पिछले एक साल में बहुत सारी पुस्तकें इकट्ठा हो गयीं, पढ़ने के लिये, और फिर
लिखने के लिये. न बहुत पढ़ पाई, सो लिख भी नहीं पाई. अब एक-एक करके पढ़-लिख रही हूं.
रश्मि का कहानी-संग्रह, ’बन्द दरवाज़ों का शहर’ प्रकाशित होते ही ऑर्डर कर दिया था.
कुछ कहानियां पढ़ भी ली थीं, लेकिन लिखने के लिये कुछ से बात नहीं बनती. पूरा और
शब्दश: पढ़ना ज़रूरी होता है. फिर किताब यदि अपनी दोस्त की हो, तो ये शब्दश: पढ़ना
मजबूरी नहीं, बल्कि बाखुशी होता है. तो जून के किसी हफ़्ते में मैने कहानी संग्रह
पढ़ना चाहा. बुक-शेल्फ़ में देखा, अपनी टेबल पर देखा, अपने ऑफ़िस के कोने-कोने में
झांका, मम्मी के कमरे में तलाशा, पूरे घर में एक बार, दो बार, तीन बार...कई बार
खोजा. नहीं मिला ’बन्द दरवाज़ों का शहर’......! अब क्या हो? मैने तो पूरी कहानियां
पढ़ी ही नहीं अभी...!. इस्मत को फोन लगाया-’ तुम्हें दी क्या रश्मि की किताब?
तुम्हारे साथ दिल्ली तो नहीं पहुंच गयी? इस्मत ने इंकार में ज़ोर से सिर हिलाया.
बोली, तुमने ज्योति को दी होगी. ज्योति को मैने नहीं दी है, ये मुझे अच्छे से याद
था. अब क्या हो? आनन-फानन दोबारा ऑर्डर की गयी किताब. जब आई, उन दिनों इस्मत सतना
में ही थीं, और घर पर ही थीं. बाहर से अपना पार्सल ले के लौटी , किताब देखते ही
इस्मत बोली-’ दोबारा क्यों मंगवाई? है तो तुम्हारे पास.’ अब हम झल्लाए, - तुम्हें
पता तो है मिल नहीं रही. पता नहीं कहां गयी.’ अब इस्मत ने पलट-झल्लाहट दिखाई- ’
ऐसे कैसे नहीं मिल रही? वहां पापाजी के बुक शेल्फ़ पर रखी तो है!’
’हैं....! ले के आओ तो जानें.’
इस्मत उठीं, मम्मी के कमरे में गयीं और ’बन्द दरवाज़ों का शहर’ हिलाते हुए ले
आईं. हम दंग!! हमें क्यों न दिखी? हमने तो चार बार ढूंढ़ी थी वहां! खैर, अब दो हो
गयी थीं, तो एक इस्मत रानी ने मुस्कुराते हुए अपने बैग के हवाले की, ये कहते हुए-
कि ये दूसरी शायद तुमने हमारे लिये ही मंगवा ली. चलो ये भी बढ़िया हुआ.
तो ये तो किस्सा हुआ किताब के गुमने और मिलने का. अब किताब की चर्चा हो जाये.
’बन्द दरवाज़ों का शहर’ रश्मि रविजा की दूसरी कृति है. पहली कृति ’कांच के
शामियाने’ थी. महाराष्ट्र साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित इस उपन्यास ने
पर्याप्त ख्याति बटोरी, और अब ये कहानी संग्रह भी उसी राह पर है. इस कहानी-संग्रह
में कुल बारह कहानियां हैं. कुछ पुरानी हैं, तो कुछ नयी हैं. कुछ लम्बी हैं, तो
कुछ छोटी हैं. पहली कहानी ’ चुभन टूटते सपनों के किरचों की, दो बहनों की कहानी है.
बड़ी बहन, जिसका ब्याह तब हो गया, जब उसने सपने देखने शुरु भी नहीं किये थे. सपनों
के बीच आंखों की मिट्टी में दबे रह गये. लेकिन जब उसे पता चलता है कि उसके ये
अनदेखे, अनउपजे सपने, छोटी बहन की आंखों में पनप रहे हैं, बल्कि पौधे का आकार ले
चुके हैं तो वो एक अजानी खुशी से भर जाती है. लेकिन जब कहानी के अन्त में वो शादी
और प्रेम को लेकर छोटी बहन की व्याख्या सुनती है, तो अवाक रह जाती है. उसे लगता
है, जैसे उसके अपने सपने टूट गये हों. छोटी बहन अपने प्रेम के प्रति अचानक क्यों
अलग रवैया अपना लेती है, ये आप खुद जानिये, कहानी पढ़ने के बाद.
दूसरी कहानी है- ’अनकहा सच’ ये ऐसे साथियों की कहानी है, जो बचपन से साथ हैं,
एक दूसरे को पसन्द करते हैं, लेकिन ज़ाहिर कोई नहीं करता. बाद में क्या होता है, इस
रोचक कहानी में, ये आप खुद पढ़ें. तीसरी कहानी-’पराग... तुम भी’ ये भी प्रेमकथा है.
ऐसी प्रेम कहानी, जिसमें साथ पढ़ने वाला जोड़ा साथ जीने-मरने के सपने संजोता है. कथा
की नायिका पल्लवी पहले नौकरी पा जाती है, जबकि नौकरी के लिये संघर्ष करता पराग जब
मुम्बई में जॉब पाता है तो पल्लवी को नौकरी छोड़ने की बात जिस आसानी से कह देता है,
वो रवैया पल्लवी के गले नहीं उतरता. आम पुरुष मानसिकता को बखूबी दर्शाती है ये
कहानी. चौथी कहानी है- ’दुष्चक्र’ ये कहानी एक ऐसे मेधावी लड़के की कहानी है जो नशे
की लत का शिकार हो जाता है. किशोरवय से ही गलत संगत में पड़ के बच्चे किस तरह भयानक
रास्ता अपना लेते हैं, और ज़िन्दगी किस तरह दिशाहीन हो जाती है, इन सारे भावों को
समेटे है ये कहानी.
कहानी-संग्रह की शीर्षक कथा है- ’बन्द दरवाज़ों का शहर’. ये कहानी पता नहीं
कितनी, एकाकी रह जाने वाली महिलाओं की कहानी है. उस महानगरीय एकाकीपन की कहानी,
जहां घर में बस सुबह आठ बजे तक ही अहबड़-तबड़ मचती है, जब तक घर का पुरुष काम पर
निकल नहीं जाता. उसके बाद औरत का एकाकीपन शुरु होता है, जो खत्म ही नहीं होता, पति
के घर लौटने के बाद भी. क्योंकि पति के पास समय ही नहीं, जो पत्नी को दे सके. ऐसे
में किसी के द्वारा ज़रा सा भी ध्यान देना, आकर्षण का कारण बन जाता है. लेकिन
मध्यमवर्गीय मानसिकता इस भाव को भी किस तरह लेती है, पढ़ियेगा कहानी में. बहुत
सार्थक कथा है ये. ’कशमकश’ एक ऐसे युवा की कहानी है जो अपनी शिक्षा पूरी करने के
बाद बेरोज़गार है. घर वालों के सपने साकार न कर पाने का दंश किस क़दर कच्गोटता है
बेरोज़गार लड़कों को, ये इस कहानी को पढ़ के बखूबी महसूस किया जा सकता है. ’खामोश
इल्तिज़ा’ तन्वी नाम की एक ऐसी लड़की की कहानी है, जिसने ज़िन्दगी में इतने धोखे खाये
हैं, कि अब उसे बहुत जल्दी किसी पर भरोसा नहीं होता. पति से अलग होने के बाद जब
सचिन ने उसके जीवन में दस्तक दी, तो तन्वी ने जानबूझ के दरवाज़े बन्द ही रखने चाहे.
ये दरवाज़े खुले, या बन्द ही रहे, जानिये इस कहानी को पढ़ के.
संग्रह की अन्य कहानियां – पहचान तो थी,
पहचाना नहीं था, होंठिओं से आंखों तक का सफ़र, दुख सबके मश्तरक, पर हौसले जुदा भी
एकदम अलग विषयों पर लिखी गयीं बेहतरीन कहानियां हैं. रश्मि की शैली बिल्कुल सहज और
भाषा सरल है, इसलिये कहानियां हर तरह का पाठक वर्ग पसन्द करेगा. कहानियों के विषय
भी आम जीवन से जुड़े हैं सो वे भी पाठक वर्ग को अपने बीच की ही लगती हैं. कहानी की
सबसे बड़ी शर्त होती है उसकी पठनीयता. यदि कहानी खुद को पूरा पढ़ने के लिये मजबूर
करे, तो समझिये, लेखन में भरपूर पठनीयता ह और यही विशेषता है एक कथाकार की, जो
रश्मि के पास मौजूद है. अनुज्ञा बुक्स-दिल्ली से प्रकाशित. 180 पृष्ठ के इस
संग्रह की कीमत 225 रुपये है. पुस्तक का कवर पेज़ आकर्षक है.
सबसे बड़ी बात, पुस्तक में कहीं भी प्रकाशकीय ग़लतियां नहीं हैं. ये बहुत बड़ी बात
है. इस पुस्तक के लिये लेखिका- रश्मि
रविजा और प्रकाशक को हार्दिक बधाई. .
पुस्तक पढ़ने के लिए उत्सुकता जगाती बहुत ही सुन्दर समीक्षा ! रश्मि जी की कलम के तो धुर प्रशंसक हैं ही आप भी हमारे मन पर पूरी तरह से काबिज हैं वन्दना जी ! हार्दिक बधाई इतनी खूबसूरत समीक्षा के लिए !
जवाब देंहटाएंसाधना जी, आपकी टिप्पणी बहुत महत्व रखती है मेरे लिये. बहुत आभार आपका.
हटाएंधन्यवाद शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत सुंदर ������
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट बहुत जानकारीपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंHey admin!! The post was so amazing, Thank you so much for sharing this.
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बहुत ही सुंदर समीक्षा ,कहानी पढ़ने की इच्छा जागृत हो उठी ,रश्मि जी को बधाई हो
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा लिखती हो , चलो लॉकडाउन के मारे मेरी किताब नहीं मिल पायेगी ।ज्योति से लेकर पढो और लिखो समीक्षा । ये विनती नहीं आदेश है जिज्जी का।
जवाब देंहटाएंThis is really fantastic website list and I have bookmark you site to come again and again. Thank you so much for sharing this with us first kiss quotes
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