अधिकार सहित दिए गए इस आदेश की अवहेलना संभव थी क्या? अपने डेढ़ महीने के कार्यक्रम को एक महीने में समेटा और १० जून को वापस आ गए, सतना. ११ जून को राजा ,और मेरी बुआ सास (राजा की मम्मी) मुंबई से सतना पहुँच गए. अगले दिन हमें यानी मुझे, उमेश जी को, राजा, विधु और मेरी भांजी अनमोल को, बांधवगढ़ के लिए बड़े सबेरे निकलना था.
बांधवगढ़ पहुँचने के लिए विन्ध्य पर्वत श्रृंखला को पार करना होता है. इतने घने और हरे जंगल पूरी पर्वत श्रृंखला पर हैं, कि मन खुश हो जाता है.
बांधवगढ़ पहुँचने के लिए विन्ध्य पर्वत श्रृंखला को पार करना होता है. इतने घने और हरे जंगल पूरी पर्वत श्रृंखला पर हैं, कि मन खुश हो जाता है. हमारी गाडी पहाडियों पर सर्पिल रास्तों से होती हुई आगे बढ़ रही थी. इतना सुन्दर दृश्य!! वर्णनातीत ! इसी पर्वत श्रृंखला में है मोहनिया घटी, जहाँ पहली बार सफ़ेद शेर मिला, इसीलिए उसका नाम मोहन रखा गया. सुबह १० बजे हम बांधव गढ़ पहुंचे. राजा ने पहले ही सत्येन्द्र जी के रिसोर्ट में बुकिंग करा ली थी. हम सीधे वहीं पहुंचे, जहाँ सत्येन्द्र जी और उनकी ब्रिटिश पत्नी "के" ने हमारा आत्मीय स्वागत किया.
ये रिसोर्ट इतनी खूबसूरत जगह पर है कि यहाँ से बाहरी दुनिया का अहसास ही नहीं होता. लगता है कि हम बीच जंगल में हैं. अलग-अलग बने खूबसूरत कॉटेज घना बगीचा, आम्रपाली के अनगिनत पेड़, और उन पर लटके बड़े-बड़े असंख्य आम...अनारों से लदे वृक्ष...बहुत सुन्दर स्थान. मन खुश हो गया. देर तक सत्येन्द्र जी और के दोनों ही हमारे साथ गप्पें करते रहे. लंच के बाद सत्येन्द्र जी ही हमें नेशनल पार्क कि पहली सफ़ारी पर ले गए. और जंगल के बारे में अन्य जानकारियां दीं. अद्भुत ज्ञान है उन्हें जंगल और जंगली जीवों का. पहले दिन तो हम जंगल की खूबसूरती ही देखते रह गए...हिरन और चीतल जैसे जानवर भी मिले. शेर के पंजों के निशान भी मिले...... इतने घने जंगल............क्या कहें...
दूसरे दिन सुबह चार बजे हम उठ गए और साढे चार बजे जंगल की तरफ अपनी सफारी में निकल लिए. किस्मत अच्छी थी............दो राउंड के बाद ही शेर के दर्शन हो गए.
हमने तय किया यहां खडे-खडे मौत का इंतज़ार करने से अच्छा है, अपने काटेज़ की तरफ़ जाना. हमारे कौटेज़ डाइनिंग स्पेस से कम से कम सौ कदम दूर......जंगल का मज़ा देने वाले इस रिसोर्ट पर कोफ़्त हो आई
आराम फरमाता शेर......हम बांधवगढ में थे और अलस्सुबह ही हमें शेर के दर्शन हुए थे। उसकी गुर्राहट कानों में अभी भी गूंज रही थी। शाम की सफ़ारी के बाद हमने कुछ शॉपिंग की और रात दस बजे के आस-पास अपने रिसोर्ट पहुंचे। साढे दस बजे वेटर ने डिनर लगा दिये जाने की सूचना दी। हम सब डाइनिंग स्पेस की तरफ बढे। डाइनिंग स्पेस.... पर्यटकों को जंगल का अहसास दिलाने के लिये पूरा रिसोर्ट ही घने जंगल जैसा था , लेकिन ये स्पेस तो केवल आधी-आधी दीवारों से ही घिरा था. खैर... हम डिनर के लिये पहुंचे.अभी हम खाना प्लेटों में निकाल ही रहे थे, कि कुछ गहरी सी, गुर्राहट सी सुनाई दी. सब ने सुनी, मगर किसी ने कुछ नहीं कहा.एक बार...दो बार...तीन बार.... अब बर्दाश्त से बाहर था.... आवाज़ एकदम पास आ गई थी। मेरी बेटी विधु ने पहल की- बोली ये कैसी आवाज़ है? अब सब बोलने लगे- हां हमने भी सुनी... हमने भी.... खाना सर्व कर रहे वेटर ने बेतकल्लुफ़ी से कहा-अरे ये तो बिल्ली की आवाज़ है. अयं...!! ऐसी आवाज़ में बिल्ली कब से बोलने लगी!!!
Baandhav gadh kaa to naam bhi nahee suna tha, aur aapne sair karva dee...padhte, padhte mujhe hamara Dudhva National Park kaa bhraman yaad aa gaya, jahan hamse keval 10/15 feet kee dooreepar sher ne chhalang laga dee thee..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ऐसा लगा जैसे हम खुद घूम रहे हो ..
जवाब देंहटाएंक्या बात है ... आनंद आ गया आपकी यात्रा के बारे में पढ़ कर पर हाँ........ बाघ वाली घटना ने तो हमारे भी रोंगटे खड़े कर दिए ! पर जंगल की सैर पर जाये और बाघ या शेर का भय ना हो तो क्या मज़ा !
जवाब देंहटाएंवन्दना अवस्थी दुबे जी!
जवाब देंहटाएंइस साहसिक यात्रा समस्मरण को लगाने के लिए,
आपका आभार!
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जवाब देंहटाएंआपने शब्दों की जादूगरी से दृश्य उत्पन्न कर दिये
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चाँद, बादल और शाम
क्षमा जी, बांधवगढ मध्य प्रदेश का सबसे खूबसूरत टाइगर रिज़र्व है. कभी आइये तो हम सब घूमने चलें.सत्येन्द्र जी तो हैं ही वहां.
जवाब देंहटाएं० धन्यवाद पंकज जी.
०-शिवम जी, दिल दहलाने वाली रात थी वो. लेकिन इस शेर कांड ने हमारी यात्रा का मज़ा दोगुना कर दिया.
०-धन्यवाद शात्री जी और विनय जी.
ab tum dravni kahaniyan bhi likhne lageen.kya manzar kheencha hai tum ne wah !lekin ab wahan jaane ke liye das baar sochna padega,lekin tum to anubhavi ho tumhare saath hi jayenge.
जवाब देंहटाएंचलो ज़िन्दगी लम्बी बीती, निस्बत भी कम न थी; लेकिन बांधवगढ़ नसीब में कहाँ था ? आज ये हसरत भी पूरी हुई. तुम्हारे शब्दों की डोर पकडे हम भी हो आये वहां; खुदा खैर करे, शेरों की दहाड़ मैंने भी साफ़ सुनी ! अरे भई, तुम्हारे शब्द तो बोलने भी लगे ... बधाई !
जवाब देंहटाएं--आ.
जून की घटना का विवरण नवम्बर में। इत्ता डर गये आप लोग शेर से। जय हो।
जवाब देंहटाएंऐसे राजा (डा.शुक्ल ) सबके घर-परिवार में हों जो जबरियन शेर दर्शन करा दें।
आप लोग अपने भी कुछ फोटो लगाइये अगली पोस्ट में!जंगल की भी।
अच्छा लगा आपके अनुभव बांचकर। शुक्रिया।
बहुत खूब....!!
जवाब देंहटाएंऐसी रोमांचक रातें नसीब वालों को हासिल होती हैं .....खतरों के बिच ही तो ज़िन्दगी है .....!!
मै हरकीरत जी के बातो से पूरी तरह से सहमत हूँ .......और आपने काफी रोमांचक सफर काराये इसके लिये बहुत बहुत शुभकामनाये !
जवाब देंहटाएंthanks for travelling of bandhav garh
जवाब देंहटाएं..........kaaphi jaankari mili..
bina pahunche hi sampooran aanand utha liya .bahut sundar varnan kiya hai .har manzar saamne aa khada hua shaandar safar .aanand ji ki kahi baate bhi kafi dilchshp hai .
जवाब देंहटाएंanup ji tippani padhkar bina hanse raha nahi gaya ,jawab nahi wah kya kahne ?
जवाब देंहटाएंAAPKA YATRA VRATAANT PADH KAR LAGA KI HUM BHI SAATH SAATH SAIR KAR RAHE HAIN .... CHITR BHI BAHOOT SUNDAT HAIN ...
