे… जब उनसे रहा न गया तो सीधे इंद्र के पास पहुंचे. नारद जी को देखते ही इंद्रदेव के चेहरे से गायब हुई शिकनों ने फ़िर वापसी कर ली. नारद जी भांप गये, आखिर अन्तर्यामी जो ठहरे, लेकिन फ़िर भी उन्हें ऐसी शिकनों की आदत थी सो अनदेखी करते खुद ही आसन ग्रहण कर लिये और इंद्रदेव की तरफ़ मुखातिब हुए- “ क्या बात है महाराज! आज यहां बड़ी हलचल मची है… कोई खास बात?? इंद्रदेव तो जैसे इस प्रश्न का ही इंतज़ार कर रहे थे. फट पड़े- “ देखिये मुनिवर, मेरा मुंह न खुलवाइये. एक तो आपने धरती से लेकर स्वर्ग तक खलबली मचा दी और अब पूछ रहे हैं कोई खास बात? इतने भोले न हैं आप कि हमें बताना पड़े बात.. आखिर क्यों किया आपने ऐसा?” अब नारद जी अचकचाये-“ हें!! मैने किया? क्या कर दिया भाई? आपलोगों की तो आदत ही बन गयी है मुझे फंसाने की. कुछ करूं तो और न करूं तो भी. “
“अच्छा! कह तो ऐसे रहे हैं जैसे कुछ जानते ही नहीं.”- इंद्र ने मुंह बिचकाया जो इंद्राणी को एकदम पसंद न आया. बहस में हस्तक्षेप करते हुए बोलीं-“ अब यदि आप समस्या बता ही देंगे तो कौन सा आपका सिंहासन छिन जायेगा. बता दीजिये.”
“देवी, सिंहासन तो छिनवाने की पूरी तैयारी कर दी है नारद महराज ने. अब तुम क्या जानो.” इंद्र बिचके मुंह से बोले. “वही तो…. पत्नियों को बस महल में सजी-धजी पुतली बना के बिठाये रखिये. कोई काम की बात हो, तो फटाक से कह दीजिये- अब तुम क्या जानो. हुंह” इंद्राणी को सचमुच गुस्सा आ गया था. स्वर्ग में औरतों की स्थिति पर वे पहले ही नाखुश थीं. इंद्राणी को रूठते देख इंद्र थोड़ा नरम पड़े. “ प्रिये, तुम तो बस मनवाने के लिये रूठती रहती हो. अभी बिल्कुल टाइम न है मेरे पास मनाने का. सो रूठने का प्रोग्राम पोस्ट्पॉन कर दो.”
“और सुनो महराज, ये खलबली उस चिट्ठी ने मचाई है जो आप विष्णु जी को दे आये हैं. आखिर क्या ज़रूरत थी चिट्ठी सीधे वहां पहुंचाने की? थ्रो प्रॉपर चैनल काम करना रास नहीं आता न आपको? अब आपका तो कुछ नहीं, लेकिन देवताओं को देखिये, कैसे  औंधे-सीधे हुए जा रहे. बेचारों को हाथ हिलाने की आदत नहीं, और आज पूरे के पूरे हिल डुल रहे. दौड़ भाग रहे.   सुना है चिट्ठी में सब देवताओं के नाम मेल जाने की बात है, सो सब लैपटॉप जुगाड़ रहे. स्मार्ट फ़ोन की खेप मंगाई है धरती से लेकिन धरती वाले बहुत भाव खा रहे, कह रहे यहीं नहीं पूज रहे, आपको क्या भेजें? कुछ इंसानों ने तो यहां तक कह दिया की हमारी सुनी है कभी जो हम आपकी सुनें? हमें दी मांगी हुई चीज़? फ़िर हम काहे दें स्मार्ट फ़ोन? सो देवतागण दूसरा जुगाड़ बना रहे. यहीं अंतरिक्ष में लटके सैटेलाइट से सीधा कनेक्शन करवा रहे, यहां की रंगशाला में. आखिर देखें तो माज़रा क्या है. वैसे खोज तो संजय की भी मची है. वही मिल जाता तो क्या कहने थे. सारी झंझट खतम हो जाती. सबके मेल बिना कम्प्यूटर/इंटरनेट के पढ के बता देता.” नारद जी पर बरसने से शुरु हुई इंद्रदेव की बात धीरे-धीरे स्वगत कथन में बदल गयी.
