रोज़ की तरह उस दिन भी मैंने अपने पेज का काम निपटाया और फिर रविवारीय पृष्ठ की सामग्री देखने लगी. दो-तीन आलेख एडिटिंग के लिए निकाले ही थे, कि हमारे मुख्य सम्पादक, श्री श्याम सुन्दर शर्मा
जी आये, उनके साथ एक गौरांग, सुदर्शना, गंभीर सी दिखने वाली लड़की भी भीतर आई. शर्मा जी बोले-
" वंदना, ये इस्मत हैं,
इस्मत की तरफ मैंने एक औपचारिक मुस्कान फेंकी, बदले में उसने भी हलकी सी मुस्कराहट बिखेरी. उस दिन ही हम लगभग आधे घंटे साथ रहे, और मुझे लगा, कि ये तो मेरी दोस्त है!
और फिर चल पड़ा सिलसिला हमारी मुलाकातों का, बातों का, सामयिक चिंतन का..
तब इस्मत गद्य-लेखिका थी, और सामयिक, सामजिक आलेख लिखती थी. 'देशबंधु' में उनके प्रकाशन का अधिकार मेरे पास था. बस, जम गई जोड़ी.
जल्दी ही हमारी दोस्ती पारिवारिक दोस्ती में बदल गई. ज़हूर भाई, उमेश जी, इस्मत, मैं, हम सब जब इकट्ठे होते तो देर रात तक गर्मागर्म राजनैतिक बहसें छिड़ी रहतीं. हमारी इस बहस में स्थान के अनुसार कभी अम्मा, तो कभी आपी और अम्मी साथ होतीं.
१९९० में होने वाली ये मुलाक़ात, १९९५ तक दाँत काटी दोस्ती में तब्दील हो चुकी थी. १९९५ में, मेरी बिटिया विधु के जन्म के पूर्व, तबियत खराब हो जाने के कारण मुझे एडमिट कर लिया गया, और तब इस्मत, जो कि शहर से दूर , केबिल फैक्ट्री की कॉलोनी में रहती थी, दोनों वक्त समय से खाना लेकर नर्सिंग होम में हाज़िर हो जाती थी. वो भी बड़े जतन से बनाया गया खाना. मना करने पर मानती नहीं थी, उल्टा ज़ोरदार डांट लगा देती थी. विधु के जन्म के बाद स्थितियां कुछ ऐसी बनी, कि मुझे ४८ बॉटल ब्लड चढ़ाया गया, जिसमें से आधे से ज्यादा का इंतजाम ज़हूर भाई ने किया था! अब इस बारे में और नहीं लिखूंगी, वर्ना हो सकता है कि इस्मत इस पूरे हिस्से को पोस्ट में से हटा देने की जिद पर ही अड़ जाए. मैं चाहती हूँ कि उससे कहूं, कि उसने मेरी जान बचाई है, लेकिन वो कहने ही नहीं देती. खैर छोड़ देती हूँ.
2000-2001 में ज़हूर भाई का स्थानान्तरण गोवा हो गया, खबर सुनने के बाद मुझे कैसा लगा बता नहीं पाउंगी. और इस्मत सतना से गोवा पहुँच गईं. भौगोलिक दूरी बढ़ गई.
तीन साल पहले इस्मत ने मुझे अपनी ग़ज़ल सुनाई( फोन पर) मैं चकित, जो लड़की अभी तक कविता लिखती ही नहीं थी, ग़ज़ल कहने लगी? वो भी इतनी सुन्दर, और संतुलित? साल भर हमारा ग़ज़ल सुनाने और सुनने का सिलसिला चला. फिर मैंने अपना ब्लॉग बनाया, और तभी से इस्मत को उकसाती रही ब्लॉग बनाने के लिए. जब भी उसकी ग़ज़ल सुनती, सोचती, काश ये रचनाएँ अन्य सुधिजन भी पढ़ पाते! जब भी मैं इस्मत से ब्लॉग बनाने के लिए कहती, उसके पास सौ बहाने होते. डेस्कटॉप खराब है, लैपटॉप श्रीमान जी ले जाते हैं. मुझे कम्प्यूटर और नेट
के बारे में बहुत कुछ नहीं आता, वगैरह-वगैरह
खैर लगातार पीछे पड़े रहने का नतीजा ये हुआ, कि झल्ला के उसने अपना ब्लॉग बना डाला :)
और दुनिया, जहान, वतन, समाज के तमाम हालात को लेकर इस्मत की खूबसूरत गौर-ओ-फ़िक्र का पैकर
"शेफ़ा" उपनाम के साथ हम सबके रूबरू आने लगा.
