राय उमानाथ बलि प्रेक्षागृह में संपन्न यह कार्यक्रम तीन सत्रों में आयोजित होना था, लेकिन पहला सत्र लम्बा खिंच जाने के कारण, दूसरा सत्र अतिसंक्षिप्त हो गया , इसका सीधा असर उन वक्ताओं पर पड़ा, जो दूसरे सत्र में न्यू मीडिया के सामजिक सरोकार विषय पर बोलने वाले थे. सभी वक्ता मौजूद थे, और अपनी तैयारी से ही आये थे, लेकिन उन्हें अपनी बात कहने का मौका नहीं मिल सका. तीसरा सत्र आरम्भ हुआ, और दूसरे सत्र के वक्ता, मुख्य अतिथि, विशेष अतिथि सब श्रोताओं में शामिल दिखाई दिए.
किसी भी आयोजन में खूबियाँ और खामियां होती ही हैं, लेकिन देख रही हूँ, कि इस आयोजन के बाद जितनी भी पोस्टें आयोजन से सम्बंधित आईं, वे कार्यक्रम से जुडी नहीं हैं, बल्कि व्यक्ति विशेष को इंगित करके लिखी जा रही हैं, जो गलत है. किसी पोस्ट में शास्त्री जी के अपमान की बात है, तो किसी में रश्मिप्रभा की अनुपस्थिति के कारणों के कयास लगाए जा रहे हैं. किसी में कार्यक्रम को अंतर्राष्ट्रीय कहने पर आपत्ति है, तो किसी में सीधे शिखा को दोषी बताया जा रहा है. शास्त्री जी का अपमान निश्चित रूप से सम्मान समारोह के आखिर में सम्मानित किये जाने पर हुआ है, लेकिन उन्होंने अपना बड़प्पन क़ायम रखते हुए, इस सम्मान को ग्रहण किया. रश्मिप्रभा जी क्यों नहीं आ सकीं, इस कारण को खुद रश्मि जी से जानने का किसी ने प्रयास किया? नहीं. बस खुद ही उलटे-सीधे कारण गिनाने शुरू कर दिए. पहले सत्र का विशिष्ट अतिथि शिखा को बनाने का फैसला आयोजकों का था, इसमें शास्त्री जी का अपमान कैसे हुआ, मैं समझ नहीं पाई. इस आयोजन की खूबियाँ और खामियां मुझे कुछ इस तरह नज़र आईं-
१- किसी भी क्षेत्र में नए-पुराने लेखकों को सम्मानित किये जाने की परंपरा बहुत पुरानी है, इसका निर्वाह परिकल्पना द्वारा किया जाना सराहनीय है.
२- इस तरह के आयोजन एक-दूसरे से मुलाक़ात का जरिया होते हैं, जो किसी भी क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए ज़रूरी हैं. लखनऊ में भी बहुत से नए/पुराने ब्लॉगर एक दूसरे से मिले.
३-भोजन आदि की अच्छी व्यवस्था की गयी थी. कार्यक्रम स्थल भी सुविधायुक्त था.
४- एक दिवसीय कार्यक्रम में पहला सत्र हमेशा लम्बा खिंच जाता है, लिहाजा आयोजकों को कार्यक्रम दो सत्रों में ही करना चाहिए था, तीसरा सत्र केवल सम्मान-समारोह का होता, तो प्रेक्षागृह आयोजन के समापन तक भरा ही रहता.
५- पहले सत्र के अध्यक्ष और मुख्य अतिथि दोनों ही ब्लोगिंग से पूर्णतया अपरिचित थे, लिहाजा वे इस विषय पर साधिकार कुछ बोल ही नहीं सके. सम्बंधित विषय पर कोई नयी जानकारी मिलना तो दूर की बात है.
६- सम्मान के लिए चयनित लोगों का चुनाव यदि वोटिंग प्रक्रिया से किया गया था, तो आयोजकों का दायित्व था, कि वे प्रत्येक श्रेणी के लिए नामांकित लोगों का विवरण और उन्हें मिलने वाले वोटों की जानकारी क्रमबद्ध तरीके से देते, ताकि पारदर्शिता क़ायम रहती. ऐसा नहीं किये जाने का खामियाजा वे लोग भोग रहे हैं, जिन्होंने सम्मान-प्राप्ति के लिए किसी से कोई अपील की ही नहीं है. बल्कि अपनी योग्यता की दम पर उन्हें सम्मान मिला.
७- दूर-दराज़ से आने वाले ब्लोगरों के रुकने का कोई इंतजाम किया जाना चाहिए था, अगर नहीं भी किया गया था तो इसकी सूचना भी ब्लॉग या फेसबुक पर दी जानी चाहिए थी.
८- किसी भी कार्यक्रम को प्रभावी बनाने का महत्वपूर्ण दायित्व कार्यक्रम के संचालक पर होता है, जो हरीश अरोड़ा जी ने बखूबी निभाया, लेकिन दूसरे सत्र के संचालक महोदय न तो किसी का नाम जानते थे, न ठीक से पढ़ ही पा रहे थे. उच्चारण दोष इस कदर था, कि अर्थ का अनर्थ हुआ जा रहा था.
९- आयोजन को अंतर्राष्ट्रीय की जगह अंतर्राज्यीय नाम दिया जाना चाहिए था, क्योंकि सभी तो हिंदी ब्लोगिंग से जुड़े लोग थे.
ये सब तो हुईं आयोजन की बातें, अब उन पोस्टों की चर्चा जिन पर लोग केवल व्यक्तिगत भड़ास निकाल रहे हैं, वो भी ऐसी भाषा में , कि पढ़ कर खुद के ब्लॉग-जगत से जुड़े होने पर शर्म आ जाए. मुझे उन सभी लिंक्स को यहाँ देने की ज़रुरत नहीं लग रही, क्योंकि आप सब उन्हें पहले ही पढ़ चुके हैं, मैं तो बस ये जानना चाहती हूँ, कि उन पोस्टों में जिस तरह की भाषा का प्रयोग हुआ है, क्या वो शर्मनाक नहीं है? ये सारे लिंक शिवम् मिश्र ने यहाँ
ब्लॉग बुलेटिन: कभी ये लगता है अब ख़त्म हो गया सब कुछ - ब्लॉग बुलेटिन दिए हैं, चाहें तो एक बार फिर देख लें.
मुझे तो लगता है कि ऐसे किसी सम्मान समारोह से परे, हम सब एक ब्लॉगर मिलन समारोह आयोजित करें, जो परिचय सम्मलेन जैसा हो, सब एक दूसरे से मिलें, एक दूसरे को जाने. व्यर्थ की छीछालेदर हम क्यों नहीं छोड़ पाते??
पुनश्च:-
शुक्ल जी से क्षमाप्रार्थना सहित-
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अपनी पोस्ट में फ़ुरसतिया जी ने लिखा है, कि इस तरह के आयोजन में भोले-भाले ब्लॉगर्स का इस्तेमाल जमावड़े की तरह किया गया, तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी ब्लॉगर इतना भोला-भाला है कि अपना इस्तेमाल होने देगा. किसी को भी जबरन पकड़ कर नहीं लाया जाता, सब स्वेच्छा से जाते हैं, जाने के पीछे सब से मुलाक़ात की ललक ही होती है. मैं भी जमावड़े के लिए नहीं गयी थी, बल्कि उन तमाम साथियों से मिलने की इच्छा मुझे वहां ले गयी, जो लम्बे समय से थी.
तस्वीर में आयोजक रवीन्द्र प्रभात जी सपत्नीक सम्मान प्राप्त करते हुए.
सम्मान शब्द का क्या अर्थ हैं
जवाब देंहटाएंआप को कौन सम्मानित कर रहा हैं
ये पुरूस्कार वितरण समारोह था
पुरूस्कार का सम्मान से क्या लेना देना हैं
पुरूस्कार उसको दिया जाता हैं जो किसी को भी पसंद आता
आप भी शुरू कर सकती हैं क़ोई पुरूस्कार
लेकिन सम्मान तब होता हैं जब आप की विधा का क़ोई आप के किये को समझता हैं , सराहता हैं सम्मान आप से छोटे भी आप का कर सकते हैं जैसे अगर रश्मि प्रभा जी को ५ पुरूस्कार मिले हैं तो vandana जी उन पर क़ोई पोस्ट दे कर उनको सम्मानित करे
सोच कर देखिये आप सब किस बात पर बहस कर रहे हैं
अगर आयोजक ने इसको ब्लॉगर सम्मान कह दिया हैं तो गलत हैं ये महज एक पुरूस्कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला , वोटिंग को जरिया माना गया , लेकिन ये सम्मान नहीं हैं
@ ये महज एक पुरूस्कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला
हटाएंरचना से सहमत हूँ ...
जी रचना जी पुरस्कार बनाम सम्मान समारोह ही था ये, सहमत हूं. ज़िक्र तो मैं कार्यक्रम के उस आमंत्रण पत्र का भी करना चाहती थी, जिसमें तमाम आमंत्रित विशिष्ठ अतिथि ब्लॉगर्स को वरिष्ठ ब्लॉगर या अन्य किसी विशेषण से नवाज़ा गया था, जबकि आपके नाम के के आगे केवल सुश्री रचना लिखा था...मैने ये सवाल रवीन्द्रप्रभात जी से किया भी था, उनकी पोस्ट पर लेकिन कोई जवाब मिला नहीं.
हटाएंवंदना
हटाएंमुझे क़ोई आधिकारिक सूचना या निमन्त्रण भी नही आया था . मुझे केवल नेट से ही पता चला था की वोटो के आधार पर नारी ब्लॉग का चयन हुआ था . इस लिये मै टिकेट करवाने के बाद भी नहीं गयी क्युकी जब ऑनलाइन निमंत्र्ण मै अपने नाम को इस प्रकार से देखा . आप के कमेन्ट के बाद सुधार हुआ था लेकिन ऑनलाइन निमंत्र्ण की मूल प्रति अभी भी शास्त्री जी के ब्लॉग पर हैं .
ये भूल हैं , टंकन की गलती हैं ये आयोजक बेहतर जानते हैं . हा नारी ब्लॉग के लिये वोट मैने किसी से नहीं माँगा था . और मैने तो रेखा जी और आप को कहा भी था की क़ोई भी सदस्य इस को मंच पर ले सकता हैं क्युकी ये नारी ब्लॉग का हैं मेरा व्यक्तिगत नहीं .
क़ोई भी पुरूस्कार अनुपस्थिति में , पुरूस्कार पाने वाले तक पहुचाना शायद आयोजक का काम नहीं होता हैं .
लेकिन उस व्यक्ति से पूछना की उस पुरूस्कार का क्या करना हैं ?? ये भी जरुरी नहीं समझा गया ??
आयोजन समिति ने अपने अपने लिये ५-६ पुरूस्कार तक रख लिये { अभी गिन रही हूँ !!!:) }
बात केवल मिलने मिलाने की होती हैं तो अच्छा हैं ख़ुशी हुई की आप ने एन्जॉय किया आगे भी सब करे . ब्लॉग बने ही एंजोयमेंट के लिये हैं . ब्लॉग लेखन एज एंजोयमेंट वाह
धन्यवाद वंदना ,
जवाब देंहटाएंकम से कम तुम ने तो उन्हें मुबारकबाद दी जिन्हें सम्मानित किया गया था और कार्यक्रम की अच्छाइयां भी गिनाईं वरना तो जिस तरह के लेख लिखे गए हैं जहाँ किसी के निजी जीवन पर कटाक्ष है तो किसी को नाम ले कर बातें सुनाई जा रही हैं यहाँ तक कि महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणियां की जा रही हैं ,कार्यक्रम को छोड़ कर बाक़ी सारी बातें हैं blogs पर ,,ऐसे में
तुम्हारा ये लेख हवा के ताज़े झोंके जैसा लगा ,,,,
शुक्रिया इस्मत.....असल में सम्मानित होने वालों के खिलाफ़ जो भी लिखा जा रहा है उससे मुझे केवल इसीलिये तकलीफ़ हो रही है कि सम्मान पाने वालों में तुम भी शामिल थीं, जो इस तरह की राजनीति से कोसों दूर हो. तुम्हें तो पता तक नहीं था खुद का नाम शामिल होने के बारे में.अभद्र टिप्पणियां करने वाले शायद ऐसी ही ज़ुबान अपने घर में भी इस्तेमाल करते होंगे, सो उन्हें अटपटा नहीं लगता .
हटाएं६- सम्मान के लिए चयनित लोगों का चुनाव यदि वोटिंग प्रक्रिया से किया गया था, तो आयोजकों का दायित्व था, कि वे प्रत्येक श्रेणी के लिए नामांकित लोगों का विवरण और उन्हें मिलने वाले वोटों की जानकारी क्रमबद्ध तरीके से देते, ताकि पारदर्शिता क़ायम रहती. ऐसा नहीं किये जाने का खामियाजा वे लोग भोग रहे हैं, जिन्होंने सम्मान-प्राप्ति के लिए किसी से कोई अपील की ही नहीं है. बल्कि अपनी योग्यता की दम पर उन्हें सम्मान मिला.
जवाब देंहटाएंमेरी आपत्ति सिर्फ इसी विषय पर थी और है.
आपकी इस बात से सहमत हूँ कि पुरस्कार या सम्मान समारोह के स्थान पर मिलन-समारोह आयोजित किये जाएँ. इसके आयोजन के लिए जो लोग सम्मिलित होना चाहें, वो खाने-पीने का खर्च भी दे सकते हैं.
बिल्कुल दे सकते हैं आराधना, बल्कि ज़्यादा खुश होके देंगे. सबके लिये एक निश्चित रकम फ़िक्स कर दी जाये, रुकने का स्थान एक साथ ही हो, ताकि देर रात तक सब मिल के धमा चौकड़ी मचा सकें. मैं तो इन्तज़ार कर रही हूं ऐसे किसी समारोह का.
हटाएंघोर सहमति
हटाएंतो फिर की जाए तैयारी? योजना पर गंभीरता से विचार कीजिये पाबला जी, हम सब मिलके पैसा खर्च करेंगे :)
हटाएंये महज एक पुरूस्कार समारोह था , आयोजक की पसंद के ब्लोग्गर को मिला , वोटिंग को जरिया माना गया , लेकिन ये सम्मान नहीं हैं
जवाब देंहटाएंpoorn sahmat
किसी हद तक पुरुस्कार समारोह ही था बेनामी जी, लेकिन पुरुस्कार, सम्मान के ठीक पहले की सीढी ही तो है.
हटाएंवन्दना जी,,,मै आपके सारी बातो से सहमत हूँ,आपने जो भी कहा पूरी तरह साफ़ मनसे कहा,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST-परिकल्पना सम्मान समारोह की झलकियाँ,
धीरेन्द्र जी, मेरी न तो आयोजकों से कोई दुश्मनी है, न सम्मान-प्राप्त लोगोन से ईर्ष्या. मैने जो देखा, वो लिखा. आभारी हूं.
हटाएंसम्मानिता वन्दना जी!
जवाब देंहटाएंआपने जिन बातों का उल्लेख आपने आलेख में किया वो सब सही हैं। किन्तु 100 से अधिक ब्लॉगर क्या बढ़िया खाना खाने के लिए ही दूर-दराज से अपना धन और अमूल्य समय नष्ट करने के लिए आये थे?
क्या कोई रिकार्ड आयोजकों के पास है कि कौन लोग इसमें आये थे? कम से कम एक रजिस्टर ही प्रेक्षाग्रह के किसी द्वार के पास रख देते।
ब्लॉग पर लगी सम्मानित होने वाले लोगों की सूचना के अतिरिक्त क्या इनके पास कोई रिकार्ड है जिससे कि यह पता लग पाये कि सम्मानित होने वाले कौन-कौन ब्लॉगर इसमें हाजिर हुए और कौन नहीं आ पाये?
