सोमवार, 21 सितंबर 2015

मंज़िल की जुस्तज़ू में मेरा कारवां तो है....


लिखना जब किसी अजनबी के बारे में हो, तो ज़्यादा आसान होता है, लेकिन लिखना अगर अपने/अपनी दोस्त पर हो तो इससे मुश्किल काम शायद ही कोई और हो. कारण- हम सारी बातें निष्पक्ष भाव से लिखेंगे, और पाठक समझेंगे कि दोस्ती निभा रहे सो जबरिया तारीफ़ें कर रहे.....  मने दोस्त की तारीफ़ करो तो मुश्किल, न करो तो मुश्किल!! नहीं करने पर भी गालियां पड़ेंगी- कि देखो, बड़ी दोस्त बनी फ़िरती थी, अब निकल गयी सब दोस्ती ... हमारे बारे में सब जानते हैं , कि जब भी हमने दोस्तों के लिखे हुए पर लिखा है- पंच परमेश्वर हमारे सिर पर हमेशा सवार हुए हैं  जहां मामला खिंचाई का बना, जम के खेंचा है और जहां तारीफ़ की बात बनी, वहां बिना ये ध्यान में लाये कि लेखक अपन का मित्र है, जम के तारीफ़  भी कर दी. इत्ता लिखने का सार ये, कि कोई भी हमारी पोस्ट पर पक्षपाती होने का आरोप न लगाये  

हमारी मुलाक़ात ब्लॉग के ज़रिये हुई. दोनों कहानी लिखने वाले सो विचार  जल्दी ही मेल खा गये. एक दूसरे की पोस्ट्स पर कमेंट करते हुए हम जीमेल के चैट बॉक्स में भी बतियाने लगे. फ़िर फोन नम्बर का आदान-प्रदान हुआ और हम  देर-देर तक दुनिया जहान की चिंताएं, लेखन की चिंताएं, सामाजिक चिंताएं सब फोन पर व्यक्त करने लगे. रश्मि कोई नयी कहानी लिखती, तो तुरन्त मेल करती- "यार देख के बताओ न, ठीक है या नहीं?" और हम गुरु गम्भीर टाइप एक्टिंग करते हुए उस कहानी को पास कर देते पूरे नम्बरों से  . 
ब्लॉगिंग के उन सुनहरे दिनों में हमने खूब लिखा. धड़ाधड़ लिखा. रश्मि की भी तमाम कहानियां छा गयीं. रश्मि ने तो बताया भी, कि सालों से बंद पड़ा लेखन अब ब्लॉग के बहाने फ़िर शुरु हो गया है.
रश्मि ने २००९  में अपनी कहानियों का ब्लॉग " मन का पाखी" और २०१० में एक और ब्लॉग " अपनी उनकी सबकी बात" बनाया और दोनों ब्लॉग्स पर नियमित लिखती रही. इधर उसका लेखन थोड़ा बाधित हुआ है, सो लम्बे समय से कोई कहानी "मन का पाखी" को नहीं मिल सकी. उम्मीद है रश्मि जल्दी ही कोई कहानी पोस्ट करेगी   रश्मि के कथा लेखन पर एक नज़र डालें तो ज़रा- सितम्बर २००९ को शुरु किये गये  अपने ब्लॉग " मन का पाखी" में रश्मि ने जिन कहानियों/ लघु उपन्यासों को पोस्ट किया उनका विवरण जान लीजिये- 
  २३ सितम्बर- २००९- कशमकश
  ८ जनवरी -२०१० लघु उपन्यास- और वो चला गया बिना मुड़े ६ भाग
  ११ फ़रवरी- होंठो से आंखों तक का सफ़र - कहानी
  ५ मार्च - से १३ मई आयम स्टिल विथ यू शचि लघु उपन्यास  भाग
   १७ जून से  ८ अगस्त तक - आंखों में छुपी झुर्रियों की दास्तान-  १४ भाग लघु उपन्यास
   ३१ अगस्त- आंखों का अनकहा सच- कहानी
   २१ सितम्बर - पराग तुम भी कहानी 
   २६ अक्टूबर- ३ नवम्बर चुभन टूटते सपनों के किरचों की ३ भाग
   २४ दिसम्बर-  बखिये से रिश्ते  २ भाग
   १० अप्रेल २०११-आखिर कब तक- कहानी
   १० अगस्त २०११- ३० अगस्त २०११ - हाथों की लकीरों सी उलझी जिन्दगी -चार भाग
   १७ जनवरी २०१२ - बंद दरवाज़ों का सच- दो भाग
     १६ अगस्त २०१३ -दुख सबके मश्तरक हैं पर हौसले जुदा कहानी
     ६ अक्टूबर २०१३ - खामोश इल्तिजा
   २२ जुलाई २०१३- अन्जानी राहें- कहानी 
     १८ मई २०१४ -   बदलता वक्त- कहानी


"अब जबकि रश्मि का उपन्यास " कांच के शामियाने" जल्दी ही प्रकाशित हो के हम सबके बीच होगा, तो ऐसे में उसके उपन्यास पर मैं न लिखूं , ऐसा कैसे हो सकता है न? तो भैया/बहनो , हम तो लिखेंगे ही, आप सबने इस उपन्यास की बुकिंग की या नहीं?? नहीं की तो फ़ेसबुक पर रश्मि के पेज़ पर लिंक दिया गया है, फ़टाक देना बुक कर ली जाये, ताकि जब हम इस उपन्यास के बारे में लिखें, तो आप सब भी अपनी-अपनी राय व्यक्त कर सकें :)" 
अभी के लिये इतना ही, मिलते हैं रश्मि के बारे में कुछ और जानकारियां ले के जल्दी ही :) 
    
   
          

24 टिप्‍पणियां:

  1. दुरूह कार्य है, अपनों पर कुछ भी लिखना। मन बैचेन तो रहता है सामने वाले के मन में कैसे कैसे विचार घुमड़ेंगें .

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  2. तुम ने इतने प्यार से लिखा है कि रश्मि के लेखन के साथ साथ तुम्हारे और रश्मि के रिश्ते की मिठास को भी समझा जा सकता है ,,,, बहुत अच्छा

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  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. बहुत शुक्रिया वंदना ...इतनी मेहनत और इतने प्यार से इतना सारा समय दिया, सारे लिंक ढूंढें :)
    ...शुक्रिया तो सचमुच बहुत छोटा सा शब्द है , इस स्नेह से अभिभूत हूँ .

    ब्लॉग पर कहानी डाले सचमुच बहुत दिन हो गए . आकशवाणी के लिए तो लिखती ही रहती हूँ . दूसरी कहानियाँ भी अखबार में भेजूं, पत्रिका मे या ब्लॉग पर पोस्ट करूँ .बस इसी उहापोह में कहानियाँ यूँ ही पड़ी रह जाती हैं. एकाध तो गुम भी हो गईं :( :(

    पहले वाले दिन हीअच्छे अछे थे, लिखा और ब्लॉग पर डाला .अब भी यही करुँगी, कहीं और भेजना मेरे वश की बात नहीं, लगती :(

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  5. पहले कमेन्ट में बहुत सारी टाइपिंग मिस्टेक हो गई थी, इसलिए डीलीट कर दिया .

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  6. आप दोनॊं का ये रिश्ता हमेशा बना रहे
    प्रणाम

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  7. ये दोस्ती सदा सदा के लिए बनी रहे और परवान चढ़ती रहे. बहुत अच्छा लगा रश्मि के बारे में पढ़कर. अगले अंक का इंतज़ार रहेगा.

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  8. .. ये आपसी प्यार भरा रिश्ता यूँ ही सदा बना रहे ..
    विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनायें

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  9. रश्मि जी और आप ... दोनों ब्लॉग जगत और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं ... नमन है ...

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