सोमवार, 24 मई 2010

परीकथा सा सुन्दर, गंगाजल सा निर्मल....

गोवा की अधूरी पोस्ट पर इतनी झिड़कियां (स्नेहसिक्त) मिलीं, कि तुरन्त आगे का वृतांत लिखने बैठ गई.
तो शुरु करूं? :)

पिछले कई सालों से इस्मत( ज़ैदी "शेफ़ा कजगांववी" ) गोवा आने का आग्रह कर रही थीं और हम हर बार आने का आश्वासन दे रहे थे. लेकिन इस बार उन्होंने धमकाते हुए पूछा-
" गोआ पहुंचने की तारीख बताओ"
हम डर गये. कहा-
" कल ही रिज़र्वेशन करवाते हैं और तुम्हें तारीख बताते हैं."
आनन-फानन रिज़र्वेशन हुआ और इस्मत को खबर की गई कि हम आठ मई को सतना से रवाना होंगे और दस मई को गोआ पहुंच जायेंगे.
इस्मत, ज़हूर भाई, आश्ती और मुशीर सब प्रसन्न. यहां हम अपनी खरीदारी में व्यस्त हो गये. तैयारियां अपने शबाव पर थीं कि एक रात इस्मत का फोन आया-
" अत्यंत आवश्यक कार्यवश मुझे बाहर जाना पड़ रहा है, कम से कम एक महीने के लिये."
खबर सुनते ही अपनी गोआ-यात्रा रद्द होने के शोक में हमारे चेहरे लटक गये. लेकिन उधर इस्मत और ज़हूर भाई दोनों का आग्रह था कि किसी प्रकार हमारा कार्यक्रम बना है, लिहाजा इसे रद्द न करें और नियत समय पर गोआ पहुंचे. खैर हमने उनके आग्रह का मान रखा और आठ मई को अपनी यात्रा पटना-वास्कोडिगामा सुपर फ़ास्ट ट्रेन से रात ग्यारह बजे शुरु की.
सतना से लेकर खंडवा तक केवल वीरान, सूखे जंगल और बंजर ज़मीन के दर्शन हुए. लेकिन भुसावल के बाद मन प्रसन्न हो गया. चारों ओर हरियाली का साम्राज्य. ट्रेन जब कोंकण क्षेत्र में पहुंची तब तो हम विस्मित हो गये. लगा इसे ही तो स्वर्ग कहते हैं!
पानी से लबालब भरी नदियां, नारियल, आम और भी कई तरह के वृक्षों से अटे पड़े जंगल.!! केवल हरियाली और पानी. ऊंची-ऊंची पहड़ियां, लेकिन घने पेड़ों से आच्छादित. दूर से हरे-हरे पहाड़ दिखाई दिखाई दे रहे थे, जैसे कोई चित्र देख रहे हों.

अंगूर के खेत और कोंकण की लबालब भरी नदियां.

