लेकिन जानते हैं, मैं सतीश जी को ये नहीं कह पाई कि वे इस सपने को केवल सपना ही मानें. सपने से जुड़ा अपना अनुभव सुनाऊँ न? दो घटनाएं हैं. सो दोनों ही झेल लीजिये -
बात बहुत पुरानी है . एक सपना जिसमें मैं सपने में भी सो रही होती थी और मेरा बायाँ हाथ पलंग से नीचे लटक रहा होता था . एक चांदी जैसे रंग का, चमकदार , लगभग दो फुट लम्बा सांप आता और मेरे हाथ को डस लेता. बस, इतना होते ही मेरी नींद खुल जाती. यह सपना मुझे तब आना शुरू हुआ जब मैं आठवीं कक्षा में पढ़ती थी. हफ्ते में एक या दो बार यह सपना मुझे आता ही था. मेरे इस सपने के बारे में घर में सब जानते थे. चऊआं-मऊआं भी जानती थीं, जिनका ज़िक्र अभी करूंगी
मैं बी.एससी. के अंतिम वर्ष में थी. सर्दियों के दिन थे. मैं अपने घर की बाउंड्री में, धूप में बैठ के पढ़ रही थी. मेरे ही घर के ठीक बगल वाले हिस्से में रहने वाले भूमित्र शुक्ल अंकल की बेटी मऊआँ ( निधि शर्मा जो अब सिंगापुर में है) बहुत ज़ोर से चिल्लाई-
" रेखा दीदीssssss.....पैर ऊपर करो, पता नहीं सांप जैसा क्या है वहां........"
मैंने घबरा के पैर ऊपर किये नीचे निगाह गयी तो देखती हूँ, कि ठीक वही सांप जो मेरे सपने में आता था, उतना ही लम्बा मेरी चप्पलों के पास बैठा है....पैर ऊपर न उठाती तो पैरों के पास...... सिहर गयी एकदम..लगा जैसे मेरा हाथ डसने को बैठा है... लेकिन मऊआँ का शोर सुन के शुक्ल आंटी, उसकी बहन चऊआँ ( रूचि शुक्ल) मेरे मम्मी-पापा , बहनें सब बाहर आ गए थे, आहट पा के सांप सामने वाले गेट से बाहर निकला जहाँ मोहल्ले के वीर योद्धा टाइप लड़के पहले ही जमा हो गए थे उसे मारने की ताक में .
तेज़ी से सरसराते सफ़ेद चांदी जैसे चमकदार सांप को उन लड़कों ने घेर के मार डाला. पता नहीं क्यों उसका मारा जाना मुझे अच्छा नहीं लगा, लेकिन उसके बाद उस सांप का सपना आना बंद हो गया.
मुझे नहीं पता कि वो क्यों आया था? उस सपने का क्या मतलब था? मैंने बहुत सोचने की कोशिश भी नहीं की. मेरी मम्मी ने कहा-
" भूल जाओ, सपना था. तुम तमाम कहानियां पढ़ती रहती हो, इसलिए आता होगा ऐसा सपना."
मैंने मान लिया . लेकिन उस सांप का आना? खैर उसे भी संयोग मान लिया.
दूसरी घटना जिसे मैं आज तक सपना भी नहीं मान पाई-
३१ जुलाई १९९९ को मेरे श्वसुर जी का देहांत हुआ. मेरे ऊपर उनका अगाध स्नेह था .विश्वास भी. उनके देहांत के बाद सितम्बर में मैं नौगाँव गयी थी. जिस दिन मुझे सतना वापस आना था, उस रात मुझे सपना आया कि पापा नौगाँव वाले घर में आये, सपने में भी मुझे पता था कि वे अब नहीं हैं. आ के कमरे में पड़े तखत पर बैठे और बोले कि- मेरी जी.पी. एफ़. वाली फ़ाइल हरे बॉक्स में है. फ़ाइल पीले रंग की है और उस पर ऊपर लिखा है-" जी.पी.एफ़. संबंधी कागज़ात".
चौंक कर मेरी नींद खुल गयी, देखा पसीने से नहाई हुई हूँ....देर तक पापा के वहां होने का अहसास होता रहा. सुबह मम्मी और बहनों को भी ये सपना सुनाया. सतना आते-आते सपना ध्यान से उतर गया, पता नहीं कैसे. अक्टूबर में उमेश जी के मामा श्री शालिग्राम शुक्ल और मामी आये. हम सब खाना खा रहे थे. तभी एक फोन आया, अम्मा फोन पर जवाब दे रही थीं - " हमने पूरे घर में फ़ाइल ढूंढ ली, मिली ही नहीं . एक बार फिर कोशिश करते हैं. " मेरे पूछने पर अम्माँ ने बताया कि पापा की जीपीएफ वाली फ़ाइल नहीं मिल रही. मुझे अचानक ही अपना सपना याद आ गया. मैंने बस यूं ही हँसते हुए सपना सुनाया. उमेश जी बोले कि जब फ़ाइल कहीं नहीं मिली, तो क्यों न हरा बॉक्स ही ढूँढा जाए? अब नए सिरे से हरे बॉक्स की ढूंढ मचाई गयी. एक हरे रंग का बॉक्स उस स्टोर-रूम में मिला, जहाँ केवल कबाड़ भरा है. बॉक्स खोला और आश्चर्य!!!!!
ऊपर ही पीले रंग की फ़ाइल रखी थी, जिस पर लिखा था " जीपीएफ सम्बन्धी कागज़ात".
इस सपने को मैं कभी सपना मान ही नहीं पाई.
आप ये न सोचें कि मैं अंध-विश्वास को बढ़ावा दे रही हूँ. मैं खुद कभी सपनों को सच नहीं मानती थी. आज भी मेरा मानना है, कि सपने हमारे अवचेतन का ही प्रतिफल होते हैं. लेकिन यदि कोई सपना बार-बार आये तो उसे केवल सपना नहीं कहना चाहिए. अंध विश्वास और विश्वास के बीच का फ़र्क मैं बखूबी समझती हूँ. इसलिए मुझ पर अंध-विश्वासी का तमगा लगाए बगैर अपनी राय दें.
जो घटना मेरे साथ घटी, उसे मैं सिरे से कैसे नकार दूँ?
( ऊपर वाला चित्र मेरे नौगांव वाले घर का है, इसी गेट से होकर चांदी जैसा सांप निकल के भागा था.)
इन स्वप्न कथाओं को पढ़ते-पढ़ते यह भाव आ रहे हैं कि यह जिंदगी आश्चर्यों से भरी पड़ी है। जिसने आश्चर्य को देखा, मुग्ध हो सुनाता है। एक जो विश्वास करता है चकित हो सहमति व्यक्त करता है, दूसरा जो विश्वास नहीं करता चकित हो उपहास करता है। संसार में बहुत से रहस्य हैं जो विज्ञान की पहुँच से दूर हैं, शायद स्वप्न रहस्य भी उनमे से एक हो ! आपने जो स्वप्न सुनाये उनके परिणाम भी बताये शेष जिनसे प्रेरित हो आपने पोस्ट लिखा उनके स्वप्न रहस्य बने हुए हैं। सभी स्वप्न दृष्टाओं को हमारी शुभकामनायें। स्वप्न उनके जीवन में मंगलकारी हों । इससे किसी को कोई कष्ट न हो।
जवाब देंहटाएंमित्रों को बता दूँ कि यहां उपहास पर बंदिश है वरना हम चूकते नहीं:) इसके पीछे वही कारण हो कि हमारी जिंदगी में ऐसी कोई घटना नहीं घटी। :-(
देवेन्द्र जी, मेरा पूरा परिवार तमाम रूढियों का सख्त विरोधी है. जो मुझे कुप्रथाएं या अंधविश्वास लगते हैं, मैं उनका पुरज़ोर विरोध करती हूं. लेकिन ये भोगा हुआ यथार्थ है, जिसके गवाह भी मौजूद हैं :) एक अन्य घटना- मेरे पतिदेव ने सपने में देखा कि मेरी छोटी बहन के घर में बाहर से लेकर अन्दर तक तमाम लोग सफ़ेद कपड़े पहने खड़े हैं, बैठे हैं. उस वक्त मेरी बहन एकदम स्वस्थ थी, लेकिन एक महीने बाद ही बेटे के जन्म के पन्द्रह दिनों के बाद उसकी मृत्यु हो गयी.जब हम उसके घर पहुंचे तो घर के बाहर-अन्दर तमाम लोग सफ़ेद कपड़े पहने खड़े-बैठे थे.....
हटाएंअवचेतन मन की अवस्था है . लेकिन सपनो की इस विचित्र दुनिया में ना जाने कितने उदहारण सत्य पाए गए है . और अगर कोई भी सपना सच नहीं होता तो सपने सच होने की कहावत कैसे जन्म लेती .सपनो की दुनिया में टहलने के बाद सपने को सशरीर देखना , अद्भुत रोमांच .
जवाब देंहटाएंआशीष जी, इन घटनाओं को याद करके आज भी रोमांच हो आता है. उमेश जी को मैं अक्सर कहती हूं, कि तुम सपने मत देखा करो...
हटाएंअपना भी यही मानना है कि कोई सपना पूर्वजन्म के संस्कार\फ़ल तथा अवचेतन से संबंध रखता हो सकता है। प्रत्येक स्वप्न कोई अर्थ लिये हो, ये जरूरी नहीं लेकिन कुछ विशिष्ट स्वप्न जैसे बार बार रिपीट होने वाले सपनों का कुछ निहितार्थ संभव है।
जवाब देंहटाएंजिंदगी में कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं,....आम आदमी के पास तो जिनका...कोई एक्सप्लेनेशन नहीं....
जवाब देंहटाएंरश्मि, इस दूसरे सपने को मैं एक अलौकिक घटना की तरह ही देखती हूं. ये घटना शब्दश: सही है. मेरे पूरे परिवार वाले साक्ष्य हैं इस घटना के.
हटाएंबिलकुल होंगे..इसीलिए तो कहा..इनका कोई एक्सप्लेनेशन नहीं....क्यूँ हुआ..कैसे हुआ...आम आदमी की समझ के बाहर है.
हटाएंकोई मनोवैज्ञानिक..parapsychologist ही इस पर प्रकाश डाल सकता है...या शायद उसके सामर्थ्य से भी बाहर की हैं ये चीज़ें...
telepathy तो हम सब मानते ही हैं...वैज्ञानिक व्याख्या भी है इसकी.
न चाहते हुए भी ये घटनाएं पारलौकिक अस्तित्व को भी मानने पर मजबूर करती हैं रश्मि.
हटाएंमुझे भी कई ऐसे सपने दिखे कि जो सच हो जाते है...और ज्यादा जो बुरा होने वाला होता है ..वो एक दो दिन पहले ही ...अब घर में कोई मेरे सपने सुनने से डरता है... वैसे मुझे सपने याद नहीं रहते ...पर जो बहुत खराब होते हेई डर से नींद खुलती है तो याद रह जातें है...और वह सच होता .... खैर .. आपका सपना ...शायद कुछ ऐसी सच्चाई है जिन्हें हम समझ सकते हैं पर स्वीकारते नहीं..
जवाब देंहटाएंसही है नूतन जी.
हटाएंसपने और सपनों में लिखे गए ब्लाग पोस्ट पर परिचर्चा आयोजित करने की अच्छी संभावना बन रही है.
जवाब देंहटाएंमुझे लगता है कि परिचर्चा की कोई आवश्यकता नहीं है। अपितु इस विषय पर विशेषज्ञ और शोधार्थियों ने अब तक क्या निष्कर्ष निकाले हैं। उन का प्रस्तुतिकरण होना चाहिए। चर्चा तो टिप्पणियों में हो ही लेती है।
हटाएंजी दिनेश जी. मुझे भी ऐसा ही लगता है.
हटाएंइन दिनों तो मानो ब्लागजगत में स्वप्न चर्चा की बाढ़ आयी हो...
जवाब देंहटाएंये तो हुयी घटनाएं ..महत्वपूर्ण उनका विवेचन है -ऐसा क्या कारण है जो उन सपनो के पीछे है -क्या है इनकी वौज्ञानिक व्याख्या ?
उसी व्याख्या की ही तो ज़रूरत है अरविंद जी :(
हटाएंmujhe aksar sapne nahin aate magar jab bhi aate hain unme arth chhupe rahte hai ...jaise koi poorv chetavani ho..ghatna ke ghatit hone par smajh ata hai.main andhvishwasi nahin hoon magar ab aise sapno se dar lagta hai :(
जवाब देंहटाएंभावना जी, सपने तो सबको आते हैं लेकिन अधिकांश याद नही रहते, सो हमें लगता है कि सपने नहीं आते. क्योंकि मुझे भी ऐसे सपने इक्का-दुक्का ही आते हैं जो याद रह जाते हैं.
हटाएंमेरे ख्याल से सपनों को सपने जैसा ही मानना चाहिए ज्यादा सोंचने की जरूरत नहीं हैं
जवाब देंहटाएंलेकिन अपने साथ घटी दूसरी घटना को तो मैं सपना भी नहीं मानती सुनील जी.
हटाएंसपने आते हैं यूँ भी ... पर सपने संकेत देते हैं . मैं तो अपने सपनों पर बहुत देर सोचती हूँ , क्योंकि पूर्व में देखे कई सपने हुबहू वैसे ही गुजरे
जवाब देंहटाएंवन्दना जी!
जवाब देंहटाएंसपने चाहे मनोविज्ञान के विषय हों या किसी विज्ञान के, या तो हमारे साथ हुई घटनाओं के प्रतिबिम्ब होते हैं या आने वाली घटनाओं के सूचक.. मैं स्वयं विज्ञान का विद्यार्थी हूँ, लेकिन बस एक बात सीखी है मैंने.. विज्ञान किसी भी वस्तु को खंड-खंड कर उसका विश्लेषण करता है.. लेकिन एक और भी विज्ञान है जो संश्लेषण के आधार पर व्याख्या करता है. बहुत मामूली सी बात है.. ध्वनि और प्रकाश को सिर्फ एक सीमा के अंदर ही हम देख-सुन सकते हैं.. उसके बाहर वे इन्फ्रा या अल्ट्रा कहलाती हैं, जिन्हें हम देख सुन नहीं सकते.. तो क्या मान लें वो प्रकाश और ध्वनि है ही नहीं??
चलिए एक नयी शुरुआत हुई है यहाँ!!
मुझे लगता है कि हम सपनों को पूरी तरह काल्पनिक नहीं कह सकते. क्योंकि कुछ सपने सच में तब्दील हो जाते हैं. ज़रूरत है उन तथ्यों की, जो हमें बता सकें कि ये चंद सपने सच में कैसे तब्दील हो जाते हैं?
हटाएंकई बार सपने ऐसे भी आते हैं जो अक्सर सच हो जाते हैं ...
जवाब देंहटाएंजी सदा जी.
हटाएंविश्वाश और अंध विस्वाश में ज्यादा फरक नही होता लेकिन जेसे आपने लिखा हे अगर वो सही हे तो ये अंध विश्वास नही हे दरसल इस भोतिक संसार से भी अलग और भी लोक हें जिनको अध्यातम में सूक्षम लोक बोलते हें इसके बारे में में यंहा ज्यादा तो नही लिख रहा हूँ क्योंकि ये बात केवल अनुभूतियों पर ही समझ में आती हें पढने से ज्यादा समझ में नही आता अगर आप और गहराई से जानना चाहती हें तो आपको ध्यान करना होगा तब आपको हो सकता हे कुछ समझ में आजाये में आपको एक ध्यान की उच्कोटी की एक विद्या के बारे में बताता हूँ ये विद्या भगवान महात्मा बुध ने खोजी थी इसका नाम विपश्यना हे ये साईट हे http://www.dhamma.org/en/bycountry/ap/in/ परक्र्ती के नियम सभी का मंगल करतें हें
जवाब देंहटाएंयोगी जी,मुझे कोई भी बात बढा-चढा के या झूठ ही लिखने की मजबूरी नहीं है, न ही मेरी आदत है. जो घटा, वो मैने लिखा. जो सपना घटित भी हुआ, उसे भ्रम मानने का तो सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि बाद में वही फ़ाइल बैंक में जमा की गयी.
हटाएंअलौकिक घटनायें घटती हैं, हम इन घटनाओं पर संदेह कर ही नहीं सकते. आपका लिंक ज़रूर देखूंगी.
Waqayee kamaal hai!
जवाब देंहटाएंहां दीदी अद्भुत ही है.
हटाएंab tak kai gambhir blogger 'sapna aur rahsya' pe post likh dale.....
जवाब देंहटाएंhum dinesh dadda ke vicharon se sahmat hain....
pranam.
हम भी संजय जी दिनेश दादा से सहमत हैं :)
हटाएंअभी शायद विज्ञान उस स्थिति तक नहीं पहुंचा इसलिए हम उसे रूडी वादी ... अतार्किक मान लेते हैं ... बहुत सी ऐसी बातें क्यों होती हैं इसकी ख्जोज करने की जरूरत है न की नकारने की ...नकार देने से खोज की गुंजाइश खत्म हो जाती है ...
जवाब देंहटाएंसही है दिगम्बर जी नकार के बात खत्म की ही नहीं जानी चाहिये. वैसे भी ये हम उम्रदराज़ और शायद समझदार भी, लोगों के साथ घटित हुआ है इसलिये इसे बचपना भी नहीं कह सकते.
हटाएंआज कुछ कहना बहुत मुश्किल लग रहा है तुम ने मुझे बताया तो था मुझे लेकिन ................क्या करूं ये विश्वास तो है कि तुम्हारे साथ ऐसा हुआ पर दिमाग़ आसानी से मान नहीं पा रहा है ,,दिल ओ दिमाग़ की इस जंग में देखो कौन जीतता है :)
जवाब देंहटाएंये लो. अब इसमें न मानने वाली कौन सी बात है? मैने तो तुम्हें उसी समय ये बात बताई थी :(
हटाएंवंदना जी सपनो की दुनिया बड़ी रहस्यमयी है.......
जवाब देंहटाएंजिन्होने अनुभव किया कुछ...जैसा आपने किया या सतीश जी ने किया ...तब तो वो यकीं करता है...
और जिसको कभी कोई अनुभव न हुआ हो वो कोई लाख कहे नहीं मान सकता. यानी कोई ५०-५०% का हिसाब मान लें.....
सपना अगर हुआ सच तो सच....वरना किस्से का हिस्सा ......
सादर.
सही है. एकदम ऐसा ही है.
हटाएंवंदना तुम्हारा दूसरा वाला सपना .....ऐसा ही कुछ मेरे साथ अब तक होता रहता है.हालाँकि इन सब बातों पर मैं विश्वास नहीं करती पर सच कहा है.स्वं पर बीती कैसे नकार दे कोई.बेशक अवचेतन मन की अवस्था हो या फिर कुछ और ..कुछ न कुछ तो है ही.
जवाब देंहटाएंशिखा, अवचेतन की घटनायें अलग होती हैं. यहां तो वही सपना साक्षात रूप ले चुका है. तुम्हारे साथ भी ऐसा हुआ है, तो तुम मुझे समझ सकोगी, उम्मीद है. जब कोई सच को झुठलाने लगता है तो कितनी तकलीफ़ होती है न?
हटाएंहकीकत का रूप ले ही लेते हैं सपने कभी न कभी पर सपनों का रहस्य समझना आसान नहीं है
जवाब देंहटाएंहां सचमुच संजय, बहुत रहस्यमय है सपनों की दुनियां.
हटाएंविज्ञान की जितनी जिम्मेदारी अंधविश्वासों को दूर करने की बनती है, उतनी ही इन घटनाओं को समझाने की बनती है।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी बहुत इच्छा होती है सपनों के रहस्य को जानने-समझने की.
हटाएंदेर से टिप्पणी दे पाने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ वंदना जी !
जवाब देंहटाएंलीक के फकीर हम लोग आजकल परालौकिक विषयों, स्वप्नों, अलौकिक और अतीन्द्रिय शक्तियों के बारे में चर्चा से बचते हैं कि कहीं हमें अज्ञानी न मान लिया जाए, सो उस नाते आपने यह हिम्मत का काम किया है कि अपने अनुभव को हिम्मत के साथ शब्द प्रदान कर दिए , शुभकामनायें और बधाई स्वीकारें !
सवाल इन मान्यताओं और अनुभवों को सार्वभौमिक तौर पर स्थापित करने का नहीं है बल्कि इन विषयों और अनुभवों पर चर्चा करने का है, अधिकतर घरों में यह चर्चा के विषय रहते हैं मगर लेखन से लगभग त्याज्य हैं ! यह विषय सेक्स जैसा ही है जिसे हम भोगते रोज हैं मगर चर्चा करने में डर लगता है !
आज आपके अनुभव पढ़कर अच्छा लगा ...ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि आने वाले समय में, इन विषयों पर लोग खुल कर लिखने आगे आयेंगे, सवाल इन विषयों पर आस्था उत्पन्न करना नहीं है बल्कि ईमानदारी से अपने अनुभवों को बांटते हुए एक दूसरे पर विश्वास करना है !
आधुनिक साइंस की मान्यता है कि मानव मस्तिष्क की क्षमताओं और शक्तियों के बारे में अभी हम कुछ नहीं जानते फिर भी हम एक दूसरे के अनुभव पर आसानी से अविश्वास कर लेते हैं !
"सब लोग क्या कहेंगे" से डरे हुए हम लोग अपने आपको विद्वान कहते हैं...
सतीश जी, लोग शायद , अंधविश्वासी साबित न हो जायें, इस डर से इस तरह के अनुभवों को साझा नहीं करते. लेकिन मुझे भी लगता है कि परालौकिक शक्तियों का यदि अनुभव हुआ है, तो उसे ज़रूर बांटना चाहिये, क्या पता कब किसी अनुसंधान का कारण ही बन जायें ये अनुभव. आभार आपका.
हटाएंनिश्चित तौर पर सपने कहीं न कहीं हमारे अवचेतन की उपज होते हैं. शायद सपने देखने के बाद हम उसे समग्र रूप से अवचेतन में स्थित स्थितियों से सम्बंधित न कर पायें और उन्हें या उनको विस्मृत कर दें पर वह उपजती वहीं से हैं.
जवाब देंहटाएंइनका सम्बन्ध भविष्य से जोडना और किसी संभावना से जोड़ने पर कहीं ज्यादती तो नहीं हो जायेगी.
वर्मा जी, पहली घटना अवचेतन की उपज हो सकती है, लेकिन दूसरी? पापा की फ़ाइल के बारे में मुझे कुछ पता नहीं था.
हटाएंवंदना जी,..जहाँ तक मेरा मानना है,सपने अगर मन में स्थान बना ले,बार बार सपने का ख्याल आये तो कभी न कभी वे सपने सच जरूर होते है,वरना सपने तो सपने होते है,
जवाब देंहटाएंपहली बार, आपकी पोस्ट आना सार्थक रहा,..मेरे पोस्ट पर आइये स्वागत है,...
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
धीरेन्द्र जी आप पहली बार यहां आये हैं, या पहली बार मैं कुछ सार्थक लिख पाई हूं?? यहां तक आने के लिये शुक्रिया.
हटाएंऐसे सपने तो मुझे भी आते हैं वंदना जी.
जवाब देंहटाएंवंदना जी, किसी चीज को पूर्ण रूप से नकारना उचित नहीं होगा,जब तक पूरी सच्चाई सामनें न आ जाये. लगभग तीन वर्ष पहले की बात होगी ,मुझे भोपाल जाने के लिये रात्रि की ट्रेन शहडोल से पकड़नी थी ,९बजे रात मै घर से शहडोल के लिये निकला .रास्ते में कसेढ नामक नदी पड़ती है,जैसे ही मेरी कार वहां पहुची ,दूर रोड में नीले रंग का तेज प्रकाश दिखाई पड़ा मेरे ड्राइवर बीगन सिंह ने मेरी तरफ देखा ,मैने चलते रहने को कहाँ . प्रकाश इतना तेज था की कार की रोशनी फीकी लगाने लगी. जब पास पहुचे तो देखा ,एक काफी बड़ा काला सर्प फन उठाये कुंडली मार कर रोड के किनारे बैठा था उसका मुह खुला था,उसी से तेज प्रकाश निकल रहा था, ड्राइवर ने घबडा कर कार रोक दी ,मैने भी उसे गौर से देखा ,आखों से सब देखते हुये भी मन को विश्वास नही हो रहा था .वीगन सिंह ने उसे प्रणाम किया ,तथा मैने भी .मैने गाडी ले चलने को कहा,ड्राइवर नें कहा साहब यह मणि धारी साप है, सुना मैने भी था पर देखने के बाद भी मन माननें को तैयार नहीं था, मन में बार बार यही प्रश्न उठ रहा था की क्या कोई जुगनू की तरह इनमे भी पदार्थ होता है जो रोशनी फेकता हो, जिसे लोग मणि का नाम देते हो,जो देखा उसे जगती आखों का सपना भी नहीं मान सकता,क्यों की मेरे साथ मेरे ड्राइवर ने भी वही देखा था , न ही मणि धारी सर्प की हकीकत को स्वीकार कर पा रहा हूँ. ऐसे में यही कह सकता हूँ ,ईश्वर ही जाने सच क्या है.
जवाब देंहटाएंविक्रम जी, ऐसा अद्भुत नज़ारा मैने अपने पैतृक ग्राम में देखा है. आपने भी ज़रूर देखा होगा.
हटाएंसपने अकसर सच भी होते है..वंदना जी मै आज पहली बार यहाँ आई हूँ बहुत अच्छा लगा..अभिव्यंजना में आप का स्वागत है..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महेश्वरी जी.
हटाएंthanks shanti ji.
जवाब देंहटाएंकृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
जवाब देंहटाएंkabhii kabhii sapane bhii sach hote hae,nepoliyan bonapaart ka bhii ek sapana sach saabit huaa tha
जवाब देंहटाएंसही है नन्दिता जी.
हटाएंबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut dinon baad aayi hoon, vaise sapane ka rahasya kahin na kahin hamare avachetan se juda rahata hai aur mere to bahut sare sapne aise hi mile jo koi kuchh kahana chahta hai aur spane men kah gaya.
जवाब देंहटाएंसपनो में संकेत मिलना अक्सर सुना है लोगों से..
जवाब देंहटाएंआप को भी यह अनुभव हुआ .
कोई माने या न माने ,बहुत ही बातें आज भी विज्ञान की समझ से परे हैं.
मुझे तो कहानी जैसा रोचक लगा आप का यह लेख.
thank u alpana ji :)
हटाएं[aap ki nayee profile tasveer bahut achcee lagi..sundar!]
जवाब देंहटाएंare waah!!! bahut saara thank u hai ab to :) :)
हटाएंनहीं सपने यूँ ही नहीं आते हैं ..मुझे अपनी माँ की मृत्यु का सपना बहुत समय से आता रहता था और कैसे होगी उनकी मृत्यु वह भी .पर बहुत छोटी थी लगभग १२ साल की सो समझ नहीं पाती थी की क्या है यह ..माँ से चिपक कर सो जाती थी बस उस सपने के आने के बाद ..और फिर वही हुआ जो देखा था ..कुछ समय बाद उनकी वैसे ही बहुत छोटी उम्र में मृत्यु हो गयी ..और उस के बाद वो सपना फिर मुझे कभी नहीं आया :(
जवाब देंहटाएंउफ्फ्फ....कभी कभी लगता है, अगर सपने सच ही होने हैं तो वे न ही आयें....
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जवाब देंहटाएंबिल्कुल ऐसी ही घटना मेरे मामाजी के साथ हुई...नानाजी अचानक मुरादाबाद से मामा जी के पास आ गए सब चौंक गए क्यों कि कोई पूर्व सूचना नहीं थी...उसी रात सोते -सोते उनका देहावसान हो गया...बाद में मामा जी वसीयत की फ़ाइल को लेकर बहुत परेशान थे तो नाना जी ने सपने में बताया और वहीं मिली 🙏
बुआ, अक्सर सपनों में वो दिखता है जो घटित होने वाला होता है...कभी स्पष्ट रूप से, कभी संकेतों में...। मेरे साथ, माँ के साथ और मेरे एक मामा के साथ ऐसा बहुत बार हुआ है...। जल्दी ही शायद मैं भी बताऊँगी...।
जवाब देंहटाएंसपने कई बार सिर्फ 'सपने' नहीं होते...।