मंगलवार, 30 नवंबर 2021

उपन्यास हरदौल: शिखा वार्ष्णेय की नज़र में

"हरदौल" की पहली समीक्षा Shikha Varshney  के नाम हुई....! दूर देश बैठी मेरी इस प्यारी दोस्त ने बहुत प्यार से लिखा है। शिखा को बहुत प्यार। आप सब भी एक नज़र ज़रूर डालें। जिन्होंने अब तक हरदौल उपन्यास नहीं मंगवाया है, उन्हें आसानी होगी 😊

"हरदौल"
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पिछले कुछ समय में कम से कम पाँच किताबें यहाँ से ऑनलाइन खरीदीं । सब की सब दो- चार पेज पढ़कर शेल्फ की शोभा बन गईं. मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मुझे चाहिए क्या? कुछ ऐसा जो मेरी पढ़ास को मिटा सके. आदत कुछ ऐसी है कि बिना पढ़े रात को नींद भी नहीं आती.  जब वक़्त ऐसा हो कि कुछ भी अच्छा पढ़ने को न मिल रहा हो. या यह कहिये कि कुछ भी पढ़ने के लिए मन का न मिल रहा हो ऐसे ही समय में एक दिन सूचना मिली कि वंदना हरदौल पर एक उपन्यास लिख रही हैं. अचानक दिमाग की बत्ती जल गयी यह जानकर । लगा यही विषय है (इतिहास और गल्प) जो मुझे आकर्षित करता है और यही मुझे पढ़ना है. तो बस ... तब से ही मैं इस किताब का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी और इसके मिलते ही, 256 पेज के इस उपन्यास को मैंने दो दिन में पूरा पढ़ डाला. 

यह किताब इतिहास की पुस्तक का एक अंश प्रतीत होता है जिसे रोचकता से किस्सा गोई अंदाज में बयान किया गया हो. नीरस समझे जाने वाले विषय इतिहास को इस उपन्यास ने जिस खूबसूरती से पाठकों के समक्ष रखा है प्रशंसनीय है. 
यूँ कहने को यह उपन्यास किस्सा गोई विधा में लिखा गया है परन्तु इसके साथ ही इसमें और भी कई शैलियाँ दिखाई पड़ती हैं. किवदंतियां, लोक गीत, परम्पराएं और सबसे अहम है शोध. 
प्रसंग राजनीति का हो या सामाजिक रीति रिवाजों का लेखिका द्वारा शोध पर किया गया श्रम सहज  ही परिलक्षित होता है. 
चूँकि उपन्यास एक गुमनाम ऐतिहासिक पात्र पर आधारित है अतः उसकी  सत्यता और तथ्यों को  यथासंभव बरकरार रखते हुए उसकी रोचकता और पठनीयता बनाए रखना आसान काम न था. परन्तु यहीं लेखिका का ज्ञान और उसकी समझ दृष्टिगोचर होती है. सभी लिखित और मौखिक माध्यमों का इस्तेमाल कर के, श्रम साध्य शोध के साथ लिखी गई यह कथा पाठकों को प्रभावित करने में सफल होती है और आखिरी प्रसंग तो रोंगटे  खड़े कर देता है. 
भाषा में कहीं कहीं बुन्देली भाषा  का तड़का गज़ब का स्वाद बढ़ा देता है.  
संक्षेप में कहूँ तो मेरी जैसी पाठिका के लिए जिसका,  इतिहास पसंदीदा विषय है और इसके गुमनाम पात्रों पर पढ़ना पहली प्राथमिकता - यह उपन्यास अमूल्य धरोहर है.
लेखिका वंदना अवस्थी दुबे और प्रकाशक को मेरी बहुत बधाई और ढेरों शुभकामनाएं.

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