आज नौ अक्टूबर को उनके ब्लॉग ने सफलतापूर्वक एक वर्ष पूरा किया है, मेरी अनंत शुभकामनाएं अपनी इस इकलौती दोस्त के लिए, हमारी दोस्ती, और उसके ब्लॉग का सफ़र इसी तरह नित नई ऊंचाइयों को छुए.
तख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
परिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
इस्मत जी को उनके ब्लॉग के एक साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी भी अनंत शुभकामनाएं .
इस्मत जैदी जी के बारे में इतनी जानकारी भरा आलेख बडा अचछा लगा । उनके ब्लॉग को सालगिरह मुबारक ।
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंमोहतरमा इस्मत साहिबा को ब्लॉगिंग का एक साल पूरा होने के मौके पर मुबारकबाद...
आपने उनसे होने वाली मुलाक़ात और दोस्ती, पारिवारिक दोस्ती के सफ़र को बहुत ही भाव विभोर करने वाले अंदाज़ में पेश किया है...
आपके लेखन को भी बधाई.
दोस्ती के सच्चे संस्मरण दिल से निकले, दिल को छू कर, मन को रोमांचित कर गए।
जवाब देंहटाएंइस्मत जैदी बहुत अच्छा लिखती हैं।
ढेरों बधाई।
वंदना ,
जवाब देंहटाएंमैं क्या लिखूं ?????
तुम ने कुछ ज़्यादा तारीफ़ नहीं कर दी?????
ये तुम्हारा बड़्प्पन है वरना मुझ में ऐसा कुछ भी नहीं
जिस पर आलेख लिखा जाए ,
तुम्हें ज़िंदगी देने वाला वो है जो सारी दुनिया को चला रहा है मैं कौन होती हूं ?
बहर हाल मेरे पास शब्द ही नहीं हैं आज ,शुक्रिया कह कर तुम्हारे ख़ुलूस को छोटा नहीं करूंगी
वैसे भी नि:शब्द हूं ,दोस्ती का ये रूप देख कर भावुक हो गई हूं ,अल्लाह से दुआ है कि वो सब को तुम्हारे जैसे दोस्त दे ,दुआ करना कि मैं भी तुम्हारे जितनी अच्छी बन सकूं प्रयास करूंगी
अल्पना जी ,आशा जी ,शाहिद जी और देवेन्द्र जी आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद ,आप लोगों की ये शुभकामनाएं धरोहर हैं मेरे लिये
जवाब देंहटाएंसच... एक साल ही हुआ है क्या ? मुझे लगता है जब से होश में हूँ तब से "शेफ़ा" के शेर साथ ही हैं. इस्मत जी ऐसे ही मानवीय अनुभूतियों और उमीदों को लिखती रहें, दुआ.
जवाब देंहटाएंपरिचय का आभार। ब्लॉग पर होकर आते हैं।
जवाब देंहटाएंइस्मत जी, को ब्लॉग की सालगिरह की ढेरों मुबारकबाद...उनकी रचनाएं नित नई उचाईयों को छुए.
जवाब देंहटाएंइस्मत जी को तुम्हारी बातों से जाना था....और आज इतने प्यार से लिखा है संस्मरण...दुआ है, हर किसी को ऐसी दोस्ती नसीब हो.
vandana ji ...
जवाब देंहटाएंneeche diye dono link sahi nahi hain please theek kar len.
inpar click karte hain to 'PAGE not found 'aata hai.
ismat ji ko dhero badhaiyaan blog ke ek saal poore hone par .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर आत्मीय संस्मरण।
जवाब देंहटाएंपढ़कर बहुत अच्छा लगा। इस्मतजी का ब्लॉग बनाने और उनको प्रोत्साहित करने और लिखने के लिये उकसानें में आपका भी बहुत योगदान है।
इस्मतजी के परिवार की तारीफ़ करने में मुझे भी डर है कि वे कहीं आपसे मेरी टिप्पणी न खलास करा दें।
मैं बहुत दिन से आपसे अपने अखबारी दिनों के संसमरण लिखने का अनुरोध कर रहा था। आज इसे पढ़कर लगा इसे शुरुआत मानकर आगे लिखा जा सकता है। इस्मत जी से अनुरोध है कि वे गद्य लिखना फ़िर से शुरु करें।
इस्मत जी के ब्लॉग का साल पूरा होने पर उनको और आप दोनों को बधाई!
अस्सलाम अलैकुम ,
जवाब देंहटाएंशनिवार और रविवार को मुझे इस्मत जी के ब्लॉग से संबंधित सूचनाएं प्राप्त होती हैं लिहाज़ा कल उन्होंने आप का आलेख पढ़ कर सुनाया ,
मैं इस्मत जी की अनुमति से उन के ब्लॉग स्पेस को इस्तेमाल करते हुए कुछ अर्ज़ करना चाहता हूं
१-आप की और इस्मत की दोस्ती क़ाबिल ए तारीफ़ और अनुकरणीय है अल्लाह से दुआगो हूं कि ये जज़्बा क़ायम रहे और भगवान संसार के प्रत्येक व्यक्ति को ऐसे ही दोस्त और दोस्ती अता करे
२-ये आप की ख़ूबी है कि आप अपने अतीत को याद रखते हुए अल्लाह की नवाज़िशों पर हमेशा शुक्र्गुज़ार रहती हैं ,दुआगो हूं कि अल्लाह हम सब को ये तौफ़ीक़ अता करे ,बेशक जज़्ब ए शुक्र हर ख़ुशी का बेहतरीन celebration है और ग़म ओ तकलीफ़ का मरहम
३-मोहतरमा वंदना जी ,अब मैं जिस point को touch कर रहा हूं उस का न मैं expert हूं aur न authority मैं केवल एक इंसान की हैसियत से अपने ख़यालात का इज़हार कर रहा हूं लेकिन इस यक़ीन के साथ कि figures में तो कुछ ग़लती हो सकती है लेकिन मेरे points ke guiding priceples सही हैं और मैं उस पर यक़ीन और ज़िम्मेदारी के साथ अर्ज़ कर रहा हूं
हर वो शख़्स जो अल्लाह में यक़ीन रखता है वो ये समझता और मानता है कि उस के शरीर में मौजूद हर शय का मालिक भी वही है
यहां रोज़्मर्रा का एक उदाहरण देखते चलें : किसी मर्तबान में रखी हुई वस्तु का मालिक मर्तबान नहीं बल्कि मर्तबान का मालिक होता है ,अब ये मालिक की मरज़ी है कि वो जब और जितनी वस्तु चाहे उस में से निकाल ले या दूसरे , में shift कर दे ऐसे में मर्तबान को किसी एतराज़ का हक़ नहीं है
इसी तरह से जब हमारा और हमारे शरीर की हर शय का मालिक अल्लाह है तो हमारा शरीर इन चीज़ों के लिये केवल एक container की हैसियत रखता है चूंकि इंसान अल्लाह की अशरफ़ुल्मख़्लूक़ (सब से अच्छी कृति) है इस लिये अल्लाह ने इंसान को दिल ओ दिमाग़ अता किया ताकि वो इस शरीर की सभी अशिया की हिफ़ाज़त करे और अल्लाह की राह में इस का सही और मुकम्मल इस्तेमाल करे लिहाज़ा हर व्यक्ति का कर्तव्य है कि वो अपने शरीर की हिफ़ाज़त और रख रखाव करे लेकिन custodian ke taur पर, वो स्वयं को मालिक न समझ बैठे ,ज़िम्मेदारी की बेना पर,अधिकार समझ कर नहीं अब ये उस मालिक का हक़ है कि वो इस container की किसी शय को दूसरे में स्थानांतरित करने का हुक्म दे दे ,इन्हीं में हमारे श्हरीर में बहता हुआ ४.५० ली.ख़ून भी है . ऐसे में जैसे ही किसी medically fit शख़्स को ये सूचना मिले कि किसी दूसरे शख़्स को मस्लेहते खुदा ख़ून की ज़रूरत है और ये व्यक्ति उस व्यक्ति तक पहुंच सकता है तो ये सूचना उस व्यक्ति के लिये अल्लाह का हुक्म है कि वो फ़ौरन वहां पहुंचे और अपने को पेश कर दे medical procedure के तहत 300cc ख़ून के लिये, जिस की recovery volumewise 15 se 30 min. aur heamoglobinwise 15 se 30 दिन में हो जाती है ,अब आप बताएं कि इंतेज़ाम करने वाला कौन है .बेशक अल्लाह .
वंदना जी ,आप की ज़रूरत के वक़्त इंतेज़ाम सिर्फ़ अल्लाह ने किया था जिस के लिये हम सब उस मालिक के शुक्रगुज़ार हैं ,ऐसे वक़्त में दुनिया जिसे इंतेज़ाम करने वाला समझती है वो केवल सूचना पहुंचाने वाला होता है जो राह ए ख़ुदा में काम करता है ,और यहां मैं ये भी स्पष्ट कर दूं कि इन सूचना पहुंचाने वालों में मैं आधे से कम था न कि अधिक जैसा कि आप के सरल स्वभाव का ख़याल है ,बाक़ी और दूसरे भाई बहन थे जिन को हमारा सलाम . उस से पहले उन 48 लोगों को सलाम जिन्होंने राह ए हक़ में अपना blood transfusion का फ़र्ज़ पूरा किया जिसे हम blood donation कहते हैं और सलाम उन्हें भी जो अस्पताल पहुंचे थे लेकिन किन्हीं medical कारणों से उन का ख़ून नहीं लिया जा सका ,परवर्दिगार ए आलम से दुआगो हूं कि ये इंसानी जज़्बा क़ायम रहे जो बेशक इबादत का हिस्सा है ,आमीन .
ज़हूर ज़ैदी
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जवाब देंहटाएंवंदनाजी,
जवाब देंहटाएंआपने जो कुछ लिखा है, उसका कमोबेश साक्षी रहा हूँ ! इस्मत का 'शेफा' होने का सफ़र भी, दूर से ही सही, देखा-जाना है ! लेकिन, अपनी बात को सहजता से कह जाने की आपकी अदा सम्मोहित करती है !
इस आलेख की एक विशेषता यह भी है कि इसने एक 'नेगेटिव छाया' को इंसानी शक्ल दी है, जिससे ब्लॉगर मित्र परिचित नहीं थे अब तक !
आभार--आ.
वंदनाजी,
जवाब देंहटाएंपुनः --
ज़हूर जैदी भाई की टिपण्णी पढ़कर सिहर उठा हूँ ! ये ख़ुलूस, ये अंदाज़े बयाँ और उस सर्व-शक्तिमान अलाह पर अटूट निष्ठा तथा ये उदात्त भावना !! उफ़ !! ये सब जैदी भाई के काबिल ही है !
उनके इस विस्तृत विवेचन से मन भीग गया है और उस समय का मंज़र आँखों में तिर आया है !!
मेरे प्रभु जैदी भाई और इस्मत को ऐसा ही बनाये रखें और उन्हें तमाम खुशियाँ दें !! मेरा उन दोनों को बहुत-बहुत आशीष !!!
स्नेह सहित -आ.
कल बाहर था इसलिए इस पोस्ट को नही देख सका!
जवाब देंहटाएं--
इस्मत जैदी जी को ब्लॉगिंग का
एक वर्ष पूर्ण होने पर बहुत-बहुत बधाई!
--
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
जय माता जी की!
जैदी जी के ब्लाग के एक वर्ष पूरा होने पर अनेकानेक बधाई और आपकी दोस्ती सलामत रहे ऐसे ही शुभकामनाये |
जवाब देंहटाएंनवरात्री की शुभकामना |
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस्मत ज़ैदी जी की साहित्यिक यात्रा के बारे में
जवाब देंहटाएंइतने विस्तार से पढ़ कर बहुत प्रसन्नता हुई ...
सब से पहले वन्दना जी का आभार व्यक्त करना
इसलिए आवश्यक लग रहा है क्योंकि आपकी
सदप्रेरणा से 'शेफा' जी ने ब्लोगिंग प्रारम्भ की और हम सब उनकी रचनात्मक कुशलता और क्षमता से परिचित हो पाए ,,, धन्यवाद .
इस में कोई संदेह नहीं है कि इस्मत जी की ग़ज़लों में भारतीय जन-मानस की विविध जटिलताओं पर पढने को मिल जाता है ...
वह अपनी परिपक्व सोच को
निश्चित आकार दे कर अपने पाठकों से एक संवाद
बना पाने में समर्थ हैं ...
वह, सुन्दर शब्द-विन्यास और
अपनी अद्भुत एवं विलक्षण शैली के लिए
जानी और मानी जाती हैं ..
अपने समाज और परिवेश के प्रति उनकी
सजगता और सतर्कता उनकी बानगी में प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों रूपों में विद्यमान रहती है
और यही कारण है कि उन्हें बार बार
विभिन्न प्रकार के रूपकों व् बिम्बों पर
निर्भर नहीं रहना पड़ता.
"सिरात-ए-मुस्तक़ीम" नामक उनका
ब्लॉग इस प्रतीति की पुष्टी करता है कि
परमपिता परमेश्वर में उनकी अगाध श्रद्धा और आस्था उनकी लेखनी को बल प्रदान करते हैं .
'इस्मत'से 'शेफा' तक का सफ़र,
नई पीढ़ी को ,एक महा-यात्रा का प्रतीक बन,
भविष्य की एक बहु-आयामी व्यक्तित्व, और
एक गुरुजन-सरीखी प्रबुद्ध लेखिका से
परिचय करवाने वाला है . . . .अस्तु .
इस्मत जी, को ब्लॉग की सालगिरह की ढेरों मुबारकबाद.
जवाब देंहटाएंइस्मत जी को उनके ब्लॉग के एक साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंमेरी भी अनंत शुभकामनाएं .
नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जय माता जी की!
इस ज़माने में किस्मत वाले ही होते है वो जिनको एक सच्चा मित्र मिल जाये | आप दोनों की मित्रता खूब फले फुले |इस्मत जयदी और आपको शुभकामनयें
जवाब देंहटाएंआप दोनो को इस दोस्ती के लिए बधाई और इस्मत जी को उनके ब्लॉग के एक साल पूरा होने पर भी ।
जवाब देंहटाएंइस्मत जैदी जी के बारे में पढ़कर अच्छा लगा...ब्लोगिंग के एक साल की बधाई.
जवाब देंहटाएंइस्मत जी के ब्लाग के एक वर्ष पूर्ण होने पर बधाई...आप लोगों का एक दूसरे के प्रति आत्मीय मित्रता दूसरों के लिए उदाहरण है...संस्मरण मर्मस्पर्शी है।
जवाब देंहटाएंबहुत आत्मीय संस्मरण लिखा है ..भगवान आपकी ये दोस्ती हमेशा बनाये रखे.
जवाब देंहटाएंजैदी जी को ढेरों बधाई.
सार्थक लेखन के लिये आभार एवं “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बन जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
http://umraquaidi.blogspot.com/
आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
अल्लाह कि मर्जी..या आपा का प्यार...
जवाब देंहटाएंकुछ भी कह लीजिये...
पर जहां कितने ही एक ग्लास पानी के कारण दम तोड़ देते हैं...वहाँ इतने लिटर खून का इंतज़ाम हो पाना भी कमाल है...
जानकर हैरानी हुई के सिर्फ एक साल ही हुआ है हमारे फेवरिट ब्लॉग को.....
:)
आपकी दोस्ती को इश्वर हमेशा प्यार के खाद-पानी से सींचता रहे...
आज समझ ही नहीं आया कि क्या कमेन्ट करें...?
जवाब देंहटाएंतख़य्युलात की परवाज़ कौन रोक सका
जवाब देंहटाएंपरिंद जब ये उड़ा फिर कहीं रुका ही नहीं
इस्मत जी को एक साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई....
अभी आभजी उनके ब्लॉग से आ रहा हूँ .. ग़ज़ब का लिखती हैं वो ... उनकी शक्सियत से मिल कर बहुत अच्छा लगा ....
सच्ची दोस्ती ....बहुत बहुत शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर इस्मत जी को उनके ब्लॉग के एक साल पूरे होने पर बहुत बहुत बधाई.बहुत कुछ जाना इस्मत जी के बारे में आपके द्वारा
जवाब देंहटाएंBahut khoob likha hai aapne
जवाब देंहटाएंइस्मत जी का नाम सुना था। आजकल के बेहतरीन लेखकों में एक। उनसे परिचय कराने के लिए धन्यवाद। बहुत तुच्छ हूं कुछ कहने के लिए उनकी रचनाओं पर, सो बस पढ़ने का प्रयास रहेगा।
जवाब देंहटाएंवंदना जी ,आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आयी .और दोस्ती की नयी परिभाषा पायी .आज आगे बढ़ने की होड़ में जहां सब एक दूसरे का इस्तेमाल कर अपना रास्ता बनाते हैं आपकी और इस्मत जी की दोस्ती दूसरों के लिए मिसाल है.मेरी ढेर साड़ी शुभकामनाएं और बधाई.
जवाब देंहटाएंइस्मत जी से परिचय करवाने के लिए आभार ...इतनी जानकारी भरा आलेख.... आभार शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंलेखन के लिये “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंजीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव जीते हैं, लेकिन इस समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये मानव जीवन ही अभिशाप बन जाता है। अपना घर जेल से भी बुरी जगह बन जाता है। जिसके चलते अनेक लोग मजबूर होकर अपराधी भी बन जाते है। मैंने ऐसे लोगों को अपराधी बनते देखा है। मैंने अपराधी नहीं बनने का मार्ग चुना। मेरा निर्णय कितना सही या गलत था, ये तो पाठकों को तय करना है, लेकिन जो कुछ मैं पिछले तीन दशक से आज तक झेलता रहा हूँ, सह रहा हूँ और सहते रहने को विवश हूँ। उसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह आप अर्थात समाज को तय करना है!
मैं यह जरूर जनता हूँ कि जब तक मुझ जैसे परिस्थितियों में फंसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, समाज के हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यह भी एक बडा कारण है।
भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस प्रकार के षडयन्त्र का कभी भी शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल कुछ मिनट का समय हो तो कृपया मुझ "उम्र-कैदी" का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आपके अनुभवों/विचारों से मुझे कोई दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये! लेकिन मुझे दया या रहम या दिखावटी सहानुभूति की जरूरत नहीं है।
थोड़े से ज्ञान के आधार पर, यह ब्लॉग मैं खुद लिख रहा हूँ, इसे और अच्छा बनाने के लिए तथा अधिकतम पाठकों तक पहुँचाने के लिए तकनीकी जानकारी प्रदान करने वालों का आभारी रहूँगा।
http://umraquaidi.blogspot.com/
उक्त ब्लॉग पर आपकी एक सार्थक व मार्गदर्शक टिप्पणी की उम्मीद के साथ-आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”
vandna ji,
जवाब देंहटाएंnamskar
eksachcha dost jindgi me kab kahan kis mod par mil jaaye aapka jivan bhar saath nibhane ke liye ,ye koi nahi janta.ishwar ki kripa se aapko ek pyari aur bhut hi achhi dost mil gai hain.aap dono ko dosti barkarar rahe yahi shubh kamna hai.
ismat ji ko meri taraf se bhi bahut -bahut badhai bhejiyega.
dhanyvaad
poonam
पढ़कर बहुत अच्छा लगा। शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंदोस्त हों तो आप जैसी .....
जवाब देंहटाएंवंदना जी जानती हूँ दूसरों से अच्छा वर्ताव पाने के लिए खुद उससे भी ज्यादा अच्छा होना पड़ता है .....
और आपकी हर पोस्ट यही दर्शाती है .....
इस्मत जी ने पहले अपनी तस्वीर नहीं लगे थी ....तस्वीर लगा देने से इक नजदीकी आती है ....
अब हम पहचानते हैं इस्मत जी कौन हैं ....
ब्लॉग बना लेना और उसे सुचारू रूप से चलते रहना बहुत बड़ी बात है ...
आपको और इस्मत जी को ढेरों शुभकामनाएं .....
इस्मत जी को ब्लॉग के एक साल पूरा होने के लिए बधाई और शुभकामना ...
जवाब देंहटाएंआप दोनों की दोस्ती बनी रहे ...
इस्मत जैदी जी के बारे में इतनी जानकारी भरा आलेख बडा अचछा लगा । उनके ब्लॉग को सालगिरह मुबारक ।
जवाब देंहटाएंअब तो हमें भी उनके ब्लाग से रु-ब-रु होना ही पड़ेगा..............
लिंक तो बताएं..................
चन्द्र मोहन गुप्त
इनके ( इस्मत परिवार ) बारे में, अंदाजा तो था मगर आपके द्वारा यह विस्तृत जानकारी से न केवल जहूर साहब का परिचय मिला बल्कि इस परिवार के बड़े दिल की जानकारी भी मिली ! कुछ ऐसे ही अच्छे दिल के लोगों के कारण यह दुनिया जीने लायक लगती है ! जहूर साहब और इस्मत जी को मेरी हार्दिक शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआभार आपका इस लेख के लिए !
इस्मत जी के बारे में पढ़ कर मेरी ये सोच पुख्ता हो गयी के एक अच्छा इंसान ही अच्छी शायरी कर सकता है...यकीनन वो जितनी अच्छी शायरी करती हैं उतनी ही अच्छी इंसान भी हैं...आज की दुनिया में इस तरह के इंसान का साथ सिर्फ किस्मत वालों को नसीब होता है और मुझे आपकी किस्मत पर रश्क है...:-)
जवाब देंहटाएंनीरज
आपको सपरिवार विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंWah ! Kya baat hai! Mere paas to blog roll pe iskee bhee ittela nahee aayi...aaj to maine tumhari tippanion se link leke padhana shuru kiya hai!
जवाब देंहटाएंIsmat jee ko anekanek shubhkamnayen!
29 sept ko "Simte lamhen" ko ek saal hua,jo mujhe ab yaad aaya!
इस्मत जैदी जी के बारे मे जान कर बहुत अच्छा लगा, हमारी तरफ़ से शुभकामनाये, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंआपने इस्मत जी से इतना नजदीकी परिचय कराया... इसके लिए धन्यावाद! आपकी गद्य-भाषा का प्रवाह क़ाबिले-ग़ौर है...बधाई!
इस्मत जी, को ब्लॉग की सालगिरह की ढेरों मुबारकबाद
जवाब देंहटाएंअज इस्मत जी का ब्लाग देखा और शाहिद जी की टिप्पणे पढी तो आपके ब्लाग तक पहुँची। दोस्ती हो तो ऐसी। मुझे नाज़ है आप दोनो की दोस्ती पर दुआ करती हूँ कि ये दोसती उम्र भर्रहे। दोनो को बहुत बहुत बधाई। हाँ इस्मत जी को ब्लाग की सालगिरह पर बहुत बधाई औए शुभकामनायें। वैसे उनकी तस्वीर देख कर तो मेरा दिल भी उन पर आ गया है।
जवाब देंहटाएंइस्मत जैदी जी बाकई अच्छी लेखिका है
जवाब देंहटाएंमगर वंदना जी जिसतरह अपने उन्हें पस्तुत किया है
काबिले तारीफ है .......धनतेरस की हार्दिक शुभकामनायें
bahut achcha laga lekh.
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