चौदह अक्टूबर को श्री लालकृष्ण आडवाणी की रथ-यात्रा सतना पहुंची. चूंकि मध्य-प्रदेश में भाजपा की सरकार है, सो पूरा प्रदेश ही इस यात्रा की अगवानी और तैयारियों में बिछा जा रहा था. सतना में भी ज़ोरदार तैयारियां हुईं. रात में ही विशाल जन सभा का आयोजन हुआ. भारी भीड़ जुटी या जुटाई गयी. सुबह सारे अखबार इस जनसभा की तस्वीरों और समाचारों से अटे पड़े थे. लेकिन इस खबरों के पार्श्व में एक और खबर भी थी, जिसने मन खराब कर दिया. खबर थी पार्टी के अधिकारियों द्वारा आमंत्रित पत्रकारों को पांच-पांच सौ के लिफ़ाफ़े बांटने की. किसी एक पत्रकार ने इस घटना को अपने कैमरे में कैद कर लिया, और देखते ही देखते ये समाचार राष्ट्रीय समाचार बन गया. कल तमाम राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों की हैड लाइन था ये समाचार.
राजनैतिक फलक पर होने वाली हलचल मुझे कभी उद्वेलित नहीं करती, लेकिन अन्य किसी क्षेत्र से जुड़े समाचार मुझे खुश या नाखुश ज़रूर करते हैं. फिर ये मामला तो पत्रकारों से जुड़ा हुआ था, यानि मेरे अपने ही क्षेत्र से जुड़ा समाचार था.
दुख यहां पैसे बंटने का नहीं था, बल्कि पत्रकारों द्वारा ले लेने का था :(
किसी भी राजनैतिक दल द्वारा सांसदों को खरीदने, मतदाताओं को खरीदने, आम सभा में भीड़ को जुटाने के लिये पर्याप्त पैसा खर्च किया जाता है, तो राजनैतिक दलों द्वारा खरीदने की कोशिश नयी नहीं है, लेकिन पत्रकारों का बिक जाना दुखद है.
ऐसा नहीं है कि इस तरह की कोशिश पहली बार की गयी हो. "पेड-न्यूज़" का चलन अब पुराना हो गया है. कई दल खबरें न छापने के लिये पैसा देते हैं, तो कई विरोधी दल की खबरें छापने के लिये पैसा खर्च करते हैं. लेकिन यहां किस बात के लिये पैसे दिये जाने की कोशिश की गयी, समझ में नहीं आया. महज पांच-पांच सौ के लिफ़ाफ़े लेने के पीछे यदि पत्रकारों का मक़सद पार्टी की निम्न स्तरीय हरक़त दिखाने का था, तो इन सबने उसी वक्त आपत्ति दर्ज़ क्यों नहीं करवाई? मामला तो तब भी प्रकाश में आता ही, बल्कि ज़्यादा कारगर तरीक़े से सामने आता.
संविधान के दो अतिमहत्वपूर्ण स्तम्भ संसद और मीडिया , दोनों ही लगातार विवादों में रहने लगे हैं. संसद की निष्पक्षता तो कभी खबरों में थी ही नहीं, लेकिन मीडिया एक समय में अपनी निष्पक्षता और खबरों की प्रामाणिकता के लिये जाना जाता था, लेकिन अब मीडिया की छवि ही मसखरे की तरह हो गयी है.
रेडियो सरकारी तंत्र का मुखबिर है तो टीवी चैनलों को अफ़वाहों की पुष्टि करते रहने से फ़ुर्सत नहीं है. पीत-पत्रकारिता ने जड़ें जमा ली हैं. रेडियो के समाचार सुनो तो वहां केवल सरकारी कामकाज का गुणगान होता रहता है. न्यूज़ चैनल किसी एक खबर को पकड़ते हैं तो पूरा तंत्र बस उसी खबर को दोहराता रहता है. खास तौर से किसी फ़िल्मी हस्ती के जीवन में झांकने या किसी भी ख्यातिलब्ध व्यक्ति की व्यक्तिगत मीमांसा में मीडिया को ज़्यादा मज़ा आने लगा है. आम आदमी देश-विदेश के खास समाचार जानने की इच्छा मन में ही लिये रह जाता है. यदि पत्रकारिता ही बाज़ार में पहुंच गयी तो क्या होगा?
