बुधवार, 2 मार्च 2011

एक दाढ़ का व्रत......


आज शिवरात्रि है. यानि सपरिवार व्रत का दिन. एकमात्र व्रत जिसे हम सब रखते हैं. बाकी के व्रतों का ज़िम्मा तो अम्मां के ऊपर है. सुबह उठते ही अम्मां के आदेश प्रसारित होने लगे- ’ वंदना, चाय पी लेना, उसमें नहा के पीने का कोई चक्कर नहीं है, पानी है वो तो" एकदम मेरे मन की बात. सहमति में गर्दन हिला दी ( चाय बन तो पहले ही गई थी )
छुट्टी का दिन था, सो मेरा धोबी घाट लाइट आते ही खुल गया. अम्मां
नाराज़. "बन्द करो ये कपड़ा धुलाई. जाओ पहले नहा लो और कुछ फल खा के दूध पी लो" कितनी अच्छी लगती है
ऐसी डांट!
अम्मां की डांट मुझे हमेशा मम्मी की याद दिलाती है. बचपन के जबरिया किये जाने वाले व्रत याद आने लगते हैं.
हमारे घर में व्रत और पूजा का पर्याप्त माहौल था. हफ़्ते में तीन दिन तो मम्मी का व्रत ही रहता था, उसके अलावा साल भर आने वाले तमाम व्रत अलग से. कई बार मम्मी के लगातार व्रत पड़ जाते ( एक के साथ एक फ़्री टाइप, बक़लम फ़ुरसतिया जी). मम्मी के अलावा मेरी बड़ी दीदी का भी पूजा-पाठ और व्रत में बड़ा मन लगता था. वे नवरात्रि में दुर्गा-सप्तशती का नियमित पाठ और व्रत करती थीं. जिस दिन उनका व्रत होता, तो क्या मजाल हम बहनें उनसे कुछ काम करवा लें( अपने छोटे होने क हवाला दे के हमने खूब लाभ उठाया है उनका ).
इधर हमने उनसे कुछ कहा, और उधर से मम्मी की
आवाज़ आई- "अरे, उससे कुछ मत कहो, व्रत है बेचारी का." और बेचारी बड़े ठाठ से हम लोगों की तरफ़ तिरछी
मुस्कान फेंकतीं, कि लो,
करवा लो अब. पूरे दिन मम्मी उन्हें कुछ न कुछ खाने की हिदायत देती रहती. हम मन मसोस के रह जाते. उनके लिए फलाहार बनता, या बाज़ार से सामान आता, तो ऐसा नहीं था कि हम लोगों को नहीं मिलता, लेकिन उस पर अधिकार तो उन्हीं का होता था न?
उनके व्रतीय ठाठ देख देख के मेरी व्रत करने की इच्छा ज़ोर मारने लगी. छोटी दीदी की व्रतों में शुरु से ही कोई दिलचस्पी नहीं थी. तो अब मैं किसी ऐसे व्रत का इन्तज़ार करने लगी, जिसे करने की ज़िद की जा सके. जल्दी ही मौका मिल गया जन्माष्टमी के रूप में.
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मैने ज़िद पकड़ ली व्रत करने की. पहले तो मम्मी ने खूब समझाया कि छोटे बच्चे व्रत नहीं करते, लेकिन बाद में मान गईं और बोलीं कि "ठीक है, तुम एक दाढ़ से व्रत रख लो" मैं चक्कर में पड़ गई. ये एक दाढ़ से व्रत कैसे किया जाता है? क्या दाढ निकलवानी होगी? तब तो बड़ा कठिन व्रत है, शायद इसीलिये मम्मी मना कर रही थीं. लेकिन लगा कि बात साफ़ कर लेनी चाहिये, कि दाढ का मामला क्या है?
जब मम्मी से पूछा तो बोलीं
कि एक दाढ से मतलब तुम एक तरफ़ से कुछ भी खा सकती हो, दूसरी तरफ़ से मत खाना. बच्चे ऐसे ही व्रत करते हैं. हम खुश. खाने को भी सब मिलेगा और व्रती भी कहलायेंगे.
शान से नहाया-धोया, पूजा की और खाने बैठे. पूड़ी पर पूड़ी तोड़ते गये एक दाढ़ से.
थोड़ी देर बाद जब फलाहार का समय हुआ, तो ऐसे फलाहार करने बैठे, जैसे अभी तक कुछ खाया ही न हो.
उसके बाद तो कितने ही व्रत किये सबके साथ, एक दाढ़ से. बहुत बाद में "एक दाढ" का राज समझ में आया, तो शादी के बाद चिन्ता हुई, कि हमें तो एक दाढीय व्रत की आदत है, अब क्या होगा?
शादी के बाद दो व्रत ही ऐसे थे, जिन्हें किये जाने की अनिवार्यता थी- हड़तालिका तीज और
करवा चौथ. दोनों ही निर्जल निराहार व्रत . तीज के व्रत में दिन भर निर्जला रहने वाली तमाम महिलाओं को रात में पूजा के पहले ही उल्टी-चक्कर-सिरदर्द में लोटते-पीटते मैंने देखा था. मेरा मन कभी ऐसे व्रत के लिये तैयार नहीं होता, जिसमें त्यौहार का मज़ा ही खत्म हो जाये. लेकिन अब क्या हो? वो तीज का ही दिन था.
सुबह नहा-धो के प्रैस जाने के लिये तैयार हुई, बाहर आई, तो अम्मां ने फ़रमान जारी किया- " वन्दना, कुछ खा के ही प्रैस जाना, दिन भर काम करना है, ऐसे ही मत चली जाना "
अरे!!!!
ये अम्मां हैं या मम्मी?? ठीक वही अन्दाज़, वही चिन्ता और वही आदेश??
बस भैया, तब से ऐसे ही खाते-पीते व्रत हो रहे हमारे तो, और आपके?
( तस्वीरों का परिचय दे दें- ऊपर बायें हमारी प्यारी अम्मां, दायें हमारी दुलारी मम्मा बीच में मम्मी और मैं, नीचे मेरी सबसे प्यारी बड़ी दीदी जिनके तमाम किस्से मैने आप सबके साथ साझा किये हैं....)

