सोमवार, 4 मई 2009

क्या कूप-मंडूक हैं हम?

नवम्बर माह की बात है, मेरी परिचित एक सुदर्शना युवती, जो हमेशा ही अपने हर मसलों को मेरे पास लाती रही है, और यथासंभव उसके मसलों को मैंने सुलझाया भी है, लिहाज़ा उसका प्रेम मेरे प्रति कुछ ज़्यादा ही था। एक दिन उसने बताया की वह एक लड़के को पसंद करती है, और उसी से शादी भी करना चाहती है। उसने बताया की लड़के का पहले से उसके घर में आना-जाना है, और उसके ( लड़की के) घर वाले लड़के को खूब पसंद करते हैं। लड़का उन्ही की जाति का भी है। मैंने कहा फिर क्या दिक्कत है? हमारे यहाँ अभी भी तयशुदा विवाहों में अंतरजातीय विवाह का चलन नहीं हो पाया है, खास तौर पर सतना जैसे मध्यमवर्गीय मानसिकता वाले शहर में तो बिल्कुल भी नहीं। प्रेम विवाह अब घरेलू स्वीकृति पा जाते हैं, यदि दोनों की जाति समान है तो। लिहाज़ा इस रिश्ते में मुझे कोई अड़चन दिखाई नहीं दी। लेकिन लड़की खासी परेशान थी। उसका कहना था की उसके पापा एक गोत्र विशेष के ब्राहमणों में ही शादी करते हैं, और ये लड़का उस गोत्र का नहीं है।
अब मैं यहाँ लड़के का उल्लेख करना ज़रूरी समझती हूँ, यह लड़का उच्च शिक्षा प्राप्त एक बेहद कुलीन परिवार का बेटा है, जिसके पिता शहर के श्रेष्ठ वकीलों में शामिल हैं। ख़ुद भी अपने व्यसाय में संलग्न है, और अच्छा-खासा कमाता है। यानी एक धनाड्य और सुसंस्कृत परिवार से ताल्लुक रखता है। इस मसले पर पहले तो मैंने लड़के की राय ली बाद में लड़की के पिता को समझाइश देने की सोची । इस बीच लड़के ने अपने घर में बात करली और माँ -पिता को राजी भी कर लिया। लेकिन जब लड़की के पिता से मैं मिली तो उनका रूप देखने लायक था। किसी भी कीमत पर वे इस शादी के लिए तैयार नहीं थे। उनका कहना था की वे भले ही एक बेरोजगार और अनपढ़ से शादी कर देंगे, लेकिन अपने गोत्र से बाहर नहीं जायेंगे। लाख समझाने पर भी बात उनकी समझ में नहीं आई और आनन फानन उन्होंने एक लड़का ढूँढा शादी निपटा दी।
समझ में नहीं आता की इस प्रकार अपनी जिद पूरी करके वे क्या साबित करना चाहते हैं? आज दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई और हम अभी तक गोत्र के जाल में ही उलझे हुए हैं!! जातियों का यह वर्गीकरण और उनका बड़प्पन नापने का ये पैमाना मुझे कभी समझ में ही नहीं आया। इतना कुलीन घर-वर छोड़ उनहोंने एक अत्यन्त साधारण परिवार , जो अभी भी सतना जिले के सुदूरवर्ती देहाती इलाके में रहता है, में कर दी। अपनी बेटी को होने वाली तमाम दिक्कतों को भी नज़रंदाज़ कर दिया।

आज भी ऐसे अनेक परिवार हैं, जो पुरानी और ऐसी परम्पराओं में जकडे हुए हैं जिन्हें तोड़ने की पहल होनी ही चाहिए। समान जाति में विवाह करना भले ही अनिवार्यता हो, मगर उसमें भी जाति का गोत्र आदि की अनिवार्यता अवश्य ख़त्म की जानी चाहिए। परिवार संस्कारी और कुलीन है, तो वह बड़ा है। केवल पैसे या जाति विशेष का होने से बड़े होने की पदवी नहीं मिल जाती। बड़ा तो इंसान अपने कर्मों से होता है। क्या इस प्रकार के बंधन कभी टूट पायेंगे?

27 टिप्‍पणियां:

  1. sahi kaha aapne...bada to insaan apne karm se hi hota hai..baaki sab to kewal chhalaawa hai

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  2. अरे वंदना जी तो उस लड़की का क्या हुआ! अभी तक उसके पिताजी अपने जिद्द पे अडे हुए हैं क्या!

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  3. आपने बिल्कुल सटीक लिखा।
    रूढ़ियों को समाप्त होना ही चाहिए।

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  4. १)मार्क जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.
    २)आशीष जी, आप पहली बार आये हैं मेरे ब्लौग पर,स्वागत है, साथ ही धन्यवाद भी. उम्मीद है भविष्य में भी आते रहेंगे.
    ३)अरुणा जी उस लडकी की उसकी मर्ज़ी के खिलाफ़ गत माह शादी कर दी गई. जैसा कि आम भारतीय मध्यम वर्गीय परिवारों में होता है.

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  5. दिक्कत ये है, शास्त्री जी कि ये इतना व्यक्तिगत और पारिवारिक मसला होता है, कि जब तक घर का कोई सदस्य ही अपने घर में होने वाली इस ज़्यादती का विरोध नहीं करेगा, बाहरी कोई कुछ नहीं कर सकता.

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  6. हमारे साथ यही समस्या है... हम ख़ुद को आधुनिक भी कहते हैं और रुढिवादिता की जंजीरों से ख़ुद को जकडे रहते हैं..... हम एक कदम आगे और चार कदम पीछे चलते हैं... जब तक हम अपनी मानसिकता नही बदलते मुझे नही लगता है कि कोई बदलाव आएगा .......यह एक ज्वलंत मुद्दा है इस पर लोगों को विचार करना चाहिए....

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  7. vo parampara galat nahien bas aj humari aur unki paribhashayen alag hain, han unki soch ka daayara bohot seemit hai .Aur main bhi sochta hun ki ise badalna chahiye, un dharnao ko chodna chahiye par ye dhyan mien rakh ke ki unke sath kuch bohot keemti na choot jaye .

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  8. गौरव(द्वय)जी, ब्लौग पर आने और टिप्पणी करने के लिये धन्यवाद.निश्चित रूप से यह एक ऐसा मंच है जहां हम अनेकानेक लोग एक ही मुद्दे पर बहस-मुबाहिस कर सकते है.

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  9. पं.डी.के.शर्मा"वत्स"बुधवार, 6 मई 2009 को 1:52:00 am GMT-7 बजे

    अपने अतीत की हर बात हरेक नियम को महज अंधविश्वास या रूढिवादिता कहकर नहीं नकारा जा सकता. प्राचीनकाल में विवाह समय गोत्र का चलन जेनेटिक अवधारणाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था. जिसके अनुसार एक ही गोत्र तथा सपिंड श्रेणी ( पिता के वंश की 5 पीढियां तथा माता के वंश की 3 पीढियां) में विवाह वर्जित कहा गया था. वर्तमान में हिन्दु मैरिज एक्ट की धारा 5 में भी सपिंड विवाह को अमान्य करार दिया गया है.
    किन्तु अगर आपके कहे अनुसार कन्या के पिता नें उसका विवाह उस लडके के साथ इसलिए नहीं किया कि वो उसका विवाह किसी विशेष गोत्र में ही करना चाहते थे...तो बिल्कुल गलत है. इसका तात्पर्य ये हुआ कि वो उस गोत्र विशेष के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित थे. अन्यथा अगर लडका-लडकी एक ही जाति से संबंधित थे और सगोत्रीय तथा सपिंडी नहीं थे तो फिर विवाह करने में कोई बुराई नहीं होनी चाहिए थी.

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  10. जी हां शर्मा जी, ये चलन तो आज भी विद्यमान है,समान गोत्र में शादियां वर्जित हैं और इसके पीछे जो तर्क हैं वे वैग्यानिक रूप से भी सहमति पा चुके हैं.कुन्डली-मिलान और उसमें नाडी दोष की अवधारणा भी रक्त समूह को दर्शाती है. इन बातों से मेरा कतई विरोध नहीं है.विरोध तो गोत्र-विशेष के प्रति पूर्वाग्रह से है. अन्य कुलीन परिवारों जो उनके सम-जात है, जहां शादी हो भी सकती है, वहां केवल इसलिये शादी न करना कि हमारा समाज क्या कहेगा,और ये कि वे हम से नीचे ब्राह्मण हैं, सही है क्या?

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  11. हमारे समाज की सबसे बड़ी विडंबना ही यही है. ख़ास तौर से ऐसे लोग जो ख़ुद को बहुत धार्मिक मानते हैं और धर्म का ध भी नहीं जानते हैं, वे आम तौर पर ऐसा ही सोचते हैं.

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  12. एकदम सही इष्टदेव जी. ये लोग खुद को धर्म का ठेकेदार समझते हैं, जबकि तर्कसम्मत बात करना इन्हें आता ही नहीं.

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  13. वन्दना जी !
    आप ने एक बहुत ही गम्भीर मुददा उठाया है . मन मे आक्रोश है .
    शर्मा जी मान लेते हैन हिन्दु कोड बिल और गोत्र का वैग्यानिक आधार ? खास कर जेनेतिक्स ? तो फ़िर वन्सावली और गोत्रवली की बजाय हम सिर्फ़ विग्यान आधरित जेनेटिक्स ही क्योन न अपनायेन . पर आप निस्चिन्त हैन कि गोत्र शुद्धता हम सब मे है ? हो भी तो हम सब वन्शावली से निर्धारित , जो कि सिर्फ़ एक सामजिक दस्तावेज है बल्कि एक सामुहिक विशवास मात्र है .उसके बजाय जेनेतिक्स का ही सहारा क्यून न लेन ? बजाय कि पित्रि गोत्रत्मकता जो कि विश्वास ज्यादा सत्य की सम्भाव्ना कम ( पिता विश्वास है , माता सत्य . mothers baby , fathers may be ) जेनेटिक्स ko kyoon naa apnaa len ?

    sach to yah hai ki aise tarkon se yathaasthiti banaaye rakhane kee sthaapit मान्यता के अहम को छद्म तर्क से सम्पोशित करने का प्रयास है . जाति प्रथा को बनाये रखने का बहाना है . उसका पोशन है . हिन्दू कोद बिल की भी आधुनिक विग्यान के तहत पुनर्परिक़्चन की जरूरत है . कुछ माम्लोन मे हमार कनून एक मान्वीय शर्म है . हिन्दू कोड बिल्ल और मुस्लिम पर्शनल ला भी उसी श्रेनी मे आते हैन .
    मात्रि वन्शावली होती तब ही इस गोत्र बाजी का कुछ वैग्यानिक आधार होता . पुरुष वन्शावली मात्र एक भ्रम है ,क्योन्कि वह विश्वास आधारित है . अपने जमाने की विग्यान आधारित रही होगी आज नहीन .

    दुख तो यह है कि पधे लिखे होने के बजाय भी इन प्रेमियोन ने विद्रोह क्यून नहीन किया . इस विवाह का क्या होगा जो कभी वह पुरुश जाने कि किसी से प्यार था किसी के साथ जीवन ? बहुत सारे विष शायद कहीन इन्तेज़ार ना कर रहे होन ?

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  14. सहमत हूं राज जी आप की बात से.मेरा अपना विरोध भी ऐसी थोथी मान्यताओं से ही है, जिनका कोई आदार ही नहीं.निश्चित रूप से ऐसी शादियां एक आजन्म खौफ़ पर पलतीं-बढतीं हैं.

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  15. वंदना जी, आपके दूसरे ब्लॉग में टिप्पणी पोस्ट ही नहीं हो रही है! कहानी बड़ी दुख्दायक थी!
    ख़ास उनको जल्दी कोई अछी सी नौकरी मिले, और वो अकेलापन बिलकुल महसूस न करें!

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  16. bat thik hai kintu.....manyataaon ka bhi apna samajshastr hota hai. hamen yah bhi samajhna hoga.

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  17. smaaj ko badlna etna aasaan nahi....sirf logo ke dar se hum apno kee khushio ki parwah nahi karte...sabse bada hai rog kya kahenge log......boht suder likha aapne...

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  18. 1) रवीन्द्र जी, ऐसी मान्यताओं जिनसे कोई हानि न हो मुझे भी मान्य हैं, लेकिन ढकोसले मान्य नहीं.
    २)राज जी हमारे देश में लोग पदोसियों, और समाज की ज़्यादा चिता करते है, अपने प्रियजन की खुशी की कम.

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  19. एक पढ़ी लिखी लड़की जबरन किसी और जगह ब्याह दी गई!! क्या लड़की अपने परिवार जनों के सामने इतना भी विरोध नहीं सकी? क्या कोर्ट मैरिज करना आज भी इतना मुश्किल है?
    अगर लड़की ने चुपचाह सहन किया, बिल्कुल विरोध नहीं किया तो माफ कीजिये लड़की भी दो तरह से दोषी है, एक तो चुपचाप विवाह करने और दूसरे अपने दोस्त/प्रेमी की भावनाओं को ठेस लगाने के लिये। जब इतनी हिम्मत नहीं थी और पता था कि मुझे एक गाय की तरह दूसरे खूंटे से ही बंध जाना है तो बात आगे बढ़ने से पहले ही रोक देनी थी।

    ॥दस्तक॥,
    गीतों की महफिल,
    तकनीकी दस्तक

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  20. जी हां सागर जी, दोष लडकी का भी है, कि उसने अपने परिजनों की सहमति से प्रेम विवाह की अनुमति चाही, यदि ये गलती है, तो उसने की. लेकिन क्या ये मां-बाप का फ़र्ज़ नहीं बनता कि यदि उसने आप की इज़्ज़त रख शादि की अनुमति चाही है,तो खुशी-खुशी इस रिश्ते पर अनुमति की मुहर लगा दें? अपनी इच्छा ज़ाहिर करने के बाद तो उसे घर में ही कैद कर दिया गया, कोर्ट मैरिज की तो बात ही छोडें.

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  21. mujhe us bap se to koi shikayat nahi ho sakti kyuki wo bhi usi samaj ko pratinidhitv kar rahe hain.
    par kya us ladki ne sahi kiye agar us ladki ne virodh darj kiya hota to ye nobat nahi aati. ladki ki pahal ka mai adar karta hu...

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  22. अतुल जी, यदि हम समाज को बदलना चाहते हैं, तो हमें इन प्रतिनिधियों से भी शिकायत होनी ही चाहिये, अन्यथा हम किसे बदलेंगे? समाज को बदलने के लिये इन रूढिवादियों को ही तो बदलना है!

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  23. vandana ji main isme us ladki ke liye sahanubhuti nahin jataungi kyonki jab pasand karne ki himmat thi to virodh darj kara vivaah karne ki bhi himmat honi chaiye thi. ye to ajeeb baat hai ki pasand to kar lete hain lekin aage badh kar shaadi karne ki himmat nai karte . are kam se kam ladke ke ghar waale to raaji the na ! us ladki par nahin us ladke ke vishay me soch kar dukh hota hai khair main galat bhi ho sakti hoon baaki ant me ye jaroor kahungi ki pita ji ne galat kiya

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  24. भावना जी, निश्चित रूप से ये हिम्मत लडकियों में होनी ही चाहिये.ये लडकी तो केवल इस गलतफ़हमी में मारी गई, कि उसके पिता इस रिश्ते के लिये मान जायेंगे.उसने इसी भरोसे के चलते घर में ये बात उठाई, और उसके बाद नज़रबंद कर दी गई.ऐसे में कोई भी कदम उठाने का मौका ही कहां था?

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  25. वंदना जी मैं आपके विचारो से सहमत हूँ परन्तु आपने सिर्फ गोत्र को ही मुद्दा बनाया है क्योंकि आपकी सहेली को इस तरह की समस्या से दो चार होना पड़ा...क्या आपको नहीं लगता जाति की भी दीबार ढहनी चाहिए हमारे समाज से...आप समस्या को बहुत हल्का मत बनाइये गोत्र तक सीमित कर के,ये समस्या जाति और धर्म सभी पर लागु होती है.मेरे बिचार से अगर लड़का या लड़की योग्य हो तो जाति और धर्म कोई मायेने नहीं रखता है.पता नहीं यह कब समझ आएगा हमारे समाज के ठेकेदारों को.

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  26. सतीश जी, मैने इस ओर पहले ही ध्यान आकर्षित करवाया है, कि जिस समाज में लोग अपने गोत्र विशेष से बाहर न निकल पा रहे हों वहां अन्तर्जातीय विवाह के बारे में सोचना ही बेकार है.हमें पहले जाति के भीतर की रूढियों को तोड्ना होगा, तब दूसरे बन्धन टूट पायेंगे.

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