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बातों वाली गली...
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देश विदेश की कहानियां पढ़ीं हैं कुछ मूल रूप में कुछ अनुदित। बहुत सुंदर और दिल को छू लेने वाली पर उनका असर दिलो दिमाग पे ज़्यादा दिन नहीं रहा कभी। शायद इसलिए कि हम उस परिवेश में पले बढ़े ही नहीं। उन कहानियों के चरित्रों से संबंध भी स्थापित नहीं हो पाया, एक दूरी रही हमेशा।
पर उन कहानियों की बात कुछ और है जिनमे हमारी मिट्टी की खुशबू है, जो हमारे आस पास ही दिन प्रतिदिन घट रहीं है, जिनमे आपसी रिश्तों की महक है, परिवारों में दिन प्रतिदिन होने वाली नोंकझोंक है, प्यार और ईर्ष्या है, बड़प्पन है, इंसानी गुरूर और ओछापन है। शादी ब्याह और तीज त्योहारों की गहमा गहमी और उनसे जुड़े रीत रिवाजों, जिन्हें महानगरों में रहने वाले काफी हद तक पीछे छोड़ आये हैं, की रौनक है।ये सारी और न जानें कितिनि ही उनसे जुड़ी और कहानियां उस वक़्त की याद दिलातीं हैं जब हम किसी गाँव, कस्बे या मोहल्ले में रहते थे। किसी के घर मे कौन आया गया, किसकी लड़की कब आती जाती है, किसके यहां आज क्या बन रहा है, किसी के घर शादी है कहीं कोई गमी हो गई है सबको सब पता होता, न सिर्फ पता होता बल्कि मोहल्ले के आस पड़ोस के लोग उस दुख सुख में शरीक भी होते। मेरी आधी उम्र उन्ही गली कूंचों में बीती है इसलिए भी मैं इन सभी बातों को दिल मे सँजोये हुए हूँ।
वंदना अवस्थी जी का ये संग्रह " बातों वाली गली" कई दिन पहले ही पढ़ लिया था। पढ़ते वक्त और उसके बाद भी ऐसा लगता रहा कि ये सारी कहानियां मेरे आस पास या मेरे आंखों के सामने से गुजरी हैं। उनके बुने गढ़े चरित्र बिल्कुल जाने पहचाने से लगे, एकदम करीब और सच्चे। कुछ कहानियां आँखें नम कर गईं और कुछ बहुत छोटी होने के बाद भी मन पर एक गहरा असर छोड़ गईं।
वंदना जी की ये कहानियां, एक दो को छोड़ कर, समाज के उस वर्ग की महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है जो आज भी बहुत व्यापक है, गली मोहल्लों, कस्बों और देहातों में बसता है जहां भारत की आत्मा सांस लेती है। इन सभी, सच्ची से लगने वाली, कहानियों को शिद्दत और लगन से एक कैनवस पे एक सीधी सादी बोलचाल की भाषा मे उतारना कोई आसान काम नहीं है पर वंदना जी ने कर दिखाया है।
डॉक्टर अचला नागर ने वैसे तो इस कहानी संग्रह की भूमिका में इतना कुछ लिख दिया है कि कुछ और लिखने की गुंजाइश नही है। फिर भी दो शब्द वंदना जी की सरल और आम बोलचाल की भाषा शैली पे बनतें हैं। वो बचपन से उसी साहित्यिक माहौल में रहीं, इसलिए भाषा पे उनकी पकड़ अद्भुत और प्रशंसनीय है। रीवा और सतना के आसपास बोले जानी वाली हिंदी या उसके कुछ शब्दों का कहानियों में समावेश उनकी शैली को समृद्ध बनाता है। उनके ब्लॉग आदि तो मैंने नहीं पढ़े पर जो भी उनकी फेसबुक पोस्ट्स और इस संग्रह को पढ़कर लगा है उससे एक उम्मीद बन पड़ी है कि आगे चलकर कुछ और ऐसी ही कहानियों का ताना बाना बुनेंगी जिनकी छाप उनके पाठकों के दिलो दिमाग पे हमेशा रहेगी।
इतनी सुंदर और अपनी सी लगने वाली कहानियों के इस संग्रह की रचना करने के लिए वंदना अवस्थी दुबे निश्चय ही बधाईं कि पात्र है।उम्मीद है वो अपने लेखन से समाज के उस वर्ग, जो अपनी मसरूफियत के चलते पढ़ने पढ़ाने से दूर है, में पढ़ने लिखने की रुचि जाग्रत करेंगी। { इसलिए एक सुझाव उन्हें, और वो ये कि वे अपने प्रकाशक को कहें कि इस कहानी संग्रह को ऑन लाइन उपलब्ध कराने के अलावा ऐ एच व्हीलर को भी उपलब्ध कराए ताकि आते जाते लोगों की नज़र इस पर पड़े और अधिक से अधिक लोग इसे पढ़ सकें। कुछ हिंदी समाचार पत्रों को जो मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड से प्रकाशित होतें है इसकी एक प्रतिलिपि अवश्य भेजें ताकि इस संग्रह की चर्चा उनके साहित्यिक कॉलम में हो सके। आल इंडिया रेडियो के बहुत से केंद्र है इन प्रदेशों में जहां हिंदी मे उस अंचल विशेष के लेखकों की रचनाओं पर अक्सर चर्चा होती है। उन्हें भी इसकी एक प्रतिलिपी अगर हो सके तो भेज दें। इस कहानी संग्रह को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने में ये कोशिश अवश्य कामयाब होगी।}
एक बार फिर इतनी सुंदर रचना के लिए वंदना अवस्थी दुबे को बधाईं...
पर उन कहानियों की बात कुछ और है जिनमे हमारी मिट्टी की खुशबू है, जो हमारे आस पास ही दिन प्रतिदिन घट रहीं है, जिनमे आपसी रिश्तों की महक है, परिवारों में दिन प्रतिदिन होने वाली नोंकझोंक है, प्यार और ईर्ष्या है, बड़प्पन है, इंसानी गुरूर और ओछापन है। शादी ब्याह और तीज त्योहारों की गहमा गहमी और उनसे जुड़े रीत रिवाजों, जिन्हें महानगरों में रहने वाले काफी हद तक पीछे छोड़ आये हैं, की रौनक है।ये सारी और न जानें कितिनि ही उनसे जुड़ी और कहानियां उस वक़्त की याद दिलातीं हैं जब हम किसी गाँव, कस्बे या मोहल्ले में रहते थे। किसी के घर मे कौन आया गया, किसकी लड़की कब आती जाती है, किसके यहां आज क्या बन रहा है, किसी के घर शादी है कहीं कोई गमी हो गई है सबको सब पता होता, न सिर्फ पता होता बल्कि मोहल्ले के आस पड़ोस के लोग उस दुख सुख में शरीक भी होते। मेरी आधी उम्र उन्ही गली कूंचों में बीती है इसलिए भी मैं इन सभी बातों को दिल मे सँजोये हुए हूँ।
वंदना अवस्थी जी का ये संग्रह " बातों वाली गली" कई दिन पहले ही पढ़ लिया था। पढ़ते वक्त और उसके बाद भी ऐसा लगता रहा कि ये सारी कहानियां मेरे आस पास या मेरे आंखों के सामने से गुजरी हैं। उनके बुने गढ़े चरित्र बिल्कुल जाने पहचाने से लगे, एकदम करीब और सच्चे। कुछ कहानियां आँखें नम कर गईं और कुछ बहुत छोटी होने के बाद भी मन पर एक गहरा असर छोड़ गईं।
वंदना जी की ये कहानियां, एक दो को छोड़ कर, समाज के उस वर्ग की महिलाओं के इर्द गिर्द घूमती है जो आज भी बहुत व्यापक है, गली मोहल्लों, कस्बों और देहातों में बसता है जहां भारत की आत्मा सांस लेती है। इन सभी, सच्ची से लगने वाली, कहानियों को शिद्दत और लगन से एक कैनवस पे एक सीधी सादी बोलचाल की भाषा मे उतारना कोई आसान काम नहीं है पर वंदना जी ने कर दिखाया है।
डॉक्टर अचला नागर ने वैसे तो इस कहानी संग्रह की भूमिका में इतना कुछ लिख दिया है कि कुछ और लिखने की गुंजाइश नही है। फिर भी दो शब्द वंदना जी की सरल और आम बोलचाल की भाषा शैली पे बनतें हैं। वो बचपन से उसी साहित्यिक माहौल में रहीं, इसलिए भाषा पे उनकी पकड़ अद्भुत और प्रशंसनीय है। रीवा और सतना के आसपास बोले जानी वाली हिंदी या उसके कुछ शब्दों का कहानियों में समावेश उनकी शैली को समृद्ध बनाता है। उनके ब्लॉग आदि तो मैंने नहीं पढ़े पर जो भी उनकी फेसबुक पोस्ट्स और इस संग्रह को पढ़कर लगा है उससे एक उम्मीद बन पड़ी है कि आगे चलकर कुछ और ऐसी ही कहानियों का ताना बाना बुनेंगी जिनकी छाप उनके पाठकों के दिलो दिमाग पे हमेशा रहेगी।
इतनी सुंदर और अपनी सी लगने वाली कहानियों के इस संग्रह की रचना करने के लिए वंदना अवस्थी दुबे निश्चय ही बधाईं कि पात्र है।उम्मीद है वो अपने लेखन से समाज के उस वर्ग, जो अपनी मसरूफियत के चलते पढ़ने पढ़ाने से दूर है, में पढ़ने लिखने की रुचि जाग्रत करेंगी। { इसलिए एक सुझाव उन्हें, और वो ये कि वे अपने प्रकाशक को कहें कि इस कहानी संग्रह को ऑन लाइन उपलब्ध कराने के अलावा ऐ एच व्हीलर को भी उपलब्ध कराए ताकि आते जाते लोगों की नज़र इस पर पड़े और अधिक से अधिक लोग इसे पढ़ सकें। कुछ हिंदी समाचार पत्रों को जो मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड से प्रकाशित होतें है इसकी एक प्रतिलिपि अवश्य भेजें ताकि इस संग्रह की चर्चा उनके साहित्यिक कॉलम में हो सके। आल इंडिया रेडियो के बहुत से केंद्र है इन प्रदेशों में जहां हिंदी मे उस अंचल विशेष के लेखकों की रचनाओं पर अक्सर चर्चा होती है। उन्हें भी इसकी एक प्रतिलिपी अगर हो सके तो भेज दें। इस कहानी संग्रह को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचने में ये कोशिश अवश्य कामयाब होगी।}
एक बार फिर इतनी सुंदर रचना के लिए वंदना अवस्थी दुबे को बधाईं...
http://bulletinofblog.blogspot.in/2017/09/blog-post_19.html
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि दी
हटाएंबहुत शुक्रिया दिलबाग जी.
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