41 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी खुशकिस्मत हो वंदना मैम !
    हमें यह ममता, एक से भी नसीब नहीं हुई और आप कहाँ से किस्मत लिखवा लायीं कर लायीं जो दो माँ का स्नेह बरस रहा है ! काश हमारे हिस्से भी थोड़ी डांट आ जाती तो किस्मत खुल जाती !
    शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  2. dekhiyega kuchh auranten jalne na lage...:D

    aakhir sabke sasural wale aise jo nah hote..:D

    hame to achchha laga...bhagwan aapko aur apke pariwar ko khub khush rakhe...:)

    chai to sachchi me paani hai, shiv to madira ko bhi paani samajhte the..:P

    जवाब देंहटाएं
  3. वाकई ऐसी डांट खाकर मजा आ जाता है..पर किस्मत वालों को ही नसीब होती है. हमारे पास अम्मा भी हैं और मम्मा भी फिर भी इतनी दूर व्रत बिना डांट के रखने पड़ते हैं और वह भी दोनों दाढ़ से :)
    बढ़िया पोस्ट है.

    जवाब देंहटाएं
  4. हाय!! हमने तो कभी सुना ही नहीं कि 'एक दाढ़ ' का व्रत भी होता है..वरना कितने पुण्य कमा लिए होते :)

    यहाँ महाराष्ट्र में भी व्रत का मतलब..साबूदाने के बड़े..खिचड़ी...बटाटा टोस्ट...दिन भर कुछ ना कुछ खाती ही रहती हैं,वे...हमलोग चिढाते हैं तुम जैसा व्रत तो हम ३६५ दिन रख लें.

    लकी हो..अम्मा साथ में रहती हैं..और ख्याल तो रखेंगी ही...बेटी-बहू का फासला बहुत जल्दी मिट जाता है.

    जवाब देंहटाएं
  5. इस तरह का एक ढ़ाढ़ वाला व्रत तो बड़ा मजेदार व्रत है :-)

    लेकिन मुझसे तो इस तरह का व्रत भी शायद न हो पाए....एक ढ़ाढ़ से भोजन करूंगा तो दूसरा ढ़ाढ नाराज हो जायगा और.... कल को कहीं मुझे परेशान करने के लिये जान बूझकर एक ढ़ाढ खुद से ही दुखने न लग जाय :)

    जवाब देंहटाएं
  6. व्रतों में जब खाने की मनाही हो तो डाँट खाने की अनुमति भी अच्छा प्रावधान है!!
    :)
    अच्छा वर्णन रहा.. कई नए रिवाज़ भी जानने को मिले!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर .आप वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं.

    शिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ

    सादर
    यशवन्त

    जवाब देंहटाएं
  8. एक दाड का व्रत, बुजुर्गो को कितने तरिके आते हे बच्चो को बहलने के, आप सच मे भागय शाली हे जी, महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  9. अम्मा और मम्मा के ज़रिये एक दाढ़ का व्रत --जानकारी अच्छी लगी ।
    शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  10. bachpan me is tarah ke vrat maine bhi kaiyo ko karte dekha ,bahut sundar yaade hai ,aapki dono maa se mil chuki hoon ,sach me bahut achchhi hai .hamare vrat jara niyam se hote hai .

    जवाब देंहटाएं
  11. अरे वाह! ऐसे व्रत रहना है तो हम रोज रह लें। मजेदार पोस्ट लिखी व्रत के बहाने! खूब खाया गया होगा आज तो!

    जवाब देंहटाएं
  12. ऐसी स्नेह भरी डांट सबको कहाँ मिल पाती है वंदनाजी...... सदैव यह स्नेह आपके हिस्से आये भोलेनाथ से यही प्रार्थना है..... शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये......

