इन दिनों अखबारों की मुख्य खबरें कोई भी बता सकता है.... कोई मुझसे पूछता है कि क्या है आज खास खबर? तो मैं आंख मूंद के बोल देती हूं- "मोदी केआरोप, राहुल गांधी के प्रत्यारोप, और कुछ बलात्कार... बस्स.
बहुत दिन हुए, इन खबरों के अलावा कुछ और रहता ही नहीं. मोदी और राहुल की खबरें तो केवल चुनावों तक ही हैं, लेकिन बलात्कार की खबरों ने जैसे स्थायी कॉलम बना लिया है अपना. तक़लीफ़ तब ज़्यादा होती है, जब इन खबरों को अंजाम देने वाला कोई समाज का ठेकेदार होता है. जो दम भरता है समाज को सही दिशा में ले जाने का....
पिछले कुछ दिनों में पहले तथाकथित बाबा, फिर बाबा का पूरा खानदान, फिर जज साहब, और अब लोगों का भांडा फोड़ने वाले तेजपाल.....पहला
लोगों को भक्ति के ज़रिये भगवान तक उंगली पकड़ के ले जाने वाला, दूसरा न्याय करने वाला, तीसरा न्याय दिलाने वाला... ये तीनों ही बलात्कारी निकल गये.... अब क्या हो? है कोई भरोसा करने लायक़?
हालात ये हैं, कि लोग अब अपने रिश्तेदारों तक पर भरोसा करने से डरने लगे हैं. क्या जाने कब किस की नीयत बदल जाये... वैसे भी इस समय
हवा कामुक हो रही.
कहां तो औरतों को आगे बढाने, अधिकार दिलाने की बातें हो रही थीं, कहां अब फिर उन्हें बताया जा रहा कि वे कभी भी बलात्कार की शिकार हो सकती हैं! आज फिर बेटियों को कहा जा रहा है कि वे अंधेरा होने से पहले घर लौट आयें... किसी के साथ अकेली न जायें.... औरत के आत्मविश्वास
को तोड़ने के लिये इस तरह की सलाहें ही काफ़ी हैं.....कैसे कहे कोई मां, अपनी बेटी से कि बेटा, तुम्हें डरने की जरूरत नहीं है.............
उधर बाबा के बेटे को पुलिस आज तक न पकड़ पाई... पता नहीं कहां तलाश रही..और क्यों उसकी लोकेशन उसके निकल जाने के बाद पता चलती है? अरबपति बाबा का बेटा शायद करोड़ों की खुश्बू से खोजी दस्ते
को बेहोश कर देता होगा..... पता चला है कि बेटा अब हैलीकॉप्टर से उड़ रहा और खोजी दस्ते शायद - "वो देख, चीलगाड़ी...." की तर्ज़ पे चीलगाड़ी देख-देख के खुश हो रहे. कोई आश्चर्य नहीं, अगर कुछ दिनों बाद शायद उसके हैलीकॉप्टर के क्रैश हो जाने की खबर आये, और कुछ सालों बाद वो फिर से किसी और नाम से कीर्तन करता दिखाई दे तो.... बचाने के बहुत तरीके हैं भाई... बस अगले को आप जो इत्र लगायें, वो करोड़ों का होना चाहिये...
उधर सबका न्याय करने वाले जज साहब को कौन दोषी ठहराये? सो मामला अधर में....
लोगों की पोल खोलने वाले तेजपाल की जब पोल खुली, तो महाशय जी प्रायश्चित करने निकल लिये.....उन्हें प्रायश्चित करने भी दिया जा रहा फिलहाल तो....
हद्द है
समाज में व्याप्त वर्जनाओं से प्रारम्भ हुआ यह विद्रोह एक विकृति का रूप लेकर समस्त समाज में व्याप्त हो गया है. यही नहीं, हमारे समाज का एक वर्ग विशेष इन बातों, इस तरह की घटनाओं को विशेष महत्व नहीं देता, उनके लिये (चाहे स्त्री हों या पुरुष) यह एक सामान्य व्यवहार है.
