" चमक रही है परों में उड़ान की खुश्बू,
बुला रही है बहुत आसमान की खुश्बू."
दंग रह गयी!!!!!!!
" नेह की नज़रों से मुझको
ऐसे देखा आपने,
मन पखेरू उड़ चला फिर,
आसमाँ को नापने."
फिर उड़ान!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
" जो पास होते हैं, वही जब दूर जाते हैं,
तन्हाई में
हमें अक्सर वही तो याद आते हैं."
हां, सही तो है.
पिछले दिनों रंजू की किताब " कुछ मेरी कलम से" पढी, तो लगा, एकदम यही तो मैं कहना चाह रही थी! अब सुनीता की किताब " मन पखेरू उड़ चला फिर" हाथ में है, तो लग रहा है, सुनीता को कैसे मालूम मेरे दिल की बात????
ये कविताई भी न, जो न करवाए . भावों के सागर में सुनीता ऐसे गोते लगाती हैं कि पता ही नहीं चलता कब भावान्तर हो गया!!! कभी खूब खुश नज़र आती हैं तो कभी लगता है उफ़्फ़्फ़!!!! इतना दर्द???
पुस्तक में अपनी बात कहते हुए सुनीता लिखती हैं-
ख्वाब कब याद रहते हैं! मगर कुछ ख्वाब जागती आंखों से देखे जाते हैं. जिन्हें मैं हर रोज़ देखती थी और जानबूझ कर क्रमश: लगा देती थी कि कल फिर से बुनूंगी यही ख्वाब "
पढ के लगा, सम्वेदनाएं कितनी एक जैसी होती हैं, और इच्छाएं भी
"पंछी तुम कैसे गाते हो" कविता में सुनीता पूछती हैं-
"पंछी तुम कैसे गाते हो?अपने सारे संघर्षों में तुमकैसे गीत सुनाते हो"
कौन जाने सुनीता!! वे हमेशा गाते भी हैं, या उनका रुदन भी हमें गीत लगता है??
सुनीता की अधिकांश कवितायें प्रेमाकुल, प्रेम विह्वल या फिर परिपूर्ण प्रेम की हैं. कुछ कविताओं में उन्होंने संदेश भी दिये हैं. मसलन जनगीत में उन्होंने कई इतिहास पुरुषों/स्त्रियों को याद किया है. वर्तमान सामाजिक विसंगतियों पर चिन्ता भी ज़ाहिर की है. देखें-
"इक नारी फिर से छली गयीपत्थर बनने को मजबूर हुई.एक पुरुष के साहस सेआकुलता मन की दूर हुई."
तमाम युगस्त्रियों का यशोगान इस कविता में है. जिसमें तारामती, अहिल्या, कुंती, सीता, द्रौपदी, आदि का ज़िक्र करते हुए आज की औरत के लिये वे कहती हैं-
" जिस देश में नारी की इज़्ज़त"मां" कह के संवारी जाती है.उस देश में पैदा होने केपहले वो मारी जाती है."
बेटी का दर्द एक और कविता में देखें-
" कहा था एक दिन तुमनेपराई अमानत हैये बच्चीतभी से आजतक माँमैं अपना घर ढूंढती हूं."
इस पुस्तक की भूमिका लिखते हुए आनंद कृष्ण लिखते हैं-
"सुनीता का रचना संसार बहुत व्यापक है. उनकी कविताएं उनके जैसी ही मुखर हैं और अपने पाठकों व श्रोताओं से सक्रिय व सीधा सम्वाद करती हैं. कविताओं की यह बहिर्मुखी प्रवृत्ति एक ओर उन्हें एकान्तिक अवसाद से बचाती है और दूसरी ओर अपनी कहन को बिना किसी लाग-लपेट के अपने पाठकों को सीधा संप्रेषित कर देती है."
मन आनन्द कृष्ण की बात से सहमत हो जाने का है मेरा तो .....
तमाम कविताएं पढ के एक बात जो खुल के सामने आ रही थी वो था कविताओं का सीधापन. कोई बनावट नहीं. नई कविता जैसी उलझन नहीं. जो बात मन में आई, सो कह दी सीधे-सीधे.
कई कविताओं में विषय की पुनरावृत्ति हुई है, भाव भी लगभग वही थे, सो असमंजस हुआ कि यही कविता दोबारा पढ रही हूं क्या?
" एक अजनबी अपना सा क्यूं लगने लगा,क्यूं कोई दिल में आज मेरे धड़कने लगा"" ये कौन है जो चुपके से मुस्कुराया है,तेरा चेहरा है या चांद निकल आया है"
जैसे गीत लिखते समय कवियित्री के मनोभाव निश्चित रूप से एक जैसे रहे होंगे
सुनीता की भाषा में अनेक स्थान पर पारम्परिक कविता की भाषा के दर्शन होते हैं, जो आज के कवियों की भाषा से नदारद हैं.
कविताओं की भाषा अत्यंत सरल और सहज है. नई कविता को पढने के बाद सुनीता की कविताएं सुकून सा देती हैं.
सुनीता बहुत अच्छी कवियित्री हैं. उनका अपना एक मकाम है काव्य-जगत में. निश्चित रूप से उन्हें जीवन के अन्य रंगों और अन्यान्य भावों पर भी सृजन करना होगा, तभी उनका रचना संसार व्यापक और बहिर्मुखी हो सकेगाकविताओं की भाषा अत्यंत सरल और सहज है. नई कविता को पढने के बाद सुनीता की कविताएं सुकून सा देती हैं.
सुनीता की इस पुस्तक में कुल 127 कविताएं संगृहीत हैं. 150 पृष्ठ की इस पुस्तक का मूल्य 195 रुपये मात्र है. ये पुस्तक मैने खरीदनी चाही, लेकिन सुनीता ने साग्रह भेंट कर दी. अब उनकी अगली पुस्तक निश्चित रूप से खरीद के पढूंगी
हिंद-युग्म से प्रकाशित इस पुस्तक का कवर पेज़ विजेन्द्र एस बिज़ ने तैयार किया है. पुस्तक के भीतर चंद कविताओं पर भी उन्होंने रेखाचित्र उकेरे हैं, जो सुन्दर है. पुस्तक की प्रिंटिंग साफ़-सुथरी है. शैलेश भारतवासी निश्चित रूप से बहुत जल्द प्रकाशकों की भीड़ में अपना मकाम सुनिश्चित कर लेंगे.
शानदार कविताओं से सजी इस पुस्तक के प्रकाशन पर सुनीता जी को अनेकानेक शुभकामनाएं...वे लगातार लिखें, लिखें, खूब यश कमाएं. आभार
पुस्तक: "मन पखेरू उड़ चला फिर"
लेखिका: सुनीता शानू
प्रकाशक: हिंद-युग्म१, जियासराय, हौजखास, नई दिल्ली-110016
मूल्य: 195 रुपये मात्र
आभार आपका :)
जवाब देंहटाएंजी अपन भी आप से सहमत हो लेते है , लेकिन पढने के बाद ढंग से सहमत होंगे. वैसे समीक्षा में उद्घृत पंक्तियाँ , प्रेम सिक्त और सहज अभिव्यक्ति प्रतीत हो रही है . बकिया तो हम इत्ता समझ गए की इस किताब को पढना पड़ेगा . है न?
जवाब देंहटाएंबिल्कुल है भाई जी :)
हटाएंबहुत सुंदर शब्दों का संयोजनऔर सुंदर रचना बधाई सुनीता जी और आपका आभार
जवाब देंहटाएंआभार आपका सुनील जी.
हटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद कैलाश जी.
हटाएंक्या बात है ..एकदम सिद्धहस्त तरीके से समीक्षा की है और वो भी इतनी रोचकता के साथ.
जवाब देंहटाएंपूरा न्याय किया है सुनीता जी की लेखनी के साथ.अब मौका मिलते ही जुगाड़नी होगी किताब :)
शुक्रिया जी :) तारीफ़ कुछ ज़्यादा हो गयी :)
हटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा वंदना जी.....
जवाब देंहटाएंपढने को मन ललक गया...
ढेरों शुभकामनाएं सुनीता जी और शैलेश जी को.
अनु
शुक्रिया अनु जी.
हटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा, शुभकामनाएं सुनीता जी और शैलेश जी को.
जवाब देंहटाएंआभार रमाकान्त जी.
हटाएंअच्छी समीक्षा ..
जवाब देंहटाएंसुनीता जी को बहुत बधाई !
धन्यवाद वाणी जी.
हटाएंउड़ना जब निश्चय कर लिया है तो प्रश्न परों का नहीं, आकाश निर्माण करने का है। आकाश बनने लगेंगे, उड़ान फैलती रहे।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर समीक्षा
जवाब देंहटाएंतुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया , इतने ख़ूबसूरत संकलन से परिचित करवाने का
सुनीता जी को बधाई
बहुत सा धन्यवाद रश्मि :)
हटाएंbahut accha likha aapne vandana .padhi hai maine bhi abhi ..accha sangrh hai ..aapke lafzon ne bahut badhiya likha hai :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रंजू :)
हटाएंबहुत शुक्रिया शिवम.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
रंगों के पर्व होली की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ!
आभार शास्त्री जी.
हटाएंइतनी बढ़िया समीक्षक भी है आप ?बधाई ।सुनीता जी को भी बधाई ।
जवाब देंहटाएंबढिया कहां शोभना जी. बस कर लेती हूं कभी-कभार.
हटाएंवन्दना जी! कविता, रचनाकार और समीक्षक के अलग अलग रोल को आपने बड़ी खूबसूरती से इस पोस्ट में पिरोया है.. ऐसा लगता है कि आपने पुस्तक खोल रखी है और पढ़ती जा रही हैं, साथ ही अपनी बात कहती जा रही है.. एक स्वतः प्रवाहित समीक्षा!!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सलिल जी. लिखते समय सचमुच मेरे सामने किताब खुली थी सलिल जी :)
हटाएं" कहा था एक दिन तुमने
जवाब देंहटाएंपराई अमानत है
ये बच्ची
तभी से आजतक माँ
मैं अपना घर ढूंढती हूं."
इतने सुंदर काव्य की ऐसी बेहतरीन समीक्षा किसी भी पुस्तक के पढ़े जाने के लिये पर्याप्त है
सुनीता जी को और तुम को बहुत बहुत बधाई
जिस अंदाज़ में आपने यह समीक्षा की वह भी उतना ही सुकून देने वाली है. उत्सुकता हो रही है पुस्तक पढ़ने की.
जवाब देंहटाएंACHCHHI PUSTAK KI SACHCHI SAMIKSHA.
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