कुछ लोग तो 26 अगस्त की शाम को ही लखनऊ आ गये थे और वे अपने खर्चे पर 300 से 1000 रुपये व्यय करके विभिन्न स्थानें पर रुके थे। यदि आयोजक 200 यौ 300 रुपये तक का प्रतिनिधि शुल्क लेकर इनकी व्यवस्था किसी धर्मशाला में करा देते तो ये अपनी अनौपचारिक गोष्ठी ही कर लेते। मेरे विचार से सभी ब्लॉगर सहमत थे। मगर ऐसा नहीं हुआ और सम्मेलन वाकई में कम से कम मेरे लिए तो यादगार बन ही गया।
अन्त में सबसे बड़ा बिन्दु तो यह है कि दूर-दराज से आने वाले ब्लॉगरों का परिचय तक सम्मेलन में नहीं कराया गया। जिससे कई ब्लॉगर तो उन लोगों का नाम तक नहीं जान पाये, जिनसे वो भेट करना चाहते थे।
शास्त्री जी, खाने की बात तो मैने केवल उन बिन्दुओं में शामिल की है जो आयोजन के सफल बिन्दु हैं.अगर खाना अच्छा न होता, तो इस पर भी बवाल होता ही. खैर. मैं आपके साथ हूं, और आयोजन में जो अपमान आपका हुआ, उसकी कड़ी निंदा करती हूं. असल में यह आयोजन बिना किसी रूपरेखा के आयोजित किया सा लगता है, वरना सभी सम्मानित ब्लॉगर्स का तो परिचय चयन समिति मंगवाती ही, जिसे मंच पर सम्मान देते समय पढा जाता. किसी भी ब्लॉगर को सम्मान लेने के बाद एक मिनट भी नहीं दिया गया कि वो आभार ही व्यक्त कर सके.
हटाएंपढ़ रही हूँ.....सीख रही हूँ.....लेखन भी.... दुनियादारी भी :-)
जवाब देंहटाएंस्नेह एवं शुभकामनाएं वंदना जी.
अनु
बहुत कुछ सिखाते हैं ऐसे अयोजन, हमें भी, आयोजकों को भी :) आभार अनु जी.
हटाएंसम्मेलन के बारे में और जानकारी मिली।
जवाब देंहटाएं:) कैसी लगी? बताया नहीं...:)
हटाएंसमारोह का आयोजन पारदर्शी हो अतिथि एक दुसरे से परिचित हों और कम से कम अप्रिय स्थिति पैदा न हो . रही बात इनाम की तो सदा ऐसा ही हो जाता है
जवाब देंहटाएंसही है. अप्रिय स्थितियां वहां तो नहीं बनीं, ये तो बाद में ब्लॉग्स पर दिखाई दे रही है :)समालोचना अच्छी लगती है, केवल आलोचना ठीक नहीं है.
हटाएंइस आयोजन का उद्देश्य क्या था :
जवाब देंहटाएं१. अगर ब्लॉग लेखन की दशा , दिशा और महत्त्व पर चर्चा होनी थी तो वह पूरा नहीं हुआ |
२.सही मायने में जिनका योगदान अभी तक इस विधा में पाया गया है ,अगर उनका सम्मान करना था तो वह भी नहीं हुआ |
३.नए ब्लागर्स को अगर प्रोत्साहित किया जाना था तो वह भी नहीं हुआ |
४.जिनको हम पढ़ते हैं , समझते हैं उन सबका आपस में मेल -मिलाप होना था तो वह भी नहीं हुआ |
५.हाँ ! अगर उद्देश्य आयोजकों का आत्म्शलाघा और स्वयं को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने का था तो पूरा तो वह भी नहीं हुआ |
१००% सहमत. बल्कि मैं तो के.के. यादव जी को एकमात्र ब्लॉगर दम्पत्ति घोषित करने का भी विरोध करती हूं. मेरा मन तो वहीं खड़े हो के विरोध जताने का था... क्योंकि इस श्रेणी में निवेदिता-अमित श्रीवास्तव भी आते हैं, और उनका नाम तक नहीं लिया गया :(
हटाएं''कोई भी ब्लॉगर इतना भोला-भला'' यहां ''भला'', भूलवश है या कोई विशेष प्रयोजन है.
जवाब देंहटाएंशायद लम्पट ??
हटाएंनहीं राहुल जी, टंकण की गलती से ऐसा हुआ, यहां किसी और अर्थ में इस शब्द को मैं इस्तेमाल भी नहीं कर सकती क्योंकि ये शुक्ल जी की पोस्ट से उद्घृत किया गया है :) मैने सुधार दिया है :)
हटाएंइसी बहाने सबसे मिलना हो जाता है..
जवाब देंहटाएंहां मिलना तो होता है, लेकिन बाद में आने वाली चंद अभद्र पोस्टों से मन खराब हो जाता है.
