वे
अस्सी बरस के हैं. लेकिन लिख रहे हैं अनवरत.
कोई सामान उठाते समय हाथों में कम्पन होता है, लेकिन कलम उठाते वक्त ये कम्पन थम जाता
है. सुबह से शाम तक आप उन्हें लगातार लिखते/पढ़ते ही देखेंगे. मध्य प्रदेश साहित्य
अकादमी के, हिन्दी साहित्य की दीर्घकालिक सेवा हेतु प्रदत्त प्रतिष्ठित सम्मान “तुलसी
सम्मान” से नवाज़े गये श्री आर.आर. अवस्थी यदि इतना चुपचाप, स्वान्त: सुखाय लेखन न कर
रहे होते तो कई प्रतिष्ठित सम्मानों के अधिकारी होते.
मैं
बात कर रही हूं मध्य प्रदेश के सुपरिचित कवि/नाटककार/कथाकार
श्री रामरतन अवस्थी की. स्वान्त: सुखाय (गद्यगीत), पंछी पंखविहीन (कविता संग्रह), अलका
(मेघदूत का छायानुवाद), युग सृष्टा कौटिल्य (नाटक(, कुणाल कथा (नाटक) के बाद कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है- प्रेम गली अति सांकरी.
ये
कहानी संग्रह कई मायनों में महत्वपूर्ण है. सबसे पहला महत्व तो ये कि इस संग्रह में
संग्रहीत कहानियां उनके लेखन के शैशवकाल की हैं. पन्द्रह बरस की उम्र में लिखी गयी
ये कहानियां सन १९५० से लेकर १९५२ के मध्य की हैं.
पुस्तक
के ’आत्म कथ्य’ में अवस्थी जी लिखते हैं – “ शैशव जब बचपन की दहलीज़ पर कदम रखता है
और सांसारिकता के ज्ञान का श्री गणेश , मां की गोद में लेटे लेटे ही वह जिस रूप में
पाता है, वह “कहानी” का शैशव ही तो है. यही शैशव कदम दर कदम बढ़ते बढ़ते सम्पूर्णता को
प्राप्त होकर आज साहित्यिक विधाओं के उच्चासन पर आसीन है, जिसे हम ’कहानी’ के नाम से
जानते हैं.”
आत्म
कथ्य में ही वे आगे विनीत भाव से लिखते हैं- “ अपने सुधि पाठकों से एक निवेदन कर दूं-
इन कहानियों को पढने के पूर्व “कहानी सृजन काल”
के साथ आपको सामंजस्य स्थापित करना होगा. सन पचास-साठ के दशक में कहानियों का स्वरूप कैसा था, प्रमुख रूप
से कथ्य विषय किस प्रकार के हुआ करते थे, लेखन शैली कैसी थी बिम्ब विधान कैसा था आदि,
कहानी की उपादेयता तभी सिद्ध होगी. अस्तु अनुरोध
है कि इन कहानियों को तत्कालीन सामाजिक परिवेश के परिप्रेक्ष्य में ही ग्रहण करने की
अनुकम्पा करें.”
निश्चित
रूप से एक पाठक का ये दायित्व भी है. सच्चा पाठक , किसी भी काल विशेष की रचना और उसकी
शैली से बहुत जल्दी तादात्म्य स्थापित कर भी लेता है. “प्रेम गली अति सांकरी” की कहानियों को पढते हुए
पाठक जल्दी ही उस काल खंड में पहुंच जाता है,
जिस काल खंड की ये रचनाएं हैं.
इस
कहानी संग्रह में कुल नौ कहानियां संग्रहीत हैं. सात कहानियां सन १९५०-५५ के बीच कीं, जबकि दो कहानियां इस काल खं से लगभग दो दशक बाद की हैं.
पहली
कहानी पुस्तक के शीर्षक वाली कथा है. कहानियों का मूल भाव ’प्रेम’ और इंसानियत है. ये प्रेम भले ही अलग-अलग पारिवारिक/सामाजिक रिश्तों
के बीच का ही क्यों न हो. इस कहानी का मूल आधार भी प्रेम है. प्रकृति वर्णन भी इन कहानियों
की एक विशेषता है, जो अवस्थी जी के मूलत: कवि होने का परिचय देता है. कहानी प्रेम गली अति सांकरी, कर्म क्षेत्रे, एक प्राण, दो देह, इन तीनों कहानियों
में किसी न किसी रूप में बैरागी पात्र आया है, सन्यासी या साधु के रूप में. और ये तीनों सन्यासी जीवन से भाग कर सन्यासी बने.
यानि उस काल विशेष में लोग जीवन से हार के आत्महत्या का दामन नहीं थामते थे, बल्कि
उनकी जिजीविषा बनी रहती थी, और वे खुद को सकारात्मक ऊर्जा के हवाले कर देते थे. इन
तीनों सन्यासियों में एक भी व्यभिचारी नहीं था. प्रेम गली अति सांकरी के सन्यासी ने
तो नलिनी जैसी अनिंद्य सुन्दरी का प्रेम निवेदन कुशलता के साथ ठुकराया भी. यानी, उस
काल विशेष में सन्यासी सचमुच सांसारिक जीवन से निस्पृह हो जाते थे. आज के सन्यासियों
की तरह दोहरा चरित्र नहीं जीते थे. कर्म क्षेत्रे का सन्यासी, मुकेश को घर वापस जाने
और अपने कार्य में दोबारा संलग्न होने की सकारात्मक प्रेरणा देता है, आज के तथाकथित
सन्यासियों की तरह आश्रम में समर्पित होने के लिये बाध्य नहीं करता. एक तरह से जबरन
मुकेश अपने घर वापस भेजता है सन्यासी . तो
उस समय के सन्यासियों पर अपने आप आस्था भाव जगाने का काम करती हैं ये कहानियां.
कहानी
’शहादत’ में हिन्दू-मुस्लिम एकता का स्वर मुखर हुआ है. दोनों ही सम्प्रदायों के अच्छे और बुरे लोगों को
सामने लाने में समर्थ है ये कहानी. विभाजन की विभीषिका उभर कर आई है इस कहानी में.
प्रेम
हर काल में वर्जित रहा है ये साबित होता है कहानी “ एक प्राण दो देह “ से. आर्थिक रूप
से विपन्न एक माली , सम्पन्न परिवार के युवक को इसलिये स्वीकार्य नहीं कर सका, क्योंकि
वो उसकी बेटी को प्रेम करता था. उसी माली ने बेटी को ओगुनी उम्र के प्रौढ के साथ विवाह
बंधन में बांधने से गुरेज नहीं किया. यानि प्रेम और लड़कियों की विवशता एक से स्तर पर
थी, तब भी कमोवेश आज भी. काम और रिश्तों के
प्रति ईमानदारी, विश्वास और निष्ठा कितनी महत्वपूर्ण होती थी उस समय, ये ज़ाहिर होता
है कहानी ’ आबरू’ से. अंग्रेज़ों ने शारीरिक स्तर पर भी कितना शोषण उस समय किया होगा,
इस कहानी से एक झलक मिलती है, इस बात की.
संसार
में चंद सच्चे इंसान हमेशा मौजूद रहे हैं और शायद इन्हीं सच्चे इंसानों की वजह से इंसानियत
भी क़ायम रह सकी, इस बात को पुख्ता करती है कहानी “ सुखिया” . किस तरह भूख प्यास से
व्याकुल, मां से बिछड़ा बच्चा एक धनी व्यापारी को मिलता है, और वो उसे किस प्रकार पढा-लिखा
के न केवल डॉक्टर बनाता है, बल्कि उसकी सच्चाई भी ज़ाहिर करता है ताकि ये सुयोग्य युवक अपनी परेशानहाल मां को खोज
सके. इस कहानी को पढ के इंसानियत के प्रति मन श्रद्धा से झुक जाता है. इसी प्रकार कहानी “अन्तर्वेदना” से भी इंसानियत
का एक अलग ही रूप सामने आता है. उस काल विशेष में लोगों के भीतर कितना विश्वास था अपने
कृत्य पर, और दूसरे इंसान पर भी. एक अजनबी युवक को पिटने से बचाते हुए पिता-पुत्री
उसे न केवल अपने घर ले आये, बल्कि उसकी चिकित्सा
भी करवाई. इतना आत्मीय माहौल दिया कि युवक स्वस्थ हो गया. आज के परिवेश में घर लाना
तो ऊर, लोग किसी पिटते हुए को बचाने की कोशिश भी नहीं करते.
कहानी
“रिसते रिश्ते” अपेक्षाकृत बाद के समय की है सो इसका कथानक भी आज के परिवेश जैसा है.
उस समय में रिश्तों में जितना सघन प्रेम था, जुड़ाव था, बाद की कहानी में यही प्रेम,
जुड़ाव की सघनता छिन्न-भिन्न होती दिखाई देती है. इस कहानी में बेटी का महत्व भी सामने
आता है. बेटियों के मन में माता-पिता के लिये
अधिक प्रेम, चिंता होती है, ये इस कहानी से सिद्ध होता है. सिद्ध ये भी होता है कि
कुछ भाव हमेशा एक जैसे रहते हैं. बेटियों का मन तब भी मा बाप के लिये आकुल रहता था,
आज भी रहता है. लेकिन अचरज ये कि यही बेटी जब बहू की भूमिका में होती है, तो कैसे पति
के माता-पिता के लिये स्नेहरहित हो उठती है. एकल परिवार की परम्परा के आरम्भ की कहानी
है ये. आखिरी कहानी है
“राम
दुलारे की शव यात्रा” ये कहानी एकदम अलग भाव से लिखी गयी है. तमाम लोगों में, बल्कि
अधिसंख्य में ये जानने की तीव्र इच्छा होती है, कि उनकी मौत के बाद कौन कौन उसके लिये
दुखी होगा? कौन खुश होगा? किस तरह की बातें लोग करेंगे उसके बारे में? ऐसी ही इच्छा
की थी राम दुलारे ने जो नारद जी ने पूरी की और किस तरह के अनुभव राम दुलारे को हुए,
ये आप खुद ही पढें, तभी ज़्यादा आनन्द है.
कुल
मिला के “प्रेम गली अति सांकरी” एक अलग काल विशेष, भाषा विन्यास और शैली का कहानी संग्रह
है, जो निश्चित रूप से पाठक को अपनी ओर आकर्षित करता है. कवर पृष्ठ बहुत शानदार है.
ये पुस्तक शिवना प्रकाशन-सीहोर द्वारा प्रकाशित की गयी है, जिसका मूल्य- सौ रुपये मात्र
है.
22
मई 1934 को उत्तर प्रदेश के गुढा ग्राम में जमे श्री राम रतन अवस्थी एक ऐसे सम्पन्न
कृषक परिवार से हैं, जिसका व्यसन शिक्षण रहा. उत्कृष्ट विद्यालय के प्राचार्य प से
सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने पूर्णकालिक
लेखन को अपनाया. चित्रकला, संगीत और साहित्य के साथ साथ अभिनय में भी उनकी गहरी रुचि
रही. मानसी, दशार्ण के स्वर, मयूर जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का सम्पादन भी उन्होंने
किया. साहित्य जगत को वे इसी प्रकार अपनी सतत
सेवाएं देते रहें, ऐसी मेरी कामना है.
“प्रेम
गली अति सांकरी” (कहानी संग्रह)
लेखक
: रामरतन अवस्थी
प्रकाशक
: शिवना प्रकाशन
पी.सी
लैब, सम्राट कॉम्प्लैक्स बेसमेंट
बस
स्टैंड, सीहोर- 466001 (म.प्र.)
मूल्य
: 100 रुपये मात्र
ISBN
: 978-93-81520-23-9
|
यहाँ तक आने के लिए बहुत शुक्रिया चारु जी।
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "'बंगाल के निर्माता' - सुरेन्द्रनाथ बनर्जी - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार आपका.
हटाएंबहुत अच्छी समीक्षा.............
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत शुक्रिया सावन जी.
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राकेश जी.
हटाएंबहुत बढ़िया विश्लेषण किया है दी
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सुमन.
हटाएंजिज्जी! जितने जतन से आपने यह पुस्तक परिचय प्रस्तुत किया है, उससे मन में पुस्तक पढने की ललक और उनके चरण स्पर्श की कामना बढ़ जाती है. कुछ रचनाकार ऐसे होते हैं, जिन्हें कभी सम्मान की अभिलाषा नहीं होती, उनके लिये उनकी रचनाधर्मिता ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है.
जवाब देंहटाएंमेरी ओर से उनके चरणों की वन्दना!! पुस्तक प्राप्ति की जुगत लगाकर पढ़ता हूँ!!
सलिल, अपने पापाजी ऐसे ही हैं. अपनी रचनाधर्मिता को समर्पित.किताब प्राप्ति के लिये तुम्हें किसी जुगत की ज़रूरत नहीं है, अपना पता दो, हम भेज देंगे.
हटाएंआपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं