जिन चीज़ों का इंतज़ार , हम छोड़ देते हैं, अगर अचानक ही वे मिल जाएं तो हमारे लिए सरप्राइज़ गिफ्ट की तरह होती हैं। Sweta Soni की ये पुस्तक समीक्षा भी मेरे लिए गिफ़्ट ही है। खूब स्नेह श्वेता
बातों वाली गली------------------
हाँ-हाँ,जानती हूँ बहुत देर से आई हूँ!पर करती भी क्या? गुम जो हो गई थी गलियों में।बहुत हीं रोचक और मजेदार रही अवस्थी दीदी(वंदना अवस्थी दुबे)के मन की गली यानि-"बातों वाली गली"।एक दो नहीं पूरे बीसियों विषय की दिलचस्प और अनोखी कहानी है इसमें-चलिए रूब रू करवाती हूँ कहानियों की---
पहली गली से नाम है-"अलग-अलग दायरे"----यह कहानी सुनील,उसकी पत्नी नीरू और उसकी सखी राजी के इर्द-गिर्द घूमती है।इस कहानी में दो सखियों के बीच अमीरी-गरीबी में जी जा रही जिंदगी की कुछ झलकियां है जो पूरी तरह वास्तविकता से जुड़ी है के-कैसा महसूस करती है एक गरीब सखी जब उसके घर उसकी अमीर सखी कुछ पल बिताने आती है,हर चीज में कमी महसूस कर अंदर-अंदर शर्म और हीन भाव में जब खुद को आंकती है।परन्तु उसके पति ने उसे बहुत बढ़िया बात बताई और उसे ये कह कर सम्भाला के-"मित्रता उनके बीच हीं कायम रह सकती है जिसमें बनावटीपन या दिखावा न हो,साथ ही एक दूजे को समझने की क्षमता हो।.....👨👩👧👦
दूसरी गली-"अनिश्चितता में"...इस कहानी की शुरुआत लेखिका ने रेल यात्रा से की है और करे भी क्यूँ न!एक दुःखी चिंतित व्यक्ति को कुछ सोचने के लिए इससे अच्छी जगह कहाँ मिलेगी।इस कहानी का नायक अपने बेरोजगारी से हताश था जो एम.एस.सी में 65% लाने के बावजूद बेकार बैठा था।अब तो उसके छोटे भाई को भी नौकरी लग गई थी सो उसके सामने आने से भी शर्म महसूस होने लगी थी उसे और तो और पिताजी ने भी तो कोई कसर नहीं छोड़ी ऐसा महसूस कराने के लिए आखिर टोक लगा हीं दी उन्होंने--"आखिर कब तक खिलाता रहूँ तुमलोगों को"--और उस तुमलोगों में मेरे सिवा और बचा ही कौन था। 🤦♂️
तीसरी गली-"ज्ञातव्य"---ये गली बहुत कुछ बोध करा गई घर के बच्चों को जब घर की बागडोर सम्भालने का जिम्मा उनके पिता ने उनके हाथों में थमा दी के आखिर कैसे नहीं चलता आपसे घर इतने पैसों में --जब खुद पड़ पड़ी तब समझ आई आखिर होती कहाँ थी फिजूल खर्ची,क्यूँ लेने पड़ जाते थें घर के मुखिया को महीने के अंत में कर्ज!खैर इस फैसले से बच्चों में समझ तो आई,फिजूल खर्ची पर काबू पाने की। 👌
चौथी गली-"आस पास बिखरे लोग"--इस गली में आस-पड़ोस के बेतरतीब लोगों का काबिलानापन उजागर किया है लेखिका ने। जो किसी घटना के विषयों को तोड़-मरोड़ कर एक दूजे से बतिया तो सकते हैं पर वक्त आने पर किसी को इन्साफ दिलाने के लिए पुलिस का साथ नहीं दे सकते आखिर कौन पड़े इस झमेले में सोच भाग खड़े होते हैं 🏃♂️-----
पाँचवी गली----"बातों वाली गली"--जो अपने शीर्षक पर खड़ी उतरी है।बातें निकलती हीं है महिलाओं के बीच से सो यहाँ रू ब रू करवाई इस गली के महिलाओं के एक ऐसे झुंड से,जो किसी खास के विषय में झट से कोई राय बनाने से बाज नहीं आतीं-उनके मन को भाई तो बड़ी भली अगर अपनी चलाई तो उससे बुरी संसार में कोई नहीं 😄😄😄शायद! ये कभी नहीं बदल सकता कभी नहीं।