जवाब देंहटाएंवंदना जी आपकी टिप्पणियों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! आप शुद्ध शाकाहारी हैं इसलिए आपके लिए मैंने खासकर करेले की सब्जी बनाकर पोस्ट की है! आपको अच्छा लगा इस बात के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है आपने! इतना रोमांचक सफर कराया की क्या कहूं ! ऐसा लगा जैसे मैं ख़ुद घूमकर आई हूँ! आपकी लेखनी को सलाम!
मुझे वही किस्सा याद आ गया कि " शेर अगर आपके सामने आ जाये तो आप क्या करेंगे ?" और उसका उत्तर " हम क्या करेंगे ..जो करना है शेर करेगा " गनीमत इस किस्से को सामने देखने से बच गई आप .. वैसे यह एड्वेंचर तो है जो आपने कर दिखाया ।
जवाब देंहटाएंसैर और शॆर दोनॊं बढिया रहे !
जवाब देंहटाएंलफ्जों के माध्यम से आपने वहां की सही सैर करवा दी ..रोमांचक है यह सफ़र ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंVandna ji
जवाब देंहटाएंprastutikarn bahut sundar raha
shahid mirza shahid
बहुत सुन्दर शब्दों के बहाव मे साथ साथ बहे जा रहे थे शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंvandnaji apne to sachmuch dara diya
जवाब देंहटाएंbahut jeevant sansmaran aur bahut sundar bhasha sheli.
abhar
वाह आपके साथ शेर का डर और बांधव गढ की खूबसूरती दोनों को जान लिया ।
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga yeh yatra...sansmaran....
जवाब देंहटाएं... सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंयात्रा का सुंदर विवरण..बढ़िया लगा साथ ही साथ यह ख़ौफ़ का मंज़र भी बढ़िया प्रस्तुत किया आपने..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंकही जंगल का राजा शहर के राजा को वंदन करने तो नहीं आया था ....? ...पढ़ते पढ़ते सिहरन से दौड़ गयी शरीर में ..हम भी अपने परिवार के साथ जब तब बारनवापारा के जंगल के चक्कर लगते रहते है ...दुबारा जायेंगे तो सचेत रहेंगे...शानदार पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंhum to gazal ke sheron me hi uljhe rahe....aap ne asli dekha..... badhai....
जवाब देंहटाएंबोखा का आना डरावना तो रहा होगा मगर रोमांचक भी कम नहीं रहा होगा.....बांधवगढ़ का यात्रावृतांत बहुत ही बढ़िया लगा.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंहिन्दीकुंज
Baandhavgadh........ Purani yaadein taza ho gain ghar baithe..........
जवाब देंहटाएंBaandhavgadh........ Purani yaadein taza ho gain ghar baithe..........
जवाब देंहटाएंशुभ अभिवादन! दिनों बाद अंतरजाल पर! न जाने क्या लिख डाला आप ने! सुभान अल्लाह! खूब लेखन है आपका अंदाज़ भी निराल.खूब लिखिए. खूब पढ़िए!
जवाब देंहटाएंमुझे तो शेर की मौजूदगी का अहसास हो गया पढ़ते हुए -शेरिनी (दिल ) संस्मरण !
जवाब देंहटाएंbaandhavgarh main ja chuka hun... aapne har kone kee yaad taaja kar di...
जवाब देंहटाएंhttp://ab8oct.blogspot.com/
http://kucchbaat.blogspot.com/
इसे अभी तक आपने बांध रखा है छोड़ा नहीं अभी .......??
जवाब देंहटाएंरोंगटे खड़े कर देने वाला अनुभव।
जवाब देंहटाएंऐसा ही एक अनुभव हमारा भी रहा , लेकिन ज़रा हट के।
किसी पोस्ट में ---आएगा।
आभार इस रोचक संस्मरण का।
रिपोर्ट बेहतरीन कुछ और फोटो की गुंजाइश थी
जवाब देंहटाएंबांधवगढ ke sahasik yatra sansmaran ke liye dhanyavaad. Bahut achha laga isi bahane bandhavgarh ko jana, kyonki abhi tak jana nahi hua....
जवाब देंहटाएंBadhai
Vandanaji..."bikhare sitare"pe comment ke liye tahe dilse shukriya...kharab tabiyat aur kharab comp...donoke chalte agli post nahi likh payi!Jald hi likhungi!
जवाब देंहटाएंसैर और शॆर दोनॊं बढिया रहे !
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