जवाब देंहटाएंलेकिन विकृत समाज का यह विकृत रूप हमारी ही किसी भूल का परिणाम है!
हां, सचमुच...
हटाएंअवकाश के बाद का राउंड अप !
जवाब देंहटाएंअवकाश अभी चालू आहे भाईजी :) ( फेसबुक वाला अवकाश ) :)
हटाएंआभार शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंअफ़सोस तो यही है की सब सोचते हैं की चलो अब तो हद आ गई होगी ... पर हर बार नया कुछ हो जाता है .... समाज का विक्रत रूप हमारे नैतिक पतन की वजह से हो रहा है ... पता नहीं कब समझ आएगा ये समाज को जो हर बात में राजनीति की तरफ मुंह उठा के देखता है समाधान के लिए ...
जवाब देंहटाएंसही कह रहे हैं दिगम्बर जी... :(
हटाएंसमाज कि फैक्ट्री का उत्पादन ही जिम्मेदार है ऐसी सोचनीय स्थिति के लिए,औरी अब तो बाड़ भी खेत को खाने लगी . का कहिये .
जवाब देंहटाएंहां आशीष, लगता हो तो यही रहा है...
जवाब देंहटाएंसच कह रही हैं दी ,आजकल पेपर पढ़ना तो विकृत मानसिकता का और भी विकृत होते देखना है ... सादर !
जवाब देंहटाएंहां निवेदिता है.... बहुत तक़लीफ़देह है ये...
हटाएंहमने तो समाचार देखने ही बंद कर दिए हैं .. हद्द ही है .
जवाब देंहटाएं:( :( :(
हटाएंअब तो बस यही उपाय रह गया है...कोई भी लड़की अकेले में अगर किसी भी उम्र के पुरुष के साथ हो तो उसे बस एक पुरुष की नज़र से देखे...पिता तुल्य, भाई तुल्य, गुरु तुल्य नहीं . अपने नाखून और दांत पैने कर के रखे ...किसी पर विश्वास नहीं रह गया अब :(
जवाब देंहटाएंsahee hai Rashmi....
हटाएंसच कह रही हैं आप ..सटीक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंaabhaar....
हटाएंआज फिर बेटियों को कहा जा रहा है कि वे अंधेरा होने से पहले घर लौट आयें... किसी के साथ अकेली न जायें.... औरत के आत्मविश्वास ...........
जवाब देंहटाएंइसी आत्म्विश्वास को तोड़ने का तो षडयंत्र रच रही है कुछ लोगों की विकृत मानसिकता
रिश्तों के मान-सम्मान का,संस्कारों का,,आदर सत्कार का जो ख़ज़ाना हमारा और हमारे देश का हिस्सा था हम अपने हाथों उस का दाह-संस्कार करने पर तुले हुए हैं
haan sachamuch ismat... :(
हटाएंइसी बस्ती में, मानव रूप , कुछ शैतान रहते हैं !
जवाब देंहटाएंबड़े सजधज सुशोभित रूप में मक्कार दुनियां में !
हमेशा गिरने वाले घर के , अन्दर ही फिसलते हैं !
तुम्हारे हर कदम पर,ध्यान की दरकार,दुनियां में !
बहुत सही...
हटाएंTRUTH EXPRESSSION OF TRUE
जवाब देंहटाएंआभार..
हटाएंहाँ ,हद तो हो ही गयी है ,इस तरह के मामले पहले भी होते रहे होंगे ..संख्या भले ही बहुत कम हो ,अब लोगों कि सोच भी बदल रही है ..जाने माने लोगों कि सच्चाई .सबके सामने लाने कि हिम्मत .रखने लगे है ..संचार के इतने साधन है ..बात तुरंत फ़ैल जाती है ....
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