    जवाब देंहटाएं
  13. अम्मा और मम्मा और एक दाढ़ का वृत् बढ़िया लगा.

    जवाब देंहटाएं
  14. " वन्दना, कुछ खा के ही प्रैस जाना, दिन भर काम करना है, ऐसे ही मत चली जाना "

    waah! amma sach men tum ko bahut pyar karti hain

    haan ek dadh wala vrat bahut mazedar hai ,waise theen tum hamesha se shaitan ,hai n ?
    didi ne bhi bataya tha ek bar :)

    जवाब देंहटाएं
  15. व्रत-फल से वंचित नहीं कर सकते भोले बाबा आपको.

    जवाब देंहटाएं
  16. पहली बार सुना हैिस रोचक व्रत के बारे मे बहुत बहुत बधाई। दो दो माँ का प्यार यूँ ही बना रहे। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  17. .

    वंदना जी ,
    हमारी तो व्रत वाले दिन डबल डाईट हो जाती है , फलों और चाय की एक्स्ट्रा खुराक जुड़ जाती है । माँ की याद दिला दी आपने । प्यार भरी झिडकियां तो सबसे अनमोल तोहफा हैं।

    .

    जवाब देंहटाएं
  18. यह प्यार हमेशा बना रहे किसी और को मत बताइयेगा कहीं नजर न लग जाये
    आत्मीयता से भरी पोस्ट , अच्छी लगी

    जवाब देंहटाएं
  19. बहुत अच्छा लगा पढ़ कर| आप वास्तव में बहुत भाग्यशाली हैं|

    जवाब देंहटाएं
  20. aisi vrat ke liye to hum khuddai vandana karte hain .............

    aur piyar wali jhirki .... uski khirki to sal-tinsal pe ghar jane par hi milta hai .............

    'ek dadh wali'.....je bat memory me save kar lete hain di .....


    pranam.

    जवाब देंहटाएं
  21. बहुत बढिय़ा। हम भी रखकर देखेंगे एक दाढ़ वाला व्रत।

    जवाब देंहटाएं
  22. आप बड़े साधारण शब्दों में और बड़ी सहजता से आपनी बात कह जाती हैं , ये बात मुझे बहुत अच्छी लगती है.
    महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  23. Bauat dino baad aunty ko dekha achha laga badhiya post. ek dadh wala vrat.

    जवाब देंहटाएं
  24. भई हमने नहीं सुना एक दाड़के व्रत के बारे में ... बचपन की सुनहरे पलों को समेटा है आपने ... ऐसी बातों को याद कर मन में गुदगुदी से होती है ... .

    जवाब देंहटाएं
  25. व्रत का सुफल मिलता ही है, चाहे वह निर्जला व्रत हो या एकदाढ़ीय व्रत।

    रोचक संस्मरण के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  26. महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

    जवाब देंहटाएं
  27. मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए लिखने का वक़्त नहीं मिला और आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
    बहुत सुन्दर लगा! आप बहुत किस्मतवाली हैं! आप पर सदा सबका स्नेह बना रहें !

    जवाब देंहटाएं
  28. itane din baad dekhaa...majaa aa gayaa..ammaa-mammma vaah kya kahane ..didi ke saath tumhari tasveer lajvaav hai.. vaaaaah-vvvvvvah

    जवाब देंहटाएं
  29. vandana ji
    bahut hi majedaar laga aapka vrat-palan-;)
    vaise to hamaari amma (saas) bhi din bhar phon karke rati rahti hai .ki kuchh khaya ki nahi,kha lena jaroor se.bachho se puchhengi ki mummy ne kuchh khaya ki nahi kyon ki khane ke mamle me mujh par koi vishwas nahi karta. amma janti hain ki main unka man rakhne ke liye han kar deti hun lekin khati kuchh bhi nahi.(dar asal mera hi man nahi karta kuchh khane ko thodi bahut panditai jo karti hun.mujhe isi naam se vrat ke din chidhaya jaata hai)lekin ye bhi sach hai ki mai dusare din amma ko sach bata deti thi,to vo bhi kahti hain ki ham jante the tum yahi karogi,panditain jo thari.
    is mamle me mai bhi aapki tarah bhut hi bhagy-shali hun .dono hi gharo se khoob khoob pyaar v sneh milta raha hai.
    ab vrat chalish ki iti-----
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  30. देर से आया मगर अच्छी पोस्ट पढ़कर धन्य हो गया !
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  31. आदरणीय वंदना जी
    नमस्कार !
    आप बहुत भाग्यशाली हैं|
    --जानकारी अच्छी लगी ।

    जवाब देंहटाएं
  32. कई दिनों व्यस्त होने के कारण  ब्लॉग पर नहीं आ सका
    बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..

    जवाब देंहटाएं
  33. एक ढ़ाढ़ वाला व्रत -पहली बार जाना.

    जवाब देंहटाएं
  34. आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं