रंजू की किताब मुझे लगभग बीस दिन पहले मिल गयी थी.....
सपरिवार पाठ भी हो गया. लेकिन "कुछ मेरी कलम से’ के बारे में लिखने आज बैठी हूं. उम्मीद है रंजू माफ़ कर देगी ...बल्कि कर ही दिया होगा
अपने किसी की किताब मिलने पर मैं उसे बहुत देर तक हाथ में लेकर बैठी रह जाती हूं... बहुत अपना सा अहसास होता है. रंजू की किताब के साथ भी ऐसा ही हुआ कितनी देर तक तो बस कवर ही देखती रही.
जब भी कवितायें पढती हूं तो चमत्कृत होती हूं. समझ में ही नहीं आता कि कवि/कवियित्री कैसे इतने गहरे भाव चंद शब्दों में भर देते हैं?
रंजू की कवितायें भी चमत्कृत करती हैं. कई कविताएं तो बार-बार पढने का मन करता है, पढी भी हैं. कुल इक्यासी (81) कविताओं से सजी इस पुस्तक की पहली कविता है- कहा-सुना. चार मुक्तक हैं. अद्भुत हैं. आप भी देखें-
कहा मैने
वर्षा की पहली बूंदें
सिहरन भर देती हैं
रोम-रोम में
सुना उसने
इस टपकती छत को
तेज़ बारिश से पहले ही
जोड़ना होगा.
कैसा गम्भीर जीवन-दर्शन!! एक ही मुक्तक कितनी खूबसूरती से दो अलग-अलग भावों को व्यक्त कर रहा है...
आगे बढती हूं. "सजे हुए रिश्ते" पर निगाह अटक जाती है.
अजीब है यह मन
गुलदस्ते में सजे
इन नकली फूलों को यूँ
रोज़ दुलारता है
और उस पर जमी धूल को
इस गहराई से पोंछता है
कि शायद कभी यूं
छूने भर से जी उठे
ठीक वैसे ही जैसे
मेरे तुम्हारे बीच के मुरझाए हुए
लेकिन सजे हुए रिश्ते.
चांद कवियों का हमेशा से दुलारा रहा है. चांद का शायद सबसे ज़्यादा इस्तेमाल कवियों ने ही किया है. कभी-कभी तो लगता है कि कहीं चांद अपना अन्धाधुंध इस्तेमाल देख कर गुस्साया धरती पर ही न उतर आये कवियों से रॉयल्टी वसूलने
रंजू ने भी चांद के कई रूप उकेरे हैं. चांद कुछ कहता है, तन्हा चांद, भीगा चांद, अमावस का चांद, पूर्णिमा का चांद, गोल चांद, यहां तक कि आवारा चांद भी
चांद की बतकही देखिये तो-
कहा था उसने
चांदनी रात के साये में
तनिक रुको
अभी मुड़् कर आता हूं मैं
तब से
भोर के तारे को
मैने उसके इन्तज़ार में
रोक कर रखा है.
कमाल है न? पता नहीं कैसे तमाम बातों को इतना खूबसूरत रूप दे देते हैं कवि??
रंजू की कविताओं में जीवन के तमाम रंग बिखरे पड़े हैं. कहीं उदासी है तो पलक झपकते ही खुशियों से सराबोर कर देंगी. कहीं विरह है तो कहीं मिलन का खूबसूरत गीत.. कहीं जीवन दर्शन तो कहीं भोले शिशु सी जिज्ञासा. कहीं आशा है तो कहीं घोर निराशा भी.
देखिये-
आसान है देह से
देह की भाषा समझना
पर कभी नहीं छुआ
तुमने मेरी
आत्मा के उस अन्तर्मन को
क्योंकि तुम्हारी पाषाण देह में
वह अन्तर्मन
कहीं मौजूद था ही नहीं.
कविता लिखने की प्रक्रिया को रंजू कुछ इस तरह व्यक्त करती हैं-
कविता में उतरे
ये अहसास
ज़िन्दगी की टूटी हुई कांच की किरचें हैं
जिन्हें महसूस करके
मैं लफ़्ज़ों में ढाल देती हूं.
कविता के ज़रिये अपने भावों को इतनी खूबसूरती से व्यक्त करना आसान नहीं होता निश्चित रूप से ये ईश्वर प्रदत्त वो गुण है जो सबके पास नहीं होता और ये गुण रंजू की शख्सियत में रचा-बसा है. कविताओं को पढते हुए तमाम सम्वेदनाओं से पाठक गुज़रता है जिनके गलियारे कवियत्री की थाती हैं. हम जो कहना चाह रहे हैं, वो ठीक उसी रूप में पाठक ग्रहण करे ये कवि/कवियित्री की सम्प्रेषण क्षमता का द्योतक है और " कुछ मेरी कलम से" इस परीक्षा में खरा उतरा है.
हिन्द-युग्म द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक की छपाई और कवर पृष्ठ शानदार है.कवर पेज़ की पृष्ठभूमि में रंजू की तस्वीर छाया रूप में अपनी सम्पूर्ण उपस्थिति का अहसास करा रही है, ऐसे में यदि हिन्दयुग्म समापदक चाहते तो उसी तस्वीर का थम्बनेल न लगाते तो कवर पृष्ठ और भी खूबसूरत लगता. ऐसा मुझे लगता है, प्रकाशक और लेखिका मेरी राय से सहमत हों, ज़रूरी नहीं. प्रकाशक बधाई के पात्र हैं. पुस्तक की कीमत 150 रुपये है और यह अन्तर्जाल पर क्रय हेतु उपलब्ध है.
पुस्तक- कुछ मेरी कलम से
लेखिका- रंजू भाटिया
प्रकाशक- हिन्द-युग्म
जिया सराय, हौज खास, नई दिल्ली-16
कीमत- 150 रुपये मात्र
बहुत अच्छी समीक्षा की आपने वंदना जी ......
जवाब देंहटाएंरंजू जी अच्छा लिखती हैं इसमें कोई दो राय नहीं ......
ये पुस्तक कब आई ...?
क्या इसी वर्ष ...?
JI HEER JI ..ABHI BOOK FEYAR MEIN ..AAP ISKO JARUR PADHE HARDIK ICCHA HAI YAH MERI :)
हटाएंआसान है देह से
जवाब देंहटाएंदेह की भाषा समझना
पर कभी नहीं छुआ
तुमने मेरी
आत्मा के उस अन्तर्मन को
क्योंकि तुम्हारी पाषाण देह में
वह अन्तर्मन
कहीं मौजूद था ही नहीं.
शानदार समीक्षा करती कोई संदेह नहीं
श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार शास्त्री जी.
हटाएंबढ़िया समीक्षा की है वंदना !!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी :)
हटाएंसार्थक समीक्षा | आभार |
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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रंजू जी एक कुशल कवयित्री हैं भावों शिल्प और शब्द पर उनकी पकड़ है -आपकी समीक्षा उनके इस गुण को बेहतर प्रस्तुति देती है !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन समीक्षा , रंजू जी की रचनाएँ गहरी अभिव्यक्ति लिए होती हैं.....
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन गर्मी आ गई... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार है जी :)
हटाएंकुछ मेरी कलम से .... के लिये आपकी यह समीक्षा बहुत ही अच्छी लगी ..
जवाब देंहटाएंरंजना जी को एक बार फिर से बहुत-बहुत बधाई
आपका आभार
सादर
जब लिखते हैं दोस्त अपने "दिल की कलम से "कुछ मेरी कलम की बात" तो दिल प्यार से अभिभूत हो जाता है ...अभी अभी वंदना ने फ़ोन पर बताया ..पढ़ते हुए दिल ख़ुशी से गदगद है .और आँखे नम ...शुक्रिया लेने की आदत नहीं है वंदना की ..इस लिए उसके लिए ढेर सारा प्यार दिल से ..और उसकी मिठाई की फरमाइश याद रहेगी मुझे ..वंदना ...लव यु :)
जवाब देंहटाएंएकदम याद रखना मिठाई की फ़रमाइश रंजू :) और हां मुझे भी बस दोस्तों के लिये ही लिखना बहुत अच्छा लगता है, बदले में इतना स्नेह जो मिलता है, स्वार्थी हूं जी :) लव यू टू रंजू.
हटाएंजानदार ईमानदार समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंek behtareen book ko aur behtareen bana diya....:)
जवाब देंहटाएंरंजू जी की इस नई कृति मैंने भी पढ़ ली है. बहुत सुन्दर भाव और शिल्प सहेजे है . आभार इस समीक्षा के लिए .
जवाब देंहटाएंरंजू जी को जब भी पढ़ा रूक ही गई हमेशा पढ़ते-पढ़ते ...मुझे तो कुछ कहना भी नहीं आया उन्हें पढ़कर ...बस पढ़ो और आँख मूँद कर सोचो ....
जवाब देंहटाएंआपने भी जितना बताया अच्छा लगा ...(अच्छे से बताया न इसलिए ...)
रंजू तो बस रंजू है :) तारीफ़ लाज़िमी है. धन्यवाद आपका मेरी तारीफ़ के लिये :)
हटाएंबहुत बढ़िया समीक्षा भले थोडा समय लगा हो परन्तु समीक्षा दिल से की है. चंद उद्धरण पुस्तक की कविताओं की गहराई कह जाते हैं. बहुत उत्सुकता हो रही है पुस्तक पढ़ने की. बधाई रंजू जी इस पुस्तक की सफलता के लिये और वंदना जी को इस पुस्तक से रूबरू कराने के लिये.
जवाब देंहटाएंशब्दों की फुहार भरी छिटकन..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा लिखी है आपने...वैसे रंजू जी की लेखनी है भी कमाल की
जवाब देंहटाएंरंजूजी निःसंदेह बेहतरीन कवयित्री हैं !
जवाब देंहटाएंविस्तृत समीक्षा !
रंजू जी की कवितायें गहरे तक असर करती हैं .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा
एक तो रंजू की कविताएं उस पर से तुम्हारी समीक्षा अनायास वाह वाह निकल जाती है और पुस्तक पढ़ने की इच्छा बलवती हो उठती है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविताओं की बेहतरीन समीक्षा
बधाई हो तुम दोनों को
चलिए आज आपकी नजर से देखना भी अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
जैसी रचनाएं पढते हैं रंजू जी की वैसे ही लाजवाब समीक्षा है आपकी ...
जवाब देंहटाएंकिताब पढ़ने की जिज्ञासा बडती ही जा रही है अब ,,,
samsamayik sahityik sameekhsha kee hai vandana mam apne is kriti ki... bahut achchhi lagi badhayi..... ek kaaljayi sameeksha karne ke liye... rachnakaar ko bhi meri taraf se badhayi
जवाब देंहटाएंआभार अनिल जी.
हटाएंबहुत अच्छी समीक्षा लिखी है आपने
जवाब देंहटाएंचंद उद्धरण पुस्तक की कविताओं की गहराई कह जाते हैं. बहुत उत्सुकता हो रही है पुस्तक पढ़ने की.
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