मध्य-प्रदेश के सूखे से त्रस्त मैं, जब भी कोई हरी-भरी सीनरी देखती थी, तो सोचती थी , कि पक्का कलाकार ने मनगढंत चित्र बनाया होगा, लेकिन यहां प्रकृति की चित्रकारी देख विस्मित थी.
दस मई की सुबह हमारी ट्रेन अपने निर्धारित समय से पहले ही गोआ के "करमली" स्टेशन पहुंच गई. इस स्टेशन पर बने बांस के खूबसूरत यात्री पैदल पुल को देख कर तो हम आश्चर्य में पड़ गये. पुल को पार कर के जब हम एक नम्बर प्लेटफ़ॉर्म पर पहुंचे तो तय नहीं कर पा रहे थे, कि हम स्टेशन पर हैं या किसी पार्क में? हमें तो कचरे से अटे, पान की पीक से रंगे स्टेशन की आदत है, सो कदम-कदम पर चकित हो रहे थे.
पणजी का मुख्य चौराहा,------ करमली स्टेशन का भीतरी दृश्य.
दस मिनट के अन्दर ही ज़हूर भाई हमें लेने स्टेशन पर आ गये. सामान गाड़ी में लादा और हम भी साथ में लद लिये. गाड़ी ओल्ड-गोआ से होती हुई पणजी में प्रविष्ठ हुई , जहां से हमारा घर दस मिनट की दूरी पर था, तभी हमें याद आया कि हम अपना पर्स, जिसमें पांच हज़ार रुपये, मेरे सारे एटीएम कार्ड्स, पैन-कार्ड, पत्रकार संघ का आई कार्ड, मतदाता पहचान-पत्र, घर की सारी चाबियां, पूरे लगेज की चाबियां साथ में वापसी के टिकट और मेरे सोने के दो कंगन थे, स्टेशन के बगीचे की फ़ेंस पर ही छोड़ आये हैं :(
ज़हूर भाई ने बिना कुछ कहे, गाड़ी मोड़ी और हम वापस स्टेशन चल दिये.
हमारी गाड़ी ने जैसे ही स्टेशन में प्रवेश किया, हमारे उतरने के पहले ही, वहां टैक्सी स्टैंड पर खड़े टैक्सी ड्राइवर आवाज़ दे के कहने लगे,
" मैम आपका पर्स यहां छूट गया था, हमने अन्दर जमा करवा दिया है."
दो-तीन टैक्सी-ड्राइवर हमारे साथ अन्दर गये, और स्टेशन मास्टर व्यंक्टेश को बताया कि हमारा ही पर्स उन्होंने जमा करवाया है, तब एक एप्लीकेशन लेने के बाद पर्स हमें दे दिया गया, हमने देखा, पूरा सामान ज्यों का त्यों था. विकी नाम के जिस टैक्सी ड्राइवर को पर्स मिला, उसने कहा कि
"मैने पहले पर्स खोल के देखा, कि यदि कोई फोन नम्बर मिल जाये तो हम खबर कर दें, लेकिन जब नम्बर नहीं मिला तो हमने जमा कर दिया"
एक बार फिर हमारे चकित होने की बारी थी. यदि कोई और जगह होती तो क्या पर्स मिलता? छूटा हुआ रूमाल तो मिलता नहीं......
नतमस्तक थी गोआवासियों की ईमानदारी पर. तो ये थी मेरी पहली मुलाकात गोआ से. इस पहली मुलाकात ने ही अभिभूत कर दिया.
करमली स्टेशन का विहंगम दृश्य.

तस्वीरें: उमेश दुबे
(क्रमश:)

34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर.... चित्रों ने अभीभूत कर दिया...

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  2. खूबसूरत तस्वीरों के साथ-साथ गोवा यात्रा वर्णन ,अहा.क्या बात है..लग रहा था,जैसे सामने बैठ कर सुन रही हूं..जल्दी ही गोवा जाने का प्रोग्राम बनाना पडेगा..बहुत खूबसूरत फोटोग्राफ़ी की है दुबे जी ने हम तक यह सब लाने का शुक्रिया

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  3. आपने तो गोवा की इतनी विस्त्रत जानकारी दे दी ... लाजवाब चित्रो के साथ पूरा दर्शन करा दिया गोवा का ... वैसे बहुत नाम है गोवा का सैलानियों के बीच और आपकी कलाम और फोटोग्राफी बता रही है की गोवा सच में लाजवाब होगा ....

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  4. सुंदर वर्णन.
    गोवा घूमने की मेरी भी इच्छा है ..देखें कब पूरी होगी..!

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  5. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. वन्दना जी बहुत ही बढिया विवरण दिया इस यात्रा का, एक कमी रही उस टैक्सी वाले का एक फोटो यहा लगा देती तो ये पोस्ट बहुत कीमती हो जाती, आपके कन्गनो से भी ज्यादा.

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  7. विक्की को सलाम ! आज के दौर में ऐसे लोगो का मिलना नसीब की बात है !!
    हरी शर्मा जी से १००% सहमत ................यहाँ एक भूल हो गयी आपसे ! खैर, कोई बात नहीं ऐसे मौको पर इन बातो का ध्यान रहता भी नहीं है !!
    बाकी आपने घर बैठ बैठ ही गोवा घुमवा दिया इस के लिए बहुत बहुत आभार !!

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  8. गोआ के प्राकृतिक सौन्दर्य से
    प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता
    ये दावा आपकी इस पोस्ट को पढ़/देख कर
    भरोसे के साथ किया जा सकता है .....
    आभार

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  9. बहुत सुंदर विवरण ओर अति सुंदर चित्र

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  10. यही सब किस्से सुन ईमानदारी के बाकी होने पर विश्वास कायम रहता है...

    बढ़िया वृतांत..जारी रहिये.

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  11. बहुत सुन्दर वर्णन...और सच ऐसे ईमानदार लोगों से ही शायद दुनिया कायम है...वृतांत रोचक लिखा है...

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  12. बहुत सुक्ष्मावलोकन है आपकी इस पोस्ट में बहुत सुंदर ,अच्छा लगा गोवा को जानना

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  13. इमानदारी का ऐसा उदाहरण देखकर तो हम भी हैरान रह गए ।
    गोवा तो कई बार जाना हुआ है , लेकिन ऐसा अनुभव नहीं हुआ था ।
    सुन्दर विवरण चित्रों सहित । आभार ।

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  14. गोवा के उस टैक्सी ड्रायवर को नमन.

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  15. बड़े मजे से चित्रों का और तुम्हारी सरस लेखन शैली का आनंद ले रही थी कि पर्स का जिक्र आया और धडकते मन से जल्दी जल्दी आगे पढ़ा....दुनिया बस विकी जैसे लोगों के सद्कार्यों पर ही टिकी है...मुंबई में भी अक्सर ऐसी ख़बरें पढने को मिलती हैं...तुम्हारा सारा सामान वापस मिल गया वरना...गोवा घूमने का सारा मजा किरकिरा हो जाता.
    सुन्दर यात्रा-वृत्तांत आगे का इंतज़ार...

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  16. ०- धन्यवाद महफ़ूज भाई, प्रियदर्शिनी, दिगम्बर जी, देवेन्द्र जी, शास्त्री जी.
    ०- हरि जी, शिवम जी,उस वक्त हम सबकी मन:स्थिति ऐसी थी कि किसी को फोटो खींचने का खयाल ही नहीं आया. हालांकि बाद में हमें भी विकी की तस्वीर नहीं खींचने का अफ़सोस हुआ.
    ०- मुफ़लिस साहब, मैं पूरी कोशिश करूंगी, कि गोआ की खूबसूरती और वहां के अनुशासित जीवन को ईमानदारी के साथ आप लोगों तक पहुंचा सकूं. आप भी गोआ घूम ही आइये.
    ०- धन्यवाद राज जी, समीर जी, संगीता जी, रचना जी, विनय जी, हर्ष जी, डा. दराल साह, और हेम जी, आप सबकी आभारी हूं.

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  17. ०- सच है, रश्मि. दुनिया ऐसे लोगों के सत्कार्यों पर ही टिकी है. विकी को जब ईनाम के तौर पर कुछ राशि देनी चाही तो उसने साफ़ इन्कार कर दिया. बोला ये तो हमारी ड्यूटी है. मैं अभिभूत, नि:शब्द हूं.

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  18. बढिया वर्णन ...अच्‍छा लगा पढकर खासकर पर्स मिलने की घटना । वैसे देखा जाए तो अपेक्षाकृत विकसित क्षेत्रों में ईमानदारी ज्‍यादा देखने को मिलती है । या यह भी हो सकता है कि जहॉं ईमानदारी है वहॉं विकास ज्‍यादा होता है ।

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  19. अच्छी पोस्ट...पढ़ कर गोवा जाने का मन हो उठा..हरि शर्मा जी ने सही फरमाया ..टैक्सी वाले का एक फोटो यहा लगा देती तो ये पोस्ट बहुत कीमती हो जाती..

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  20. वंदना जी,
    गोवा यात्रा की दोनों पोस्ट पढ़ गया...
    आपको याद होगा, चार-पांच साल पहले मैं भी गोवा गया था.. वहाँ सड़क के दोनों किनारे घरों के बाहर गैस के खाली सिलिंडर प्लास्टिक की थैलियों में रुपये के साथ रखे देखकर मैं तो आश्चर्य से अवाक रह गया था ! उन की कोई रखवाली नहीं कर रहा था... गैस वेंडर जब आते तो भरा सिलिंडर रख कर खाली उठा लेते और शेष पैसे भी उसी प्लास्टिक की थैली में रखकर बाँध जाते ! east और नार्थ में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती ! यहाँ तो लोग नियमों की अवहेलना कर के आनंदित होते हैं, अनुचित करके गर्व का अनुभव करते हैं... इन बिना सींग के सांढों तक आपका अनुभव पहुंचे और वे अपनी सोच में परिवर्तन ला सकें, तो बड़ी बात होगी !
    सचेतन करनेवाला सुन्दर आलेख !
    सप्रीत--आ.

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  21. वंदना ,
    मैं क्या लिखूं ?सब तो तुम ने लिख ही दिया गोवा के बारे में ,सच!गोवा बेहद ख़ूबसूरत जगह है , आम तौर पर लोग ईमानदार और शरीफ़ हैं ,
    तुम ने जिस तरह से अपनी गोवा यात्रा का वर्णन किया है उस से सभी के मन में गोवा घूमने की ख़्वाहिश ज़रूर जाग गई होगी ,
    अपने लेखन की इस विशेषता के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करो

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  22. पिछली पोस्ट भी पढ़ी.
    sabhi ki sabhi बड़ी sundar tasveeren hain.
    goa ki natural beauty to manmohak hai hi...aap ke sansmaran se unki immandari भी maluum hui.
    bahut sundar vivran.

