मेरे विद्यालय में बच्चों की छुट्टियाँ शुरू हो गई है, लिहाज़ा स्टाफ को यहाँ-वहां की बातें करने का पर्याप्त समय मिलता है। इसी बतरस के दौरान कल एक बड़ी विचित्र सी बात सामने आई । मेरे विद्यालय की ही एक शिक्षिका ने मुझसे एक व्रत ले लेने की बात कही मेरे पूछने पर उन्होंने बताया की मुझे इस गणेश-व्रत में पन्द्रह दिनों तक उनके द्वारा दी गई व्रत सम्बन्धी दो कहानियाँ और जप करना होगा,पन्द्रह दिनों के बाद मैं जब इस व्रत का प्रसाद जिस भी महिला को दूँगी,उसे भी अगले पन्द्रह दिनों तक यह क्रम दोहराना होगा। और प्रसाद भी किसी एक को नहीं बल्कि चार महिलाओं को देना होगा। फिर इसी प्रकार सिलसिला चलता रहेगा। सुन के मैं सकते में आ गई। इस प्रकार जबरिया व्रत करवाने का मतलब? चूंकि मैं मूर्ति-पूजा करती नहीं सो मैंने न केवल उनसे क्षमा मांग ली,बल्कि इस व्रत के सिलसिले को यहीं समाप्त कर देने की सलाह भी दे डाली।
लेकिन इस किस्से के बाद मेरा मन बहुत दुखी हो गया। उन शिक्षिका महोदया का कहना था की यदि हमने इस व्रत को नहीं किया तो हमारे परिवार पर संकट आ जाएगा। उनकी मंद-बुद्धि में ये बात नहीं आई की संकट तो व्रत करने के बाद भी आ सकता है। हर हिंदू परिवार में पूजा-पाठ होता ही है, तो क्या हम संकटों से बचे रहते हैं?जिन महिलाओं को हम पढ़ा-लिखा समझते हैं, कम से कम उन्हें तो ऐसी अंध-विश्वास से जुड़ी बातों का विरोध करना ही चाहिए। शिक्षित होने के बाद भी यदि हम ऐसी थोथी मान्यताओं में उलझे रहेंगे तो जो सचमुच अशिक्षित महिलाऐं हैं, उन्हें सही रास्ता कौन दिखायेगा? क्या ये महिलाऐं सचमुच शिक्षित हैं? मुझे तो नहीं लगता.....और आपको???
are vandana jee, aapne to wo kissa yaad dilaa diy isee tarah kuchh samay pehle ek post card sabke paas pahunchtaa tha jismein likhaa hotaa thaa ki aap bhee isee tarah likh kar aage 25 50 logon ko bhej dein, kamaal hai bhai, pata nahin kab tak hotaa rahegaa ye sab.
जवाब देंहटाएंअजय जी, यही तो तकलीफ़ है,जो गलत मान्यताएं आज से तीस बरस पहले थीं, वही आज भी अपनी जगह बनाये हुए हैं.
जवाब देंहटाएंवंदना जी
जवाब देंहटाएंमैं यहाँ आपसे कहना चाहूँगा कि आपने ये पोस्ट यहाँ डाल कर एक अच्छा कार्य किया है,
कम से कम प्रबुद्ध पाठक पढ़कर यदि २-४ को भी बता देंगे तो कम से कम छोटा ही सही एक जागरूकता अभियान तो बना.
उम्मीद है लोग आपस में चर्चा जरूर करेंगे .
- विजय
विजय जी धन्यवाद. इससे सम्बन्धित एक छोटी सी पहल मैने कल कर डाली ,कोशिश करूंगी कि खुद से जुडी महिलाओं को जागरूक कर सकूं.
जवाब देंहटाएंवंदना जी आप ने एक अच्छा मुद्दा उठाया है ..... यह अंधविश्वास समाज की जड़ों में दीमक की तरह लगा हुआ ..... दुःख इस बात पर नही है की लोग अन्धविश्वासी हैं दुःख तो ये है कि पढ़े लिखे होने का दावा करने वाले लोग ऐसी बेवकूफी ख़ुद भी करते हैं और दूसरों को भी प्रेरित करते हैं ...... छोटे किंतु जागरूक प्रयास के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंकौन कहता है के आसमांमें छेद नही हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों .....( दुष्यंत कुमार)
अरे वंदना जी आपने बिलकुल ठीक कहा! मेरी माँ भी कुछ ऐसी हे हैं, मैं तो उन्हें समझाके परेशान हो गयी हूँ लेकिन वो सुनती ही नहीं हैं!
जवाब देंहटाएंलोग अगर समझना ही नहीं चाहते हैं तो हम करें तो क्या करें!!
अरे वाह अरुणा जी, आपको यहां देख कर बहुत अच्छा लगा.ये एकदम सच है.जब तक हम खुद न बदलना चाहें तबतक सारे प्रयास अधूरे ही हैं.
जवाब देंहटाएंek fark to hai vishvas aur andh-vishvas me, phir bhi bhavna sabse prabal hoti hai. chutkiyon se aise masle hal nahin hote.
जवाब देंहटाएंpareshaan mat hoiye...ye log aise hi aam logo ko murkh bana kar thagte rahe hai ...ye shrdhaa nahi balki ek tarah se thagi hai .....
जवाब देंहटाएंसच है. इस तरह के अंध विश्वास जो विश्वास में तब्दील हो चुके है, इतनी आसानी से नहीं खत्म होंगे.
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास या धर्मभीरुता हम भदेश हिन्दुस्तानियों में कहीं ना कहीं प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सामिल है | और बात सिर्फ हमारी ही नहीं है, पुरे विश्व में अंधविश्वास हर जगह है| कहीं कम कहीं ज्यादा... आपका यह चिठ्ठा ऐसे अंधभक्तों का सही मार्गदर्शन करेगा...
जवाब देंहटाएंandhviswas bharat kee sab se badee samasya hai . shayad ham bade hee dare huye log hain .bahut hee achche vichar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शशि जी.
जवाब देंहटाएंराज जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया. इसी प्रकार हिम्मत बढाते रहें.
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी..समझ समझ की बात है. अच्छा लगा पढ़कर.
जवाब देंहटाएंअजय जी और वंदना जी...
जवाब देंहटाएंनमस्कार॥
ये प्रक्रिया अब पोस्टकार्ड से हिते हुए अब इ मेल और मोबाइल संदेश ताजगई है। मेरे पास आए दिन कभी माता पिता तो कभी मेरे भविष्य बनाने को संदेश मिलते रहते हैं। असल में भेजने वाले को ख़ुद वो संदेश मिला होता है और पर वह भावनाओ का शिकार हो गया होता है।
अन्धविश्वाश तो है ही लेकिन साथ में कही न कही भावनाओ के साथ भी खेला जाता है॥ मोबाइल कंपनियों की तो चंदो हो ही जाती है।
धन्यवाद समीर जी, और अतुल जी.असल में मैं यही नहीं समझ पाती कि अगला कोई सिरफिरा हमारी भावनाओं से कैसे खेल सकता है? हम क्यों अपने आप को उसका शिकार होने देते हैं? सही और गलत की पहचान क्या हम अब भी नहीं कर पाते?
जवाब देंहटाएंजिसके मन में जैसा चल रहा होता है वह वैसी ही प्रतिक्रिया देता है, अच्छे शब्दों में बात कही है।
जवाब देंहटाएंचाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
Aapka aalekh sochne ko majboor karta hai.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विनय जी, संध्या जी.स्नेह बनाये रर्हें.
जवाब देंहटाएंSateek bat
जवाब देंहटाएंआप ब्लौग पर आये सौभाग्य है मेरा. बहुत-बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएं100% Andhvishvas hai....is terah ki baaten mail me chalti thi ab aise bhi chalne lagi hain...Afsos
जवाब देंहटाएंतरुन जी आज ही मेरे पास एक असा मेल आया है जिसमें लिखा है कि यदि मैने इस मेल को इक्कीस जगह पोस्ट नहीं किया तो मेरा घर-परिवार नष्ट हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंव्रत करना पूजा पाठ करना हमरी भारतीय संस्क्रती का अभिन्न अंग है किंतु कुछ लोगो ने इसे अपने फयडे के लिए इसे ग़लत ढंग से प्रचारित करना शुरू
जवाब देंहटाएंकर दिया है और लोगो को डरकर अंधविश्वास फैला रहे है |अपने बहुत अच्छा कदम उठाया है |
इसके लिए शुभकामनाए |
शोभना
धन्यवाद शोभना जी. इस तरह के अंधविश्वासों से अधिकांशत: महिलाएं ही घिरीं हैं.उन्हें इससे बाहर निकालना बहुत ज़रूरी है.
जवाब देंहटाएं... अच्छा लेख !!!!!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद उदय जी.
जवाब देंहटाएंआपने बिल्कुल सही कहा इन विचारो से शत प्रतिशत सहमत हूँ |
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