हटाएं:) sabke saath milna aur photo khinchwane ka ek behtareen jariya tha ye sammelan:)
जवाब देंहटाएंहां मुकेश जी, कम से कम अपनी चौकड़ी ने तो मज़े किये ही :)
हटाएं@ "कोई भी ब्लॉगर इतना भोला-भला है कि अपना इस्तेमाल होने देगा. किसी को भी जबरन पकड़ कर नहीं लाया जाता, सब स्वेच्छा से जाते हैं, "
जवाब देंहटाएंबलकुल सही कहा...सबको पता होता है कि इन पुरस्कारों/सम्मान की अहमियत और असलियत क्या है. पर अपनी स्वच्छा से जाते हैं,लोग
@सम्मान समारोह से परे, हम सब एक ब्लॉगर मिलन समारोह आयोजित करें,
ब्लॉगर मिलन समारोह का आइडिया बहुत ही अच्छा है...पर फिर शायद कुछ लोग ना आएँ क्यूंकि उन लोगों का स्पष्ट तौर पर कहना है,'कहीं कोई सम्मान करेगा तो चले आएँगे " फिर इन विभूतियों के सान्निध्य से लोग वंचित रह जायेंगे .
इसलिए चलते रहेंगे ऐसे सम्मान -समारोह .....और उसमे विश्वास करने वाले, शामिल होते रहेंगे.
हां रश्मि, जिन्हें सम्मान से कोई सरोकार नहीं होता, वे महज मुलाकात के लिये ही जाते हैं, क्योंकि किसी भी सम्मान से ज़्यादा लोगों की आत्मीयता मायने रखती है. मैं भी इसीलिये गयी थी, चाहती थी कि तुम भी आतीं. इस सबसे ऊपर जो कारण था वो ये, कि इस्मत चाहती थी कि मैं वहां पहुंचूं, लिहाजा मुझे पहुंचना ही था :)
हटाएंजो केवल सम्मान ही चाहते होंगे, वे वैसे भी मिलन समारोह में नहीं आयेंगे, तब वहां विशुद्ध मुलाकात के लिये पहुंचे लोग ही रह जायेंगे, कितना अच्छा होगा!!
रश्मि तुम्हारे कमेंट्स देखकर मैं हैरत में हूँ
हटाएंसही है, मैंने कई साथियों से विशुद्ध मुलाक़ात सत्रों वाले अवसर को ठुकराते देखा है - उनका कहना है कि जब तक कोई दिशा, विषय तय ना हो तब तक खाली मुलाकात कर क्या करेंगे. ज़्यादातर तो नाका भौं सिकोड़ते हैं कि हम क्या खाना खाने जायेंगे?
हटाएंलेकिन कई साथी ऐसे सम्मान समारोहों, कार्यशालाओं में भी तब जाते हैं जब आने जाने का खर्चा मिले वरना होते रहें कार्यक्रम उनकी बला से
तुमलोगों की कुछ बातों पर हैरानगी तो मुझे भी बहुत होती है,इस्मत.....पर मैं इग्नोर कर देती हूँ.
हटाएंसही कहा पाबला जी, जहाँ कोई सम्मान/पुरस्कार ना मिले..कई लोग जाना नहीं चाहते....
हटाएंबिलकुल वंदना, लखनऊ ही क्यूँ तुमने वर्धा आने के लिए भी बहुत जोर दिया था. मुंबई में भी एक सम्मान समारोह हुआ था (इसकी इतनी चर्चा नहीं हुई क्यूंकि दूरी की वजह से बहुत कम ब्लॉगर्स पहुंचे थे ) जहाँ रवि रतलामी जी सहित कुछ और ब्लॉगर्स को सम्मानित किया गया था...मैं वहाँ भी नहीं गयी थी. अब निर्गुट होने के ये फायदे हैं कि तीनो जगह से निमंत्रण था :)
हटाएंपर ऐसे आयोजनों से मैं दूर ही रहती हूँ.
हाँ..मुंबई में हुए अनौपचारिक आयोजनों में जरूर जाती हूँ...और इंशाअल्लाह अगर कोई ब्लॉगर मिलन समारोह आयोजित हुआ और कोई prior commitment नहीं रहे तो जरूर सम्मिलित होना चाहूंगी.
रश्मि, गुटीय राजनीति से दूर होने के कारण ही मेरे पास भी सभी आमंत्रण होते हैं, और मेरी कोशिश भी हर जगह पहुँचने की होती है. आगे भी रहेगी ही :)
हटाएंशुक्रिया रश्मि ,,जब दोनों ही हैरत में हैं तो बात बराबर :D :D
हटाएंब्लॉगर अल-बल बोलता, बला-अगर बकवाय ।
जवाब देंहटाएंपक्का श्रोता टायपिस्ट, आये खाये जाय ।
आये खाये जाय, सर्प सा सीध सयाना ।
कहे गधे को बाप, कुंडली मार बकाना ।
अपनी अपनी सुना, भगे कवि जौ-जौ आगर ।
पर रविकर व्यक्तव्य, सुने न लम्पट ब्लॉगर ||
मुझे भी वक्ता की सूची में रखा गया था-
नव-मीडिया दशा, दिशा एवं दृष्टि पर रविकर -
लीजिये पढ़िए-
http://dineshkidillagi.blogspot.in/2012/09/blog-post.html
ठीक है न, जो विचार वहां व्यक्त करने वाले थे आप, यहां छाप दिये न? बढिया है :) अभी देखती हूं.