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  23. Hi..

    Aaj pahli baar aapke blog par aaya hun..aur akar achha laga..

    Yun to pune main kafi din raha par goa nahi pahunch paya.. Par ab lagta hai es aalekh ke sath kadi dar kadi hum bhi aapke sang Goa ghum lenge..

    Sundar aalekh..
    Agli kadi ki pratiksha main..

    DEEPAK SHUKLA..
    Www.deepakjyoti.blogspot.com

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  24. Behad achha laga yah yatra warnan...aur purse ka qissa! Waise,ek baat mujhe alagse bata dena...patidev ki zordaar jhidki mili ya bach gayin? :):)
    Aur haan! ab Ismat kee tarah mai bhi raub jama loongi...!Chhodungi nahi!
    Zara apna e-mail to check kar lo!

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  25. वंदना जी,
    पहली पोस्ट देखकर ही लग रहा था,
    कि पढ़ने और देखने के लिये अभी बहुत कुछ मिलने वाला है.
    देखा हमारा अनुमान कितना सही निकला.
    ईमानदारी का इतना खूबसूरत पहलू कि सहज ही यक़ीन नहीं होता.
    गोवा वालों को सलाम.

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  26. फोटोग्राफी बता रही है की गोवा सच में लाजवाब होगा ....

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  27. मेरे ब्लोग मे आपका स्वागत है
    क्या गरीब अब अपनी बेटी की शादी कर पायेगा ....!
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2010/05/blog-post_6458.html

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  28. अब अगर शेफा बाजी हमको भी धमकी दे के पुछें "" गोआ पहुंचने की तारीख बताओ" तो हम बिना रिज़र्वेशन के ही फॅमिली के साथ आ जाएं. और तब तक न जाएं जब तक यह न कहें "गोआ से जाने की तारीख बताओ" यह तोह खैर मज़ाक था शेफा के अखलाक की हम भी कद्र करते हैं.

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  29. हम भी कई बार गोवा हो आये हैं.. एक बार दस लोगों का ग्रुप था.. कोलवा बीच पर गोवा टूरिस्म के होटल में ठहरे थे.. एक शाम पास के एक रेस्तरा में डिनर के लिए.. मेरा एक प्लास्टिक का फोल्डर छूट गया.. उस फोल्डर में गोवा से मुंबई का सेकेण्ड ए सी का दस लोगो का टिकट.. मुंबई से दिल्ली की दस लोगो की फ्लाईट की टिकट थी... और थे कोई डेढ़ हज़ार रूपये... रात को तीन बजे याद आया कि कहीं कुछ छूट गया.. तभी भागा उस रेस्तरा.. वहां लोगो को उठाया.. नहीं मिला. फिर एक वेटर ने कहा कि साहब यदि यहाँ छूटा होगा तो मिल जायेगा.. मैनेज़र साहब सुबह आठ बजे आयेंगे तब आना... फिर नींद कहाँ आयी... आठ बजे पहुंचा तो मैनेज़र मुझे दूर से देखते हुए मुस्कुरा उठा.. उसकी वह मुस्कान मुझे आज भी याद है गोवा की तरह.. ऐसी ईमानदारी देश के किसी अन्य भाग में नहीं है... आपका यात्रा संस्मरण बेहद रोमांचक है..

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  30. हम भी कई बार गोवा हो आये हैं.. एक बार दस लोगों का ग्रुप था.. कोलवा बीच पर गोवा टूरिस्म के होटल में ठहरे थे.. एक शाम पास के एक रेस्तरा में डिनर के लिए.. मेरा एक प्लास्टिक का फोल्डर छूट गया.. उस फोल्डर में गोवा से मुंबई का सेकेण्ड ए सी का दस लोगो का टिकट.. मुंबई से दिल्ली की दस लोगो की फ्लाईट की टिकट थी... और थे कोई डेढ़ हज़ार रूपये... रात को तीन बजे याद आया कि कहीं कुछ छूट गया.. तभी भागा उस रेस्तरा.. वहां लोगो को उठाया.. नहीं मिला. फिर एक वेटर ने कहा कि साहब यदि यहाँ छूटा होगा तो मिल जायेगा.. मैनेज़र साहब सुबह आठ बजे आयेंगे तब आना... फिर नींद कहाँ आयी... आठ बजे पहुंचा तो मैनेज़र मुझे दूर से देखते हुए मुस्कुरा उठा.. उसकी वह मुस्कान मुझे आज भी याद है गोवा की तरह.. ऐसी ईमानदारी देश के किसी अन्य भाग में नहीं है... आपका यात्रा संस्मरण बेहद रोमांचक है..

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