शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

कुछ दिन तो गुज़ारिये पर्यटन में....!


मनुष्य स्वभाव से ही घुमक्कड है. आदिमानव भोजन और अपने शिकार की खोज में एक जगह से दूसरी जगह घूमता था. लेकिन इस घूमने ने उसका ऐसा मन मोहा, कि खेती करने की समझ आने के बाद भी उसे एक जगह ठिकाना बना के रहना रास न आया. घूमता ही रहा, इस जंगल से उस जंगल. पुराने राजे-महाराजे देखिये. राज-काज से समय निकाल के महीने-महीने भर को शिकार पर चले जाते थे. ये शिकार क्या था? शुद्ध घुमक्कड़ी ही न? साधु संत निकल जाते थे देशाटन पर. एक गांव से दूसरे गांव, एक पर्वत से दूसरे पर्वत. ये भी घुमक्कड़ी का ही एक रूप है. बुज़ुर्गवार तीर्थाटन पर जाते रहे हैं पुराने समय से. ये तीर्थाटन भी वृद्धावस्था की घुमक्कड़ी ही है. तो समय और देशकाल के अनुसार नाम चाहे जो ले लें हम, है ये विशुद्ध घुमक्कड़ी. घुमक्कड़ी यानी परिष्कृत भाषा में पर्यटन.
पर्यटन के प्रति आकर्षण , मनुष्य का एक ऐसा गुण है जिसे जन्मजात कहा जा सकता है. तमाम अन्य गुणों की तरह ये गुण भी अलग-अलग लोगों में कम या ज़्यादा हो सकता है. लेकिन होता सब में है. पर्यटन असल में केवल घुमक्कड़ी नहीं है. असल में पर्यटन भी भिन्न-भिन्न उद्देश्यों के चलते किया जाता है. कोई पढ़ाई-लिखाई के चक्कर में किसी दूसरे शहर या दूसरे देश जाता है, तो कोई काम के सिलसिले में तो कोई केवल घूमने के उद्देश्य से ही जाता है. लेकिन इन सभी परिस्थियों में नई जगह को जानने, वहां की खास और महत्वपूर्ण जगहों को देखने की इच्छा कोई रोक सकता है क्या? यही इच्छा अपने काम के साथ-साथ उसे पर्यटन का सुख दे जाता है.
जब हम किसी नई जगह पर घूमने जाते हैं, तो ये केवल घूमना नहीं होता, बल्कि उस शहर या देश की संस्कृति को आत्मसात करने का वक्त होता है. वहां की संस्कृति से साक्षात्कार ही हमें रोमांच से भर देता है. किसी दूसरे देश की संस्कृति तो स्वाभाविक तौर पर अलग और नई होती है, लेकिन ये नयापन हमारे देश में भी कम नहीं. जितने प्रांत, उतनी ही भिन्न संस्कृति, आचार-व्यवहार, खान-पान, वेशभूषा, सोने जागने के तरीके, सब भिन्न. हर दो सौ किलोमीटर पर बदली हुई संस्कृति दिखाई देती है. केवल मध्यप्रदेश को ही लें. बुंदेलखंड, बघेलखंड, मालवा, चम्बल इन चारों हिस्सों की संस्कृति में भिन्नता है. कुछ त्यौहार जो बुन्देलखंड में मनाये जाते हैं, वे बाकी तीन में नहीं, तो कुछ रिवाज़ जो मालवा में हैं, बाकी जगहों पर नहीं. ये सब हम कैसे जानेंगे? केवल पढ़ के ये सब नहीं जाना जा सकता. इस भिन्नता के दर्शन तब होंगे, जब हम इन जगहों पर घूमने निकलेंगे. किसी जगह को पढ़ के जानने, और घूम के जानने में उतना ही फ़र्क है, जितना खाना बनाने और व्यंजन विधियों को पढ़ने में है.

हिन्दुस्तान तो वैसे भी भिन्न संस्कृतियों, भिन्न भाषाओं का देश है. कभी-कभी अचरज होता है, कि एक ही भूभाग पर कैसे इतनी भिन्नताएं एक साथ हैं? बहुत से लोग हैं, जो देश के ही तमाम प्रांतों को जानने-समझने के लिये छुट्टियों में केवल घूमने का ही प्रोग्राम बनाते हैं, और निकल पड़ते हैं. घूमने के ऐसी प्रेमियों को बहुत ज्ञान होता है. भाषाई ज्ञान के साथ-साथ इन्हें भौगोलिक और सांस्कृतिक ज्ञान भी खूब होता है. तो पर्यटन केवल घूमने का नहीं बल्कि ज्ञानार्जन का भी ज़रिया है.
पर्यटन हमारे लिये घूमने का, तो देश के लिये राजस्व का बेहतरीन ज़रिया है. पुरानी इमारतों, विशेष स्थानों को सुरक्षित रखने, संरक्षित करने, या उसके आस-पास मनोरम स्थल विकसित होने का कारण भी एकमात्र मानव पर्यटन है. लोगों की आवाजाही को देखते हुए, उस स्थान विशेष को विकसित किया जाता है. तो पर्यटन के चलते हमारा इतिहास भी सुरक्षा पा जाता है.
सन 1966 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने वर्ष 1967 को अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन वर्ष घोषित किया था. इसी वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाया गया कि विकासशील देशों में भारत एकमात्र देश है, जहां पर्यटन की बहुत अधिक सम्भावना है. यहां के ऐतिहासिक स्थलों को विकसित किया जाये, तो ये पर्यटन स्थल बन सकते हैं. वैसे भी विदेशी पर्यटकों के लिये भारत में आअकर्षण के लिये बहुत कुछ है. यहां की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक इमारतें ही इतनी हैं, कि एक विदेशी पर्यटक, जब साल भर का वीज़ा ले के हिन्दुस्तान आता है, तब यहां के सारे ऐतिहासिक स्थल देख पाता है. त्यौहारों के इस देश में मेलों की भी अद्भुत परम्परा रही है. और विदेशी, हमारे इन हिन्दुस्तानी मेलों के दीवाने हैं,. मौसम और त्यौहार विशेष पर लगने वाले कुछ प्रमुख मेलों में जैसे कुम्भ, माघ, या बिहार का पशु मेले में उनके आयोजित होने के समय पर अतिरिक्त पर्यटक जुटते हैं. भारतीय संस्कृति की भिन्नता ही उन्हें इस देश के पर्यटन के लिये उकसाती है. बनारस की अपनी अलग शान है. यहां के घाट, यहां की परम्पराएं और यहां का मोक्षगान, विदेशियों को यहीं बस जाने के लिये प्रेरित करता है.

भारत सरकार ने भी पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये बहुत सी योजनाएं बनाई हैं, सरकार द्वारा हमेशा नई-नई योजनाएं बनाई जाती रहती हैं, क्योंकि हमारा घूमना, देश के राजस्व को बढ़ाता है, जो भविष्य में हमारे ही काम आता है. तो देर किस बात की कुछ दिन तो गुज़ारिये पर्यटन में....!  


( 28 सितम्बर, विश्व पर्यटन दिवस पर नई दुनिया में प्रकाशित आलेख)

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-010-2017) को
    "जन-जन के राम" (चर्चा अंक 2744)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    विजयादशमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सच में, कितना कुछ है घूमने के लिये, सबके लिये, स्वभावानुसार।

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