हटाएंवंदना जी आपकी हर बात से अक्षरसः सहमत . मै भी मिलने जुलने ही गया था . ब्लॉग्गिंग के अवदानो और कमियों पर वरिष्ठ लोग चर्चा करते रहते है , हम तो सुन के ही तृप्त हो लेते है, रही बात सम्मलेन में व्यवस्था की तो हमको तो बैठने के लिए अच्छी वाली सीट मिली, हॉल वातानुकूलित भी था . बिजली गई भी तो १० मिनट के लिए और अमित श्रीवास्तव जी को इसके लिए जिम्मदार भी ठहरा दिया मैंने . हा हा . भोजनावकाश में मुझे राजू श्रीवास्तव का एक जोक भी याद आया , फिर उसके बाद भूख मर गई , भला हो शाम को प्याज के पकौड़े का , सारा हिसाब बराबर हो गया .बाकि हमने कई लोगो के इनाम लेने (जबरदस्ती टाइप) की कोशिश की लेकिन मुंह की खानी पड़ी . कमियां और अच्छाई तो हर आयोजन में होती है , यहाँ भी थी जो आपने गिना भी दिया और मै उनसे सहमत भी हूँ . रही बात सम्मेलन से उत्पन्न स्फुलिंग की, तो ये तो रवायत है अपने यहाँ तभी तो सरे जहाँ से अच्छा है अपना --. हम तो मौज लेने गए थे ये सोचकर की "कोऊ नृप होऊ हमे का हानी". . व्यक्तिगत खुंदक निकालने का सही मौका भी मिल जाता है ऐसे कार्यक्रम में , और हम आंख लगाये रहते है अपने टार्गेट पर . हा हा . हम भी एक टार्गेट लेकर गए थे लेकिन काश रे किस्मत . आयोजकों ने साथ देने से मना कर दिया..अब और क्या लिखें , कम लिखे को ज्यादा पढना . शुभाकांक्षी --आशीष राय .
जवाब देंहटाएंहम भी तो आप सबसे मिलने ही गये थे आशीष जी, और मिलकर बहुत अच्छा लगा :)
हटाएंप्याज के पकौड़े के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद आशीष भाई ... बहुत मज़ा आया ... ;-)
हटाएंये आप लोगों ने बहुत गड़बड़ की..हम अन्दर भाषण झेलते रह गये और आप लोग पकौड़े उड़ा रहे थे?
हटाएंअरे तो कौन सा हम ने अपने पैसा खर्चा किया प्याज के पकौड़े खाने के लिए ... यह सब तो आयोजकों की ही जूतियों का सदका था ... ;-)
हटाएंवैसे यहाँ साफ करना बहुत जरूरी हो जाता है कि 'जूतियों का सदका' एक कहावत है ... पता चला एक नई पोस्ट आ गई कि बक़ौल शिवम मिश्रा लखनऊ मे बुलाये गए सभी ब्लॉगर आयोजकों के हाथो जूतो से पिटे ... आजकल तो साहब बहती गंगा है जिसे चाहो जब चाहो नहाने चला आ रहा है !
हटाएंठीक किया जो बता दिया, वरना यही होने वाला था शिवम :)
हटाएंare ye kab hua ?mere hisse ke pakaude kis ne khae ??
हटाएंआशीष जी ने ... ;-)
हटाएंकिसने खिलाए थे भाई प्याज के पकोडे :) अम्मा हमें भी इनवाईट/याद कर लिया होता, मेरे ख्याल से इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती. :)
हटाएंअरे हाँ एक बात तो कहना ही भूल गए की हमको सम्मेलन में शामिल होने के लिए किसी सम्मान की जरुरत महसूस नहीं हुई , पूरा दिन ख़राब किया , कोई वेल्ले तो है नहीं हम , बहुत सारा काम होता है और ऊपर से गांठ से हजारो गए वो अलग(पत्नी ने बाद में हिसाब माँगा था :) ) . आप तो सपतिक (जाने ये शब्द ठीक है या नहीं) केवल मिलने के लिए इत्ते पैसे खर्च कर दिया आपने . नोट फेयर.. कोई बात नहीं हम आपके ख़ुशी में शामिल है , आप भगाए तब भी नहीं भागने वाला ," ईर्ष्या तू न गई मेरे मन से , पाके तोहे जनम के साथी लाज गई लोकन ते " . . तो भैये अपन तो इसी में मगन है . कोई जले तो अपनी बला से .
जवाब देंहटाएंदेखो भैया, वहां जो सम्मानित हो रहे थे, वे भी तो अपने साथी ही थे, उनकी खुशी मनाई हमने :) कितने लोग हैं जो दूसरों के सम्मान पर दिल से खुश होते हैं? हम लोग तो खूब खुश हुए, तालियां भी बजायीं :) वहां न जाते तो इस्मत की इतनी सुन्दर ग़ज़ल कैसे सुनते? सपतिक ठीक ही लग रहा फिलहाल तो :) अरे ठीक है न आशीष जी, इत्ते खर्चे होते रहते हैं, मिलने के लिये पांच-सात हज़ार खर्च हो गये तो क्या? ये जलना-वलना गलत है भाई....अन्तत: तो सबको जलना ही है, फिर समय से पहले काहे का जलना?
हटाएंवंदना मैं धन्य हूँ तुम्हारे जैसी दोस्त पा कर ,मैं शायद इतना कभी न कर पाऊं तुम्हारे या किसी के लिये भी ,तुम केवल मेरे लिये ही वहाँ आईं और ये बात मेरे मन पर अंकित हो गई है हमेशा के लिये ,,मुझे गर्व है तुम पर !!
हटाएंआशीष तुम तो मुझे दीदी कहते हो न और ख़र्चे पर इतना दुख ????
ख़ैर ये तो मज़ाक़ था लेकिन वाक़ई तुम हम लोगों की ख़ुशीमें शामिल होने आए उस के लिये ढेरों दुआएं ,,हमेशा ख़ूब ख़ुश रहो
इतना महिमामंडित मत करो इस्मत, तुम्हारी दोस्त हूं, कुछ तो असर होगा ही न :)
हटाएंवंदना दी ,
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट पर आया हूँ तो केवल अपनी और आपकी ही बात करूंगा !
मार्च 2009 से इस ब्लॉग जगत मे कदम रखा ... ब्लॉग जगत मे आप से परिचय जिस पोस्ट से हुआ उसका लिंक तो मुझे अब याद नहीं पर उसका जिक्र मैंने अपनी जिस पोस्ट पर किया था वो यह रही :- http://burabhala.blogspot.in/2009/07/blog-post_8121.html
मैं इन सब बातों का जिक्र सिर्फ इस लिए कर रहा हूँ कि लगभग 3 साल से हम लोग एक दूसरे के ब्लॉग पर आते जाते रहे है और 27 अगस्त को पहली बार आपसे मिलना हुआ !
जिसको बुराइयाँ देखनी है वो तो कहीं न कहीं से कोई न कमी निकाल ही लेगा ... उसका कोई हल है भी नहीं ... हम लोग अपनी अपनी रिश्तेदारी मे जाते है तो क्या वहाँ उनसे अपने टिकिट के पैसे वसूलते है ... नहीं न ... इतने लोगो से मिलना हुआ यह क्या कम है !
कहने को कहने वाले इस ब्लॉग जगत को एक परिवार कहते है पर जब मामला परिवार को साथ ले कर चलने का होता है तब न जाने काहे सब से पहले यही लोग परिवार मे दरार डालने वालों मे सब से आगे होते है !
बहुत दुख होता है यह सब देख कर !
सही है शिवम्. केवल आलोचनाएं दुखी करती हैं. आखिर वहां सम्मानित होने वाले भी तो अपने ही थे...मुझे तो तुम लोगों से मिलना अनुपम उपलब्धि लगा...कभी नहीं भूलूंगी लखनऊ यात्रा. खुश रहो. पता नहीं कबसे मन था तुम सबसे मिलने का.
हटाएंशिवम ख़ूब ख़ुश रहिये आप की बातों से सहमत हूँ
हटाएंबहुत बहुत शुक्रिया शिवम्.
हटाएंअक्षरशः सही ....... त्रुटियाँ हर जगह होती हैं , पर आरम्भ सिर्फ बुराई - सही नहीं . और अंदाजा लगाकर तो कहना ही नहीं चाहिए , वो भी मुहर के साथ . रवीन्द्र जी को ज्ञात था , और जो मेरे संपर्क में हैं उन्हें भी ज्ञात था कि मैं बीमार हूँ . मुकेश ने खुद पुरस्कार नहीं लिया मेरे बदले बल्कि मैंने कहा कि मैं नहीं जा पाऊंगी तबीयत की वजह से ....
जवाब देंहटाएंखैर - रवीन्द्र जी और उनकी पत्नी को मेरी शुभकामनायें
यहां गलती रवीन्द्र जी से ही हुई है रश्मि दी. सत्रारम्भ पर ही उन्हें बाकायदा बीमारी की वजह से आपके न आ पाने की औपचारिक घोषणा करनी चाहिये थी. ये इलैक्ट्रॉनिक मीडिया है, वो भी अन्तर्जालीय...कयासों का बाज़ार बहुत जल्दी गर्म होता है यहां. कल दो-एक पोस्ट पढने को मिलीं, जिन में आपके लिये लिखा गया था, अच्छा नहीं लगा क्योंकि मुझे मालूम था कि आप पिछले कई दिनों से बीमार हैं..खैर, जाकी रही भावना जैसी....
हटाएंसहमत हूँ आपसे !
हटाएंकार्यक्रम में सम्मिलित होने वाले ब्लॉगर की ओर से पहली संतुलित रिपोर्ट मिली जिसमे निष्पक्ष रूप से अपनी बात रखी गयी !
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !
आभारी हूं वाणी जी. इतने दिनों से आरोप-प्रत्यारोपों के दौर से मन उकता गया था...
हटाएंएक दूजे के लिए सच्चा सम्मान सिर्फ दिल में होना चाहिए । किसी व्यर्थ आशाओं के साथ इकट्ठा होने से विवाद पैदा तो होगा ही..! यह हरएक मनुष्य का लक्षण, शायद लक्ष्य भी है?
जवाब देंहटाएंकाश कि विवादों को लक्ष्य न बनाते लोग...
हटाएंऐसे अओजनों में कुछ कमियां कुछ अच्छाइयां तो जरूर होती हैं ... जरूरी उनसे सबक ले के आगे बढ़ना होता है न की आलोचना सिर्फ व्यक्तिगत महत्वकांक्षा के लिए करना ...
जवाब देंहटाएंआशा है भविष्य में ऐसे प्रोग्राम से पहले सुझाव ले लिए जाएँ और आयोजक जो ठीक लगे उनके अनुसार करें ...
यही कहना चाहती हूं मैं दिगम्बर जी. आभार आपका.
हटाएंमेरे कहने को कुछ नहीं बचा...
जवाब देंहटाएंअरे! ऐसे कैसे? कुछ तो कहिये.. :)
हटाएंबहुत सटीक और तार्किक आकलन किया है आपने ........मैं भी ब्लागर मिलन समारोह की प्रतीक्षा कर रही हूँ ...-:)
जवाब देंहटाएंधन्यवाद निवेदिता..चलो हम लोग ही मिल कर आयोजन कर डालें...:)
हटाएंआप अपनी सुविधानुसार समय बताइए ...-:)
हटाएंhttp://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/09/15-2011-14-2012.html
हटाएंek nazar nivedita aur vandana yahaan bhi ho jaaye
मैं देख के आई हूँ रचना जी, कमेन्ट भी किया है वहां, अगर न दिखे तो स्पैम ज़रूर देख लें. अच्छा प्रयास है ये, बधाई. हर संभव सहयोग दूँगी मैं.
हटाएंवन्दना जी, इस सारगर्भित समीक्षा से ज़्यादातर लोग सहमत हैं.
जवाब देंहटाएंऐसा कह के आप अपनी बात एक लाइन में निपटा नहीं सकते शाहिद जी. ये हाज़िरी भर लगाने की आदत छोड़िये, और ज़रा लम्बा सा कमेंट कीजिये :) हम इन्तज़ार कर रहे हैं.
हटाएंवंदना लगता है अब शाहिद साहब पूरा आलेख लिखेंगे ,,,इंतज़ार करो
हटाएंअगर लिखें तो बहुत अच्छा होगा.:)
हटाएंवंदना दी आप से मिलने ही गये और मिलकर बहुत अच्छा लगा :)
जवाब देंहटाएंमुझे भी बहुत अच्छा लगा संजय.
हटाएंअच्छा विमर्श चल रहा है कोई रास्ता सीधा आइन्दा के लिए ज़रूर निकलेगा ,बहर -सूरत जो दूसरे की ख़ुशी में नांच न सके ,किसी को सम्मानित /पुरुक्रित होते देख नाक भौं चढाये वह बड़ा अभागा है ,किस्मत का मारा है .
जवाब देंहटाएंसोमवार, 3 सितम्बर २०१२"
स्त्री -पुरुष दोनों के लिए ही ज़रूरी है हाइपरटेंशन को जानना
What both women and men need to know about hypertension
अच्छा विमर्श चल रहा है कोई रास्ता सीधा आइन्दा के लिए ज़रूर निकलेगा ,बहर -सूरत जो दूसरे की ख़ुशी में नांच न सके ,किसी को सम्मानित /पुरुस्कृत होते देख नाक भौं चढाये वह बड़ा अभागा है ,किस्मत का मारा है .
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएं:) :) :)
हटाएं:):):):):):):):):)
हटाएंpranam.
:) :) :) ;) :)
हटाएंखुश रहिये संजय जी.
काफी संतुलित आलेख.. वरना आजकल बाढ़ आई हुई है आरोप-प्रत्यारोप वाली पोस्ट्स की..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सत्यार्थी जी.
हटाएंभीड़ से अलग था, तो भीड़ देख पाता था,
जवाब देंहटाएंशामिल हुआ होता मैं भी भीड़ बन जाता !
--avo
आनंद भैया आप तो भीड़ में भी भीड़ से अलग ही नज़र आते
हटाएंइसीलिये तो आप ब्लॉग पर भी दिखाई ही नहीं देते :) वैसे इस्मत से सहमत.
हटाएंटाँग खिंचाई छोडकर कोई नेक काम करो या स्वयं कुछ बेहतर करके दिखाओ तो बात बने।
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात मनोज जी. मेरा कहना भी यही है.
हटाएंआपकी पोस्ट अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया हकीम जी.
हटाएंजो लखनऊ में आयोजन किया गया वह कम बात नहीं थी ...आलोचना करना बहुत आसान है पर वहां इंतजाम करना बहुत मुश्किल ..कुछ हुआ तो सही हिंदी ब्लॉग जगत में ..उसी का शुक्रिया अदा कीजिये ..आयोजकों का भी ..मान अपमान बाहर वालों का होता है वहां तो सब अपने थे ..फिर कैसा विवाद ?
जवाब देंहटाएंहाँ रंजू. कोई भी कार्यक्रम परफेक्ट नहीं होता. केवल आलोचना जायज नहीं है.
हटाएंhttp://mypoeticresponse.blogspot.in/2012/09/blog-post_5.html
जवाब देंहटाएंये क्या चक्कर है रचना जी? ये कमेंट्स किसकी पोस्ट पर हैं?
हटाएंपूरा विमर्श पढ़ा -सोच रहा हूँ लोगों के अनुभव और मानसिक स्तरों के बारे में !
जवाब देंहटाएंहर आयोजन शामिल होने वालों के सोचने लिए बहुत कुछ छोड़ ही जाता है डॉ. साब :)
हटाएंAchchhee aur santulit report, Vandana ji!!
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत आभारी हूँ इंद्र जी, की आप यहाँ आये, न केवल आये, बल्कि सराहना भी कर गए :)
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