पिछले दिनों मेरी ननद नीतू, और उनके पतिदेव शिशिर अमेरिका से लौटे। गत चार वर्षो से वेहोनोलुलू में थे। तमाम किस्से वहाँ की संस्कृति, लोग और अन्य मसलों पर खूब-खूब चर्चाएँ हुईं। चर्चा के दौरान ही शिशिर ने बताया कि वहां लोगों का सामान जब पुराना हो जाता है तब वे उसे रोड केकिनारे रख देते हैं, फिर वह चाहे साल भर पुराना हो या छह महीने। नया सामान आने के बाद पुराने की विदाई अवश्यम्भावी है। मज़ा ये की ये सामानछोटा-मोटा नहीं बल्कि टीवी , फ्रिज, कम्प्यूटर, लैपटॉप , क्रॉकरी , आदि आदि होता है। वो भी बहुत अच्छी हालत का।
शिशिर ने बताया की रोड के किनारे ये सामान शुक्रवार तक रखा रहता है। इस बीच यदि किसी व्यक्ति को इस सामान में से कुछ चाहिए तो वो उठा के ले जा सकता है। बाकी सामान को शनिवार को आने वाली म्युनिस्पल की गाड़ी डंप कर ले जाती है। टूटे-फूटे सामन की तरह बेरहमी से उठाते हैं और गाड़ी में पटकते जाते हैं। मेरा दिमाग तो चकरा गया। मुझे गोते खाता देख शिशिर ने बड़े प्यार से समझाया, "भाभी वे ऐसा केवल इसलिए करते हैं क्योंकि उनका मानना है की यदि नए मॉडल का टीवी आ गया है तो पुरानेटीवी को रखने से क्या फायदा? केवल जगह ही घेरेगा न वह....फिर भले ही टीवी एक साल पुराना ही क्यों न हो। हर दिन इलेक्ट्रोनिक में नया कुछ होता रहता है। नई तकनीक को आत्मसात करना ही वहां की संस्कृति है।
हमारे यहाँ जैसे नहीं की बीसों साल पुराना कबाड़ भी गले से लगाए बैठे हैं। इसलिए वहां देखिये, कुछ भी पुराना नहीं।कहीं कबाड़ नहीं। आते समय हम ख़ुद अपना सामान रोड के किनारे रख के आए हैं......."
अमरीकियों का सामान के प्रति निर्मोह मेरे लालच का कारण बन रहा था....सोच रही थी की काश मैं अमेरिका में होती तो पता नहीं कितना सामान समेट लेती.....
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से
शिशिर की बातों से शर्मिंदा होते हुए मैंने भी सोचा की आने दो दीवाली , मैं भी वर्षों से जोड़ा गया कबाड़ बाहर करती हूँ।
अंततः दीवाली भी आ गई। मैंने पूरे जोशो-खरोश से सफाई मुहिम संभाली। माया को ललकारा-" निकालो सब सामान अलमारियों से। पता नहीं कितना कबाड़ भरा पड़ा है । फेंको सब।"
माया ने मेरी बिटिया के कमरे की अलमारियों का सामान निकालना शुरू किया- बहुत से छोटे- बड़े पर्स, अलग-अलग डिजाइनों के बैग, ज्योमेट्री बॉक्स , कुछ बड़े-बड़े पॉलीथिन बैग एहतियात से सहेजे हुए से.....कार्ड बोर्ड के बड़े-बड़े डिब्बे जो सुतली से बंधे हुए थे , जिन्हें निश्चित रूप से कई सालों से मैं ही बांधती आरही हूँ।
माया ने पूछा-" दीदी, आप देखेंगी या सब फ़ेंक देना है?" मन नहीं माना। देखना शुरू किया........लगा यहाँ तो यादें बंधी पड़ीं हैं..................
हर साल मैं विधु ( मेरी बेटी) के तमाम सामान ज़रूरत मंदों को दे देती हूँ। बाई के बच्चों को हर साल ढेरों कपडे,स्कूल बैग, जूते, खिलौने और भी बहुत कुछ, लेकिन तब भी कुछ सामन ऐसा है जो मैं सहेज लेती हूँ।
पहला बण्डल खोला, तो उसमें तमाम वे ड्राइंग निकलीं जो उसने स्कूल के शुरूआती दिनों मेंबनाईं थीं, आड़ी-तिरछी लकीरें जो पहली बार खींचीं थीं......फिर बाँध दिया उसे, ज्यों का त्यों......
दूसरा बण्डल......देशबंधु के दिनों में लिए गए तमाम हस्तियों के साक्षात्कारों वाली डायरियां जिनकी अब कोई उपयोगिता नहीं क्योंकि वे प्रकाशित हो चुके हैं,......तमाम इनविटेशन कार्ड्स....तानसेन समारोह, खजुराहो नृत्योत्सव, अलाउद्दीनखां समारोह.......नाट्य समारोह, आकाशवाणी कंसर्ट, और भी पता नहींक्या-क्या....तीसरा बण्डल.......विधु के किचेन सेट, टी-सेट, बार्बी के कपडे, .............
विधु ने कहा रखे रहनेदो.....रख दिए वापस.....चॉकलेट के डिब्बे, जिन्हें उनकी सुंदरता के कारण रखा गया था, सोच के की किसी काम आयेंगे, जो आज तक किसी काम न आ सके, फिर सहेज दिए मिठाई का एक डिब्बा जो इतना खूबसूरत था , कि न मुझसे तीन साल पहले जब आया थे तब फेंका गया, न आज फेंक सकी।
कुछ देने लायक सामान आज भी दिया, लेकिन जो सहेजा था वो वहीं रह गया.............विधु की अलमारी फिर ज्यों की त्यों सामान से भर गई थी। बस फ़र्क सिर्फ़ इतना था की हर सामान पर से धूल हटा दी गई थी। सब कुछ फिर चमकने लगा था.................
मन में कोई शर्मिंदगी भी नहीं थी, कबाड़ न फेंक पाने की। पता नहीं क्यों सामान सहेजते-सहेजते मुझे रिश्ते याद आने लगे.....................
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......
"दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं "
"ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......"
जवाब देंहटाएंहमारे रिश्ते चाहे कितने भी नए या पुराने क्यों ना हो, एक को जगह देने के लिए हम कभी भी दुसरे को हटते नहीं है ! शायद यही कारण है कि हम सब ता-उम्र रिश्तो से बंधे रहेते है !
अब देखिये ना .... ना कभी मिले, ना कभी एक दुसरे को जाना पर है ना कोई ना कोई रिश्ता हम लोगो में भी जो एक दुसरे की पोस्टो का इंतज़ार रहेता है हमे !!
कभी सोचा क्यों इन पोस्टो के बहाने हम लोग एक दुसरे की दिलो की बाते जाने को इतना उत्सुक रहेते है .... क्या कारण हो सकता है ??
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
वन्दना अवस्थी दुबे जी!
जवाब देंहटाएंप्रकाश के इस पावन प्रव पर आपने बहुत बढ़िया संस्मरण पोस्ट किया है।
दीपावली, गोवर्धन-पूजा और भइया-दूज पर आप सबको ढेरों शुभकामनाएँ!
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से..... ये तो बड़ी ऊंची बात कह दी आपने।
जवाब देंहटाएंपुरानी यादें सहेजकर उनके बारे में संस्मरण लिखिये जी।
दीपावली की आपको सपरिवार मंगलकामनायें।
Sansmaran prastuti padhi..hamesha ki tarah soch mein dal diya....
जवाब देंहटाएंVandana ji .आप सहित पूरे परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
sundar bhavabhivyakti
जवाब देंहटाएंAapkaa likha jab kabhi padhtee hun...to aap samne baithee baat kar rahee hon, aisa mahsoos hota hai...!
जवाब देंहटाएंDiwalee kee anek shubhkamnayen ! Aapko aur aapke dher saare pathakon ko bhi...
बढ़ा दो अपनी लौ
जवाब देंहटाएंकि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की शुभकामना के साथ
ओम आर्य
० सच है शिवम जी, ये भी तो एक रिश्ता ही है.
जवाब देंहटाएं० धन्यवाद शास्त्री जी. दीपोत्सव पर आपको भी बहुत-बहुत शुभकामनायें.
० धन्यवाद अनूप जी. ज़रूर लिखूंगी, जल्दी ही लिखूंगी.
० धन्यवाद अल्पना जी.आपको भी दीपावली की शुभकामनायें(सपरिवार)
० धन्यवाद "गठरी" जी..नाम जान सकती हूं मैं?
० बहुत-बहुत धन्यवाद क्षमा जी. दीपावली की शुभकामनायें.
धन्यवाद ओम जी. आपको भी दीपावली की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंहमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत।
जवाब देंहटाएंdeepawali ki shubhkamanayein...
उनकी भी गलती नहीं होती माहौल का भी बहुत कुछ फर्क पड़ता है ! हम यूँ भी अमेरिकियों से अभी सौ साल पीछे है ! खैर, आपको दीपावली की ढेरो शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंउपयोगी संस्मरण| हम ऐसे ही रिश्तो को सहेजते है कितु अमरीकन संस्क्रती अब हमारे घरो में प्रवेश कर गई है दबे पाव और आज कि पीढी हमारे तथाकथित" कबाड़ "
में कम ही विश्वास रखती है|बहुत सालो पहले दूरदर्शन पर वागले कि दुनिया धारावाहिक आता था आपके संस्मरण ने उसकी याद ताजा कर दी |
बढ़िया |
एक नन्हा दिया अपने आप को जलाकर अमावस को प्रकाशवान कर देता है |
आपको आपके परिवार को दीपावली मंगलमय हो |
शुभकामनाये बधाई
आश्चर्य नहीं कि अमेरिका पर भगवान् की कृपा बनी हुई है. गीता में कृष्ण जी ने कहा ही है:
जवाब देंहटाएंअनपेक्षः शुचिर्दक्ष उदासीनो गतव्यथः।
सर्वारम्भपरित्यागी यो मद्भक्तः स मे प्रियः॥१२- १६॥
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति।
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः॥१२- १७॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं!
मिश्रा जी ने सही कहा है। रिश्ते सहेजना केवल हम लोग ही जानते हैं पुराना सामान भी हमे रिश्ते जैसा लगने लगता है किसी न किसी से जुडा हुया। बहुत सी संवेदनाओं को समेटे बहुत ही सुन्दर पोस्ट है दीपावली की आपको व पूरे परिवार को शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआज खुशियों से धरा को जगमगाएँ!
जवाब देंहटाएंदीप-उत्सव पर बहुत शुभ-कामनाएँ!!
WiSh U VeRY HaPpY DiPaWaLi.......
जवाब देंहटाएंzindagi ki chhoti -chhoti aur mithi yaado ko sundarata se prastut karane ki kala aap me hi hai .jo ghatna ko ru-b-ru kar deti hai .aesi cheejo ko padhne ka ek alag maza hota hai .in aham baton se sikh bhi milati hai .ati sundar . baar baar bahut badhiya .
जवाब देंहटाएंamerica aur doosre desho se alag he. Rishte saamaan ki tarah na hi rakhe jaa sakte aur na hi fenke jaa sakte. ham rishto ko aatma ke saath baandh kar rakhte he, aisaa hi kuchh rishtaa hamaari yaadon ke saath hotaa he.
जवाब देंहटाएंsanskrati aur sanskaar kuch kaaran ho sakte he lekin hindustani bhi vahan jaakar ameriki ho jaata he, yah us samaaj ka asar he.
ek achchhe lekh ke liye badhaai.
Deepavali ki Haardik Shubhkaamnaye.
Satyendra
बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।
जवाब देंहटाएंdher sari subh kamnaye
happy diwali
from sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।
जवाब देंहटाएंdher sari subh kamnaye
happy diwali
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haryana
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zindagi ki chhoti -chhoti aur mithi yaado ko sundarata se prastut karane ki kala aap me hi hai .
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर --इस खुलेपन की जितनी भी तारीफ़ करें कम है, दोस्त।
dher sari subh kamnaye
happy diwali
from sanjay bhaskar
haryana
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
बहुत बढिया चित्रण किया है । ऐसा ही होता है ।
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है लोग रिश्तों से अच्छी तरह सामान को सहेजते हैं । खासकर भारत में ।
कोई भी चीज अब उतनी टिकाऊ नहीं होती जितना पहले होती थी ।
कलाकार, लेखक , अभिनेता ...इसी तरह रिश्ते और सामान भी ।
इधर भी कुछ समय बाद वही हाल होने वाला है जो आज अमेरका में है । बस ये समझ लीजिये की हम पीछे-पीछे चल रहे हैं ।
इसे उपयोगेता के नियम और संयक्त परिवार के विघटन से भी जोड कर देखा जा सकता है ।
भारत में ही देखिये निम्न मध्य वर्ग परिवारों में रिश्ते ज्यादा मजबूत होते हैं ।
वंदना जी ,
जवाब देंहटाएंअरसा हुआ आपको टिप्पणी दिए .( beech beech में सिर्फ पढ़ pata था, थोडा vyast हो गया था ).
