रविवार, 2 जून 2019

आम जीवन का आइना है-क़र्ज़ा वसूली


आम जीवन का आइना है: क़र्ज़ा वसूली

गिरिजा कुलश्रेष्ठ..... ये नाम मेरे लिये नया नहीं था. उन्हें जानती थी, उनकी लेखनी के ज़रिये. पहचानती थी, उनकी आवाज़ के ज़रिये लेकिन मुलाक़ात नहीं हुई थी. 
तीन साल पहले,अप्रैल के आखिरी दिन थे वे जब हम ग्वालियर गये, एक शादी में. गिरिजा जी का फोन आया कि वे आ रही हैं, मिलने. चिलचिलाती धूप में गिरिजा जी का आना, उनकी सरलता का परिचायक था. वे खुद जितनी सौम्य हैं, उनकी लेखनी भी उतनी ही सहज-सौम्य है. बड़ी-बड़ी बात वे जिस सहजता से कह जाती हैं, चकित होने को मजबूर करती हैं. बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ उनका कहानी संग्रह- ’कर्ज़ा-वसूली’ उनकी मजबूत लेखनी और प्रखर सोच का नतीजा है.
’कर्ज़ा-वसूली’ में कुल तेरह कहानियां हैं. सभी कहानियां अलग रंग और अलग माहौल की हैं. पहली कहानी- अपने अपने कारावास’ एक ऐसी लड़की की कहानी है जो संगीत में रुचि रखती है, लेकिन परिस्थितियां उसके इस शौक़ को लगभग समाप्तप्राय कर देती हैं. शादी के बाद मध्यमवर्गीय लड़कियां किस तरह खुद को समेट लेती हैं, बहुत सुन्दर चित्रण इस कहानी में मिलता है. दूसरी कहानी ’साहब के यहां तो....! बिल्कुल अलग ही मिजाज़ की कहानी है. गिरिजा जी ने विद्यालय में चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को कितने नज़दीक से देखा है, ये इस कहानी से साबित होता है. रसीदन जो स्कूल के काम में पिस रही है, इमरती, जो कि शिक्षा मंत्री के बंगले पर काम करती है, जबकि है वो भी स्कूल की ही चपरासी की क़िस्मत से बड़ा रश्क़ करती है. लेकिन जब उसे इमरती के काम की असलियत का पता चलता है तो.... आगे आप खुद ही पढ़ लें इस ज़बर्दस्त कहानी को.
तीसरी कहानी है ’कर्ज़ा-वसूली. इस कहानी को पढ़ते हुए मुझे प्रेम्चंद जी की कहानियों का मज़ा मिला. ये कहानी गांव के एक छोटे किसान रामनाथ और व्यापारी बौहरे जी के इर्द-गिर्द बुनी गयी है. रामनाथ द्वारा कर्ज़ा लेना, और फ़िर उसे न चुकाना, बौहरे जी की बौखलाहट, लेकिन सहृदयता के साथ, जो अन्त तक बनी रही. कहानी बहुत जीवंत सम्वादों में रची-बसी है. ऐसा लगता है जैसे इस कहानी को खुद गिरिजा जी ने जिया है. बहुत शानदार कहानी है ये. चौथी कहानी ’उर्मि नईं तो नहीं है घर में..’ सेवानिवृत मास्टर माणिकलाल की उपेक्षित ज़िन्दगी को बखूबी उभारती है. शपथपत्र कहानी एक कर्मचारी की व्यथा को दिखाती सशक्त रचना है. किस प्रकार उसे अपने ही जीपीएफ़ के पैसों के लिये भटकना पड़ता है. किसोरीलाल की व्यथा उन तमाम कर्मचारियों की व्यथा है जो बाबुओं के चंगुल में फंस चुके हैं. एक मां और बेटे की बहुत जीवंत कहानी है ’पहली रचना’. इस कहानी को पढ़ते हुए सालों पहले का मुझे वो समाचार याद आया, जिसमें एक बच्चा ग़लती से स्कूल की कक्षा में बन्द हो गया, जबकि अगले दिन से ही लम्बी छुट्टियां होने वाली थीं. जब कमरा खोला गया तो बच्चा मर चुका था, और उसने पूरे फ़र्श पर, दीवारों पर चौक से लिखा था, मम्मी मुझे भूख लगी है, मम्मी मुझे प्यास लगी है....! हृदय विदारक थी ये घटना, उसी तरह हृदय विदारक है ये कहानी भी. ’उसके लायक़’ कहानी, सरिता नाम की एक ऐसी लड़की की कथा है, जो ठेठ ग्रामीण इलाके से उठ कर शहर के स्कूल में पढ़ने आई, जहां सब उसका मज़ाक उड़ाते थे. एक दिन ऐसा भी आया जब सबको धता बताती यही लड़की प्रोफ़ेसर हो गयी, जबकि बाकी बड़े घर के बच्चे अभी तक रोज़गार की तलाश में ही थे.
संग्रह में ’एक मौत का विश्लेषण’, ’नामुराद’, ब्लंडर मिस्टेक’, ’व्यर्थ ही’, पियक्कड़’, सामने वाला दरवाज़ा जैसी अन्य बेहतरीन कहानियां भी हैं, जिन्हें आप पढ़ेंगे तो हर बार चकित होंगे. बहुत व्यापक दृष्टिकोण है गिरिजा जी का, और बेहद सूक्ष्म अवलोकन भी. सभी कहानियां अपने आस-पास घटती सी लगती हैं. पाठक कहानी के साथ पूरी तरह जुड़ जाता है. इतने बेहतरीन लेखन के लिये गिरिजा जी को बधाई और शुभकामनाएं कि वे लगातार लिखती रहें और हम उनके अनेक संग्रह पढते रहें.
ये संग्रह बोधि प्रकाशन, जयपुर से प्रकाशित हुआ है. छपाई बेहतरीन है. सबसे बड़ी बात, अशुद्धियां नहीं हैं, पूरे संग्रह में, जो कि प्रिंटिंग की एक सबसे बड़ी समस्या होती है. कवर पृष्ठ शानदार है. पुस्तक का मूल्य १७५ रुपये है. इस संग्रह को आप ज़रूर पढ़ें. एक बार फ़िर लेखिका, प्रकाशक को बधाई.
पुस्तक: कर्ज़ा वसूली
लेखिका: गिरिजा कुलश्रेष्ठ
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन, जयपुर
ISBN: 978-93-87078-96-3
मूल्य: १७५ रुपये मात्र