कसाब.गांधी॒@यरवदा.in.... जी हां. ये
किताब
का
नाम
है.
वो
भी
कहानी
संग्रह
का.
इधर
इस
तरह
के
शीर्षक
वाली
किताबों
का
चलन
बढा
है.
आज
हर
वक्त
अन्तर्जाल
से
जुड़े
मानव
जगत
को
शायद
ऐसे
शीर्षकों
की
जरूरत
भी
है. युवा
पीढी
भी
ऐसे
शीर्षक
पर
कुछ
पल
को
ठिठकती
है,
रुक
के
देखती
है.
ये
किताब
है
ख्यात
लेखक/कथाकार/शायर
पंकज
सुबीर
की.
तमाम
राष्ट्रीय/अन्तर्राष्ट्रीय
पुरस्कारों
से
सम्मानित,
देश-विदेश
से
प्रकाशित
हैं
पंकज
सुबीर
,सो इस लब्ध-प्रतिष्ठ लेखक का नये सिरे से परिचय देने की आवश्यकता मुझे महसूस नहीं
हो रही. पिछले दिनों शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में सीहोर जाना हुआ. उसके पहले न मैं पंकज से मिली थी, न कभी फोन पर बात हुई थी. सो वे किस मिजाज़ के होंगे, नहीं जानती थी. कार्यक्रम में गौतम राजरिशी आ रहे थे, और उनसे मिलने की अदम्य इच्छा थी मेरी. पंकज, जिनके स्वभाव के बारे में मैं बिल्कुल नहीं जानती थी, ऐसे मिले जैसे हम तो बरसों बरस मिलते रहे हैं. इतना मान,स्नेह तो सगे भाइयों से न मिले जितना पंकज ने कुछ घंटों में दिया. लगा ही नहीं कि मैं इस दौर के एक चर्चित लेखक से मिल रही हूं, जिसके खाते में न केवल भारतीय ज्ञान पीठ का नवलेखन पुरस्कार है बल्कि वागीश्वरी और कथा यू के जैसे प्रतिष्ठित सम्मान भी हैं. इनके अलावा शब्द साधक सम्मान, वनमाली कथा सम्मान, नवोन्मेष साहित्य सम्मान जैसे तमाम सम्मानों से वे नवाजे जा चुके हैं. अविस्मरणीय यात्रा बना दिया उसे पंकज के आत्मीय व्यवहार ने. और गौतम तो फ़िर गौतम हैं.... उनके बारे में फ़िर कभी. पहले
इस
कहानी
संग्रह
के
बारे
में.
संग्रह में कुल ग्यारह कहानियां संग्रहीत हैं. पहली कहानी है कसाब.गांधी॒@यरवदा.in. इस कहानी की अलग ही गढन है. कहानी में कसाब और गांधी,
जो कि दोनों ही समान कैदी हैं, किस तरह अपने-अपने काल विशेष की घटनाओं और उनके तमाम पहलुओं पर चर्चा करते हैं, पढना कौतुक से भर देता है. कहानी ने तमाम ऐसे सवाल उठाये
हैं, जो न केवल आतंकवाद और आतंकवादियों की दशा पर विमर्श हैं,
बल्कि गांधी जी के यरवदा जेल जाने और आज़ादी के समय हुई तमाम घटनाओं का
भी खुल के विवेचन करते हैं. ये संग्रह की सबसे सशक्त कहानी कही
जा सकती है.
“मुख्यमंत्री नाराज़ थे…” कहानी प्रशासन
और प्रशासनिक अधिकारियों के राज़ खोलती अच्छी
और सच्ची कहानी है. कहानी “लव जिहाद उर्फ़
उदास आंखों वाला लड़का..” हर उस व्यक्ति को पढनी चाहिये जो मानते
हैं कि प्रेम के नाम पर लड़्कियों को बरगलाया जा रहा है.
पेज़ नम्बर ५० से लेकर ८३ तक चलने वाली 34 पेज़ की कहानी- “चिरई-चुनमुन और
चीनू दीदी” इस संग्रह
की सबसे लम्बी कहानी है और बहुत शानदार विषय को लेकर गढी गयी है. इस कहानी में पंकज
जी ने जिस सहज हास्य और घटनाओं का सृजन किया है वो अद्भुत है. बाल्यावस्था से लेकर किशोरावस्था तक बच्चों में होने वाले परिवर्तन और घर वालों
द्वारा तमाम उन बातों पर दिया जाने वाला दंड, जो बच्चे ने सहजता
से पूछा है, सबको अपने बचपन की याद दिलायेगा. हिन्दुस्तान के अति मर्यादित परिवारों में ऐसा ही व्यवहार होता है बच्चों के
साथ और कई बार बच्चे अज्ञानता के चलते, न केवल ग़लत संगत में फ़ंसते
हैं, बल्कि ग़लत काम भी कर बैठते हैं. कहानी
पृष्ठ संख्या 50 से लेकर 63 तक बहुत रोचक
और कसी हुई है लेकिन इसके बाद लगा जैसे कहानी को जबरन आगे बढा दिया गया. चीनू दीदी के प्रवेश के बाद भी यदि घटनाओं को थोड़ा और संक्षिप्त कर पाते पंकज
जी, तो ये कहानी न केवल इस संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी होती,
वरन इस विषय पर लिखी गयी तमाम कहानियों में मैं इसे सर्वश्रेष्ठ कहती.
लेकिन जैसा कि हम सब जानते हैं, कि जब भी किसी
रचना की लम्बाई बढती है, तो उसकी कसावट में कमी आ जाती है,
वही इस कहानी के साथ हुआ.
“आषाढ का फ़िर वही एक दिन” एक ऐसी कहानी है जिसे मैने दो बार पढा. इतना सजीव माहौल
उकेरा गया है इस कहानी में, कि किसी भी पाठक को ये उसके अगल-बगल की कहानी लग सकती है. “ हर एक फ़्रेंड कमीना होता
है…” कॉलेज के लड़के लड़्कियों और उस वक्त में होने वाली आसक्ति
पर आधारित है. अच्छी कहानी है. “कितने घायल
हैं, कितने बिस्मिल हैं…” आज के दौर की
कहानी है. महानगरीय संस्कृति की कहानी है. लिव इन रिलेशनशिप मध्यमवर्गीय शहरों के लिये आज भी अजूबा ही हैं, सो मैने इसे आज के दौर की कहा, वरना इस तरह के सम्बंधों
को भी अब अरसा हुआ. इस कहानी ने मुझे बहुत प्रभावित नहीं किया.
लिव इन में रहने वाले लड़के-लड़कियों की सोच निश्चित
रूप से आम लड़के लड़कियों की सोच से अलग होती है. वे ज़्यादा आज़ाद
खयाल और बंधनमुक्त जीवन जीना चाहते हैं. कहानी का अंत भी कुछ
ज़्यादा ही सांकेतिक हो गया जिसे प्रबुद्ध पाठक कुछ समझेगा, कुछ नहीं..
इस संग्रह की एक औउर शानदार कहानी है “ नक्कारखाने में पुरुष
विमर्श”. बहुत सशक्त कहानी है. पंकज जी इस कहानी में एक सम्पूर्ण कहानीकार के रूप में
उभरे हैं. एक ऐसी कहानी, जिसमें पुरुष की मनोदशा बहुत सच्चे तरीक़े से व्यक्त की गयी.
पुरुष भी कितना विवश हो सकता है, इस कहानी को पढ के जाना जा सकता है. इस संग्रह की, मुझे ये सबसे अच्छी
कहानी लगी. इसके अलावा कहानी ’चुकारा” , “खिड़की”, और “सुनो
मांडव” हैं, जो रहस्य रोमांच से भरपूर हैं और भरपूर मनोरंजन करती हैं. कहानियां अपना
रहस्य तब तक बनाये रखने में सक्षम हैं, जब तक लेखक ने चाहा. कहानियों की सबसे खास बात
है, उनका शिल्प, कथ्य और भाषा शैली. सभी कहानियों की भाषा इतनी कसी हुई है कि पाठक,
शुरु की गयी कहानी को एक ही बैठक में पढ जाता है. लेखक द्वारा अपनी बात कहने और पात्रों
के मुंह से अपनी बात कहलवाने का हुनर हर कहानी में दिखाई देता है.