आपने sahee लिखा . नया आया तो purana fenk आये ,हाँ sahee है , होता है amerika में .बहुत सा samaan काम का लोग ले भी आते हैं sadak से . ( sangharsh के shuruwatee dinon में मैंने भी किया है और kareeb साल भर तक ऐसे ही kafee कम चल गया .)
बाद में ऐसा भी हुआ की puranee chaltee firatee kaar chod aana पड़ा sadak पर और uskee dumping fees भी bharee .bachche जिस तरह नए khilaune पा purane भूल जाते हैं ,vaise नया pane पर बड़े भी karate हैं . हमारे yahaan itana abhaav है की kabaadee akhbar और puranee botalen तक khareed lete हैं .vahaan उसके grahak नहीं होते .बस समझ len की खेल samriddhi और abhav का है.
अब rishton की बात करें .हम में abhee amerikee jan की maansikta की jaankaree का abhaav है और sambhavatah समझ का भी . insaan बस insaan होता है . वह भी samvedit होता है . वे भी हैं . वे भी rishton smritiyon को sahej कर rakhna chahate हैं , rakhte हैं , aadar भी karate हैं और nibhate भी हैं .
हाँ unme dikhavatee pan नहीं होता . हम aksar baaten तो karate हैं पर dekhta हूँ की rishton के khokhlepan को हम chhupa कर sambandhon की katuta तक को मन के tahkhanon में daba ,प्यार का paakhand भी कर lete हैं . वे नहीं करते .दिल , dimag और chehare उनके एक ही juban bolte हैं .pakhand नहीं .
मैं अपने anubhavon से ये dave कर सकता हूँ . darasal chahe जो भी rashtriyata हो या dharm, varn , जाती , ling, रंग ,umra aadi . मैंने तो बस teen तरह के लोग paye हैं . achchhe, bure और ghatiyaa .GOOD BAD AND UGLY . बस .
अपने amerikee dinon और usake anubhavon पर एक kitab लिख रहा हूँ . ' YEARS IN FIRE ' shayad kisee din prakashit bhee ho .
आपको saparivar और mitron sahit meree deep parv की शुभकामनायें .
(transliteration की pareshanee चल rahee है . mafee का hakdar समझ sabhee माफ़ करें )
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंहमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......
जवाब देंहटाएंवाह ....वंदना जी सामान के साथ रिश्तो की तुलना कर कितनी गहरी बात कह दी आपने .....यही है भारतियों और विदेशियों की परंपराओं में फर्क .....!!
बहुत अच्छा लिखतीं हैं आप ....!!
वन्दना जी .. आज टिप्पणी में अपनी लम्बी कविता " पुरातत्ववेत्ता " से चन्द पंक्तियाँ ..
जवाब देंहटाएं" अभी अनभिज्ञता की नकाब में हैं
वस्तुओं के चेहरे
अपने रूप में अपना हुनर छुपाये हुए
आश्चर्य कि इन चीज़ों की शक्ल मिलती है
आजकल की चीज़ों से
जैसे कि मिलती हमारी अपने पूर्वजों से
बस इसी बात पर उनके साथ बुरा सलूक नामुमकिन
और वे समय का कबाड़ भी नहीं फेंकने लायक
कि भंगार से भी निकल आती हैं
अक्सर काम की चीज़ें
जैसे गर्मियों में बिजली जाने पर हाथ का पंखा "
सिर्फ रिश्तों के लिये ही नहीं समस्त मानवता के इतिहास के लिये ज़रूरी हैं पुरानी चीज़ें .. हम उन्हे फेंक नहीं सकते ।
सही है , फिकर होनी ही चाहिए रिश्तों की वरना वो रिसने लगते हैं....बधाई बहुत-बहुत आपको....
जवाब देंहटाएंnaya kalevar bahut achchha hai..
जवाब देंहटाएं"हम रिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......"
जवाब देंहटाएंयही तो पश्चिमी और पूर्वी सभ्यता का अंतर है.........हमारे लिए यादों से, रिश्तों से जुडी हर चीज़ अमूल्य है और उनके लिए, नयी की उपलब्धता पर हर सामान , हर रिश्ते कबाड़ हैं, सड़क पर रखने लायक.
बहुत अच्छी पोस्ट.. बधाई.
दीपावली और भैया-दूज के पावन पर्व पर आपको और आपके परिवार को अनंत हार्दिक शुभकामनाएं.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
बिल्कुल सही केवल रिश्ते और उनकी यादों के कारण ही हम अपने यहाँ कबाड़ इकट्ठा करते रहते हैं परंतु मूल बात इससे हमारी भावनाएँ जुड़ी रहती हैं, आपको बहुत साधुवाद जो आपने अपने शब्दों की जादूगरी में रिश्तों का महत्व और अपनापन का अहसास करवाया।
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हिन्दुस्तान में एक यही खासियत है ..की जाने अनजाने ऐसे त्यौहार भी कई बार रिश्तो की रिपेयर में मदद करते है ....ओर भाग दौड़ भरी इस दुनिया में कुछ वजहों की अहमियत बताते है ...
जवाब देंहटाएंलगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......बहुत सही..लाजबाब कर दिया...
जवाब देंहटाएंहमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से.....लगा ये विदेशी क्या जाने सहेजना ...... न सामान सहेज पाते हैं न रिश्ते......
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ....
bahut hi sunder vicharon se kabyatmak lahaje me apne prastut kiya hai.ismen rochakata bhi hai. dhanyabad badhai ho. deepon ka ujala apke ghar ka andhera hi nahin man ka andhera bhi door karen.
जवाब देंहटाएंभई, ये राइट-अप तो कमाल का है. शिशिरजी और नीतू की याद दिलाने का शुक्रिया ! दीपावली का शानदार तोहफा ! जाने किस भीड़-भाड़ में यह आलेख मेरी पकड़ से छूट गया था. अब आया ज़द में ; सहेज कर रखूँगा रिश्तों को भी, हिदायतों को भी ! बहुत कुछ सहेजने में ही तो ऐसा बिखर गया हूँ कि अब कुछ भी सहेजने से मन भागता है; लेकिन आपके इस आलेख ने फिर से जगा दिया है--एक कोशिश और सही...
जवाब देंहटाएंबधाई वंदनाजी !
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है.. in panktiyon ne dil chhoo liya.... bilkul sahi kaha hai aapne.........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अम्बरीश जी, गोंदियाल जी.शोभना जी, स्मार्ट इन्डियन जी, निर्मला जी, शास्त्री जी, निर्मला जी, देव जी, ज्योति जी, सत्येन्द्र जी, संजय जी, राज जी, विक्रम जी, हरकीरत जी, शरद जी, श्रीश जी, चन्द्र मोहन जी, विवेक जी, अनुराग जी, समीर जी, मार्क जी, किशोर जी, ओझा जी, महफ़ूज़ जी.
जवाब देंहटाएंआप सब की तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूं. आप सब का स्नेह ही लिखने को प्रेरित करता है. उम्मीद है, स्नेह इसी प्रकार बनाये रखेंगे.
अल्पना जी, नया कलेवर सचमुच अच्छ है न? मुझे भी पसंद है. आपको पसंद आया, शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को दीपावली और भाई दूज की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने ! पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
आपने सही कहा रिश्ते[ संबध] जितने पुराने होते हैं उतने ही अधिक मधुर होते जाते हैं और उन्हे सहेज कर रखना चाहिये ,सुना है की शराब पुरानी होकर और ज्यादा स्वाद हो जाती है इसी लिये इसे ओक के ड्रम में सहेज कर रखने का रिवाज है
जवाब देंहटाएंपर क्या हम बचे खाने को सहजते हैं या दो दिन फ़्रिज में पड़ा रहने देकर कूड़ में फ़ेंक देतए है ?इससे बेहतर हो कि समय रहते किसी को देदें इसी तरह मैं मौसम बदलते ई पुराने कपड़े निकाल कर देखता हूं कि इनमें से कौन से मैं इस साल प्र्योग कर पाउंगा शेष जरूरत मंदो में बांट देता हू
सच में हम हिन्दुस्तानी रिश्तों को कबाड़ कभी नहीं बनने देते हाँ कभी कभी उस पर धुल जरुर जम जाती है...बहुत आत्मीय लगी आपकी रचना...मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है....
जवाब देंहटाएंSahejana rishton ka aapne bahut achha likha. Kisi ne theek kaha hai ki rishtey upar se bankar aate hai, tabhi to anjanon se bhi jaan pahichan ho jati hai, or yish lagta hai na jane kab se milte aaye hai hum. Badhai sweekare..
जवाब देंहटाएंयही मोह तो हमें आगे नहीं बढ़ने देता ,जिसने मोह त्याग दिया उसमें देने की क्षमता आ जाती है ,मोह त्यागो देवी निर्वीकार भाव से रिश्तो को निबाह कर देखो ,दुःख पास भी नहीं आएगा
जवाब देंहटाएंरिश्तों को सहेजने और कबाड़ सहेजने की प्रक्रिया एक ही नहीं होती
जवाब देंहटाएंबहुत फर्क है दोनों में
वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंबहुत समय हुआ आपको "सच में" पर आये हुये!
सुन्दर रचना के लिये बधाई!
वन्दनाजी !
जवाब देंहटाएंजो आपने करके देखा और जो आपका अनुभव है ..लगभग यही अनुभव वे हजारों लोग कर चुके होंगे जिन्होंने अमेरिका में सड़क पर सामान पड़े हुए देखा है........... लेकिन आपका कथन सच है कि हम पुराने सामान में सामान नहीं अपना अतीत और अपने रिश्ते देखते हैं और यही फ़र्क है अमेरिका की जीवन शैली और भारतीय जीवन शैली में जिसके चलते वहाँ के घरों में कोई भी अनावश्यक vastu नहीं मिलेगी जबकि अपने यहाँ अधिकतर वस्तुएं ऐसी भरी रहती हैं जो न कभी काम आई हैं न ही आएँगी.....................लेकिन लगाव ऐसा है उनसे कि छूटती नहीं ..................
बहुत अच्छा लगा॥
बधाई इस विशेष आलेख के लिए,,,,,
धन्यवाद बबली जी, श्याम जी, सतीश जी, कविता जी,केथेलिओ जी,अलबेला जी.आपका स्नेह ऐसे ही बना रहेगा, भरोसा है.
जवाब देंहटाएंहैरान परेशान जी, मै आपसे सहमत नहीं हूं. कौन कहता है कि हम पीछे हैं? सैकडों साल गुलाम रहने के बाद कितने दिन हुए आज़ादी के ? लेकिन उसके बाद भी अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने अमरीकियों को चेताया था कि वे हिन्दुस्तानियों की काबिलियत से सावधान रहें...ऐसा न हो कि पूरे अमरीका के प्रमुख पदों पर हिन्दुस्तानी नज़र आयें...पूरे विश्व में छाया हुआ हिन्दुस्तान आपको पीछे लगता है?
जवाब देंहटाएंअफ़सोस है अलका जी, कि शाब्दिक प्रतिमानों और गूढ अर्थ में आप अन्तर नही कर रहीं.९० प्रतिशत भारतीयों मे संचय की जो वृत्ति है वो कबाड के प्रति नहीं बल्कि उससे जुडी यादों से होती है. हम कबाड नहीं यादें सहेजे रहते हैं.
जवाब देंहटाएंAap naraz na hon ! Maine to hoke kisee ko nahee bataya tha apne janam din ke bare me...mujhe nahee pata ki, ye baat kaise pata chali...!
जवाब देंहटाएंDiwali tatha mehmanon ke rahte, janam din to mai khud bhooli huee thee...kal jab net khola tab dee gayee badhayiyan padhee...!
Aapka lekhan hamesha ki tarah sundar aur sahaj hai!Lagta hai, aap seedhe dil ko pakad letee hain...padhte samay kayee baar aankhen bheeg gayeen..
आपका लेख पड्कर अछ्छा लगा, मेरे ब्लाग पर आपकी राय का स्वागत है, क्रपया आईये
जवाब देंहटाएंhttp://dilli6in.blogspot.com/
मेरी शुभकामनाएं
चारुल शुक्ल
http://www.twitter.com/charulshukla
०-अरे नहीं शमा दी, नाराज़ नहीं, वो तो मैं आपको डरा रही थी.
जवाब देंहटाएं०-धन्यवाद चारुल जी.
वाह!
जवाब देंहटाएंअनायास कितनी अच्छी बात पढ़ गया।
इसे कहते हैं किस्मत।
दिल में कहीं गहरे बैठ गई आपकी कथा।
आभार।
बहुत सुन्दर लिखा है आपने! आपकी अंतिम पंक्ति छोड़ कर पूरे आलेख से सहमत और प्रभावित हूँ.
जवाब देंहटाएंसालों अलग-अलग देशों में रही हूँ, अलग-अलग संस्कृतियों को, जीवन शैली को देखा और जिया है.
सो खुशी और निश्छलता से कह सकती हूँ कि संवेदनशील हृदय चाहे देशी हो या विदेशी,सहेजना-संभालना जानता है.
एक और practical बात ये कि विदेशों में घर बड़े होते हैं (जापान की बात ना करें तो :), attic होता है, cellar भी; सो वहां के लोग भी नानी और दादियों तक की यादें संभाल के रखते हैं (प्राय: रूखे-सूखे समझे जाने वाले जर्मन भी !).
मेरी बिटिया के दूध के दांत से ले के, छोटे हाथों-पांवों के निशाँ लेना . . . वहीँ हुआ ये सब , वहीँ की kindergarten की टीचरों ने किया :)
सादर ... :)
वन्दनाजी,
जवाब देंहटाएंआपने जॉर्ज बुश वाली बात बिल्कुल सही बताई. आगे मैं बताना चाहूंगा कि बुश महोदय की चेतावनी का अमेरिका पर पूरा असर पडा है. वे सतर्क हो गए हैं और चालें चलना शुरू कर दिया है. भारत में अमेरिका जैसी शिक्षा व्यवस्था की शुरुआत हो रही है. विद्यालयों मे छात्रों पर अंकुश नहीं है और छात्र जीवन से अनुशासन इतिहास की बात बनने की राह पर है. मिडडे मील के बहाने मुफ्तखोरी की आदत डाली जा रही है. बच्चों का सारा ध्यान भोजन पर केन्द्रित किया ज रहा है. उन्हें यह भी बताया जा रहा है कि शिक्षक गुरु नहीं है, सरकारी नौकर है और उससे वैसा ही बर्ताव करो. आगे आपको और भी सुन्दर चीजें उपलब्ध करवाई जाएंगी. जल्दी ही हम यौनशिक्षा शुरू करेंगे. किशोरवस्था में इससे मजेदार चीज क्या होगी. इससे छात्रों की उपस्थिति भी बढेगी और साक्षरता भी. सीबीएसई नामक बाधा भी हमने हटा ही दी है.आगे- आगे देखते जाइए, हम अमेरिका जाने लायक और वहां के उच्च पदों पर काबिज़ होने लायक कब तक बचते हैं? वैसे आपकी मूल पोस्ट बडी सम्वेदनशील है.
वन्दना जी सच मे रिश्ता और सामान से जो तुलना विदेशी परम्पारा से करी है वह दिल को छू गयी ........एक रिश्ता ही होता है जो इंसान को इंसान बनाती है .........
जवाब देंहटाएंधन्यवाद देवेन्द्र जी, बेनामी जी, हरिशन्कर जी, और ओम जी.
जवाब देंहटाएंhttp://vadsamvad.blogspot.com/2008/05/blog-post.html
जवाब देंहटाएंvaha yaha kee tulana ?vyarth hai.
जवाब देंहटाएंjo apanapan yaha hai vo kanhee nahee milega .
har cheej jo bhavnao se judee keematee hai .
bahut achee post .aabhar
ऐसे रोचक और प्रसंगानुकूल एवं समय की सीमा से परे संस्मरण को पढ़े लम्बी अवधि हुई थी, आज आपके इस हुनर को जान कर प्रसन्नचित्त हूँ. कुछ ख़ास बात है संस्कारों में कि लालच और स्वार्थ की आंधियां इन्हें बुझा नहीं सकती. हर बार बचे रहे जाते हैं कुछ पुराने किन्तु पवित्र महक से भरे रिश्ते. आपको लाख बधाई देने और एक अनुरोध करने को जी चाह रहा है कि कृपया अपनी सब विधाओं को एक ही ब्लॉग में समेट लें तो मुझ से पाठक का हित आसानी से सधेगा. क्या ये गलत है कि आप एक साथ कहानी और संस्मरण नहीं लिख सकती ? हालाँकि आपके इस ब्लॉग को भी मैंने अपनी सूची में डाल लिया है. आप हमेशा इतनी और इससे भी अधिक सृजनशील बनी रहें, शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,'सहेजना रिश्तों का ', अच्छा लगा . क्योंकि यह हम सब के मन की बात है .सरल भाषा में 'बड़ी' बात कही है आपने .
