वे अपना नाम GT Eng लिखते हैं। मेरी कहानियां ब्लॉग के ज़माने से पढ़ रहे हैं जान के कितनी खुशी हुई, ये बताया नहीं जा सकता। फेसबुक की मेरी मित्र सूची में नहीं हैं, लेकिन दोस्ती का पैमाना केवल ये सूची नहीं है। उन्होंने किताब मंगवाई, और फिर शानदार समीक्षा भी की। दो दिन पहले उन्होंने ये पोस्ट डाली थी, लेकिन उसी दिन मैं दिल्ली के लिए निकल रही थी। विलम्ब के लिए क्षमा GT साब।
"बातो वाली गली " पहला कहानी संग्रह वो भी पापा जी को समर्पित इससे सुंदर समर्पण और क्या हो सकता है । हिंदी साहित्य मे कहानियो का अपना अस्तित्व और अपनी पहचान बिलकुल खो सी गई है बड़े भाई साहब, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात जैसी कहानिया पढने के बाद आजकल कहानियो के नाम पर लिखे जा रहे संवाद, संशय , संदेह और
व्यग्रता को कहानी मन मानता ही नही और उन पर समय जाया करने से मै बचता ही रहता हूँ । ऐसा साहित्य एकता कपूर के धारावाहिक की तरह आपका साहित्यिक प्रेम , ज्ञान सरोकार सब छिन्न भिन्न कर देता है ।
परन्तु "बातो वाली गली" की लेखिका सुश्री वंदना अवस्थी दुबे जी की कुछ कहानिया मै उनके ब्लाग पर पढ चुका था । इसलिए उनके इस प्रथम कहानी संग्रह मे मुझे विशेष रूचि थी
बहरहाल विमोचन के बाद 14 सितंबर को पंहुची वंदना जी की पुस्तक "बातो वाली गली से " बात करने का मौका कल ही मिला और 118 पृष्ठ पलटने मे महज दो घंटे लगे । ये कोई जेम्स हेडली चेईज का उपन्यास नही बल्कि समसामयिक विषयो पर रोजमर्रा की जिंदगी मे आम इंसान के जीवन उसके आस पास घटती घटनाओ का बेहद सरल बोलचाल की भाषा और शब्दो का अनूठा संग्रह है । जहाँ असल भारतीय जीवन बेतरतीब बने मकानो की अपनी अपनी साईज की अपनी अपनी हैसियत की खिडकियो से झांकता है । जहाँ भरी दुपहरी मे सूरज चीं चा करते हैंड पम्प से बात करता है । गर्म लू आंगन मे लगे पेड़ की छांव को ठंडा कर मजे लेती है । जहाँ आस्था अभाव के साथ जीवन को, एक स्वभाव बना देती है ऐसे कई रमणीय भारतीय जीवन दर्शन के परिदृश्य है इस "बातो वाली गली में" ।
"बातो वाली गली " पहला कहानी संग्रह वो भी पापा जी को समर्पित इससे सुंदर समर्पण और क्या हो सकता है । हिंदी साहित्य मे कहानियो का अपना अस्तित्व और अपनी पहचान बिलकुल खो सी गई है बड़े भाई साहब, ठाकुर का कुआँ, पूस की रात जैसी कहानिया पढने के बाद आजकल कहानियो के नाम पर लिखे जा रहे संवाद, संशय , संदेह और
व्यग्रता को कहानी मन मानता ही नही और उन पर समय जाया करने से मै बचता ही रहता हूँ । ऐसा साहित्य एकता कपूर के धारावाहिक की तरह आपका साहित्यिक प्रेम , ज्ञान सरोकार सब छिन्न भिन्न कर देता है ।
परन्तु "बातो वाली गली" की लेखिका सुश्री वंदना अवस्थी दुबे जी की कुछ कहानिया मै उनके ब्लाग पर पढ चुका था । इसलिए उनके इस प्रथम कहानी संग्रह मे मुझे विशेष रूचि थी
बहरहाल विमोचन के बाद 14 सितंबर को पंहुची वंदना जी की पुस्तक "बातो वाली गली से " बात करने का मौका कल ही मिला और 118 पृष्ठ पलटने मे महज दो घंटे लगे । ये कोई जेम्स हेडली चेईज का उपन्यास नही बल्कि समसामयिक विषयो पर रोजमर्रा की जिंदगी मे आम इंसान के जीवन उसके आस पास घटती घटनाओ का बेहद सरल बोलचाल की भाषा और शब्दो का अनूठा संग्रह है । जहाँ असल भारतीय जीवन बेतरतीब बने मकानो की अपनी अपनी साईज की अपनी अपनी हैसियत की खिडकियो से झांकता है । जहाँ भरी दुपहरी मे सूरज चीं चा करते हैंड पम्प से बात करता है । गर्म लू आंगन मे लगे पेड़ की छांव को ठंडा कर मजे लेती है । जहाँ आस्था अभाव के साथ जीवन को, एक स्वभाव बना देती है ऐसे कई रमणीय भारतीय जीवन दर्शन के परिदृश्य है इस "बातो वाली गली में" ।
कहानी कोई भी हो दरअसल वो बस एक कहानी ही होती है ये हर पाठक जानता है जो एक सत्य है । किसी कहानी को पढते हुए अगर इस सार्वभौमिक सत्य से आप कुछ देर के लिए भी विमुख होते है तो समझिए लेखक का लिखना सफल हो गया । बातो वाली गली मे ऐसे कई मौके आऐंगे जब आप को लगेगा अरे अपने यहाँ वहाँ भी तो ऐसा ही हुआ कल परसो या पिछले
साल , ,शिव बोल मेरी रसना घड़ी घड़ी " शीर्षक ने न केवल कहानी के प्रति जिज्ञासा बढाई बल्कि कहानी के अंत मे सोचने पर मजबूर भी कर दिया की " शुभ " आस्था से नही अवचेतन मन और निरंतर कर्म से होता है । ये इस "बातो वाली गली" मे घुसने पर आप समझ पाऐंगे ।
इस कहानी संग्रह के बारे मे इतना ही यथेष्ठ है कि 'बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी "
इस संग्रह का साहित्यिक मानकों की दृष्टि से विवेचना करने की मुझे कोई आवश्यकता महसूस नही हुई क्योकि जब लेखन आपके आसपास के वातावरण और परिदृश्य का प्रतिरूप हो उसके लिए मानको का कोई भी परीक्षण न्यायसंगत नही कहा जा सकता ।
वंदना जी को बहुत शुभकामनाये
इस कहानी संग्रह के बारे मे इतना ही यथेष्ठ है कि 'बात निकली है तो अब दूर तलक जाएगी "
इस संग्रह का साहित्यिक मानकों की दृष्टि से विवेचना करने की मुझे कोई आवश्यकता महसूस नही हुई क्योकि जब लेखन आपके आसपास के वातावरण और परिदृश्य का प्रतिरूप हो उसके लिए मानको का कोई भी परीक्षण न्यायसंगत नही कहा जा सकता ।
वंदना जी को बहुत शुभकामनाये
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (23-09-2017) को "अहसासों की शैतानियाँ" (चर्चा अंक 2736) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका.
हटाएंसटीक समीक्षा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ओंकार जी.
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