कुल मिला के संग्रह कसाब.गांधी@यरवदा.in एक ऐसा संग्रह है, जिसे कथा-प्रेमियों को पढना ही
चाहिये. पुस्तक का कवर पृष्ठ , शीर्षक की गरिमा के अनुसार है. प्रिंटिंग बहुत शानदार
है. किताब का मूल्य भी चकित करने वाला है जबकि १८४ पृष्ठों की यह पुस्तक हार्ड बाउंड में है. ज़िल्द
सहित इस पुस्तक की कीमत लुभाती है पाठक को. मेरा तो मानना है, कि तमाम प्रतिष्ठित सम्मानों
से नवाज़े गये पंकज सुबीर की ये पुस्तक भी भविष्य के किसी न किसी पुरस्कार की दावेदार
बनेगी. बधाई. शुभकामनाएं.
पुस्तक-
कसाब.गांधी@यरवदा.in
लेखक-
पंकज सुबीर
प्रकाशक-शिवना
प्रकाशन
पी.सी.लैब,सम्राट
कॉम्प्लैक्स बेसमेंट
बस स्टैण्ड,
सीहोर-466001 (म.प्र.)
मूल्य:
150.00 रुपये मात्र/
फोन-07562405545,
07562695918
E-mail-
shivna.prakashan@gmail.com
|
बहुत बढ़िया लिखा तुमने, किताब मील का पत्थर ही होगी
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रश्मि दी।
हटाएंतुम ने बिलकुल सही और खरी बात लिखी है किताब के बारे में भी और Pankaj के बारे में भी
जवाब देंहटाएंवाक़ई Pankaj ने पहली बार भी ये महसूस ही नहीं होने दिया कि हम उस से पहले कभी नहीं मिले और सिर्फ पंकज ही क्यों पूरा परिवार ही अपना बना लेने का हुनर जानता है
जहां तक बात किताब की है एक अरसे बाद इतनी ख़ूबसूरत , सार्थक और प्यारी कहानियाँ पढ़ने को मिलीं
अल्लाह करे ज़ोर ए क़लम और ज़ियादा
बहुत आभार इस्मत। मैं शुक्रगुज़ार हूँ तुम्हारी कि तुम्हारे कारण मुझे पंकज जैसी शख्सियत से मिलने का मौका मिला।
हटाएंBadhiya tippani. Kitaab padhne ki utsukta rahegi
जवाब देंहटाएंजरूर पढ़ें इंद्र जी।
हटाएंBahut achchhi ,rochak aur sateek samiksha...Pankaj aaj ke daur ke sarvshresth yuva lekhkakon men se ek hain...unki prtibha vilakshan hai aur apne samkaliinon se alag bhi karti hai...unki bahut si kahaniyan baar baar padhe jaane laayak hain...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार नीरज जी।
हटाएंबहुत आभार शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंफिर से एक बार एक अच्छी व रोचक समीक्षा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार रचना जी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा। मंगवाती हूँ।उनकर तारिफ में मेरे पास शब्द नहीं। वैसे भी इस नालायक बहिन को भूल ही गए है। मनाती हूँ।
जवाब देंहटाएंन...भूले तो नहीं होंगे पंकज ..सच्ची दीदी :)
हटाएंरोचक समीक्षा ............
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निवेदिता..
हटाएंबहुत सार्थक, सुन्दर समीक्षा ... पंकज सुबीर जी के बारे में क्या कहूं ... सादगी और सरह ह्रदय वाले पंकज जी को कहानियों और रचनाओं में आधुनिक समाज और आज के समय की झलक स्पष्ट दिखाई देती है ... उनकी गजब लेखन शैली हमेशा प्रभावित करती है ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं दिगम्बर जी... समीक्षा आपको पसंद आई, आभार आपका.
हटाएं
जवाब देंहटाएंIf you are looking Best Packers and Movers so Just Visit At:
Packers and Movers in Pune
Packers and Movers in Mumbai
Packers and Movers in Gurgaon
जवाब देंहटाएंJust Visit for Best info:
Packers and Movers in Bangalore
Packers and Movers in Hyderabad
Packers and Movers in Mumbai
सुन्दर समीक्षा ... पंकज सुबीर जी के बारे में क्या कहूं
जवाब देंहटाएंआभार संजय
हटाएंवंदना जी रोचक और सुंदर समीक्षा पंकज सुबीर जी के कथा संग्रह की.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार रचना जी.
हटाएं