अखबारों से भी अब वास्तविक पत्रकारिता ग़ायब है. सभी अखबार प्रायोजित खबरों से भरे होते हैं. अखबारों की अपनी रिपोर्टिंग या किसी खास घटना के आगे का हाल जिसे हम अखबार की भाषा में स्टोरी-डेवलपमेंट कहते हैं, पढने को अब आंखें तरसती रह जाती हैं.
ऐसी खरीदी और बिकी हुई पत्रकारिता का क्या भविष्य होगा, राम जाने!
न जाने क्या लिखा है भविष्य में।
जवाब देंहटाएंऐसी खरीदी और बिकी हुई पत्रकारिता का क्या भविष्य होगा, राम जाने!
जवाब देंहटाएंHaan! Bhagwaan hee jane!
मीडिया को खरीदना आज की सच्चाई है. कई बार तो मीडिया बाक्यादा उगाही भी करता है. अब तो उन्हें एक बढ़िया हथियार भी मिल गया है आर टी आई के रूप में.
जवाब देंहटाएंयह खबर टेलीविजन पर देखी थी।
जवाब देंहटाएंपत्रकारों को अपने समाचार कवरेज के लिये पत्रकार वार्ता के बहाने खिलाने-पिलाने और स्मृति चिन्ह देने के बहाने उपहार देने का चलन तो आम सी बात है। यहां शायद उपहार नहीं मिल पाये होंगे तो नकद थमा दिये।
यह भी लगा कि सतना के पत्रकारों की बड़ी कम कीमत समझते हैं राजनेता लोग। पांच सौ रुपये में आजकल क्या होता है जी। :)
प्रख्यात पत्रकार स्व.अखिलेश मिश्र ने मीडिया की स्थिति पर एक लेख लिखा था देखियेगा- मीडिया: ठसक बढ़ गई, हनक जाती रही- अखिलेश मिश्र
पत्रकारिता जैसे noble profession पर से भी विश्वास उठता जा रहा है
जवाब देंहटाएंआप जुमलों को कसौटी पे परखिये पहले
वरना मफ़हूम बदल देगा सहाफ़त का निज़ाम
' 'शेफ़ा'
उम्दा पोस्ट !!
ये तो सच है...अब किसी पर भरोसा नहीं रहा....अखबार न्यूज़ चैनल्स सबका पता होता है...कि किस पार्टी को सपोर्ट करते हैं ये.
जवाब देंहटाएंअखबारों की तो फिल्मो की समीक्षा पर भी भरोसा नहीं रहता...जिस निर्माता-निर्देशक ने पैसे खिलाए .उसकी घटिया फिल्मों के भी तारीफ़ के पुल बाँध देंगे...
किसी भी तरह की पत्रकारिता अब निष्पक्ष नहीं रही.
हर डाल पर ....
जवाब देंहटाएंयही तो समस्या है..... अब जनता तक सच और स्पष्ट बातें पहुंच ही कहाँ पाती हैं......
जवाब देंहटाएंआज का मीडिया- प्रिंट और दृश्य, धनिकों के हाथ में है तो धन ही देवता हो गया ना :)
जवाब देंहटाएंरेडियो के समाचार सुनो तो वहां केवल सरकारी कामकाज का गुणगान होता रहता है. न्यूज़ चैनल किसी एक खबर को पकड़ते हैं तो पूरा तंत्र बस उसी खबर को दोहराता रहता है. खास तौर से किसी फ़िल्मी हस्ती के जीवन में झांकने या किसी भी ख्यातिलब्ध व्यक्ति की व्यक्तिगत मीमांसा में मीडिया को ज़्यादा मज़ा आने लगा है.
जवाब देंहटाएं.sach kaha aapne ...apni-apni dhapli apna-apna raag alapne mein hi inko achha lagta hai..
bahut badiya jaagruktabhari prastuti...aabhar!
