-चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ।
आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ।।
चित्रकूट धाम भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के लम्बे- चौड़े भू-भाग में फैला शांत और सुन्दर चित्रकूट प्रकृति और ईश्वर की अनुपम देन है। चारों ओर से विन्ध्य पर्वत श्रृंखलाओं और वनों से घिरे चित्रकूट को अनेक आश्चर्यो की पहाड़ी कहा जाता है। मंदाकिनी नदी के किनारे बने अनेक घाट और मंदिर में पूरे साल श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है।
माना जाता है कि भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ अपने वनवास के चौदह वर्षो में से ग्यारह वर्ष चित्रकूट में ही बिताए थे। इसी स्थान पर ऋषि अत्री और सती अनसुइया ने ध्यान लगाया था। ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने चित्रकूट में ही सती अनसुइया के घर जन्म लिया था.
पिछले दिनों अचानक ही चित्रकूट -दर्शन का कार्यक्रम बना, और हम १६ मार्च को मुंह-अंधेरे चित्रकूट के लिये रवाना हो गये. २५ वर्षों के लम्बे अन्तराल के बाद मैं चित्रकूट जा रही थी, मन में उत्सुकता थी, परिवर्तित चित्रकूट को देखने की, क्योंकि इन सालों में सुना कि चित्रकूट बहुत सुन्दर हो गया है, बहुत परिवर्तन हुए हैं वहां आदि-आदि.
सात बजे हम चित्रकूट पहुंचे और सीधे कामतानाथ जी के द्वार पर हाजिरी लगाई. यहीं से कामदगिरि-परिक्रमा शुरु होती है. यह स्थान पहले जितना खुला-खुला था, अब उतना ही बन्द-बन्द हो गया है. मन्दिर के बाहर अनगिनत दुकानें लग गईं हैं, जिन्होंने दोनों तरफ़ से सड़क का काफ़ी हिस्सा घेर लिया है, लिहाजा सड़क संकरी हो गई है. मन्दिर के अन्दर भी दर्शनार्थियों के लिये कोई नियम नहीं है, सो सब एक-दूसरे को धक्का देते हुए आगे बढते हैं. हां, पर्वत का पांच कि.मी. लम्बा परिक्रमा-मार्ग जो पहले कंक्रीट का था, अब पूरे मार्ग पर मार्बल लगवा दिया गया है, जिसे बडी सुविधाओं में गिना जाना चाहिये. वरना पहले नंगे पांव परिक्रमा करते समय पैरों की जो दशा होती थी, उसे वही महसूस कर सकता है, जो पहले कभी उस मार्ग पर चला हो. इस परिक्रमा-मार्ग के दोनों ओर भी कतारबद्ध दुकानें सज गईं हैं, जो पहले नहीं थीं. पहले आभास होता था कि हम पर्वत पर हैं, अब लगता है, जैसे बाज़ार में घूम रहे हों.
परिक्रमा के बाद हम रामघाट पहुंचे. मंदाकिनी के तट पर. पच्चीस साल पहले जिस मंदाकिनी को मैने देखा था, उस के चौड़े पाट अब सिमट गये हैं. उस वक्त की निर्मल नदी ने आज गन्दे नाले का रूप ले लिया है. नदी की सतह इस कदर कचरे से ढंक गई है, कि कहीं आचमन के लिये भी जल न मिले. नदी पर नौका विहार की सुविधा है. नदी के किनारे स्थित मन्दिरों के सफ़ाईकर्मी पूरा कचरा जिसमें फूल-पत्तों के साथ-साथ पॉलीथिन भी होते हैं, बड़े प्रेम से नदी मे विसर्जित कर देते हैं. प्रतिदिन निकलने वाला यह चढ़ावा कई बोरे होता है. नौका-विहार करने वाले लोग भी नदी को फूल तो चढायेंगे न? फिर वे जो कुछ भी खा रहे हैं, उसके छिलके, पॉलीथिन आदि कहां फेकेंगे? नदी में ही न? वहीं नदी किनारे रहने वाले प्रतिदिन इसी में स्नान करते हैं, खूब साबुन रगड़-रगड़ के.हम भी नदी की दुर्दशा पर आंसू बहाते हुए, नौका-विहार करते रहे.
चित्रकूट में जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें ग्रामोदय विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम, और रामदर्शन जैसे स्थान हैं, जिन्होंने चित्रकूट को नया आयाम दिया. रामघाट के बाद हम आरोग्यधाम गये. उफ़!!! कितना खूबसूरत. दीनदयाल शोध संस्थान ने चित्रकूट में आरोग्यधाम नाम से आजीवन स्वास्थ्य अनुसंधान केंद्र स्थापित किया है। यहां आयुर्वेद, योगोपचार,उचित खानपान एवं प्राकृतिक चिकित्सा के समन्वित प्रयोगों द्वारा आजीवन स्वास्थ्य प्राप्त करने का कार्य किया जा रहा है. यह स्थान टाटा समूह द्वारा निर्मित करवाया गया है. सैकड़ों जड़ी-बूटियां , हज़ारों फूलों और तरणताल से घिरा, कई एकड़ में फैला आरोग्यधाम सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है.
इसी प्रकार मुम्बई के उद्योगपति द्वार चित्रकूट में निर्मित ’रामदर्शन" अपनी व्यवस्थाओं के लिये दिल्ली के लोटस टेम्पल की याद दिलाता है. खूबसूरत भित्तिचित्रों और सजीव झांकियों से सुसज्जित यह स्थान दर्शनीय है.
लेकिन यदि हम इन दो-तीन स्थलों को छोड़ दें, तो चित्रकूट में नकारात्मक परिवर्तन ही ज़्यादा हुए हैं. शहर आज भी विकास का मोहताज है. सड़कें दुर्दशा को प्राप्त हैं. जबकि चित्रकूट के विकास के नाम पर करोड़ों में राशि स्वीकृत होती रही है, होती है.
कल यानी २७ मार्च को प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने मंदाकिनी स्वच्छता अभियान का श्री गणेश किया है, इस अभियान के लिये फिर करोड़ों की राशि स्वीकृत की गई है.
काश! सफल हो जाये ये स्वच्छता-अभियान....





