जो
अपने होते हैं, उन्हीं का काम सबसे पीछे होता है.
कारण, यहां औपचारिकता नहीं होती. उलाहना होता है, लेकिन नाराज़गी नहीं होती.
ऐसा ही कुछ हुआ “निवेदिता-अमित” के साथ. किताब तो जनवरी के पहले हफ़्ते में ही मिल गयी
थी, लेकिन…. खैर.
“कुछ
ख्वाब-कुछ ख्वाहिशें” अचानक ही छप के सामने आ गयी, बिना किसी सुन-गुन के. निवेदिता
श्रीवास्तव और उनके पतिदेव अमित श्रीवास्तव की मिली जुली पुस्तक है ये. ये दोनों ही
ब्लॉग जगत और सोशल मीडिया के चर्चित नाम हैं.
इस संयुक्त प्रयास को देख, एकबारगी राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी का संयुक्त
उपन्यास, “एक इंच मुस्कान” याद आ गया. बहुत दिनों के बाद पति-पत्नी की संयुक्त किताब देखने को मिली, खुशी
हुई.
अपनी
बात में ’निवेदिता-अमित’ लिखते हैं-
“ बड़ी-बड़ी
इमारतों के सामने छोटे-छोटे घरोंदे भी ज़्यादा देर टिक तो नहीं पाते, परन्तु जब तक आंखों के सामने रहते हैं, लुभाते
बहुत हैं. आप सबको यह कविताएं तनिक सा लुभा पाएं, बस इतना सा ख्वाब है और यह पूरा हो
जाये, बस यही ख्वाहिश है.”
बड़ी
मासूम सी इच्छा है, बहुत ही विनम्रता से व्यक्त की गयी. ऐसी विनम्र चाह पर
कौन न वारी जाये….
“कुछ
ख्वाब-कुछ ख्वाहिशें” को दो हिस्सों में बांटा गया है. पहला हिस्सा निवेदिता के नाम
है. इसमें पृष्ठ संख्या 15 से लेकर 62 तक निवेदिता की रचनाएं हैं. हर पृष्ठ पर एक रचना
यानि कुल पैंतालीस कविताएं. निवेदिता की शब्द
यात्रा ’अनकहे शब्द’ से होकर, सिरहाना मिल जाये, तुमने कहा था, जैसे पड़ावों से होती
हुई आगे बढती है तो निगाहें अचानक ही “सीता की अग्नि परीक्षा” पर ठिठक जाती हैं. शानदार
कविता है ये.
“आज मैं तुम्हारा परित्याग करती
हूं,
जाओ फिर से मेरी स्वर्ण प्रतिमा
बना साथ बिठाओ
मैं जनकपुर की धरती से उपजी
आज फिर धरती में ही समा जाती
हूं”
कमाल
की पंक्तियां रच डालीं हैं निवेदिता ने. पन्ने फिर पलटने शुरु करती हूं. पृष्ठ दर पृष्ठ
आगे बढती हूं आंखें फिर अटकती हैं- “ कल्पवृक्ष” पर .
“सबकी
कामनाएं
पूरी
करने में
अपनी कितनी सांसे
कभी
न ले पाता होगा
धड़कन
औरों की
सहेजते
सहेजते
अपने
लिये धड़कना
याद
न रख पाता होगा.”
बहुत
गहरी बात. ऐसी चिन्ता प्रकृति और समाज से बराबरी
का प्रेम रखने वाला व्यक्ति ही लिख सकता है. एक और कविता “ख्वाब” भी बहुत सुन्दर तरीक़े से लिखी
गयी है.
“ ख्वाब
कभी
मुंदी
और
कभी खुली
पलकों
से भी
सांस-सांस
जिए जाते हैं.”
सुन्दर
कविता है ये. एक और कविता है, “उसने कहा” ये भी बहुत सुन्दर है.
“शुक्रिया
तुम्हारा
तुमने
तोड़े मेरे सपने
और
मैं समझ गयी
टूटे
सपने भी जीवंत होते हैं”
बढिया
कविता है. अब पेज़ नम्बर 65 से 112 तक अमित
जी का हिस्सा है.
अपनी
पहली ही रचना में लिखते हैं-
“मुड़े-तुड़े
कागज़ अक्सर होते हैं खत मोहब्बत के
लफ़्ज़
जिसके हरेक जुगनू होते हैं ’उन’ नज़रों के”
प्रेम
की बरसात इस कविता से जो शुरु हुई तो, लिखते क्यूं हो?, ईद, कुछ्ख्वाब, और गुनाह हो
गया, हाफ़िज़ खुदा, लालटेन सी ज़िन्दगी, पैमाइश लफ़्ज़ों की, कहानी एक जो़ए की, केहि विधि
प्यार जतऊं, विद्योत्तमा लौट आओ फिर एक बार, से होती हुई आलिंगन ज़िन्दगी का, गुनगुने
आंसू और क्यों लिखूं कविता पर जाकर ही रुकती
है. अमित जी की कई कविताएं बहुत सुन्दर हैं.
“जलाता
हूं रोज़
थोड़ा-थोड़ा
खुद को
रोशनी
तो होती है
पर
इर्द-गिर्द
कालिख
भी होती है.
बहुत
सुन्दर कविता है ये. एक सच्चे कवि जैसी लेखनी के दर्शन होते हैं यहां, जबकि मैं उन्हें
बस यूं ही, शौकिया कविताई करने वाला कवि माने बैठी थी.
देखा
है मैने अक्सर लब तुम्हारे
कुछ
कहने से पहले
हो
जाते हैं आड़े-तिरछे
क्या
खूब लिख गये अमित जी.
मैं
काट रहा हूं
वह
शाख
जिस
पर बैठा हूं
ये
भी बहुत शानदार कविता है. तो कुल मिला के इस
संग्रह में 86 कविताएं हैं, जिनमें से कुछ अच्छी हैं, कुछ बहुत अच्छी हैं, और कुछ ऐसी
भी हैं, जिन्हें ओबारा लिखा जाये तो कमाल हो जाये. इस संग्रह को पढते हुए सबसे खास
बात ये कि निवेदिता की कविताओं में जहां प्रेम की कविताएं कम, विरह, नाराज़गी, उलाहना
जैस भाव भी आये हैं, वहीं अमित जी की कविताओं
का स्थाई भाव प्रेम है. अधिकांश कविताएं प्रेम के ही विभिन्न आयाम प्रस्तुत करती हैं.
एक और बात, वो शायद अधिसंख्य पाठकों ने महसूस
की हो, ये पुस्तक एक आत्मीय स्पर्ष सा देती है. रचनाएं बहुत सधी हुईं, मंझी हुई हैं
ऐसा मैं नहीं कहूंगी. कुछ कविताओं को छोड़ दें, तो अधिकतर कविताएं अपने कच्चेपन के दौर
से गुज़र रही हैं, लेकिन इनका यही कच्चापन आकर्षित करता है. लेखन में गज़ब की मासूमियत है. उम्मीद है, निवेदिता-अमित
अपनी ये मासूमियत बरक़रार रखते हुए अगली पुस्तक में और भी पुष्ट कविताएं ले के आयेंगे.
हिन्दयुग्म प्रकाशन से प्रकाशित इस पुस्तक का मूल्य है सौ रुपये जो पाठकों को खुश कर देने वाला है. कवर पेज़ अच्छा है.
मगर इससे भी अच्छा है पुस्तक का पृष्ठ भाग. छपाई सुन्दर है. पुस्तक कुल ११२ पृष्ठ की है. एक बार फिर निवेदिता-अमित
को हार्दिक बधाई.
पुस्तक:
कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशें
(कविता
संग्रह)
लेखक:
निवेदिता-अमित
प्रकाशक:
हिन्दयुग्म प्रकाशन
१,
ज़िया सराय, हौज खास, नई दिल्ली-११००१६
मूल्य:
१०० रुपये मात्र
ISBN-
978-93-84419-33-2
|
क्या बात है एकदम सटीक समीक्षा। मुझे इस पुस्तक का कवर सबसे ज्यादा पसंद आया था। और फिर इसकी कविताओं में बसी मौलिकता और निश्छल भावनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जी 😊
हटाएंशिखा तुमको तो धन्यवाद न बोलेंगे .... कारण तो जानती ही होगी :P
हटाएंक्या बात है एकदम सटीक समीक्षा। मुझे इस पुस्तक का कवर सबसे ज्यादा पसंद आया था। और फिर इसकी कविताओं में बसी मौलिकता और निश्छल भावनाएं।
जवाब देंहटाएंसबसे कठोर टीचर ने सबसे ज्यादा नंबर दिए , अपना तो दिन भी बन गया और मन भी ।
जवाब देंहटाएंबच्चा पढ़ने में अच्छा हो, पेपर मन लगा के किया हो, तो नम्बर तो मिलेंगे ही :)
हटाएंबहुत आभार चारु जी। आप जैसे पाठक लिखने का हौसला बढ़ाते हैं।
जवाब देंहटाएंख्वाहिशों के ख़्वाबों को तुमने बखूबी सबके सामने रखा है
जवाब देंहटाएंबहुत आभार दीदी
हटाएंआभार दी
हटाएंवंदना दी ,आपकी समीक्षा ने सिद्ध कर दिया कि सब्र का फल मीठा होता है ..... आपकी समीक्षा की तो मैं बहुत पहले से ही कद्र करती थी ... और जब बात अपने ही लिखे हुए की हो तो उत्सुकता बढ़ जाती है न ... आपने सच्ची बहुत अच्छा और सच्चा लिखा .... मेरा लिखा किसी विधा का बन्धन नही मानता सिवाय अपने मन के और वही आपने भी कहा है .... आपने मन से पढ़ा भी और लिखा भी तो इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद आपका :)
जवाब देंहटाएंलिखती रहो......
हटाएंहौसला अफजाई के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-03-2016) को "दुखी तू भी दुखी मैं भी" (चर्चा अंक - 2286) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंसमीक्षा में भी स्नेह छलक रहा............
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया मुकेश
हटाएंबेहतरीन समीक्षा.....
जवाब देंहटाएंवाकई बड़े प्रेम से लिखी गयी कवितायें हैं...... बहुत ही सहज और प्यारी....
यूँ भी कविताओं के दोनों रचयिता और समीक्षक मुझे इतने प्यारे हैं कि इनका लिखा हर शब्द दिल को छूता है....
अनु
अनु तुम्हारी इतनी प्यारी बात ने निःशब्द कर दिया है ....
हटाएं🌹
आहा........ हमें तो लूट लिया इस टिप्पणी ने :)
हटाएंनिवेदिता-अमित जी कविता संग्रह "कुछ ख्वाब कुछ ख्वाहिशें" की सार्थक समीक्षा प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाये!
अरे वाह.... बहुत आभार कविता जी.
हटाएंआपकी समीक्षा उत्सुकता बढ़ा देती है किताब से ... वैसे तो दोनों संवेदनशील रचनाकार हैं और रचनाएं भी कमाल हैं ... हार्दिक शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आपकी नियमितता देख कर अच्छा लगता है दिगम्बर जी. आभार.
हटाएं