अंधेर नगरी चौपट राजा ....
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपमें और मुझमे एक साम्य है......... हमारे अपने बारे में विचार बहुत मिलते हैं....
जवाब देंहटाएंबहरहाल जो बिकता है उसके खरीददार हैं....... और कुछ बिकाऊ ना हो इसका मतलब है की ऊपर की बोली कोई और लगा चुका है... ऐसी दशा में मूल्य बढ़ा देना चाहिए..... अब कौन समझाए की प्रेस की आजादी और महज ५०० रूपये..... भाई बुरी बात है....... इतना भी मत गिराओ...
सच्छाई से रूबरू कराती पोस्ट है आपकी ... आज सबका विश्वास उठ गया है मीडिया और पत्रकारों से .. इस्कोप पुन्ह स्थापित करने का काम भी मीडिया और पत्रकार ही कर सकते हैं ...
जवाब देंहटाएंबस विचार कर सकते हैं या चिन्ता ...
जवाब देंहटाएंचिंतनीय पोस्ट
मीडिया वाले जो कहते हैं उसीपर सब यकीन करते हैं! अखबार और टीवी में जो दिखाया और सुनाया जाता है हमें लगता है की वही सच है पर असल सच्चाई कुछ और ही होता है!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
सच कह रही है आप | टी. वि .के समाचारों से उकताकर रेडियो और दूरदर्शन में समाचार ढूंढने पर भी सरकारी गुणगान ही मिलता है |आम जीवन तो जैसे हाशिये पर आ गया है |
जवाब देंहटाएंप्रभावी प्रस्तुति , आभार.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें.
vandana ji
जवाब देंहटाएंmain bhi rachna ji ki baat se sahmat hun.jahir hai ek patra kaar hone ke naate aapka man jaroor hi uddhelit ho gaya hoga.ab to koi news sunne ki ikchha bhi nahi rahti kyon ki pata hai har news ko apne man mutabik ghataana ya badhana midiya ka kaam rah gaya hai.
achhi lagi aapki prastuti
dhanyvaad sahit
poonam
सही कहा...यही हाल है अब देश के भविष्य...
जवाब देंहटाएंवंदना जी, पत्रकारिता से जुड़े लोग भी इसी समाज से आते हैं....और ज़्यादातर व्यवस्था का हिस्सा होकर रह जाते हैं :) :) :)
जवाब देंहटाएंराम जाने!
जवाब देंहटाएंमामले पर ''सक्षम'' ही टिप्पणी करें तो बेहतर.
जवाब देंहटाएंराम जाने.
जवाब देंहटाएंएक फिल्म भी आयी थी. और देश का भी
राम जाने.
दुख यहां पैसे बंटने का नहीं था, बल्कि पत्रकारों द्वारा ले लेने का था ......
जवाब देंहटाएंबेहद लज्जा जनक समाचार है यह .....
पर आपकी नेक नियति और ये आदर्श विचार आपको जरुर बुलंदियों तक पहुंचाएगा .....
आपकी चिंता बेमानी नही है.
जवाब देंहटाएंजैसे जैसे हमारी सोच का पतन
होता जा रहा है,समस्या गंभीर
होती जा रही है.
सुन्दर विचारोत्तेजक प्रस्तुति के
लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,वंदना जी.
आपका वादा था और फिर मैंने
नई पोस्ट भी जारी की है.
'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार
और अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित
कीजियेगा.
आपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
आपको दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनायें....
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपको, परिजनों और मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंदीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंway4host
RajputsParinay
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंदीवाली की शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंवंदना जी,आप मेरे ब्लॉग पर आतीं हैं तो बहुत अच्छा लगता है.समय मिलने पर फिर आईयेगा.
जवाब देंहटाएं'नाम जप' पर आपके अमूल्य विचार और
अनुभव जानकर मुझे बहुत खुशी मिलेगी.
आगे-आगे देखिए होता है क्या?
जवाब देंहटाएंआज के समय में पत्रकारिता अब निष्पक्ष नहीं है
जवाब देंहटाएं