रविवार, 28 मार्च 2010

चित्रकूट के घाट पे भई संतन की भीर.....



-चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ।
आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ।।


चित्रकूट धाम भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लम्बे- चौड़े भू-भाग में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।

माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में से ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्री और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था.

पिछले दिनों अचानक ही चित्रकूट -दर्शन का कार्यक्रम बना, और हम १६ मार्च को मुंह-अंधेरे चित्रकूट के लिये रवाना हो गये. २५ वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद मैं चित्रकूट जा रही थी, मन में उत्सुकता थी, परिवर्तित चित्रकूट को देखने की, क्योंकि इन सालों में सुना कि चित्रकूट बहुत सुन्दर हो गया है, बहुत परिवर्तन हुए हैं वहां आदि-आदि.

सात बजे हम चित्रकूट पहुंचे और सीधे कामतानाथ जी के द्वार पर हाजिरी लगाई. यहीं से कामदगिरि-परिक्रमा शुरु होती है. यह स्थान पहले जितना खुला-खुला था, अब उतना ही बन्द-बन्द हो गया है. मन्दिर के बाहर अनगिनत दुकानें लग गईं हैं, जिन्होंने दोनों तरफ़ से सड़क का काफ़ी हिस्सा घेर लिया है, लिहाजा सड़क संकरी हो गई है. मन्दिर के अन्दर भी दर्शनार्थियों के लिये कोई नियम नहीं है, सो सब एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे बढते हैं. हां, पर्वत का पांच कि.मी. लम्बा परिक्रमा-मार्ग जो पहले कंक्रीट का था, अब पूरे मार्ग पर मार्बल लगवा दिया गया है, जिसे बडी सुविधाओं में गिना जाना चाहिये. वरना पहले नंगे पांव परिक्रमा करते समय पैरों की जो दशा होती थी, उसे वही महसूस कर सकता है, जो पहले कभी उस मार्ग पर चला हो. इस परिक्रमा-मार्ग के दोनों ओर भी कतारबद्ध दुकानें सज गईं हैं, जो पहले नहीं थीं. पहले आभास होता था कि हम पर्वत पर हैं, अब लगता है, जैसे बाज़ार में घूम रहे हों.

परिक्रमा के बाद हम रामघाट पहुंचे. मंदाकिनी के तट पर. पच्चीस साल पहले जिस मंदाकिनी को मैने देखा था, उस के चौड़े पाट अब सिमट गये हैं. उस वक्त की निर्मल नदी ने आज गन्दे नाले का रूप ले लिया है. नदी की सतह इस कदर कचरे से ढंक गई है, कि कहीं आचमन के लिये भी जल न मिले. नदी पर नौका विहार की सुविधा है. नदी के किनारे स्थित मन्दिरों के सफ़ाईकर्मी पूरा कचरा जिसमें फूल-पत्तों के साथ-साथ पॉलीथिन भी होते हैं, बड़े प्रेम से नदी मे विसर्जित कर देते हैं. प्रतिदिन निकलने वाला यह चढ़ावा कई बोरे होता है. नौका-विहार करने वाले लोग भी नदी को फूल तो चढायेंगे न? फिर वे जो कुछ भी खा रहे हैं, उसके छिलके, पॉलीथिन आदि कहां फेकेंगे? नदी में ही न? वहीं नदी किनारे रहने वाले प्रतिदिन इसी में स्नान करते हैं, खूब साबुन रगड़-रगड़ के.

हम भी नदी की दुर्दशा पर आंसू बहाते हुए, नौका-विहार करते रहे.


चित्रकूट में जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें ग्रामोदय विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम, और रामदर्शन जैसे स्थान हैं, जिन्होंने चित्रकूट को नया आयाम दिया. रामघाट के बाद हम आरोग्यधाम गये. उफ़!!! कितना खूबसूरत. दीनदयाल शोध संस्थान ने चित्रकूट में आरोग्यधाम नाम से आजीवन स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र स्थापित किया है। यहां आयुर्वेद, योगोपचार,उचित खानपान एवं प्राकृतिक चिकित्सा के समन्वित प्रयोगों द्वारा आजीवन स्वास्थ्य प्राप्त करने का कार्य किया जा रहा है. यह स्थान टाटा समूह द्वारा निर्मित करवाया गया है. सैकड़ों जड़ी-बूटियां , हज़ारों फूलों और तरणताल से घिरा, कई एकड़ में फैला आरोग्यधाम सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है.

इसी प्रकार मुम्बई के उद्योगपति द्वार चित्रकूट में निर्मित ’रामदर्शन" अपनी व्यवस्थाओं के लिये दिल्ली के लोटस टेम्पल की याद दिलाता है. खूबसूरत भित्तिचित्रों और सजीव झांकियों से सुसज्जित यह स्थान दर्शनीय है.

लेकिन यदि हम इन दो-तीन स्थलों को छोड़ दें, तो चित्रकूट में नकारात्मक परिवर्तन ही ज़्यादा हुए हैं. शहर आज भी विकास का मोहताज है. सड़कें दुर्दशा को प्राप्त हैं. जबकि चित्रकूट के विकास के नाम पर करोड़ों में राशि स्वीकृत होती रही है, होती है.

कल यानी २७ मार्च को प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मंदाकिनी स्वच्छता अभियान का श्री गणेश किया है, इस अभियान के लिये फिर करोड़ों की राशि स्वीकृत की गई है.

काश! सफल हो जाये ये स्वच्छता-अभियान....

44 टिप्‍पणियां:

  1. वंदना जी , आज लगभग सभी तीर्थ स्थानों का यही हाल है। पर्वतों पर भी इतना निर्माण कार्य हो रहा है , कि वहां भी कंक्रीट जंगल बनते जा रहे हैं। सचमुच पहाड़ों की दुर्दशा देखकर बहुत दुःख होता है।
    केवल धन राशी से ही काम नहीं चलेगा । लोगों का रवैया भी बदलना पड़ेगा। पर्यावरण को नष्ट होने से बचाना होगा, वर्ना सभी नदियाँ ऐसे ही नाले बन जाएँगी।
    अच्छा उजागर किया है आपने इस समस्या को।

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  2. ....समस्या ये है कि धार्मिक स्थलों के विकास कार्यों मे भी भ्रष्टाचार का ही बोलबाला रहता है इसलिये विकास कार्य भी ठीक ढंग से नहीं हो पा रहे हैं!!!!

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  3. चलिये, कुछ तो पहल की गई..देखिये कहाँ तक सफल होता है यह अभियान!

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  4. Afsos! Ham nadiyonko maa ka,devika roop dete hain, aur unhen hi ganda karte hain!
    Daral ji se sahmat hun..

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  5. मै श्याम कोरी 'उदय जी ओर डॉ टी एस दराल जी की टिपण्णी से सहमत हुं

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  6. असली जरूरत है नीयत में बदलाव की। जब तक नीयत नहीं बदलती तब तक कैसा भी कोई अभियान सफल हो ही नहीं सकता.....

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  7. वंदना जी !
    कभी दिल्ली आकर यमुना जी की दशा देखें, शायद मंदाकिनी इससे अछे होगी ! सामयिक एवं आवश्यक लेख के लिए शुभकामनायें !!

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  8. वंदना ,चित्रकूट के बारे में तुम्हारा लेख देखकर सतना
    की याद आ गई ,वैसे हम लोग सतना को भूलते ही नहीं ,मैं तो सब कुछ भूल कर अतीत की यादों में खो गई और लगता है १-२ दिन तो लग जाएंगे बाहर निकलने में ,
    धन्यवाद

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  9. वंदना जी, आदाब.
    आपने तीर्थ स्थल की यात्रा कराने के साथ साथ प्रदूषण की ओर ध्यान दिलाया...इस लेखन के लिये आप बधाई की पात्र हैं...इसकी सार्थकता यही होगी कि हम सब पर्यावरण की रक्षा के लिये अपने अपने हिस्से का योगदान दें.

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  10. सफल हो जाये ये स्वच्छता-अभियान....
    नदियों में लोग साबुन पता नहीं क्यों -कैसे लगाते है और कोई टोकता नहीं है.
    ऐसे लोगों को तत्काल जेल भेजना होगा या फिर जागरूकता पैदा करनी होगी.

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  11. जागरूकता एवं चेतना जगाने में आपकी यह पोस्ट अहम भूनिका का निर्वहन करेगी!

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  12. वंदना जी,
    देरी के लिए माफ़ी चाहती हूँ! मुझे पता है आप बहुत नाराज़ हैं लेकिन रिश्ते नाते निभाने में व्यस्त थी क्या करूँ, कहने का मतलब ये है कि घर में रिश्तेदार थे!
    आपके पोस्ट के बारे में कहने की ज़रुरत ही नहीं, हैरान हो जाती हूँ आपके लिखाई को देखके!
    बहुत खोज करती हैं न आप, तारीफ़ वैसे कम पड़ जायेगी!

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  13. चित्रकूट यात्रा -वृत्तान्त पढ़कर प्रसन्न हुआ ! उन आँखों की प्रसंशा किन शब्दों में करूँ जो विगत और वर्त्तमान को एक साथ देखती हैं और सकारात्मक-नकारात्मक पक्षों का तुलनात्मक विम्ब सहेज लेती हैं ! सुन्दर आलेख ! सचमुच वह हमीं हैं, जिन्होंने नदियों को नाला और सरोवरों को चहबच्चा बना दिया है ! साधुवाद !! साधुवाद इसलिए कि आपकी आँखों से हमने भी देखा चित्रकूट !! आभार !!
    सप्रीत--आ.

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  14. बहुत अच्छी जगह है. आज से पच्चीस साल पहले जब मैं बचपन में गया था तो बहुत अच्छा लगा था. अभी कुछ दिनों पहले फोटो देखे तो बहुत खराब लगा. मंदाकिनी भी दूषित हो चली है.

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  15. वंदना जी,एक अच्छी पोस्ट के लिए बधाई.वैसे हर जगह का लगभग यही हाल है.मैंने तो शायद पच्चीस तीस साल पहले दर्शन किये थे तब वहां एक गुप्त गोदावरी भी थी.जिसमे पहाड़ के नीचे अन्दर गुफा थी और उसमें घुटने तक पानी भी था.हमने अन्दर जाकर पूरी गुफा देखी थी.हमेशा की तरह पुरानी याद दिलाने के लिए आभार

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  16. waah bahut achchha laga padhkar kyonki apna hi shahar aur bachpan se kitni baar ghoom aai ,mujhe aarogya dhaam aur ram mandir behad pasand hai .

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  17. बहुत सुन्दर् यात्रा विवरण! नदियों के हाल तो हर जगह बेहाल हैं क्या कहा जाये।

    आज आपका जन्मदिन है। जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाइयां!

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  18. जब तक जनता, समाज जागरूक नहीं होता कुछ भी नहीं हो सकता ... फिर भी जो कुछ हुवा इसके बारे में जानना बहुत सुखद लगा ...

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  19. संस्मरण अच्छा लगा |तरक्की भी हो रही है ,प्रदूषण भी हो रहा है ,मनुष्य भी जिम्मेदार है |शासन पैसा भी स्वीकार करती है परन्तु होता तो वही है जो श्री दुष्यंत जी ने कहा था ""यहाँ तक आते आते सूख जाती है सभी नदियाँ /हमें मालूम है पानी कहाँ ठहरा हगा होगा ""

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  20. २५ वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद मैं चित्रकूट जा रही थी, मन में उत्सुकता थी, परिवर्तित चित्रकूट को देखने की, क्योंकि इन सालों में सुना कि चित्रकूट बहुत सुन्दर हो गया है, बहुत परिवर्तन हुए हैं वहां आदि-आदि.



    .....

    वंदना जी..
    जाने आपने कैसे आइडिया लगा लिया के कोई तीर्थ स्थान २५ सालों के बाद सुन्दर बचा होगा....
    हाँ, सुविधायें बढ़ने कि बात और है...

    हम ने कभी भी नहीं देखा....
    पर हम बिना देखे कह सकते हैं के आज से २६ साल पहले चित्रकूट ज्यादा सुन्दर रहा होगा...


    हमारे कमेन्ट का उत्तर जरूर दीजिएगा...प्लीज...

    हम भी कभी हरिद्वार जाते हैं और लोगों को खूब बड़े बड़े फूलों के दोने प्रवाहित करते देखते हैं तो मन इतना खिन्न हो जाता है के ...
    बता नहीं सकते.......
    लोग जिन्हें श्रद्धालु कहते हैं..उन्हें हम कोसने लग जाते हैं...
    गलत लिख दिया शायद...माफ़ी चाहते हैं...

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  21. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सही में वंदना जी आजकल तो चारों ओर सिर्फ़ कंक्रीट का जंगल दिखाई देता है! प्राकृतिक सौंदर्य धीरे धीरे ख़त्म होता जा रहा है! धर्मस्थान हो या पहाड़ सभी जगह पर गंदगी फ़ैल रही है!

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  22. डॉ. दराल साहब, श्याम जी, समीर जी, क्षमा जी, संजय जी, सुशीला जी, राज जी, मनोज जी, शर्मा जी, सतीश जी, इस्मत जी, शाहिद जी, मनोज जी, शास्त्री जी, अरुणा जी, ओझा जी, भारतीय नागरिक जी, रचना जी, ज्योति जी, अनूप जी, दिगम्बर जी, बृजमोहन जी, बबली जी, आप सब की हृदय से आभारी हूं. बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  23. मनु जी,
    बहुत सही कहा है आपने. २५ वर्ष पुराने चित्र्कूट को याद करती हूं, तो मन खुश हो जाता है. तब कृत्रिमता नहीं थी. अपने वृतांत में मैने इस बात का उल्लेख भी किया है. पहले जो पहाडी थी, अब बाज़ार की तरह हो गई है. सीता रसोई में आज के बेलन रख दिये गये हैं, जब की उन्होंने रोटी बनाई होगी, संदेह है. वे तो कंद-मूल खा के रह रहे थे. आज प्राकृतिक सौन्दर्य नष्ट हो चुका है.
    हरिद्वार मैं भी खूब गई हूं, महीनों रही हूं, रोज़ हर की पौड़ी जाती थी, और खीझती रहती थी, उन लोगों पर जो ढेर-ढेर फूल दोने में रख, दिये सहित प्रवाहित करते थे.
    मुझे लगता है कि उन प्राकृतिक स्थानों से छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिये, जो इतिहास के साक्ष्य हैं.

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  24. apne bahut hi sundar varnn kiya hai .
    kitu ab dharmik sthal ,prakrtik jghen sab jgs dispojebal vastuo ne apna adhikar jma liya hai ,jo hmare sabhy hone ka? prman dete hai .
    aur dukano ka to kya khna?sb log vyapar jo karna chahte hai ?

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  25. ओह्ह ये तीन दिन ऑनलाइन क्या नहीं आई...कितना कुछ छूट गया..सबसे पहले तो जन्मदिन की ढेरों बधाइयां...पता ही नहीं था,मुझे पर मेरी गलती है मैंने पता क्यूँ नहीं किया...माफ़ी मैडम...\कुछ ना कुछ करती हूँ आपकी नाराज़गी दूर करने के लिए. :)
    चित्रकूट के दर्शन तो क्या खूब करवाए. सचित्र झांकी.....बहुत बहुत अच्छा लगा...
    नदी का तो हर जगह यही रोना है....रोकथाम से ज्यादा लोगों को जागरूक करने की जरूरत है....जगह जगह नुक्कड़ नाटक करें...एक एक व्यक्ति को इस गंदगी फैलाने के दुष्परिणाम से परिचित करवाएं,तभी कुछ संभव है...सरकार अब कुछ नहीं कर पाएगी ,जबतक आम जनता जागृत ना हो

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  26. लगभग १५ वर्ष पहले मैं भी गया था सती अनुसुइया आश्रम में रात बिताई थी मंदाकिनी नदी के उसपार बंदरो की फौज थी गुप्त गोदावरी के दर्शन के लिए जाते वक्त पूरी पैंट भींग गई थी। आपाके सुंदर वर्णन से पुनः जाने की इच्छा जाग गई है। अवसर मिला तो जरूर जाउंगा।
    सुंदर संस्मरण बांटने के लिए आभार।

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  27. समूचे देश में तीर्थस्थलों की यही दुर्गति है. इतना सब कुछ होने बावजूद, सुखद यही है कि हमारी आस्था में शायद इन कचरों का समावेश नहीं हुआ है.
    आपने चित्रों और लेखन से अंकों देखा दृश्य उत्पन्न कर दिया. हमने भी चित्रकूट की यात्रा कर ली, शुक्रिया.
    बहुत दिनों बाद आना हो सका है. कारण से आप वाकिफ हैं. दुआ करें आइन्दा सब कुछ ठीक-ठाक गुज़रे.

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  28. काश! सफल हो जाये ये स्वच्छता-अभियान....

    Hum bhi dua karte hain.

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  29. aapki chitrkoot yatra ka punye aapko aur bhi jyada u mil jayega ki aap ke zariye hamne bhi chitro se chitrkoot k darshan pa liye...waise to shayed is janam me door tak inke darshano ka koi programme nahi he.
    gandgi ki baat padh kar hame bhi ganga ki haalat yaad aa gayi..sach me bahut dukh hota he ki safayi kuchh hoti nahi aur kardo rupya u hi netao ki bhait chadh jata hai.
    rachna saarthak hai.

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  30. चित्रकूट के बारे में बहुत अच्छी पोस्ट व फोटोदेखकर अच्छा लगा !ये आपने सही कहा की व्यवस्था पहले से खराब ही हुई है ! मेरी कविता अच्छी लगी ! धन्यवाद ! आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा !

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  31. जितना सुंदर स्थाना उतना ही सुंदर यात्रा वृतांत.

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  32. वंदना जी
    पिछले नवम्बर में वहां गया था...वकैई बहुत ही मनोरम जगह है........राम जी ने अगर अपने वनवास का एक बड़ा हिस्सा यहाँ गुजारा है तो निश्चित ही कुछ तो बात रही होगी इस स्थान की..... आपकी पोस्ट बहुत जबरदस्त है बधाई क़ुबूल करें..फोटोग्राफ तो अति सुन्दर....!

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  33. मेरे ख्याल से उत्तर प्रदेश/मध्य प्रदेश में tourist places kee सब से अधिक दुर्दशा है[ न केवल धार्मिक स्थलों की वरन ऐतिहासिक धरोहरों की भी.]
    देखें इस बार स्वच्छता आन्दोलन कितना सफल हो पता है!
    जागरूक पोस्ट लिखी है आप ने.

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  34. Nadiyo ka pradooshan ek jwalant samasya hai!
    Isi vishay ko chho kar nikalti hui meri rachna padhein:
    MULTINATIONAL BOTAL MEIN DO LEETER GANGA!

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  35. 1993 में मेरा चित्रकूट जाना हुआ था । आपके इस यात्रा वर्णन को पढ़कर लगा कि तब से अब तक वहाँ बहुत कुछ बदल गया है । उस समय कुछ देर के लिये सतना भी रुके थे । अबकी बार सतना आयेंगे तो कुछ देर के लिये चित्रकूट भी जायेंगे ।

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  36. धराल जी से सहमत जब तक लोगों का सहयोग नही होगा हमारे तीर्थ स्थल ऐसे हि दुर्लक्षित और उपेक्षित रहेंगे । पर आपने चित्रकू़ट के दर्सन तो करा ही दिये । धन्यवाद ।

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