अब नारद जी धीरे से बोले- “ महाराज, मैं तो ब्रह्मा जी का संदेशा ले के आया हूं. विष्णु जी ने वो चिट्ठी टीप लगा के आगे फ़ॉरवर्ड कर दी. सो मामला अब ब्रह्मा जी के हाथ में है. आप सबको आज शाम चार बजे मीटिंग के लिये बुलाया गया है कैलाश पर्वत पर.
“कैलाश पर्वत पर!! जाने क्या सूझता है ब्रह्मा जी को भी.. अब बड़े हैं सो मैं कुछ ऊटपटांग शब्द नहीं बोल रहा वरना मन तो पच्चीसों सुनाने का है. शिव जी को तो ठंड लगती नहीं, उन्हें फ़र्क नहीं पड़ेगा. विष्णु जी हर तरह के मौसम के आदी हैं. खुदई आगे बढ के नारायण पर्वत हथियाये थे बद्रीनाथ में, मने उन्हें भी बर्फ़ से कोई एलर्जी नहीं है. लेकिन हम लोगों की तो सोचो. ये तीनों विभूतियां तो वहां पत्थरासीन हो जायेंगीं, शिवजी के साथ, लेकिन उस पिरामिड सरीखे कैलाश पर्वत पर हम सब कहां रहेंगे जानते हैं न मुनिवर? देखा तो है आपने. जहां-तहां पूरे पर्वत में बर्फ़ के बीच जगह बना के हाथ जोड़े नंगे बदन खड़े रहेंगे. ऐसे में उनके  भाषण पर कम, ठंड पर ज्यादा ध्यान रहेगा. दांत अलग किटकिटायेंगे. और अगर ज्यादा ज़ोर से किटकिटाये तो शोर मचाने का आरोप लगाने में देर न लगेगी उन्हें. इस पर्वत से अच्छा तो धरती का रामलीला मैदान है, जहां कम से कम दर्शक बैठ तो पाते हैं. “ इंद्रदेव कैलाश की ठंड अभी से महसूस करने लगे थे.मौका देख के  नारद जी तत्काल अन्तर्ध्यान हो गये क्योंकि उन्हें मालूम था कि लोग अधिकारियों के खिलाफ़ तो कुछ बोल नहीं पाते, सूचना लाने वाले को ही आड़े हाथों लेते हैं.
देवतागण तीन बजे से ही अपने अपने यानों और सवारियों पर सवार हो के कैलाश पर्वत को कूच करने लगे थे. कइयों ने अपने पद से इस्तीफ़ा लिख के अपने-अपने पीताम्बर/नीलम्बर/श्वेताम्बर की अंटी में खोंस लिया था. इस्तीफ़ा लिखने वाले खासतौर से वे देवता थे, जिनका मेल देखने का कोई जुगाड़ जम नहीं पाया था. जल्दी उड़ान भरने वाले देवताओं ने सोचा था कि वे कैलाश पर्वत पर सबसे आगे की लाइन घेर लेंगे, लेकिन ये उनकी गलतफ़हमी थी. बहुत सारे बिना सवारियों वाले  देवता, दूसरों से लिफ़्ट ले के पहलेई पहुंच गये थे और  आगे की लाइन पर कब्जा जमा चुके थे. बहुत सारे देवता इंद्र के उडान भरते ही एरावत हाथी के पांव से लटक के चेन बना लिये और एरावत के लैंड करने से पहले ही मनचाही जगह पर पांव छोड़-छोड़ के लैंड करते चले गये. ऐसी हरकत पर  बड़े देवताओं ने इसे  नीच कर्म घोषित करते हुए  फ़िर छोटों को अपनी ज़ात दिखा देने का फ़िकरा कसा. और “ कितनी ही सुविधाएं दो इनको, कितनी ही योजनाएं लागू करो इनके लिये, रहेंगे ये छोटे के छोटे” वाला ताना मारा.
खैर. किसी प्रकार सब अपनी अपनी जगह पर खड़े हुए. त्रिमूर्ति कैलाश पर बने पत्थरासन पर विराजमान हो चुकी थी. नारद जी ने सभा शुरु होने की औपचारिक घोषणा की, और ब्रह्मा जी का इशारा पाके बात आगे बढाई.
“ उपस्थित देवियो/देवताओ. जैसा कि आप सब जानते हैं, ये मीटिंग एक बेहद गम्भीर चिट्ठी को लेकर बुलाई गयी है. ये चिट्ठी पृथ्वीलोक से किसी अनन्य भक्त ने भेजी है. यदि परमादरणीय परमपिता ब्रह्मा जी की अनुमति हो, तो मैं इस चिट्ठी का मजमून बांचूं.” ब्रह्मा जी ने हाथ उठाकर चिट्ठी पढने का इशारा किया. नारद जी ने गला खंखार के पढना शुरु किया-
“ आदरणीय त्रिमूर्ति,
सादर प्रणाम. अत्र कुशलम तत्रास्तु. आगे समाचार यह है कि चूंकि चिट्ठी का फ़ॉर्मेट यही है सो मुझे मजबूरीवश “अत्र कुशलम तत्रास्तु” लिखना पड़ा. वरना स्थिति तो ये है कि यहां कुछ भी कुशल नहीं. देश में क्या हो रहा, सो तो आप मुझसे ज़्यादा जानते हैं, सो देश की बात नहीं करनी मुझे. अपन तो सीधे मुद्दे की बात करेंगे. और मुद्दा ये है कि  हम जाने कितने सालों से आप की पूजा कर रहे. हर देवी/देवता को मना रहे लेकिन आप लोग हो कि सुनतेई नईं. आज तक हमारी कोई ख्वाहिश पूरी की? विश्वास न हो तो अपने इच्छापूर्ति रजिस्टर में देख लीजिये. दिखा हमारा नाम?  नहीं न? पिछले दिनों कितना जरूरी काम था हमारा. लेकिन किसी ने न सुनी. हम तो पेटी का भी इंतज़ाम किये थे लेकिन जब कोई सुने तब न? तो हम आज आपको पत्र के माध्यम से नोटिस देते हैं कि हमारी कोई भी इच्छा पूरी क्यों नहीं की गयी. आपके यहां भी धरती की तरह भर्राखाता है क्या? आपकी सरकार भी झूठे वादे करती है क्या? मुझे तो यही लगता है कि  पृथ्वीलोक का असर आपके स्वर्ग में भी हो गया है. उम्मीद है, मेरी चिट्ठी का जवाब जल्दी से जल्दी देंगे अन्यथा मुझे मजबूरन न केवल कानून का , बल्कि किसी और धर्म के देवता का सहारा लेना पड़ेगा.
पुनश्च: - सभी देवताओं से मेरी अर्ज़ी पहुंचने बावत पूछताछ की जाये.
थोड़े लिखे को बहुत समझना. सबको  यथायोग्य कहें.
उत्तर की प्रतीक्षा में
आपका अनन्य भक्त
चिट्ठी पढ के नारद जी ने जैसे ही तहा के ब्रह्मा जी को सौंपी, सभा में सबकी आवाज़ों ने भिनभिनाहट का रूप ले लिया . तभी शिवजी ने अपना त्रिशूल ठोंका. आवाज़ें धीमी होते-होते बंद हो गयीं. ब्रह्मा जी के बायें सिर ने नारद जी को आंखों से इशारा किया, देवताओं से जवाब तलब के लिये.  नारद जी ने देवताओं को इशारा किया उत्तर देने के लिये. इशारा पाते ही सारे देवता त्राहिमाम त्राहिमाम चिल्लाने लगे. कुछ कह रहे थे कि उन्हें मेल मिला ही नहीं तो कुछ कह रहे थे कि उनके पास लैपटॉप नहीं था सो वे मेल चैक ही नहीं कर पाये. शोर इतना बढा कि ब्रह्मा जी के तीनों सिर घूम गये. शिव जी का तीसरा नेत्र खुलने वाला है ऐसा भांप के नारद जी ने बात सम्भाली और देवताओं में से किसी एक को आ के सबकी समस्या बताने को कहा. विष्णु जी ने इंद्रदेव की तरफ़ इशारा किया तो नारद जी ने उन्हें ही तलब कर लिया.
त्रिमूर्ति के आगे आ के इंद्रदेव ने हाथ जोड़ के कहना शुरु किया- “हे त्रिदेव, सभी देवताओं का कहना है कि उन्हें जो मेल मिला है वो खाली था. उस मेल में कुछ लिखा ही नहीं था फ़िर वे क्या मनोकामना पूरी करते? लगभग ८० प्रतिशत देवता हैं जो मेल चैक कर चुके हैं और उनके मेल में कुछ भी नहीं लिखा है. केवल मेल आईडी उनकी डली है.  कुछ देवताओं के पास सीसीटीवी कैमरे की सुविधा है, सो मेरी विनती है कि इस फ़ुटेज़ को देखने के बाद ही हमारे लिये दंड तय किया जाये.”  अबकी विष्णु जी ने प्रोजेक्टर लगाने को कहा. तत्काल कैलाश पर्वत की सफ़ेद बर्फ़ को प्रोजेक्टर के स्क्रीन की तरह तैयार किया गया. फ़ुटेज़ चालू हुआ. लेकिन ये क्या?... ये भक्त तो आसमान की ओर हाथ उठा के लगभग घूमता हुआ जोर जोर से घंटी बजाता  सारे देवताओं से अपनी मुराद पूरी करने को कह रहा. कई देवताओं ने अपना नाम सुनते ही तथास्तु कहने को हाथ भी उठाया, लेकिन तब तक भक्त दूसरे देवता से विनय करता पाया गया. दूसरे देवता ने हाथ उठाया ही था, तथास्तु का “त” बोल भर पाया कि भक्त तीसरे देवता की चिरौरी करने लगा…
पूरा फ़ुटेज़ देखने के बाद इंद्रदेव बोले- देखा भगवन? कैसे कोई इसकी मनोकामना पूरी करे? ये किसी एक के पास टिकता ही नहीं…. सो सब उसकी इच्छा पूरी करने का भार अगले को सौंप देते हैं. बल्कि ये मान लेते हैं कि अगले ने उसकी इच्छा पूरी कर दी होगी. अब बतायें, हम सब कहां दोषी हैं?”
माजरा त्रिदेव की समझ में भी आ गया था. मुस्कुराते हुए नारद जी से बोले- मुनिवर, जो व्यक्ति  किसी एक की भक्ति नहीं कर सकता, किसी एक पर भरोसा नहीं कर सकता उस बेपेंदी के लोटे की कोई इच्छा पूरी कर पाना हमारे वश में नहीं. सो हे नारदमुनि, ऐसी चिट्ठियों को धरती पर ही मंडराने दिया कीजिये . और अगर गलती से ऊपर आ भी गयीं, तो फ़ाड़ के डस्टबिन में डाल दिया कीजिये. इतनी बड़ी सभा जोड़ने की आगे से कोई जरूरत न है. पूरी सभा में से “ त्रिदेव” त्रिदेव” के नारों की आवाज़ तब तक उठती रही, जब तक वे अन्तर्ध्यान न हो गये.