छठी गली-"नहीं चाहिए आदि को कुछ"---इस गली एक ऐसा बच्चा है जो अक्सर हर गली में पाया जाता है।हाँ बगल के घर का छोटू सा प्यारा बच्चा-जीसे आपका घर,घर की सभी वस्तुएं इतनी भाती है कि वो अपने घर जाना नहीं चाहता।यहीं रह सब पाना चाहता है,मगर वहीं किसी एक रोज जब वो अपनी माँ से किसी कारण वश लम्बे समय तक दूर रहता है तो अपने घर लौटने के लिए ये बोल हीं पड़ता है-नहीं चाहिए मुझे कुछ मुझे तो बस मेरी माँ चाहिए।👩👦
सातवीं गली---"हवा उद्दंड है"--इस गली में उन मनचलों का जिक्र हैं जिनकी न तो कोई उम्र होती है न ईमान ये कब किधर हल्लर उठा देंगे किसी को क्या पता! शक होता है क्या ये अपनी माँ-बहन के होते भी होंगे या??👹
आठवीं गली---"नीरा जाग गई है"---इस गली में हर उस गली की वो बेटी है जो किसी न किसी वजह से शादी के लिए ठुकराई गई हो।पर ये बेटी निराश हो रोने धोने में नहीं बल्कि अपनी खुशी तलाश जीवन जीने में विश्वास रखती है।👧
नौवीं गली---" रमणीक भाई नहीं रहें"--इसमें एक बेटी अपने पिता के जाने के बाद उस सोच का लेखा जोखा लेकर बैठती है के पिताजी ने जो किया भाईयों के हक के लिए क्या वो सही है! जो अपनी मर्जी का काम नहीं आजतक उनके साथ दुकान पर हीं रहे बेमन बेसमझ काम से क्या अब जिंदगी भर उन्हें मुनीम चाचा पर हीं निर्भर नहीं रहना पडेगा ये सब शुरू से समझने करने को🤰
दसवीं गली----"सब जानती है शैव्या"---ये उस लड़की की कहानी है जिसे समाज के कुछ लोग आज भी पचा नहीं पाते के लड़की उनके बराबर में आ कैसे कदम मिला चल रही-इसे क्या समझ पत्रकारिता की या अन्य किसी विषय की।पर सयानी शैव्या भली भांति जानती है करना क्या है?👩🎓
ग्यारहवीं गली---"अहसास"---इसमें छोटे से घर से आई उन सभी बहुओं की व्यथा है,जीसे अपनी खुशी या अपनी पसंद तक पाने का कोई हक नहीं।🤦♀️
बारहवीं गली---"दस्तक के बाद"---इसका संबंध उम्र के दस्तक से है जो आप से पहले दूसरे आंक लेते हैं।और अंततः आप भी स्वीकार लेते हैं के सच यही है।👵
तेरहवीं गली---"प्रिया की डायरी"---यह कहानी एक गृहणी के जीवन शैली को प्रदर्शित करती है। 👰
चौदहवीं गली---"करत करत अभ्यास के"---ये कहानी उनकी है जो खुद तो आधुनिक हो गए परन्तु सोच पुरानी है इस में उन जैसों को सुधारने का एक अथक प्रयास किया जा रहा है।👼
पन्द्रहवीं गली---"बड़ी हो गई ममता जी"---इस कहानी में जो बहु है वो भले उम्र के आधे पड़ाव पर है पर अपनी सास के आगे अभी भी उसे बहुत छोटा बना रहना पड़ता है। पहले तो ये बात उसे बहुत खलती है पर जब एक दिन उसकी सास चल बसती हैं तो बार-बार उन्हें याद कर दुखी हो जाती है के अपने बड़े होने की खुशी मनाऊँ या उनके न रहने का गम😢
सोलहवीं गली---"विरूध"---इस कहानी से बहुत अच्छी सीख मिली के अगर रिश्तों में विश्वास या सामंजस्य बैठाने जैसा कुछ बचा न हो तो उसे अलविदा कह अलग हो जाने में हीं फायदा है। 🙅♀️
सत्रहवीं गली---"ये कहानी ऐसे पिता पुत्र की है जो परीक्षा और उसमें उपयोग होने वाली अलग-अलग प्रकाशन की किताब पर है।जब एक बार पिता किताब लाने में लेट हो जातें हैं तो बेटा ये सोच कर चिंतित होता है के-कितना समय तो निकल गया अब कैसे होगा----और वहीं पिता ये सोच निश्चिंत होते हैं चलो ले हीं आए हम वरना अंक कम मिलने पर तो ये यही कहता ....सब आपके वजह से हुआ 👴
अठारहवीं गली---"डेरा उखड़ने से पहले" बहुत हीं अलग है आभा की जिंदगी भाई बहन सभी है भाभी भतीजे से भरा घर है फिर भी आजतक अकेले हीं ढ़ोते आई अपने बीमार पिता को करती भी क्या भाई रखने को तैयार जो नहीं थें। वो तो शुक्र है कि उसे नौकरी है वरना क्या होता इन बाप बेटी का।पिता के रहते भाईयों से न के बराबर संबंध रखे थें आभा ने।पर अब अकेले रहने पर कभी कभार हो जाती है बात उनमें।फिर भी एक बड़े उलझन में है वो और हो भी क्यूँ न !पचपन की होने को आई है और सामने से शादी का एक रिश्ता आया है समझ नहीं पा रही आखिर करे क्या---🤔
उन्नीसवीं गली---"शिव बोले मेरी रचना घड़ी-घड़ी"-ढोंगी बाबा पर आधारित ये कहानी बहुत हीं बढ़िया है।आखिर हमने ही तो उपजाने में मदद की है समाज में इस जहरीले पौधे को। तो झेलते भी हम हैं,पर सुधरते नहीं है।...☠
बीसवीं गली---"ये कहानी ऐसे तथ्य को उजागर करती है के किसी की जिंदगी का फैसला हर बार सिर्फ घर का मुखिया करे ये हीं सही नहीं होता,हर फैसले को हर बार किसी पर थोपने से पहले उसके हित को ध्यान में रख लेना चाहिए। खुशहाल जीवन तभी मिलता है। हालांकि-बड़ी बाई साहब भी अंत में इस तथ्य से सहमत दिखाई पड़ रही थी। 👩⚖
हमने तो बहुत छोटा सारांश लिखा,लिखना तो बहुत चाहती हूँ पर दुविधा में हूँ क्या लिखूं और कितना---कैसे खत्म करू इन गलियों की कहानी। बातें भी कभी खत्म होती हैं???फिर कैसे खत्म हो बातों वाली गली की कहानी।तो फिर इंतजार कीजिए आने तक अगले गली की कहनी,जो हमारे बीच लेकर आएंगी हमसब की जिज्जी!एक ब्लॉगर,फेसबुक सखी वंदना अवस्थी दुबे।
ढेरों शुभकामनाएँ दीदी 😍
------श्वेता सोनी-----
हाँ-हाँ,जानती हूँ बहुत देर से आई हूँ!पर करती भी क्या? गुम जो हो गई थी गलियों में।बहुत हीं रोचक और मजेदार रही अवस्थी दीदी(वंदना अवस्थी दुबे)के मन की गली यानि-"बातों वाली गली"।एक दो नहीं पूरे बीसियों विषय की दिलचस्प और अनोखी कहानी है इसमें-चलिए रूब रू करवाती हूँ कहानियों की---
पहली गली से नाम है-"अलग-अलग दायरे"----यह कहानी सुनील,उसकी पत्नी नीरू और उसकी सखी राजी के इर्द-गिर्द घूमती है।इस कहानी में दो सखियों के बीच अमीरी-गरीबी में जी जा रही जिंदगी की कुछ झलकियां है जो पूरी तरह वास्तविकता से जुड़ी है के-कैसा महसूस करती है एक गरीब सखी जब उसके घर उसकी अमीर सखी कुछ पल बिताने आती है,हर चीज में कमी महसूस कर अंदर-अंदर शर्म और हीन भाव में जब खुद को आंकती है।परन्तु उसके पति ने उसे बहुत बढ़िया बात बताई और उसे ये कह कर सम्भाला के-"मित्रता उनके बीच हीं कायम रह सकती है जिसमें बनावटीपन या दिखावा न हो,साथ ही एक दूजे को समझने की क्षमता हो।.....👨👩👧👦
दूसरी गली-"अनिश्चितता में"...इस कहानी की शुरुआत लेखिका ने रेल यात्रा से की है और करे भी क्यूँ न!एक दुःखी चिंतित व्यक्ति को कुछ सोचने के लिए इससे अच्छी जगह कहाँ मिलेगी।इस कहानी का नायक अपने बेरोजगारी से हताश था जो एम.एस.सी में 65% लाने के बावजूद बेकार बैठा था।अब तो उसके छोटे भाई को भी नौकरी लग गई थी सो उसके सामने आने से भी शर्म महसूस होने लगी थी उसे और तो और पिताजी ने भी तो कोई कसर नहीं छोड़ी ऐसा महसूस कराने के लिए आखिर टोक लगा हीं दी उन्होंने--"आखिर कब तक खिलाता रहूँ तुमलोगों को"--और उस तुमलोगों में मेरे सिवा और बचा ही कौन था। 🤦♂️
तीसरी गली-"ज्ञातव्य"---ये गली बहुत कुछ बोध करा गई घर के बच्चों को जब घर की बागडोर सम्भालने का जिम्मा उनके पिता ने उनके हाथों में थमा दी के आखिर कैसे नहीं चलता आपसे घर इतने पैसों में --जब खुद पड़ पड़ी तब समझ आई आखिर होती कहाँ थी फिजूल खर्ची,क्यूँ लेने पड़ जाते थें घर के मुखिया को महीने के अंत में कर्ज!खैर इस फैसले से बच्चों में समझ तो आई,फिजूल खर्ची पर काबू पाने की। 👌
चौथी गली-"आस पास बिखरे लोग"--इस गली में आस-पड़ोस के बेतरतीब लोगों का काबिलानापन उजागर किया है लेखिका ने। जो किसी घटना के विषयों को तोड़-मरोड़ कर एक दूजे से बतिया तो सकते हैं पर वक्त आने पर किसी को इन्साफ दिलाने के लिए पुलिस का साथ नहीं दे सकते आखिर कौन पड़े इस झमेले में सोच भाग खड़े होते हैं 🏃♂️-----
पाँचवी गली----"बातों वाली गली"--जो अपने शीर्षक पर खड़ी उतरी है।बातें निकलती हीं है महिलाओं के बीच से सो यहाँ रू ब रू करवाई इस गली के महिलाओं के एक ऐसे झुंड से,जो किसी खास के विषय में झट से कोई राय बनाने से बाज नहीं आतीं-उनके मन को भाई तो बड़ी भली अगर अपनी चलाई तो उससे बुरी संसार में कोई नहीं 😄😄😄शायद! ये कभी नहीं बदल सकता कभी नहीं।
छठी गली-"नहीं चाहिए आदि को कुछ"---इस गली एक ऐसा बच्चा है जो अक्सर हर गली में पाया जाता है।हाँ बगल के घर का छोटू सा प्यारा बच्चा-जीसे आपका घर,घर की सभी वस्तुएं इतनी भाती है कि वो अपने घर जाना नहीं चाहता।यहीं रह सब पाना चाहता है,मगर वहीं किसी एक रोज जब वो अपनी माँ से किसी कारण वश लम्बे समय तक दूर रहता है तो अपने घर लौटने के लिए ये बोल हीं पड़ता है-नहीं चाहिए मुझे कुछ मुझे तो बस मेरी माँ चाहिए।👩👦
सातवीं गली---"हवा उद्दंड है"--इस गली में उन मनचलों का जिक्र हैं जिनकी न तो कोई उम्र होती है न ईमान ये कब किधर हल्लर उठा देंगे किसी को क्या पता! शक होता है क्या ये अपनी माँ-बहन के होते भी होंगे या??👹
आठवीं गली---"नीरा जाग गई है"---इस गली में हर उस गली की वो बेटी है जो किसी न किसी वजह से शादी के लिए ठुकराई गई हो।पर ये बेटी निराश हो रोने धोने में नहीं बल्कि अपनी खुशी तलाश जीवन जीने में विश्वास रखती है।👧
नौवीं गली---" रमणीक भाई नहीं रहें"--इसमें एक बेटी अपने पिता के जाने के बाद उस सोच का लेखा जोखा लेकर बैठती है के पिताजी ने जो किया भाईयों के हक के लिए क्या वो सही है! जो अपनी मर्जी का काम नहीं आजतक उनके साथ दुकान पर हीं रहे बेमन बेसमझ काम से क्या अब जिंदगी भर उन्हें मुनीम चाचा पर हीं निर्भर नहीं रहना पडेगा ये सब शुरू से समझने करने को🤰
दसवीं गली----"सब जानती है शैव्या"---ये उस लड़की की कहानी है जिसे समाज के कुछ लोग आज भी पचा नहीं पाते के लड़की उनके बराबर में आ कैसे कदम मिला चल रही-इसे क्या समझ पत्रकारिता की या अन्य किसी विषय की।पर सयानी शैव्या भली भांति जानती है करना क्या है?👩🎓
ग्यारहवीं गली---"अहसास"---इसमें छोटे से घर से आई उन सभी बहुओं की व्यथा है,जीसे अपनी खुशी या अपनी पसंद तक पाने का कोई हक नहीं।🤦♀️
बारहवीं गली---"दस्तक के बाद"---इसका संबंध उम्र के दस्तक से है जो आप से पहले दूसरे आंक लेते हैं।और अंततः आप भी स्वीकार लेते हैं के सच यही है।👵
तेरहवीं गली---"प्रिया की डायरी"---यह कहानी एक गृहणी के जीवन शैली को प्रदर्शित करती है। 👰
चौदहवीं गली---"करत करत अभ्यास के"---ये कहानी उनकी है जो खुद तो आधुनिक हो गए परन्तु सोच पुरानी है इस में उन जैसों को सुधारने का एक अथक प्रयास किया जा रहा है।👼
पन्द्रहवीं गली---"बड़ी हो गई ममता जी"---इस कहानी में जो बहु है वो भले उम्र के आधे पड़ाव पर है पर अपनी सास के आगे अभी भी उसे बहुत छोटा बना रहना पड़ता है। पहले तो ये बात उसे बहुत खलती है पर जब एक दिन उसकी सास चल बसती हैं तो बार-बार उन्हें याद कर दुखी हो जाती है के अपने बड़े होने की खुशी मनाऊँ या उनके न रहने का गम😢
सोलहवीं गली---"विरूध"---इस कहानी से बहुत अच्छी सीख मिली के अगर रिश्तों में विश्वास या सामंजस्य बैठाने जैसा कुछ बचा न हो तो उसे अलविदा कह अलग हो जाने में हीं फायदा है। 🙅♀️
सत्रहवीं गली---"ये कहानी ऐसे पिता पुत्र की है जो परीक्षा और उसमें उपयोग होने वाली अलग-अलग प्रकाशन की किताब पर है।जब एक बार पिता किताब लाने में लेट हो जातें हैं तो बेटा ये सोच कर चिंतित होता है के-कितना समय तो निकल गया अब कैसे होगा----और वहीं पिता ये सोच निश्चिंत होते हैं चलो ले हीं आए हम वरना अंक कम मिलने पर तो ये यही कहता ....सब आपके वजह से हुआ 👴
अठारहवीं गली---"डेरा उखड़ने से पहले" बहुत हीं अलग है आभा की जिंदगी भाई बहन सभी है भाभी भतीजे से भरा घर है फिर भी आजतक अकेले हीं ढ़ोते आई अपने बीमार पिता को करती भी क्या भाई रखने को तैयार जो नहीं थें। वो तो शुक्र है कि उसे नौकरी है वरना क्या होता इन बाप बेटी का।पिता के रहते भाईयों से न के बराबर संबंध रखे थें आभा ने।पर अब अकेले रहने पर कभी कभार हो जाती है बात उनमें।फिर भी एक बड़े उलझन में है वो और हो भी क्यूँ न !पचपन की होने को आई है और सामने से शादी का एक रिश्ता आया है समझ नहीं पा रही आखिर करे क्या---🤔
उन्नीसवीं गली---"शिव बोले मेरी रचना घड़ी-घड़ी"-ढोंगी बाबा पर आधारित ये कहानी बहुत हीं बढ़िया है।आखिर हमने ही तो उपजाने में मदद की है समाज में इस जहरीले पौधे को। तो झेलते भी हम हैं,पर सुधरते नहीं है।...☠
बीसवीं गली---"ये कहानी ऐसे तथ्य को उजागर करती है के किसी की जिंदगी का फैसला हर बार सिर्फ घर का मुखिया करे ये हीं सही नहीं होता,हर फैसले को हर बार किसी पर थोपने से पहले उसके हित को ध्यान में रख लेना चाहिए। खुशहाल जीवन तभी मिलता है। हालांकि-बड़ी बाई साहब भी अंत में इस तथ्य से सहमत दिखाई पड़ रही थी। 👩⚖
हमने तो बहुत छोटा सारांश लिखा,लिखना तो बहुत चाहती हूँ पर दुविधा में हूँ क्या लिखूं और कितना---कैसे खत्म करू इन गलियों की कहानी। बातें भी कभी खत्म होती हैं???फिर कैसे खत्म हो बातों वाली गली की कहानी।तो फिर इंतजार कीजिए आने तक अगले गली की कहनी,जो हमारे बीच लेकर आएंगी हमसब की जिज्जी!एक ब्लॉगर,फेसबुक सखी वंदना अवस्थी दुबे।
ढेरों शुभकामनाएँ दीदी 😍
------श्वेता सोनी-----
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें