मंगलवार, 11 जनवरी 2011

सतना में शिमला का अहसास... :)

लीजिये हम फिर अपना रटा-रटाया जुमला ले
आ गए कि " बहुत दिनों से कुछ लिखना चाह रही थी लेकिन......" .
इस बार तो ठण्ड ने कुछ लिखने ही नहीं दिया ( मतलब दोष मौसम का है, हमारा नहीं .. ).
लेकिन सच्ची , बहुत ठण्ड है. पूरा देश ठंडा रहा है ( रश्मि, इस्मत, अर्कजेश और अन्य तटीय मित्र आपत्ति न जताएं मुझे मालूम है कि वहां पंखा चल रहा है, वैसे भी आपत्ति जताने की बुरी लत है इन्हें लेकिन हम लोगों से पूछो, जो ठण्ड की मार झेल रहे हैं).
पिछले साल भी बहुत ठण्ड हुई थी. लगभग ५-७ साल बाद कडाके की ठण्ड हुई थी, लेकिन इस बार तो पिछले सारे रिकॉर्ड ही धूल चाटने लगे. मध्य प्रदेश जैसे मैदानी इलाके में पर्वतीय ठण्ड!!!!! शिमला का मज़ा मिल रहा है अभी तो. तापमान एकदम तापहीन हो गया है. पारा सिकुड़ के गठरी बना बैठा है. धूप है कि शरमा-शरमा के निकलती है. शाम बाद में आती है, कोहरे की चादर शहर को पहले ही ढकने लगती है.
जिस तरह मोर बारिश को देख के नाचता है, मेरा मन कोहरे को देख के नाचने लगता है . हालाँकि जानती हूँ, प्रबुद्ध जन मेरी इस ख़ुशी को अव्यावहारिक बताते हुए आपति करेंगे, कहेंगे कि केवल अपनी ही ख़ुशी देखतीं हैं? किसानों के आंसू नहीं दिखते, जो ये कोहरा बहा रहा है? . दिखते हैं, वो भी दिखते हैं, अभी मेरे आंसू भी दिखेंगे जब सभी दालें महँगी हो जायेंगीं. सब्जियों के भाव तो अभी ही आसमान पर हैं.
लेकिन तब भी कहूँगी, कि मुझे कोहरा अच्छा लगता है.
मुझे लगता है, कि यदि हम ज़िन्दगी को केवल यथार्थ की शर्तों पर जियेंगे, तो न कभी खुश हो सकेंगे, न दूसरे को खुश कर सकेंगे. हर बात में चिंता ले के नहीं बैठा जा सकता. मौसम की मार से जो नुक्सान होना है, वो तो होना ही है न? हमारी चिंता से अगर वो कम होता हो, तो मैं दोगुनी चिंता करने को तैयार हूँ.
हर व्यक्ति का जीवन परेशानियों, चिंताओं का मुंह बंद थैला सा है. ज़रा सा मुंह खुला नहीं, कि परेशानियां निकल के बिखर जातीं हैं घर भर में. अब समेटते फिरो.
विषयांतर बहुत करती हूँ मैं . एक मुद्दे पर बात ही नहीं कर पाती. अब बात हो रही थी ठण्ड की, पहुँच गई परेशानियों पर, धत्त.
हाँ, तो बहुत ठण्ड है यहाँ. इस मौसम का न्यूनतम तापमान 1.2 रिकॉर्ड किया गया. जबकि रीवा में तापमान माइनस पर पहुँच गया. यहाँ न्यूनतम तापमान -1.2 रिकॉर्ड किया गया .मेरे गृहनगर नौगाँव में तो ये ठण्ड के शुरूआती दिनों में ही 0 पर पहुँच गया था. रीवा में बर्फ भी जमी पाई गई. डिंडौरी(जबलपुर) में तो कई दिनों तक बर्फ जमी रही. अभी भी सबसे कम तापमान वहीं का है.
भीषण ठण्ड को देखते हुए स्कूलों की छुट्टियाँ घोषित कर दी गईं हैं , पंद्रह जनवरी तक. ये छुट्टियां तो यू.पी., बिहार, और दिल्ली में भी की गईं हैं. बच्चे मज़े कर रहे हैं, और टीचर कोर्स पूरा करने की चिंता में घुले जा रहे हैं. क्योंकि फरवरी में वार्षिक परीक्षाएं हो जाने का शासकीय आदेश उनके पास है.
खैर, हमने इस ठण्ड के मज़े, जम के लिए. सुबह देर तक बिस्तर में लेटे रहने, या रजाई में बैठ के चाय पीने का लुत्फ़ तो हम न ले सके, क्योंकि विधु का स्कूल चल रहा है ( शासन की नज़र में ९/१० के बच्चों को ठण्ड नहीं लगती, जबकि इन्ही क्लासों का कोर्स भी पूरा हो चुका है ).सो बहुत सुबह नहीं, लेकिन साढे सात बजे तो बिस्तर छोड़ना ही पड़ता है न! लेकिन विधु को स्कूल भेजने के बाद गुनगुनी धूप में बैठ के चाय पीने और अखबार पढने का आनंद भी कुछ कम नहीं है. फिलहाल हम रोज़ इस आनंद को प्राप्त कर
रहे हैं . सुबह जब उमेश जी ऑफिस जाने लगते हैं, तो बड़ी मायूसी के साथ मुझे, कुर्सी पर आसीन देखते
हैं.
तो भैया, ख़ास कुछ नहीं, कोई गंभीर मसला भी नहीं, ले दे के यही हाल है मौसम का, बस्स.( पोस्ट समाप्त हुई).