बचपन में जब गणगौर का त्यौहार आता, तो हम सबमें सबसे
ज़्यादा उत्साह टेसू (पलाश) के फूलों से रंग
बनाने के लिये होता. हमारे छोटे से शहर में टेसू के पेड़ बहुतायत हैं, सो फूल मिलने
में दिक्कत न होती. हम अपनी फ़्रॉक की झोली बना के उसमें ढेर सारे फूल भर लाते. ताज़े-
चटक नारंगी रंग के फूल… मम्मी एक बड़ी सी थाली
में पानी भर के सारे फूल डाल देतीं. जब तक कथा समाप्त होती, फूलों के रंग से पूरा पानी
नारंगी-लाल हो उठता. एक बार फिर फूलों को मसल के मम्मी सारा रंग निचोड़ लेतीं, और कथा
के अन्त में सब पर ये रंग डाला जाता. तब इस रंग के डाले जाने का पौराणिक महत्व नहीं
मालूम था, ये हमारे मौज-मज़े का सामान होता था. हमारा सारा ध्यान तो इस रंग और पूजा
के लिये बने पकवानों पर लगा होता था. लेकिन
इतना है, कि मुझे उन दिनों घर में होने वाली सारी पूजाओं में, गणगौर की पूजा बहुत अलग
सी, और बहुत अच्छी लगती थी. आज भी लगती है.
गणगौर…..
गण यानि शिवभक्त और गौर यानि पार्वती. पार्वती से बड़ा शिवभक्त भला कौन हुआ है !! लेकिन
गौरा के नाम के साथ गण लगने और इस पूरे शब्द
के “गणगौर” बनने की अलग कथा है. इस
शब्द के उत्पत्ति पार्वती द्वारा किये गये एक व्रत के बाद हुई. पार्वती ने शिव को प्राप्त
करने के लिये जो व्रत किये, ये भी उनमें से
एक है. वैसे तो गणगौर विभिन्न प्रांतों में मनाया जाता है, लेकिन सबसे ज़्यादा उत्साह
और रीति रिवाज़ के साथ इसे राजस्थान में मनाया जाता है. तो आइये जानते हैं इस व्रत की
विहि. व्रत को करने का विधान ताकि जो महिला इसे शुरु करना चाहे, वो कर सके, विधान जान
सके.
गणगौर
पूजन कब और क्यों?
गणगौर का त्यौहार एकमात्र ऐसा
त्यौहार है जो चैत्र नवरात्रि के मध्य आता है. नौदुर्गा की तृतीया को आने वाले इस त्यौहार
का विशेष महत्व इसलिये भी है क्योंकि चैत्र नवरात्रि का यह दिन देवी के चंद्रघंटा स्वरूप को समर्पित है. चंद्रघंटा
तंत्रमंत्र की स्वामिनी हैं. इनकी अर्चना से अलौकिक वस्तुओं की प्राप्ति होती है. नवरात्रि
के तीसरे दिन, यानि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर माता की पूजा की जाती
है. इस दिन पार्वती के अवतार के रूप में “गणगौर माता” और शिव के अवतार के रूप में
“ईशर जी” की पूजा की जाती है. कहा जाता है
कि पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिये तपस्या की. शिव प्रसन्न होके प्रकट
हुए और वरदान मांगने को कहा. पार्वती ने वरदान में शिव को ही मांग लिया. और वरदान फलित
हुआ, शिव पार्वती के विवाह के रूप में. तबसे कुंआरी कन्याएं इच्छित वर पाने के लिये
और सुहागिनें अपने सौभाग्य के लिये इस व्रत को करती चली आ रहीं. गणगौर पूजा की शुरुआत
चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया से आरम्भ हो जाता है. महिलाएं सोलह दिन तक इस पूजा
के विधान का पालन करती हैं. सुबह जल्दी उठ के ऊब चुनने जाती हैं. उस दूब से थाली में
रखी मिट्टी की गणगौर माता की मूर्ति को छींटे देती हैं. आठवें इन लड़कियां कुम्हार के
यहां जा के मिट्टी लाती हैं, और फिर इस मिट्टी से ईशर जी की प्रतिमा के साथ साथ पार्वती
के मायके का परिवार भी बनाती हैं. गणगौर की जहां पूजा की जाती है, उसे पीहर और जहां
विसर्जन किया जाता है उसे ससुराल माना जाता है.
गणगौर की मूर्ति को पूजा के दिन
सुन्दर वस्त्रों से सजाया जाता है. पकवान बनाये जाते हैं जिनमें मीठे और नमकीन गुना –फूल होते हैं. कई जगह इन्हें गनगौरे भी कहते
हैं. एक थाली में टेसू के फूलों से रंग तैयार किया जाता है. थाली को गणगौर की मूर्ति
के ठीक नीचे रखा जाता है ताकि उसमें गौर की छाया दिखाई दे. कथा के बाद यह रंग सब पर
उलीचा जाता है. गणगौर की मूर्ति से सिंदूर ले के विवाहिताएं अपनी मांग भरती हैं. और
फिर भोजन ग्रहण करती हैं. यह निराहार रहने वाला व्रत नहीं है.
कैसे
करें पूजा?
थोड़े बहुत विभेद के साथ इस त्यौहार
की पूजन विधि लगभग सभी जगह समान है. गणगौर की मूर्ति स्थापना कर एक थाली में अख्शत,
चंदन, हल्दी सिंदूर, अगरबत्ती, धूप, कपूर और फूल-ऊब आदि रखी जाती है. यह थाली होली
के दूसरे इन ही तैयार कर ली जाती है. अब इसी में मिट्टी से गणगौर माता की मूर्ति भी
बना के रखते हैं. पूजा के कमरे में या जिस स्थान पर पूजा करनी हो, बालू से एक चौकोर
बेदी बना के वहीं ये थाल स्थापित किया जाता है. पार्वती को सुहाग का समस्त सामान चढाया
जाता है, जैसे कि हम हडतालिका तीज को चढाते हैं. फूल, धूप, दीप नैवेद्य अर्पण करने
के बाद कथा कही जाती है और बाद में सभी महिलाएं भोग ग्रहण करती हैं. माता का सिंदूर
लेती हैं.
राजस्थान
का विशिष्ट त्यौहार
राजस्थान का यह खास उत्सव है.
इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को. तथा पार्वती ने
समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था. राजस्थान से लगे ब्रज के सीमावर्ती
इलाकों में यह त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन यहां गणगौर माता को चूरमें
का भोग लगता है.
उमंग
और उत्साह का पर्व है गणगौर
सोलह दिन तक चलने वाला यह एक
मात्र त्यौहार है. पहले के ज़माने में जब मनोरंजन के साधन नहीं हुआ करते थे, तब लोग
अपने उत्सव का बहाना इन त्यौहारों में खोज लेते थे. सोलह दिन बेहद मस्ती, उत्साह और
उमंग में निकलते थे महिलाओं के. राजस्थान में आज भी सोलह दिन तक दूब से दूध का छींटा
दिया जाता है गौरा को.
गणगौर
की कथा
भगवान शंकर तथा
पार्वती जी नारदजी के साथ भ्रमण को निकले। चलते-चलते वे चैत्र शुक्ल तृतीया के दिन
एक गाँव में पहुँच गए। उनके आगमन का समाचार सुनकर गाँव की श्रेष्ठ कुलीन स्त्रियाँ
उनके स्वागत के लिए स्वादिष्ट भोजन बनाने लगीं। भोजन बनाते-बनाते उन्हें काफ़ी
विलंब हो गया किंतु साधारण कुल की स्त्रियाँ श्रेष्ठ कुल की स्त्रियों से पहले ही
थालियों में हल्दी तथा अक्षत लेकर पूजन
हेतु पहुँच गईं। पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को स्वीकार करके सारा सुहाग रस उन पर
छिड़क दिया। वे अटल सुहाग प्राप्ति का वरदान पाकर लौटीं। बाद में उच्च कुल की
स्त्रियाँ भांति भांति के पकवान लेकर गौरी जी और शंकर जी की पूजा करने पहुँचीं।
उन्हें देखकर भगवान शंकर ने पार्वती जी से कहा, 'तुमने सारा सुहाग रस तो साधारण
कुल की स्त्रियों को ही दे दिया। अब इन्हें क्या दोगी?' पार्वत जी ने उत्तर दिया, 'प्राणनाथ, आप इसकी चिंता मत कीजिए। उन स्त्रियों को मैंने केवल ऊपरी पदार्थों से बना रस दिया है। परंतु मैं इन उच्च कुल की स्त्रियों को अपनी उँगली चीरकर अपने रक्त का सुहागरस दूँगी। यह सुहागरस जिसके भाग्य में पड़ेगा, वह तन-मन से मुझ जैसी सौभाग्यशालिनी हो जाएगी।'
जब स्त्रियों ने पूजन समाप्त कर दिया, तब पार्वती जी ने अपनी उँगली चीरकर उन पर छिड़क दिया, जिस जिस पर जैसा छींटा पड़ा, उसने वैसा ही सुहाग पा लिया। अखंड सौभाग्य के लिए प्राचीनकाल से ही स्त्रियाँ इस व्रत को करती आ रही हैं।
तो इस उल्लास-उमंग से भरपूर गणगौर व्रत को आप भी करें, बिना किसी विशेष आडम्बर के. शुभकामनाएं, आप सबको.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " राजनीति का नेगेटिव - पॉज़िटिव " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत आभार आपका
हटाएंगणगौर की पूजा के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा ......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया निवेदिता
हटाएंगणगौर को बहुत विस्तार और व्यापकता से लिखा है आपने ... सच है की ऐसे उत्सव और त्यौहार समय समय पे जीवन में उमंग भरते हैं और ऊर्जा का निर्माण करते रहते हैं समय समय पर ...
जवाब देंहटाएंआभार दिगम्बर जी.
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