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना ,देर से आ पाया -हम ऐसे ही हैं -पुरातान का मोह भारतीय संस्कृति-संस्कार का एक अविभाज्य हिस्सा है -वहां तो बच्चे मान बाप तक कूदे में फेक देते हैं किनकी बात ले बैठीं आप वंदना जी ?
जवाब देंहटाएंsabse pahle Bharat ne vishaw ko vyrth se mukt hokar jeene ka sandesh diya tha "TEN TYKTEN BHUJHINTHA" AAJ HUM HI ITNA ITNA VYARTH DO RAHEN HAIN JISKA KOI ANT NAHIN.. RISHTON AUR SAMAN MEIN FARQ HOTA HAI ... SANVIDHAN SE LEKAR KAVITA TAK IS DESH KO BAHUT KUCHH VYRTH SE MUKT HONE KI JAROORAT HAI... TAB SHYAD HUM JEENE KA ARTH SAMJH PAYEIN
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha aapne.
जवाब देंहटाएंvandana bahut bahut badhai,jis tarah saheje hue rishte hamen samay samay par protsaahan, sahayta aur pyar dete hain, hamen suraksha ka ehsaas dete hain, aisi bhavnayen hamare desh ke siwa shayad hi kahin milen.jahan rishton ko saaman jitni izzat bhi na mile wahan sahejna to bahut door ki baat hai ,aur agar koi kabad ke keval shabdik arth hi dekhe to phir kya kiya jaaye.
जवाब देंहटाएंपुरानी चीजों से इतनी जल्दी मोह भी नहीं छूटता...मगर क्या करें उपयोगिता भी तो देखनी पड़ती है ...यह बात लागू सब पर होती है.....चाहे घरेलू चीजें हों या रिश्ते
जवाब देंहटाएंनमस्कार वंदना,
जवाब देंहटाएंआपने मेरे ब्लॉग पर कमेंट्स लिखे, धन्यवाद..
साधारणतः मैं अपनी टिप्पणिया उनके ब्लोग्स पर नहीं लिखता जो मेरे ब्लोग्स पर टिप्पणिया छोड़ते हैं. मुझे ऐसा लगता हैं की हम एक दुसरे की तारीफ़ करते हैं. आपने मेरी तारीफ़ करी मैं आपकी कर दू . जैसे रिटर्न गिफ्ट हो . :) पर आपके लेख को पढ़कर मैं मजबूर हो गया, अगर मैं दो पंक्ति आपके ब्लॉग पर ना लिखू तो ये अन्याय होगा, हिंदी साहित्य में आप बहुमूल्य योगदान कर सकती हैं.
अपनी कलम चलाते रहना.
राजेश शर्मा
कुछ देने लायक सामान आज भी दिया, लेकिन जो सहेजा था वो वहीं रह गया.............विधु की अलमारी फिर ज्यों की त्यों सामान से भर गई थी। बस फ़र्क सिर्फ़ इतना था की हर सामान पर से धूल हटा दी गई थी। सब कुछ फिर चमकने लगा था.................
जवाब देंहटाएंमन में कोई शर्मिंदगी भी नहीं थी, कबाड़ न फेंक पाने की। पता नहीं क्यों सामान सहेजते-सहेजते मुझे रिश्ते याद आने लगे.....................
हमरिश्तों को भी तो ऐसे ही सहेजते हैं.....जितना पुराना रिश्ता , उतना मजबूत। हमेशा रिश्तों पर जमी धूल भी पोंछते रहो तो चमक बनी रहती है......फिर ये रिश्ते चाहे सगे हों या पड़ोसी से..
कितनी सहजता से आपने रिश्तों को सहेज दिया